एक तो गरीबी ऊपर से समाज से बहिष्कृत, जीते-जी नर्क भोग रहा है छत्तीसगढ़ की पिछड़ा जाति का एक परिवार। गलती से उसने अपनी कन्या की शादी सरकारी 'निर्धन कन्या विवाह योजना' के तहत कर दी। इससे नाराज़ समाज के ठेकेदार उससे समाज की रीति-रिवाज नहीं मानने का आरोप लगाकर समाज से बहिष्कृत कर चुके हैं।
नीरू और रामबती छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले से महज 20 किलोमीटर दूर डीपाडीह गाँव में रहते हैं। गरीबी तो सबसे बड़ा अभिषाप होती ही है, उस पर से जवान बेटे की मौत ने नीरू को तोड़कर रख दिया था। ऐसे में जवान बेटी कमला की शादी की चिंता उसे जीते-जी मार डाल रही थी। तभी किसी ने उसे सरकारी 'निर्धन कन्या विवाह' की जानकारी दे दी। उसे लगा उसकी समस्या हल हो गई। खुशी-खुशी उसने कमला का विवाह कर दिया और जवान बेटी की शादी से फारिग होकर चैन की सांस लेने की सोची। लेकिन ये क्या जवान बेटी की शादी ही उसके लिए जी का जंजाल बन गई।
समाज के ठेकेदार उससे नाराज़ हो गए। कारण बोकरा-दारू यानि बकरा और दारू का भोज नहीं देना। अब जिसके पास खुद के खाने का ठिकाना नहीं वो भला गाँव भर को कैसे खिला सकता था। खाने को रूपए नहीं थे सरकारी योजना से शादी की अब गाँव वालों को भला क्या खिलाता ? उसने गाँव वालों से भविष्य में रूपया आने पर बोकरा-दारू खिलाने का वादा भी करना चाहा, मगर गाँव में समाज के ठेकेदारों ने तत्काल भोज कराने का फ़रमान जारी कर दिया और ऐसा नहीं करने पर समाज से बहिष्कृत भी कर दिया।
अब अपने ही गाँव में एक झोपड़ी में रामबती और नीरू समाज से बहिष्कृत होने का दंश झेलते हुए जी रहे हैं। बेटा खो चुके हैं, बेटी को विदा कर चुके हैं। दोनाें बचे हैं एक-दूसरे का दुख बाँटने के लिए। ऐसे में और कोई नहीं है उनके ऑंसू पोछने वाला। न वो सरकारी अफसर जिन्होंने उसकी बेटी का विवाह करवाया और न ही वो सरकार जिसने उसके जैसे गरीबों के भले के लिए ढेरों योजना चला रखी है। जिसमें से एक का दुष्परिणाम नीरू और रामबती भोग रहे हैं।
सरकार और सरकारी अफसरों को तो शायद पता भी नहीं होगा कि उसकी योजना का लाभ लेने वाले परिवार को कितनी बड़ी हानि हुई है। दरअसल सरकार और सरकारी अफसरों का एकमात्र एजेण्डा होता है, योजनाओं को लागू करना और अपनी गरीबों के मसीहा वाली इमेज को और मजबूत करना। शादी कराके अपनी उपलब्धि के ऑंकड़ों में इजाफा करने के अलावा शायद सरकारी अफसरों को उस परिवार से लेना-देना भी नहीं होता। हो सकता है निर्धन कन्या विवाह योजना के ऑंकड़ों में कमला की शादी ने इजाफा कर दिया हो और ऑंकड़ों की बाजीगरी करने वाले नेता और अफसर मिलकर कहीं से कोई प्रायोजित पुरस्कार जुगाड़ ले। फिर बड़े-बड़े पोस्टरों और विज्ञापनों में कमला की हंसती हुई तस्वीरें छपी नज़र आए बड़े-बड़े नेताओं के साथ भले ही उसकी माँ और बाप उसकी शादी के बाद खून के ऑंसू पीकर ज़िन्दा रहने को मजबूर हों।
9 comments:
यह तो आंख खोल देने वाली पोस्ट हो गयी। सच में समर्थ के तो पीछे घूमता है समाज और गरीब को कभी कभी पीस डालता है।
मेरी तो समझ नहीं आता - इण्डीवीजुअल बनूं या सोशल!
सरकार तो यह सब नहीं ही सोचती!
sir, is desh me samarthon ne hamesha vanchiton ka shoshan kiya hai, lekin ab yahan par log ise dekhne ki jagah agda-pichhda, aur sawarn-dalit le aate hain, insaan ko insaan ki najar se n dekhna hi sabse badi majboori hai, aur uspar khaaj yah ki jinpar jimmedari hai wo bhi apne faayde ke alawa kuchh nahi dekhte
बड़ी शर्मनाक घटना है अनिल भाई. बकरा और दारू के लिए लोग ऐसा करने पर उतारू हैं. क्या करें इस समाज को लेकर और क्या करें सरकार की ऐसी योजनाओं को लेकर? संवेदनशीलता का शीलहरण हो गया लगता है.
हमारे रीति रिवाज या यूं कहें थोपे गए रीति रिवाज हम पर भारी पड़ते है ये आम लोग कब समझेंगे पता नहीं।
एक अच्छी सरकारी निती से एक गरिब का भला तो हुआ यह जानकर खुशी हुयी !! रह गयी ए कच्ची विचारधारा वाली ग्रामिण सोच तो इससे मेरा घोर विरोध है इन्हे दुखी नही प्रसन्न होना चाहिये इन्हे ऐसे पाखंडी वातावरण से मुक्ती मिली है !! एक बात आपने सही कही कि अफ़सर आकडे पुरे कर रहे है पर उससे जादा जरुरी है मानवीय संवेदना !!
अत्यन्त ही शर्मनाक और अफ़सोसनाक है !
और ऐसा लगता है की हमारी संवेदनाशीलता
भी कही ख़त्म हो रही है !
जो समाज उस की इस दुख की घडी मे काम नही आया, उस की मजबुरियां नही समझता,अच्छा हे ऎसे समाज से दुर ही चला जाये, रीति रिवाज बने हे हमे सुखी करने के लिये हमे दुखी करे वह भी केसे रीति रिवाज.
बहुत ही भावुक पोस्ट हे आप की.
धन्यवाद
अफसोसजनक!!
शर्मनाक घटना है.....
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