Friday, June 5, 2009

लगाओ पौधे,काटो पेड़,वाह रे सरकार,तेरा पर्यावरण का खेल

एक माईक्रो पोस्ट पेश है। आल विश्व भर मे पर्यावरण पर लिखा-बोला-सोचा जा रहा है।यंहा छत्तीसगढ मे भी इसे औपचारिक रूप से लाखों पौधे लगा कर मनाया जा रहा है।मेरा सवाल ये है कि हर साल लगाये जाने वाले पौधे हैं कहां? और फ़िर ये कहां की अकलमंदी है कि बाप-दादाओं द्वारा लगाये गये पेड़ काटो और बेटे पोते-नातियों के लिये पौधे लगायो!क्या पौधे लगाने से ज्यादा ज़रूरी नही पेड़ो को कटने से बचाना?सारी दुनिया मे आज दिन भर रटे-रटाये भाषण होंगे,विचार-गोष्ठियां,होंगी,लोग शपथ लेंगे और शाम को आसमान पर नज़र ड़ालेंगे तो अड़ोस-पड़ोस के कारखाने काला धुआं उगल कर सूरज को निगलने को आतुर नज़र आयेंगे,ठीक वैसे ही जैसा मैने कल की पोस्ट मे लिखा था।

18 comments:

RAJNISH PARIHAR said...

aajkal yahi hota hai..ped kaat kar paudhe lagaye jaate hai....

समयचक्र said...

बेहद सामायिक पोस्ट.
पर्यावरण की सुरक्षा का संकल्प लें

Anonymous said...

सही कहा महाराज....पर्यावरण पर भाषण देने वालों की कोई कमी नहीं, अमल करने वाले तो विरले ही हैं. वैसे मैंने भी यह गलती कर डाली है पर्यावरण पर भाषण दे डालने की........हाय राम अब क्या होगा ???

साभार
हमसफ़र यादों का.......

Science Bloggers Association said...

आपका भी जवाब नहीं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

अनिल कान्त said...

main sahmat hoon...ped katne se bachane chahiye

दिनेशराय द्विवेदी said...

हमें सिर्फ उद्घाटन, भाषण, चाटन, फोटो और खबर चाहिए, पेड़ों और पौधों की किसे पड़ी है?

परमजीत सिहँ बाली said...

आप की बात सही है जो अभी बचा है उसे तो बचाओ।एक ओर पेड़ काटते जाओ दूसरी ओर लगाने का ढोंग करों।इस तरह तो कोई लाभ नही होगा।सामयिक पोस्ट लिखी है।

Shiv said...

भैया, पौधे लगाने से फोटो-सोटो खिचाने में सुभीता रहता है. कटते समय तो पेड़ों के फोटो-सोटो तो लिए नहीं जा सकते न....

ताऊ रामपुरिया said...

सच कहा आपने. हमारे यहां पेड काट कूट कर पूरे शहर को नंगा बूचा कर दिया...जहां कभी पक्षीयों का कलरव गान होता था वहां अब मरघटी सन्नाट्टा पसरा रहता है..

और आज की ताजा खबर यह है कि नर्मदा की पाईप लाईन डालने के लिये रिंग रोड पर ढाई हजार पेड काट दिये गये हैं और अब यह पेड बाधा दूर करदी गै है. अब जनताअ को पानी पिलायेंगे. हम कर क्या रहे हैं?

रामराम.

बाल भवन जबलपुर said...

jai ho chhaa gaye guru dev

Anonymous said...

मैं तो अपने पड़ोसी शहर में गौरव पथ के ठूँठों को देखते हुये पर्यावरण दिवस पर हुयी एक संगोष्ठी पर हो आया।

P.N. Subramanian said...

हम वर्षों से देख रहे हैं. यही होता आ रहा है. एकदम सामयिक पोस्ट.

राज भाटिय़ा said...

पर्यावरण पर भाषण देने , पेड लगाने वाले, शोर मचाने वाले सिर्फ़ एक ही दिन क्यो मनते है यह दिन , क्या इन मै से किसी एक नए भी एक पुरा साल किसी एक पेड को पानी भी दिया है, किसी पेड को कटने से बचाया है, बस हम देखा देखी मनाते है, वेसे मनने मै क्या जाता है, बल्कि लोग उसे माड्रन समझते है अपने जेसा !! देखो इसे कितनी फ़िकर हे पर्यावरण, जब की सारा साल ....राम राम जी की

बहुत सुंदर लिखा आप ने

शरद कोकास said...

अनिल भाई अपने इधर यह किस्सा मशहूर है.."छोटे अधिकारी ने बडे अधिकारी से पूछा इस साल नेताजी वृक्षारोपण कहाँ करेंगे? बडे अधिकारी ने जवाब दिया " वहीं जहाँ पिछले साल किया था "

कडुवासच said...

... पेड काटना ... पौधे लगाना ... सरकार और सरकारी लोगों के लिये आम बात है ... पर्यावरण और प्रदुषण से उन्हे कोई लेना-देना नहीं है ... सब मर्जी के मालिक है ... बस चलती का नाम गाडी है ... आपके-हमारे चीखने-चिल्लाने से कोई फर्क ... !!!!!!!

डॉ महेश सिन्हा said...

वन कानूनों से एक उम्मीद बंधी थी कि पेडों का भला होगा लेकिन "जब सैयां भये कोतवाल तो डर कहे का" . जिसने कानून बनाया वही तोड़ रहा है .

डॉ महेश सिन्हा said...

सौन्दर्यी करण का नंगा खेल
divider बनाओ लगाओ तेल
किनारे में नाली की रेलमपेल
अजब तेरी दुनिया अजब तेरे खेल

ajay saxena said...

अनिल भैय्या मई भी सहमत हु आपके विचार से ...शायद इसी लिए पर्यावरण दिवस के दिन ही इतना तूफ़ान आया और कई मंत्रियो के बंगले से ही बड़े-बड़े पेड़ गिरे ... कुदरत की ऐसे संकेत को समझना बहुत जरूरी है..