कल शाम अचानक एक अन्जान नम्बर से काल आया। पहले तो इच्छा हुई कि काल रिसीव ना करूं,मगर पता नही मन मे क्या खयाल आया और मैने काल रिसीव कर लिया।उधर से आवाज आई मै पीडी।एक पल के लिये समझ मे नही आया पीडी कौन हो सकता है?लेकिन दूसरे ही पल उधर से आवाज आई पीडी प्रशांत और फ़िर जो बातों का सिलसिला शुरू हुआ उसने रूकने का नाम नही लिया।फ़िर आज रात अचानक फ़िर एक अंजान नम्बर से काल आई और इस बार भी कुछ-कुछ वैसा ही हुआ।मै नीरज कहने पर मुझे पह्चान के लिये दिमाग पर ज़ोर देता देख उधर से आवाज़ आई अरे मुसाफ़िर,मुसाफ़िर जाट,और फ़िर क्या था! ऐसा लगा ही नही किसी से पहली बार बात हो रही है।
सच मे ब्लोग की दुनिया मे आने के बाद एक नये परिवार को बनता देख रहा हूं।सालो-साल की दोस्ती के बाद जो अपनत्व किसी रिश्ते मे मिलता है,वो ब्लोग कि दुनिया मे कुछ दिन के परिचय मे ही मिलने लगता है।इस दुनिया मे आने के बाद बहुत से लोगो से संवाद स्थापित हुआ और कुछ लोगो से मिलना भी।मगर इसी दुनिया के कुछ लोगो से जब पहली बार मोबाईल पर सम्पर्क हुआ और उनसे जो बात हुई उससे कतई ऐसा नही लगा कि उनसे हम कभी मिले हों या उनसे हमारा परिचय हो।
पीडी का फ़ोन मेरे लिये एकदम अप्रत्याशित था।मै इंतज़ार कर रहा था मुसाफ़िर के फ़ोन का,क्योंकि मुसाफ़िर ने अपनी पोस्ट पर ब्लाग्गरों से नम्बर चाहे थे और उनकी पोस्ट पढकर कमेण्टस मे हमने अपना नम्बर दे रखा था।पी डी ने बताया कि उसे नम्बर मुसाफ़िर की पोस्ट पर दिये गये कमेण्ट्स से ही मिला है।पीडी पता नही कैसा होगा लेकिन बातचीत मे एकदम खरा सोना।उससे बात करते समय एक पल के लिये भी नही लगा कि उससे पहली बार बात हो रही है। ऐसा लगा कि अपने किसी बाल सखा से सालो बिछड़ने के बाद बात हो रही हो।शुद्ध और एकदम शुद्ध प्यार छलक रहा था पीडी की आवाज मे।कंही कोई बनावट नही,कंही कोई स्वार्थ नही,कंही कोई दिखावा नही और कंही कोई छल-कपट-प्रपंच नही।खालिस ईमानदार बातचीत।
पीडी से मैने बिना लाग-लपेट के कहा भी कि मुझे तो ऐसा लग रहा था कि नीरज का फ़ोन आयेगा,उसने भी उतनी ही ईमानदारी से जवाब दिया कि मुझे आपका नम्बर उसकी यानी मुसाफ़िर के ब्लोग से ही मिला है।बहुत सी बाते हुई पीडी से।घुमने -फ़िरने से लेकर ब्लोग के बारे मे।और ब्लोग की दुनिया मे बिना एक दूसरे को देखे-जाने,पहचाने एक दुसरे के करीब आने और जाने अंजाने एक नई दुनिया को बनते देखने के बारे मे भी पीडी की बाते उसके पाक साफ़ दिल-दिमाग का सबूत दे रही थी
आज भी रात को जब अंजान नम्बर से फ़ोन आया तो मुझे उम्मीद नही थी कि इस बार मुसाफ़िर आ टपकेगा।मै उस समय कार चला रहा था। अचानक़ घंटी बजते ही मैने एक नज़र नम्बर पर डाली और पता नही दिल के किसी कोने से उठी आवाज़ की बात मान कर मैने फ़ोन उठाया और फ़िर जो शूरू हुआ बात चीत का सिलसिला थमने का नाम न ले।
मुसाफ़िर से बात हुई खासकर रेल के सफ़र के बारे मे।मुसाफ़िर यानी नीरज ने दिल्ली पहुंच जाने बात कही।रेल यात्राओ के बारे मे उसकी जानकारी वाकई प्रशंस्नीय है।बात करते-करते भीड़ भरे इलाके मे कार पहूंच गई थी।बात तब खतम भी नही हुई थी और न खतम होने वाली थी।मैने भीड़ मे कार घुसाते समय फ़ोन लगाकर सारी बात बता दी।फ़ोन रखत्ते समय कोई बात नही हुई थी सो मैने कुछ देर बाद फ़ोन लगाया।फ़िर मानो बचपन के दोस्त मिल बैठे थे।रेलो से लेकर सफ़र और व्यवस्था से लेकर ब्लागिंग के बनते रिश्तो पर बेबाकी से राय रखी ।फ़िर फ़ोन रखते समय ऐसा लगा कि बहुत सी बातें छुट गई हैं। जो भी हि पीडी और नीरज यानी मुसाफ़िर से बात करना एक नये रिश्ते का एहसास करा गया।बाते अभी खतम नही हुई है बल्कि यूं कहे कि अभी शुरू हुई है।बाते होते रहेंगी न केवल पीडी या मुसाफ़िर के साथ बल्की हर किसी के साथ्।
26 comments:
मेरे लिए अधिक अजीब है क्योंकि मैं अनाम ही बनी रहना चाहती हूँ। आजकल मेरी बातचीत भी एक महिला ब्लॉगर से ही नहीं उनके पुत्र से भी हो रही है। बहुत अपनापन हो गया है । किन्तु लिखने में तो घुघूती बहुत सहज लगता है किन्तु किसी से कहना कि मैं घुघूती बोल रही हूँ अभी भी असहज लगता है। परन्तु लिखकर बतियाना, चैटियाना और किसी की आवाज सुनना बहुत अलग अनुभव हैं।
यह भी सच है कि जिन्हें हम पढ़ते रहे हैं ऐसा लगता है कि वे पुराने मित्र हैं।
घुघूती बासूती
बहुत सुंदर लगा आप का आज क लेख, लेकिन अनिल साहब जब हम फ़ोन करेगे तो हमारा तो ना० भी नही आयेगा,कभी फ़ुरसत मै आप से बात करेगे.
धन्यवाद
ऐसे ही होते हैं ये ब्लाग रिश्ते। ये परिचय बिना किसी भूमिका के होते हैं इसलिए इनके उपसंहार की भी कोई संभावना नहीं है। बाकी दुनियावी रिश्ते तो किसी न किसी भूमि के बिना शुरू हो ही नहीं सकते। भूमिका में कही कोई कमी-बेसी हुई कि बीच के सारे अध्याय अदृष्य हो जाते हैं और उपसंहार हो जाता है...
मैने कुछ ज्यादा तो नहीं कह दिया मालिक ?
बिलकुल अपना भी ऐसा ही अनुभव है... कई ब्लोगरों के साथ. लिस्ट बढती जा रही है. ये खुशहाल परिवार बढ़ रहा है !
सही कह रहें हैं , इस नयी दुनिया ने नयी पहचान के साथ नए लोंगों से जान पहचान भी कराई है ,कल तक जो अपरिचित थे आज मित्रों की सूची में हैं .
बाद में संस्मरण लिखियेगा -उन अनजान कालों के नाम जिन्होंने जिन्दगी ही बदल दी !
नीरज से कभी बात नहीं हुई. पर पीडी से अक्सर हम बतियाते हैं। वाकई बहुत ईमानदार है। ब्लाग जगत में बहुत मित्र हैं, लिखने में ही नहीं जीवन में भी ईमानदार। इसीलिए अपने से लगते हैं। यहाँ तक कि घोर वैचारिक भिन्नताएँ भी नहीं खलतीं।
परिवार ऐसे ही बढ़ता रहे।
ये ब्लॉग जगत अच्छे लोगों से यूँ ही रूबरू कराता रहेगा .....अच्छा लगा आपका ये लेख
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
पूरी पोस्ट और अब तक की सभी टिप्पणियों से सहमत, मेरी भी जब आपसे और संजीत भाई से पहली बार बात हुई थी तब मुझे बिलकुल नहीं लगा था कि ऐसे व्यक्ति से बात कर रहा हूँ जिसका चेहरा आज तक नहीं देखा, लेकिन बातों-बातों में अपनापन कुछ ऐसा हो जाता है कि इस "वर्चुअल" रिश्तेदारी को नमन करने को दिल चाहता है… :)
बिल्कुल सही कह रहे हैं आप ... लगता ही नहीं है कि पहली बार बात हो रही है ... मेरे मित्रों की लिस्ट भी लंबी होती जा रही है ... ईश्वर करे ... ब्लागरों के मध्य यह अपनापन बढता ही रहे।
मेरा अनुभव भी कुछ ऐसा ही है. यह वर्चुवल दुनिया काफी रियल है.प्रशांत भईया के बारे में क्या कहू...बस इतना की प्रकृति ने मुझे भाई नहीं दिया पर इस मामले में मैं इंटरनेट की शुक्रगुजार हूँ.
बिल्कुल सही, PD से बात करते हुये कभी भी लगा नहीं कि मैं उनके लिए अंजान हूँ। एकदम निश्छल बातें।
हाँ, घर से लगातार दूर रहने की कसक साफ झलकती है, आवाज़ में
वैसे, आजकल तो मेरा हाल पूछने के पहले Daisy का हाल पूछते हैं जनाब्। :-)
यह बात भी सच है कि अब मेरे मोबाईल में ब्लॉगरों के नाम/ नम्बर बढ़ते जा रहे हैं।
अच्छा लगता है, एक अनोखे परिवार का सद्स्य होना। धन्यवाद साथियो
bilkul sahi kaha aapne.. maine bhi p d aur neeraj se baat karke kuch aisa hi anubhav kiya...
एक दिन मुझे भी एक ऐसा ही "अनजान-सा" फोन आया. मुनिश रायजादा साहब थे. एक घंटे से भी अधिक बातचीत हुयी. और अब हम एक नया भारत बनाने जा रहे हैं! :)
www.mifindia.org
सही कहा आपने। मैं भी आपसे शत प्रतिशत सहमत हूँ।
आप जैसे लोग भी तो इस ब्लॉग से मिले है हमें अनिल जी ...
achcha laga yah padhkar. saath hi yah bhi kahna chahoonga ki yadi aise hi rishte apne aas-paas me bhi viksit ho jaayen to kitna achcha ho.
मैं तो फोन पर कम बात करने वालों से हूं, पर जब ब्लॉग की दुनियां से किसी का फोन आता है तो वैसी ही अनुभूति होती है जैसी आपने पोस्ट में व्यक्त की है!
मैंने भी ये पाया है की ब्लॉग जगत के लोग बहुत मिलनसार होते हैं और लगता ही नहीं की कोई अपरिचित हैं...मेरा अनुभव आपसे कम नहीं है...एक लम्बी लिस्ट है जिनसे सिर्फ फोन पर ही बात हुई है, और खूब हुई है पर मिलने या देखने का अवसर नहीं मिला है, लेकिन मजाल है की कभी लगा हो किसी अनजान से बात कर रहे हैं....
नीरज
अपनी तारीफ सुनना सभी को अच्छा लगता है और मैं झूठ नहीं कहूंगा, मैं भी कोई अपवाद नहीं हूं.. मगर एक बात और भी कहना चाहूंगा कि तारीफ सुनकर मुझे खुशी भी होती है और साथ में झेंप भी महसूस होता है.. लगभग उसी अवस्था में मैं अभी हूं.. :)
ये दोनो ही बालक फ़ोन करते हैं और ऐसे अपने पन से बात होती है कि पता ही नही चलता की अभी कुछ समय पहेले इनसे कोइ संबंध नही था. अब ये नितांत अपने अपने लगते हैं. और आप भी तो ऐसे ही फ़ो कर लेते हो?;)
रामराम.
अच्छा लगता है जिनको पढ़ते हैं उनसे बात करना। और मज़े की बात है कि आप जब उनसे मिलते हैं तो बस एक क्षण को अजनबीपन लगता है। उसका कारण शायद यही है कि हम लोग मानसिक रूप से एक दूसरे से परिचित रहते हैं। मुझे भी हिन्द-युग्म और साहित्य शिल्पी के सौजन्य से कुछ ब्लागर्स मित्रों से मिलकर बहुत अच्छा लगा था। सुन्दर प्रस्तुति।
aaj to PD bhai ko aapne jhad par chadha diya...rukhiye ham abhi phoniya ke utarte hain.
aise khuleaam tarif nahin karni chahiye, ladka bigad jaayega ;)
waise aapse sahmat hoon. bhala insaan hai PD.
शानदार है जी, जानदार है। हम तो रोजै किसी ने किसी ब्लागर से बतिया लेते हैं। पीडी की हंसी भी बहुत बार सुन चुके हैं। मज्जा आ गया पढ़कर!
aaj bhi is duniya mein apanapan baaki hai. bhavishya ke liye ye badi ummed jagata hai.
अनिल जी,
उस दिन के बाद आज ही ऑनलाइन हुआ हूँ. सही कह रहे हो आप. मैंने ये सोचकर उस पोस्ट में फोन नंबर मांगे थे कि पांच दस ब्लोगर तो नंबर दे ही देंगे. लेकिन नंबर मिला पहले तो "पंगेबाज" साहब का और फिर आपका.
अभी अपना आना जाना तो ज्यादा कहीं हो नहीं पता तो जी फोन फान से ही काम चला लेते हैं.
Post a Comment