Wednesday, September 3, 2008

अंधे को बनाया चौकीदार! है न अंधेर नगरी और चौपट राजा







छत्तीसगढ़ में जो न हो वो कम है। अब रायगढ़ जिले के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र को ही ले लीजिए। यहाँ की सुरक्षा व्यवस्था जिस व्यक्ति को सौंपी गई है वो खुद की देखभाल नहीं कर पाता है। दोनों ऑंखों की ज्योति खो चुके नेत्रहीन को यहाँ का चौकीदार बनाकर अफसरों ने ये साबित कर दिया है कि छत्तीसगढ़ में न केवल प्रशासन बल्कि शासन भी अंधा है।

ये चौंका देने वाला मामला सामने आया है रायगढ़ ज़िले के गाँव कोसीर का। यहाँ दोनों ऑंखों से लाचार नेत्रहीन को चौकीदार बनाकर अस्पताल की सरुक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी सौंप दी गई। अब जो खुद की देखभाल नहीं कर सकता, वो अस्पताल की देखभाल क्या करेगा ? इस बात को जानते-बूझते स्वास्थ्य विभाग के अफसरों ने मनमानी करते हुए नेत्रहीन चौकीदार की नियुक्ति कर दी।

ये अस्पताल सिर्फ नेत्रहीन चौकीदार के कारण ही नहीं पहचाना जाता है, बल्कि यहाँ के डॉक्टर और कम्पाउंडर भी कम फेमस नहीं है। डॉक्टर साहब तो महीने में 2-3 दिन ही अस्पताल आते हैं। कम्पाउंडर साहब भी डॉक्टर साहब से कम नहीं है। बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां.........। वैसे कभी-कभार पीने के बाद कम्पाउंडर साहब को अस्पताल की याद आती है तो पहुँच जाते हैं वो अस्पताल। गाँव के लोग उन्हें गाना गाते हुए इंजेक्शन लगाने में एक्सपर्ट मानते हैं।

इस बात की शिकायत इलाके के बीएमओ से कई बार की गई है। गाँव वालों का कहना है बीएमओ साहब भी कम नहीं है। वो अस्पताल से अच्छा ईलाज अपने घर में करते हैं। जिन मरीजों को शिकायत है उनसे पूछते हैं शिकायत करना ज़रूरी है ईलाज। और सब ज़रूरी ईलाज करवाने में लग जाते हैं।
ये हाल है छत्तीसगढ़ सरकार के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का। नेत्रहीन उसकी सुरक्षा कर रहा है वैसे ही जैसे ऑंख वाले अंधे सरकारी अफसर और नेता राज्य की रखवाली कर रहे हैं। इससे ज्यादा क्या कहा जा सकता है ? टके सेर भाजी, टके सेर खाजा, अंधेर नगरी, चौपट राजा।

12 comments:

जितेन्द़ भगत said...

आपका कहना बि‍ल्‍कुल सही है। ऐसी लापरवाही से जान जाने का खतरा तो है ही। प्रशासन की ऑंख न जाने कब खुलेगी।

ताऊ रामपुरिया said...

बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां.........। वैसे कभी-कभार पीने के बाद कम्पाउंडर साहब को अस्पताल की याद आती है तो पहुँच जाते हैं वो अस्पताल।

चारो तरफ़ यही हाल है "अंधेर नगरी चोपट राजा "
तू मुझे खिला, फ़िर चाहे सब कुछ खाजा "

अफसोसनाक .. मानवता के साथ खिलवाड़ है !
कम से कम चिकित्सा सेवाओं को तो बख्सो !

PREETI BARTHWAL said...

बिलकुल सही यहां अंधेर नगरी तो है ही और राजा भी चौपट है। ये कैसे डॉक्टर जो अस्पताल भी नही जाते मरीजों को देखने। अंधेर ही अंधेर है।

Nitish Raj said...

जय हो छत्तीसगढ़ की और बीएमओ साहब की जो कि खुद ही जितने ऊपर हैं उतने ही शायद नीचे भी हैं।

Ashok Pandey said...

बहुत अच्‍छा लिखा है आपने।
सचमुच यह अंधेर नगरी, चौपट राजा वाली ही स्थिति है। सच तो यह है कि ऐसे ही हालात अन्‍य जगहों पर भी हैं। जहां का चौकीदार अंधा नहीं है, वहां भी। जो अंधा है, वह तो अंधा है ही, आंख वाले भी अपने स्‍वार्थ में अंधे ही बने रहते हैं।

Shiv said...

अंधेर नगरी में अन्धा चौकीदार...

अनिल जी, जहाँ के चौकीदार अंधे नहीं हैं, वहां की सुरक्षा व्यवस्था क्या बहुत सुदृढ़ है? आपने ही बताया था कि गेंहू, चावल वगैरह चला एक जगह से लेकिन जहाँ पहुंचना था, वहां आजतक पहुंचा ही नहीं. अब पता करवाईये कि जहाँ से ये अनाज चला था और जहाँ पहुंचना था, उन दोनों जगहों के चौकीदार अंधे थे क्या? शायद नहीं होंगे. वैसे एक बात है, छत्तीसगढ़ भी कई मामलों में न्यूज में रहता ही है.

महेन्द्र मिश्र said...

बड़ा विचित्र रोचक समाचार है .

परमजीत सिहँ बाली said...

सच मे अजीब बात है।

दीपक said...

छ्त्तीसगढ की स्थिती सचमुच यही है निश्चीत मै आप से इस बात पर सहमत हु कि आप मरी हुयी खबरो को जिन्दा रखने की कोशीश कर रहे है और आपकी नजर सभी जगह है प्रेस क्लब के अंदर और प्रेस क्लब के बाहर सभी जगह !! शुभकामनाये

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

आपके ब्लॉग के बारे में अमर उजाला समाचार पत्र में पढता रहता था. आप भी अच्छा लिखने के साथ-साथ प्रोत्साहन अच्छा करते हैं नहीं तो हम आपसे अच्छा नहीं लिख पाते. धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

अजी हम तो एक ऎसे दॆश के राजा कॊ जानते हे, जो आंखो के होते भी अंधा हे, ओर उस के मंत्री एक से बढ कर एक लुच्चे चोर उच्चके, ओर जेब कतरे, लेकिन सब फ़िर भी राजा साहिब को सचा सुचा ओर इमान दार ही कहते हे,ओर खुद को देवता कहते हे,
आप का लेख पढ कर बहुत अच्छा लगा.लगता हे सब शेतान इस अस्पताल मे पहुच गये हे,ओर बीएमओ साहब जी इन सब के बाप हे
धन्यवाद

कामोद Kaamod said...

अंधेर नगरी और चौपट राजा
अफसोस सब एक से बड़कर एक