राजधानी रायपुर में टोनही कहकर एक महिला को प्रताड़ित करने का प्रकरण सामने आया है। ये प्रकरण इसलिए ज्यादा दुखद और महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रताड़ित करने वाले लोग गाँव के देहाती या अनपढ़ गंवार न होकर पढ़े-लिखे शहरी हैं।
छत्तीसगढ़ के गाँवों में तो अक्सर टोनही के नाम पर महिलाओं को षडयंत्र करके प्रताड़ित करने के मामले सामने आते रहे हैं। लेकिन राजधानी के शहरी बस्ती में इस तरह का मामला सामने आना, बेहद शर्मनाक है। राजेन्द्र नगर में बच्चों के झगड़े को कुछ लोगों ने इस तरह का मोड़ दिया कि एक महिला टोनही जैसे ज़हरीले शब्द का दंश झेलने पर मजबूर हो गई। छोटी सी बात पर लड़ते बच्चे तो खामोश हो गए मगर उनके पालकों ने जो लड़ना-झगड़ना शुरू किया वो घटियापन की तमाम सीमाएँ लांघ गया।
कुछ लोगों की दादागिरी और मारपीट का जब उस महिला ने जमकर विरोध किया तो उसे टोनही करार दे दिया गया। सामाजिक पडयंत्र से परेशान महिला ने थाने जाकर पुलिस से मदद चाही लेकिन उसे वहाँ भी निराश ही होना पड़ा। थक-हारकर वो प्रेस क्लब पहुँची और उसे अपनी बात कहने का मौका दिया गया। उसने पत्रकारों से मदद की गुहार की और पत्रकारों ने उसकी मदद भी की। इस मामले में अब पुलिस ने चाहे मजबूरी में सही प्रकरण दर्ज कर लिया है।
खैर सवाल पुलिस में प्रकरण दर्ज कराने का नहीं है ? सवाल है कि क्या वाकई वो महिला टोनही है ? क्या किसी ने उसे जादू-टोना करते देखा है ? क्या उसने किसी को नुकसान पहुँचाया है ? क्या जादू-टोना सिर्फ औरतें ही करतीं हैं ? क्या मामूली झगड़ों में किसी को भी टोनही करार देना अच्छी बात है ? क्या टोनही जैसी कुप्रथा से मुक्ति पाने के लिए छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्य में किए जा रहे प्रयास पर्याप्त हैं ? कुरीतियों को हटाने के लिए प्रचार-प्रसार पर हो रहे करोड़ों रूपए के खर्च के बावजूद अब शहरों में भी टोनही प्रकरण का सामने आना, क्या सरकार की असफलता नहीं है ? क्या ज़मीन-जायजाद, घर-परिवार के बंटवारे और छोटे-मोटे आस-पड़ोस के झगड़ों में टोनही जैसे घृणित शब्द का यहाँ महिला विशेष के खिलाफ षडयंत्रपूर्वक इस्तेमाल पर रोक नहीं लगनी चाहिए। बहुत से सवाल और भी हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या वाकई टोनही होती है ? और अगर होती है तो क्या वो ऐसी नज़र आती है ? पीड़ित महिला और ज्यादा प्रताड़ित न हो जाए इसलिए उसकी तस्वीर आधी - अधूरी पोस्ट कर रहा हूँ। पूरी तस्वीर नहीं छाप पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
छत्तीसगढ़ के गाँवों में तो अक्सर टोनही के नाम पर महिलाओं को षडयंत्र करके प्रताड़ित करने के मामले सामने आते रहे हैं। लेकिन राजधानी के शहरी बस्ती में इस तरह का मामला सामने आना, बेहद शर्मनाक है। राजेन्द्र नगर में बच्चों के झगड़े को कुछ लोगों ने इस तरह का मोड़ दिया कि एक महिला टोनही जैसे ज़हरीले शब्द का दंश झेलने पर मजबूर हो गई। छोटी सी बात पर लड़ते बच्चे तो खामोश हो गए मगर उनके पालकों ने जो लड़ना-झगड़ना शुरू किया वो घटियापन की तमाम सीमाएँ लांघ गया।
कुछ लोगों की दादागिरी और मारपीट का जब उस महिला ने जमकर विरोध किया तो उसे टोनही करार दे दिया गया। सामाजिक पडयंत्र से परेशान महिला ने थाने जाकर पुलिस से मदद चाही लेकिन उसे वहाँ भी निराश ही होना पड़ा। थक-हारकर वो प्रेस क्लब पहुँची और उसे अपनी बात कहने का मौका दिया गया। उसने पत्रकारों से मदद की गुहार की और पत्रकारों ने उसकी मदद भी की। इस मामले में अब पुलिस ने चाहे मजबूरी में सही प्रकरण दर्ज कर लिया है।
खैर सवाल पुलिस में प्रकरण दर्ज कराने का नहीं है ? सवाल है कि क्या वाकई वो महिला टोनही है ? क्या किसी ने उसे जादू-टोना करते देखा है ? क्या उसने किसी को नुकसान पहुँचाया है ? क्या जादू-टोना सिर्फ औरतें ही करतीं हैं ? क्या मामूली झगड़ों में किसी को भी टोनही करार देना अच्छी बात है ? क्या टोनही जैसी कुप्रथा से मुक्ति पाने के लिए छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़े राज्य में किए जा रहे प्रयास पर्याप्त हैं ? कुरीतियों को हटाने के लिए प्रचार-प्रसार पर हो रहे करोड़ों रूपए के खर्च के बावजूद अब शहरों में भी टोनही प्रकरण का सामने आना, क्या सरकार की असफलता नहीं है ? क्या ज़मीन-जायजाद, घर-परिवार के बंटवारे और छोटे-मोटे आस-पड़ोस के झगड़ों में टोनही जैसे घृणित शब्द का यहाँ महिला विशेष के खिलाफ षडयंत्रपूर्वक इस्तेमाल पर रोक नहीं लगनी चाहिए। बहुत से सवाल और भी हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या वाकई टोनही होती है ? और अगर होती है तो क्या वो ऐसी नज़र आती है ? पीड़ित महिला और ज्यादा प्रताड़ित न हो जाए इसलिए उसकी तस्वीर आधी - अधूरी पोस्ट कर रहा हूँ। पूरी तस्वीर नहीं छाप पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
8 comments:
So sad!
vigyan ke yug me bhi jab tak kai samaj andhvishwash me jakra hua hai, wahan ki mahilaen aise santap jhelti rahengi.
Aapka prayash unhen sankt se uvarnen me sahayak ho, yahi kamna hai.
"Ah! itna bdaa andhvisvwas , yken nahee hota, kya hai ye tottka vgreh, hum to nahee mantey, its really painful, and the behaivour towards that woman is more shameful even.. but the improtant is that who is responsible for all this acts ..."
Regards
अनिलजी आपने तस्वीर आधी अधूरी छापने के लिए माफी मांगी है !
आपका लिखना भर काफी था ! फोटो तो उन कमीनो की छापिये जो
इस महिला को टोनही करार देकर अपने निहित स्वार्थ पूरे करना चाहते
हैं ! जिससे उनको पहचानकर जनता सतर्क हो जाए !
असल में ऐसा जादू टोना कुछ भी नही होता और अगर आपको जीवन
में कोई ऐसा दावा करता मिल जाए तो ये "ताऊ" हाजिर है !
अगर उसका जादू मेरे शहर में ना चले तो मैं वहा आता हूँ वो मेरे सर
में भी दर्द करके बतादे तो मैं बाक़ी सारी जिन्दगी उसकी गुलामी में निकाल
दूंगा ! असल में यह सब पुलिस की और प्रशासन की जिम्मेदारी है की उक्त
महिला को पूर्ण समर्थन दे और उन बदमाशों को सजा दे !
और आपके शहर में भी कोई ना कोई महिला समिती होगी या
यहाँ ब्लॉग से कोई पता चलेगा !
उनसे भी आगे आने के लिए कहिये ! हर हालत में इस महिला की सहायता
की जानी चाहिए ! और मैं समझता हूँ की आपके पत्रकार मित्र भी इस घटना
को गंभीरतापूर्वक लेंगे ! धन्यवाद !
tau ji hum logo ke dabav me kam se kam apradh to darj ho gaya hai
पढ़े-लिखे लोग तो आजकल कुछ ज्यादा ही अंधविश्वासी होते जा रहे हैं, क्या फ़ायदा है ऐसी शिक्षा का… कोड़े से मारना चाहिये
मुझे तकलीफ होती है यह छल और अज्ञानता का घोर समन्वय नारी के शोषण में सन्नध देख कर। और सारी प्रगति अचानक बिला गयी नजर आती है।
अनिल जी, मेने कई बार पढा हे ऎसे केसो के बारे, मुझे तो लगता हे इन सब के पिछे जरुर धन दोलत, ओर ज्यादाद का ही चक्कर हो गा,
ताऊ की तरह से मे भी नही मानता इन जादू टोनो को,मे तो बचपन मे ऎसी चीजो को जिसे सभी बच कर निकलते थे कि पता नही किस ने टोना कर के रख दिया हे, मे पेसे ऊठा कर फ़िल्म देखता था, ओर नारियल बगेरा खा जाता था, मुझे तो आज तक कुछ नही हुआ.
दो राते शमशान मे भी बीताई लेकिन ..... यह सब बकवास हे, ओर पढे लिखे अनपढॊ से ज्यादा मानते हे, यह मेने खुद देखा हे....
धन्यवाद
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