Thursday, April 28, 2011

प्रभू हिट रहेगा अपना इंटरनेशनल स्कूल आफ़ करप्शन और ओपन यूनिर्वसिटी तो हंगामा मचा देगी

क्यों बे कुछ सुझा या मसाज सेंटर के खयाली आईटमो की मसाज से मस्त हो कर मुस्कुरा रहा हैं। नही प्रभू इस बार बडा ही धांसू आईडिया लाया हूं। आप भी इस बार रिजेक्ट नही कर पाओगे। अपन स्कूल की चेन डाल देते है और एक यूनिर्वसिटी भी खोल देते हैं।प्रभू हिट रहेगा अपना इंटरनेशनल स्कूल आफ़ करप्शन और ओपन यूनिर्वसिटी तो हंगामा मचा देगी।चल बे!साले देखा नही तेरे सड़ेले प्रदेश मे क्या हाल हुआ यूनिर्वसिटियों का।दर्जनो मे से दो की ही दुकान चल पाई है।

येई तो आपका नेगेटिव एप्रोच जमता नही है।सुनते हो नही और फ़ैसला दे देते हो। अपन को कौन सा सड़ेला एकेडेमिक यूनिर्वसिटी खोलना है।अपन का यूनिर्वसिटी तो एकदम प्रोफ़ेशनल होगा।यूनिवर्सिटी आफ़ करप्शन। ऐसा ही स्कूल भी खोलने का, देश के सारे बड़े शहरों मे।बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाने का एड्मिशन ओपन इंटरनैशनल स्कुल आफ़ करप्शन मे पढाईये और बच्चे का भविष्य सेंट-पर्सेंट सुरक्षित किजिये।टूट पड़ेगी पब्लिक,प्रभू टूट पड़ेगी।भीड़ के मामले मे पहले ही दिन शोले फ़िल्म का रिकार्ड तोड़ देंगे प्रभू।उधर से कोई प्रतिक्रिया नही देख मैने पूछा क्या हुआ प्रभू?कोई प्राब्लम?

अबे श्याणे।तू ही है ना वो जिसने सबसे पहले हाय तौबा मचाई थी प्राईवेट यूनिर्वसिटी खुलने पर्।क्या दिखाया था तूने।यदी आपके पास एक मकान है या एक अच्छी सी दुकान है तो चले आईये छत्तीसगढ,खोल लिजिये यूनिर्वसिटी।क्यों याद,आया।दिखाया था ना स्कूटर पर कुलपति की प्लेट लगाये लोगों को।बंद करवा दी थी ना पांच दर्ज़न से ज्यादा दुकान खुलने से पहले ही।वो मामला दूसरों का था न महाराज। अब आप बताईये भला कोई अपने घर के गंदे कपड़े सड़क पर तो धोता नही है ना।मीडिया भी दूसरो के फ़टे मे खुशी-खुशी टांग अड़ाता है मगर अपने मामले मे कभी कुछ बोलता है क्या?कितने अख़बारो मे वेतनमान और पेंशन के लिये लड़ाई चल रही है कंही दिखती है कोई खबर्।मस्टर रोल मे ज्यादा पर अंगूठा लगाकर कम अनपढ मज़दूरों को कम रोजी देने की खबर छापने वाले पढे लिखे मज़दूर/पत्रकारो ने कभी लिखा है कि उन्हे तयशुदा वेतनमान से कम वेतन दिया जा रहा है।

अबे ये सब फ़ाल्तू की बाते हैं।मै किसी कन्ट्रोवर्सी मे फ़ंसना नही चाह्ता।सवाल ही नही उठता महाराज्।सब सेट है आजकल।फ़ुल पेज के दर्जन भर विज्ञापन मुंह बंद अक्र देते है आजकल अच्छे-अच्छे अख़बार का।वो तो ठीक है मगर्।महाराज ये अगर मगर छोड़ो।थिंक पाज़ीटिव महाराज्।सोचो महाराज सोचो! इंटरनेशनल स्कूल आफ़ करप्शन,नाम ही खिंच लायेगा जैसे कभी मल्लिका सड़ी हुई फ़िल्म मे भीड खींच लेती थी।फ़िर वो आईटम वाला आईड़िया यंहा भी चलेगा महाराज्।स्कूल जाओ तो ऐसा लगता ही नही किसी मास्टरनी से मिल रहे हैं।सुर्ख लिपिस्टिक से पूते ओंठो को देखो तो ऐसा लगता है की अभी जूस की बजाय ताज़ा-ताज़ा खून का गिलास एक ही सांस मे मार के आई हो।लो कट ब्लाऊज,स्लीवलैस टाप और नीचे से नीचे खिसक कर कमर की हड्डियो पर अटकी साडी!हय-हय-हय महाराज ऐसा लगता है किसी फ़ैशन परेड मे आ गये हों।

क्यों बे पाखंडी।बड़ा बजरंगबली का भक़्त बना फ़िरता है।साले इतना माईन्यूट आब्ज़र्वेशन। अरे महाराज हूं नही था,था।अब तो आपके पद चिनहो पर चलना चाह्ता हूं।ऊब गया हूं महाराज,यंही छत्तीसगढ मे सडते-सड़ते।मै भी हांग-कांग,बैंकाक और मकाऊ के मसाज सेंटरे और कसिनो देखना चाह्ता हूं।पेरिस मे शाम रंगीन करना चाहता हूं और वेगास मे किस्मत आजमाना चाहता हूं।साले मुझे पहले ही डाऊट था,तू अंदर से कुछ और है और बाहर से कुछ और। वो तो महाराज हर आदमी होता है।कौन चोरी छीपे शाईनी आहूजा की तरह झाड़ू-पोछा लगाती नौकरानी के आसपास नही मंडराता।कौन ट्राई नही करता साथ मे काम करने वाली खूबसूरत जुनियर से मीठा-मीठा बोलकर्।कभी देखा है किसी को खराब गाड़ी धकेलते हुये आदमी से रूक कर प्राब्लम पूछ्ते या लिफ़्ट देने की पेशकश करते हुये।कोई खूबसूरत लड़की खड़ी दिखी नही लाईन लग जाती है।

अबे ये तू मेरे को ही उपदेश देगा क्या?साले ज़रा सा पर्सनल टच क्या दिया जल कर राख हो गई। नही महाराज वैसी कोई बात नही मै तो जनरल टेंडेंसी बता रहा था। अबे तू प्रोजेक्ट पर बात कर समझा। हां तो महाराज अभी एकदम सही सीज़न है एडमिशन का।इस समय खोल लिये तो ठीक नही तो एक साल इंतज़ार करना पड़ेगा।सभी स्कूलों और कालेजो मे भारी भीड़ है।अपन अपनी यूनिर्वसिटी और स्कूल एक साथ लांच कर देते हैं।ये इंटरनेशनल स्कूल क्या बला है बे।खोलेंगे तो अपने देश मे तो फ़िर ये इंटरनेशनल कैसे हो जायेगा?लोग पूछेंगे नही? अरे महाराज आप भी ना।खुद को कहते हो भ्रष्टाचार का देवता और इस बारे मे तो लगता है ए बी सी डी भी नही जानते। अबे चुप। अपनी बात कर्।वही तो कह रहा हूं महाराज। अब देखिये ये पब्लिक स्कूल सुना है ना।हां,सुना है।तो बताईये भला इसमे पब्लिक के बच्चे पढ सकते है क्या?इनकी मोटी फ़ीस तो सिर्फ़ बड़े-बड़े खास लोग ही दे सकते है आम लोग तो सपने भी नही देखते उन स्कूलो के।

बात तो सही कर रहा है बे।मगर देशी स्कूल का इंटरनेशनल नाम समझ मे नही आया। अरे महाराज अपना स्कूल और यूनिर्वसिटी जब खुलेगी तो सारे देश के अलावा दूसरे देश के बच्चे भी तो यंहा आकर पढेंगे।फ़िर आस्ट्रेलिया के लफ़ड़े से परेशान होकर लौट रहे बच्चो को अगर अपन ने इम्प्रेस कर लिया तो प्रभू आप अपने आप इंटरनेशनल फ़िगर हो जायेंगे।चल बे,वो तो हम पहले से हैं।साले मुझे बता रहा है इंटरनेशनल और नेशनल का फ़र्क़्।चल बता तो किस देश मे मेरे फ़ालोअर नही है।किस देश मे मेरा डंका नही बचता।मै समझ रहा हूं साले मेरी आड़ मे तो टीचर लोगों को भांपेगा। है ना।राम-राम,अरे नही महाराज।मै सब समझ रहा हूं बे।स्कूल खोलने मे लफ़ड़े ही लफ़ड़े हैं।घर से खुन्नस खाकर आई कोई टीचर किसी बच्चे को पीटेगी और फ़ोटो छपेगा मेरा।वो तेरी जात वाले माईक मेरे मूंह मे ठूंस कर अंट-शंट सवाल पूछेंगे और बतायेंगे मिलिये एक कसाई से।मुझे नही करवानी अपनी ऐसी की तैसी।तेरे पास कोई ठीक-ठाक आईडिया है तो बता वर्ना तेरे बारे मे भी सोचना पड़ेगा।

5 comments:

Atul Shrivastava said...

खोल ही लीजिए एक स्‍कूल और कालेज।
धंधा जोरों पर है इसका।
उधर शक्तिमान तो इधर भ्रष्‍टराज ब्रांड एंबेसेडर।
बहुत खूब।
अच्‍छे ख्‍वाब हैं बाल ब्रम्‍हचारी के।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बड़े धांसू आइडिया दे रहे हैं महाराज...

Arunesh c dave said...

खूब चलेगी सारे नेता अधिकारी पुत्र वही पढ़ेंगे खाली विदेशी इनवेस्ट्मेंट का डिपार्टमेंट अच्छा रखियेगा

अजित वडनेरकर said...

शानदार, धारदार व्यंग्य। आज अपन भी अबे-तुबे से शुरुआत कर रहे हैं और इधर आपका भी वही रंग है...

प्रवीण पाण्डेय said...

सटीक सपाट संदेश। धारदार।