Sunday, March 29, 2009

जंगलवारफ़ेयर कालेज का जंगल मे नही शहर मे बैठ कर जायजा लिया थलसेनाध्यक्ष दीपक कपूर ने

बेहद अफ़सोस की बात है कि पहली बार छत्तीसगढ के दौरे पर थलसेनाध्यक्ष दीपक कपूर नक्सल प्रभावित क्षेत्र स्थित जंगलवारफ़ेयर कालेज का निरीक्षण करने कांकेर नही जा सके।कारण जो बताया जा रहा है वो और शर्मनाक है।थल सेनाध्यक्ष के दौरे के लिये आये हेलिकाप्टर मे आई तकनीकी खराबी को दौरे पर नही जा पाने का कारण बताया जा रहा है।सेना के अध्यक्ष के दौरे के या हाल है,सोचिये क्या फ़र्क़ रह गया है अनुशासित और चाक-चौकस सेना और अस्त-व्यस्त,भ्रष्ट-पस्त सरकारी व्यवस्था मे।

खैर पता नही असली कारण क्या था लेकिन थल सेनाध्यक्ष दीपक कपूर कांकेर नही जा पाये।उनके दौरे से,उनके अनुभवो का कालेज को मिलने वाला लाभ नही मिल पायेगा।उनके दौरे के लिये आरक्षित हेलिकाप्टर मे खराबी की जानकारी दौरे वाले दिन की पूर्व संध्या पर मिल जाने के बावजूद वैकल्पिक व्यवस्था नही किया जाना बहुत सी शंकाओं को जन्म देता है।थल सेनाध्य्क्ष का दौरे के लिये हेलिकाप्टर उपलब्ध नही हो पाना भी आश्चर्य का विषय है।

कारण चाहे जो रहा हो थलसेनाध्यक्ष का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे जंगल वारफ़ेयर के ट्रेनी और प्रबंधन ज़रूर उनके दौरे के रद्द हो जाने से निराश हुआ।जंगल वार फ़ेयर कालेज के निदेशक ब्रिगेडियर पोवार खुद जंगल मे स्थित जंगल वार फ़ेयर कालेज के बारे मे जानकारी देने जंगल छोड्कर शहर आये और विडियो के जरिये जो हो सका वो जानकारी उन्होने थल सेना अध्यक्ष को दी।

अब पता नही कब थल सेना अध्यक्ष का छत्तीसगढ का दौरा होगा और कब यंहा के नक्सलियो से निपटने के लिये खोले गये जंगल वार फ़ेयर कालेज को असली योद्धा के अनुभव का लाभ मिल पायेगा।
पता नही महज हेलिकाप्टर मे तकनीकी कारण के कारण सेना के अध्य्क्ष का दौरा रद्द हो जाने की बात पच नही रही है। अगर वे वंहा जाते तो हो सकता है जान हथेली पर लेकर जंगल के युद्ध की ट्रेनिंग ले रहे जवानो का हौसला कुछ और बुलंद हो जाता मगर उनके वंहा नही जाने से हो सकता है बढती नक्सल वारदातो से कम्ज़ोर पड़ रहे मनोबल मे कुछ और गिरावट आये।जो भी थल सेना अध्यक्ष का दौरा रद्द हो जाना कोइ मामूली बात तो नही है,आखिर वो सेना के अध्यक्ष का दौरा था किसी टटपूंजिये नेता का नही।

26 comments:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

न जाने का बहाना है हैलिकोप्टर खराब , सेना के सबसे बड़े अधिकारी के फ्लीट मे कम से कम ३ हेलिकॉप्टर होते है

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

नक्सलियों के खतरे के चलते हो सकता है ऐसा किया गया हो.क्योंकि देश की और आम आदमी की सुरक्षा व्यवस्था अब भगवान के भरोसे ही है.

रवि रतलामी said...

"...थल सेनाध्य्क्ष का दौरे के लिये हेलिकाप्टर उपलब्ध नही हो पाना भी आश्चर्य का विषय है।..."

आश्चर्य है? घोर आश्चर्य है! भारतीय मानसिकता के चलताऊ एटीट्यूड का एक शानदार नमूना है ये या फिर कोई लीपा-पोती का उतना ही चमकाऊ मामला?

हद है!!

Gyan Dutt Pandey said...

हां अगर सेनाध्यक्ष जंगल में पंहुचते तो हौसलाबुलन्दी होती जरूर।

Anonymous said...

(इसे पूरा पढने के बाद ही छापने का फैसला लें। कहीं कोई विवाद ना खड़ा हो जाये, बेवजह। और मेरा मकसद कोई विवाद खड़ा करना नहीं है।)
अनिल जी, इसमें राज्य सरकार कहां से आ गई बीच में। सेना का तो अपना इंतजाम होता है सारा। छत्तीसगढ़ सरकार के पास तो एक-दो हैलीकॉप्टर होंगे, सेना के पास तो पूरा बेड़ा होगा। अपने चीफ के लिये एक भी नहीं भेज सकी वो। क्या कॉलेज बहुत दूर है, रायपुर से? हैलीकॉप्टर नहीं मिला तो जनरल कपूर को सड़क मार्ग से जाने के लिये जिद करनी चाहिये थी, वो बहादुर सेना के सेनापति हैं। इससे अच्छा संदेश जाता जनता, सेना और नक्सलियों के बीच। खतरनाक रास्ते और इलाके को देखने के बाद वो खुद भी महसूस कर लेते कि सिविलियन भी किन हालात के बीच में जीते हैं। वो जान लेते कि नक्सलियों से जूझ रहे केंद्रीय बल भी उसी तरह जान हथेली पर रखकर ड्यूटी करते हैं जैसे फौजी कश्मीर में या बॉर्डर पर। मारे जायें तो कई बार शव भी नहीं मिलते, शहीद का दर्जा तो दूर की बात है। ना ही पेट्रोल पंप मिलता है और ना ही गैस की एजेंसी। खुद तो जंगलों में बड़े-बड़े मच्छरों के बीच अंधेरे में रात काटते हैं और बच्चे गांव के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। इनके बच्चों के लिये अलग से स्कूल कॉलेज नहीं है। कोई तुलना नहीं है, लेकिन फिर भी इस बहाने ये मानने का समय आ गया है कि जो सीमा पर नहीं हैं या कश्मीर में नहीं हैं और सिविलियन हैं वो भी भारत माता के उतने ही बड़े सपूत हैं। जो सीमा पार वालों से नहीं अपनों से ही लड़ रहा है वो बड़ा अर्जुन है शायद। ये लोग हथियारों की लड़ाई ही नहीं लड़ते हैं मानसिक लड़ाई भी लड़ते हैं रोज। जनरल दीपक कपूर अगर इलाके में सड़क मार्ग से जाते और लोगों से मिलते-जुलते तो मेरा दावा है कि वो भी उनको सैल्यूट किये बिना ना रह पाते। एक बहादुर ही दूसरे बहादुर का सम्मान कर सकता है।
जय हिंद।

दिनेशराय द्विवेदी said...

हेलीकोप्टर की अनुपलब्धता कोई कारण नहीं हो सकता। यह देश इतना कमजोर नहीं कि अपने सेनाध्यक्ष को अविलंब हेलीकोप्टर उपलब्ध न करा सके। आप का कहना सही है। इस तरह दौरा रद्द नहीं होना चाहिए था। इस से गलत संदेश जनता में जाता है।

अजित वडनेरकर said...

कपूर साहब के लिए दूसरा हेलीकाप्टर भी मंगवाया जा सकता था...अगर उड़नखटोला ही ज़रूरी था ...

Unknown said...

अनिल जी , बहाना कोई भी हो । अभी तक झारखण्ड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के लिए सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं है । अब चुनाव है तो चाहे जो नाटक या दिखावा कर लें । इस तरह के दौरे मात्र से क्या होने वाला है ? बल्कि हो सकता है एक या दो नक्सल हमला विरोध दर्ज कराने के लिए हो जाये ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

जिस प्रकार ब्रिगेडियर पोवार जंगल से शहर आकर जनरल कपूर से मिले, उसी रास्ते से जनरल चाहते तो जंगल भी जा सकते थे। यह इस देश की विडम्बना है कि हमारे नेता और अधिकारी स्वछंदता से अपने देश में घूमने से भी डरते हैं। तो फिर, देश की रक्षा तो राम भरोसे ही होगी ना!!!!

Jay said...

आनिल जी, मुद्दा बहुत सही उठाया है आपने । हेलीकोप्टर की अनुपलब्धता कोई कारण नहीं हो सकता।

बिना तथ्यो के भारतीय सेनापति के निर्णय पर मै कुछ नही कहना चाहूंगा | पर इस तरह दौरा रद्द नहीं होना चाहिए था।

Anonymous said...

सूरमा गोपाली के कमेंट से पहली दो लाइनें तो निकाल देते कम से कम।

राज भाटिय़ा said...

मुझे तो यह नया चुटकला ही लगता है कि एक सेनाध्यक्ष के लिये हैलीकॉप्टर नहीं मिला ? तो उस देश मै एक आम सिपाही का क्या होगा ?अरे दस हैलीकॉप्टर तो कम से कम उस के आस पास होने चाहिये थे, तो क्या भारत महान इन चुहो से डरता है( इन नक्सलियों से, अतांकवदियो से..... इस बात से तो यही सिद्ध होता है, एक गुंडे नेता के लिये भी इस से पुखता इन्तजाम होतेहोगे...
क्या होग इस देश का...
आप का धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया said...

कौन मौत के मुंह मे सर रखें? आप भी समझते नही है. सेनाध्यक्ष एक होता है और सिपाअही अनेक. सिपाहियों को कुछ होता है तो अनेकों हैं.
साहब को कुछ हो गया तो फ़िर कहां से लांयेंगे?

समझा किजिये अनिल भाई. घोर आश्चर्य..इससे बडा आश्चर्य नही हो सकता आज की तारीख में.

रामराम.

Anonymous said...

जैसा कि कहा जा रहा है, निश्चित तौर पर हौसलाबुलंदी तो होती जवानों की।

हेलीकॉप्टर खराब होने की बात कुछ हजम नहीं हो रही।

Arvind Mishra said...

यह तो हद ही हो गयी ?

योगेन्द्र मौदगिल said...

सूरमा भोपाली जी ने सही लिखा है...

Ashok Pandey said...

सेना के मामले में इस तरह की शिथिलता चिंता की बात है।

Smart Indian said...

बहुत दुखद बात है - क्या सचमुच हमारी आतंकवाद विरोधी नीतियाँ सिर्फ कागजी खानापूरी बनकर रह गयी हैं?

Smart Indian said...

सूरमा गोपाली की बात में बहुत वज़न है.

कुश said...

टटपूंजिये नेता का दौरा होता तो फिर भी जुगाड़ लग जाता..

हरकीरत ' हीर' said...

लज्जाजनक बात है यह ...!!

डॉ महेश सिन्हा said...

( ise kahin alag se apni kalam ke anusar publish karein to behtar hoga)

ye to suraksha ki bahut badi bhool hai. ham aisi bhoolon ke aadi ho gaye hain.

naxalvad urf maowad urf jangle mafia aap kis naam se pukarna chahenge in logo ko ?
naxalvad s e to inka door door tak koi sambandh nahi hai.
purani sarkaron ki jo bhopal mein baithi rahti ki eitihaski bhool ko leepa poti karke kab tak chupate rahenge, jab ye kathmandu ki tarah dilli ke darwaje par dastak de raha hoga. Abhhojmad ko aam aadmi ke liye band karke sarkar aadivasion ko inke jimme chhod gayi.
Is desh ko ye faisla karna padega ki uske garib aadivasion ki suraksha jyada jarrori hai ya desh ki banjar seemao ki. Desh ki suraksha bhi jarrori hai kintu kab tak is aantrik samasya ko nakar jata rahega. Purva grihmantri kahte rahe ye koi samasya nahi hai, aaiyen wo aur vartman grihmantri bhi aur dantewda jakar dekhen, jahan sadak bhi sena bana rahi hai.Vartman grihmantri ne kis baat aur saboot pe vartman wampanthiyon ko clean chit de di ki unka in maowadiyo se koi sambandh nahi hai? to phir kyon inke rashtriya neta bastar ka chakkar lagate rahte hain aur salwa judum ka viridh karte hain. congress ke wam dalo ke samarthan ne agar kisika sabse bada nuksan kiya hai to bhole aadivasiyon ka.

Ek doctor sen ko police giraftar karti hai in mafia ka saath dene ke liye. Kaun hain ye doctor sen jinhe chhattisgarh ke jyadatar doctor nahi jaante. Ye christain medical college vellore ke graduate hain. wahan se ye pahle MP aur phir chhattisgarh pahuche. Inke samarthakon ka kehna hai ye jan seva kar rahe the? Inki pahuh bahut lambi hai. Ek americi sanstha inhe saman deti hai jiska sare desh ke media me prachaar kiya jaata hai ki ye noble prize ke barabar hai? Kisine bhi iski vastvikta jaanne ki koshis ki?
CMC Vellore ke ak udghatan karyakrama mein jiska doctor sen se koi sambandh nahi CG sarkar par aarop lagaye jaate hain ki wah ataychar kar rahi hai.
Supreme court se bhi jamant nahi milne par, theek chunav se pahle ek muhin Raipur me jaari hai jisme doctor sen ka samarthan kiya jaa raha hai. Kya hai iske peeche aur kaun log hain iska jaanana bahut jarrori hai.
doctor sen ke samarthan me ek web site bhi khadi ki gayi hai.
Noble prize vijeta inhe kaise jaante hain?
Aap logon mein se kayi media se jude hain ummed hai woh is khoj ko badhayenge.

गौतम राजऋषि said...

जो सेनाध्यक्ष बेझिझक सियाचिन की ऊँचाइयों या कश्मीर के अंदरुनी जंगलों में हजारों बार आ-जा सकते हैं उनकी निष्ठा पे शक करना तो बिला वजह विवाद पैदा करने वाली बात है....
और सेना की की फ्लीट में भी अनगिनत जहाज नहीं होते....हर उड़ान और हर दौरे की स्वीकृति कैबिनेट से होती है....

डॉ महेश सिन्हा said...

gautamji mujhe nahi lagta kisiko bhi senadhyksh ki nistha pe shaque hai
ho sakta hai cabinet ko Bastar ka khabron mein aana chunav ke samay theek na laga ho

Anonymous said...

anil ji namaskar maine aapka blog bahut dino ke baad khola hai pahle www.helloraipur.com me aapka blog aata tha to main aashani se khol leta tha magar kya karan hai abhi www.helloraipur.com me aapka kalam se nahi aata ?

Alpana Verma said...

Gautam ji ki baat se sahmat hun..
news mein diya gaya reason genuine ho sakta hai.Ek army officer..tht too Chief of army staff aisee mistake kabhi nahin kar sakta.
unki kartvy nishthta par question nahin karna chaheeye.
bahut si aisee baten hoti hain jo Civilians ko maluum nahin hoti.na hi bataayee jati hain.