Saturday, December 26, 2009

थू है ऐसे सिस्टम पर और थू है ऐसी तरक्की पर!

कभी अमन और चैन का टापू कहलाने वाले छत्तीसगढ को शायद किसी की बुरी नज़र लग गई है।जभी तो राजधानी के थोक कपड़ा मार्केट के पास दिन दहाड़े हवाला कारोबारी अमर आहूजा की उसकी दुकान मे घुस कर गोली मार कर ह्त्या कर दी गई।उसके साथ उसके रिश्तेदार मनीष की भी हत्या कर दी हत्यारों ने और मज़े से दुकान से नीचे उतर कर फ़रार हो गये।इस दिल दहला देने वाले अपराध ने बहुत से सवाल खड़े कर दिये हैं।कहा जा रहा है तरक्की के इस दौर मे अपराध तो होंगे ही।अगर तरक्की का मतलब ऐसे अपराध है तो थू है ऐसे सिस्टम पर और थू है ऐसी तरक्की पर!

याद नही पड़ता कि राज्य बनने से पहले कभी ऐसे अपराधों से छत्तीसगढ का पाला पड़ा हो।राज्य बनने के बाद पहला पालिटिकल मर्डर देखा यंहा के लोगो ने।एनसीपी के नेता रामावतार जग्गी की भाड़े के ह्त्यारों ने जान लेली थी।इस मामले मे पूर्व मुख्यमंत्री और उनके परिवार के सदस्य का नाम भी सामने आया।उनके पुत्र को अदालत ने बरी कर दिया मगर उनके साथियों की सज़ा ये बताती है कि रामावतार की हत्या राजनैतिक उद्देश्य के लिये की गई थी।

राज्य बनने के बाद कांग्रेस सरकार मे अगर छत्तीसगढ ने राजनैतिक हत्या देखी तो पहले चुनाव के बाद सत्ता मे आई भाजपा के कार्यकाल मे व्यापारिक प्रतिद्वंदिता के चलते महेन्द्रा ट्रेव्ह्ल्स के सतवंत सिंह गिल उर्फ़ गप्पू का मर्डर भी यंहा के लोगो ने देखा।इस बार शूटर उत्तर प्रदेश से बुलवाये गये थे।कांट्रेक्ट किलिंग का कारोबार शायद यंहा की पुलिस की निष्क्रियता के कारण कुछ ज्यादा ही तेजी से पनप रहा है।

बैंक डकैती,लूट और फ़िरौती के लिये अपहरण अब कामन हो गया है।इतना कामन की अब लोग कर्ज़ से बचने या चुनाव जीतने के लिये अपहरण की स्टोरी बना देते है और पुलिस को खामोशी से सब मानना पड़ता है।यंहा पुलिस का समभाव देखने लायक है।कांग्रेस नेता ने अपहरण की झूठी कहानी सुनाकर सनसनी फ़ैलाई तो भी वो खामोश थी और अभी नगर निगम चुनाव मे भाजपा नेता के स्टंट पर भी व चुप ही रही।

हवाला कारोबारियों के मर्डर के बाद जो कुछ शहर मे हो सकता है वो हुआ और रियेक्शन के तौर पर और भी आगे होता रहेगा।बंद,बयानबाज़ी और राजनैतिक भट्टी पर सिंक रही रोटियों ने माहौल गरमा दिया है।कोई इसे शर्मनाक बता रहा है तो कोई मंत्री-संत्री से इस्तीफ़ा भी मांग रहा है।कोई पुलिस को निकम्मा बता रहा है तो कोई सरकार बदलने की बात कर रहा है।सब की अपनी अपनी ढपली है और सब अपना अपना राग आलाप रहे हैं।

सब को बदलाव चाहिये।मगर उस बदलाव की ओर किसी का ध्यान नही है जो बिना चाहे यंहा आ गया है।कांट्रेक्ट किलिंग या सुपारी जैसी बात यंहा की परंपरा नही थी।यंहा तो आधी रात को लोग बिना डर के घुमा करते थे।अपराध कंहा नही होते,यंहा भी होते थे लेकिन भाड़े पर ह्त्या यंहा की परंपरा नही थी।एक नेताजी का कहना है रायपुर अब मामुली शहर नही रहा,राजधानी हो गया है।तरक्की कर गया है।राजधानी होने के बाद यंहा अपराध भी बढना स्वाभाविक है।तो माफ़ करना अगर तरक्की के मायने यही है तो थू है ऐसी तरक्की पर।थू है ऐसे सड़ेले सिस्टम पर।हमे नही चाहिये ऐसी तरक्की,हमे तो चाहिये अपना पुराना छत्तीसगढ,जंहा पर था प्यार,चैन और अमन।

25 comments:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

खेद है कि महानगर छत्तीसगढ़ भी पहुंच रहे हैं.

विनोद कुमार पांडेय said...

बदलाव ज़रूरी है पर तब तक नही होगा जब राज्य का एक एक आदमी इसके पक्ष में नही होगा ..पैसे की होड़ में आदमी आदमी को नही पहचान पा रहा है ..लोग एक आँधी दौड़ में भाग रहे है ..और यह छत्तीसगढ़ ही नही भारत के बहुत से प्रांत का हाल है..प्रशासन और सरकार को कुछ नही कर रही है तो जनता को ही कुछ करना पड़ेगा..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kya aapko aisa lagta hai ki ham log aajadi paane ke kaabil the ya abhi bhi hain?

Udan Tashtari said...

अराजकता का माहौल है.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अनिल जी, सिर्फ अकेले छतीसगढ की ही बात नहीं बल्कि कोई भी प्रान्त हो, सब जगह ऎसा ही हाल है! बिना समूचे सिस्टम को बदले कुछ नहीं होने वाला ....

अजित वडनेरकर said...

सचमुच थूSSSहै..

राज भाटिय़ा said...

आप सही कह रहे है थू है ऎसी तरक्की पर, ऎसे सिस्टम पर, ऎसे नेता पर जो अपने राज्य मै शांति साथापित नही कर सकता

Unknown said...

बहुत सही कहा अनिल. हर बात को राजनीतिक रंग देने के कारण आम जनता मुद्दों से जुड़्ने से कतराती है. और जहां तक तरक्की की बात है तो अंग्रेजी मे एक बात कही जाती है - IT COMES WITH THE PACKAGE.
खैर एक पुरजोर आवाज उठाने के लिये धन्यवाद.

Randhir Singh Suman said...

nice

Unknown said...

"हमे तो चाहिये अपना पुराना छत्तीसगढ,जंहा पर था प्यार,चैन और अमन।"

मुझे तो नहीं लगता कि हमें वो अपना पुराना छत्तीसगढ़ अब फिर से हमें मिल पायेगा।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अनिल भाई- सिर्फ़ थु ही नही! थुथु है इस सिस्टम पर्। आज यही "चर्चा मंच" भी कह रहा है।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

तरक्की के साथ ही आती है अराजकता .

Unknown said...

अत्यन्त दुखद और चिन्ताजनक !

उम्मतें said...

अनिल भाई ,
कभी नौकरियों/भर्तियों/तैनातियों/प्रतिनियुक्तियों के तौर तरीकों पर भी लिखिये उम्मीद है आधे से ज्यादा जबाब आपको मिल जायेंगे !
इसके अलावा 'शार्टकट' से पैसा कमाने के लिए , व्यावसाइयों की गलाकाट स्पर्धा भी इसके लिए उत्तरदाई है !
यानि थूकने के लिए 'प्रशासन' अकेला काफी नहीं है थोड़े बहुत थूक की हक़दार 'जनता' भी है!

दिगम्बर नासवा said...

पूरे देश का यही हाल है .......

Anonymous said...

नया रायपुर बसाने के लिये सिर्फ सस्ते मजदूर ही नहीं आएंगे, अपराधी भी आएंगे।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

पहले केवल सडकों पर थूका जाता था, अब जी करता है हर नेता के मुंह पर थूखें :(

सहसपुरिया said...

तरक़्क़ी कि क़ीमत तो चुकानी ही पड़ेग?
जब सब अंधे होकर पैसे के पीछे भाग रहे हो तब नैतिकता, आदर्श सब धरे रह जाते हैं

36solutions said...

यह आवाज व विचार हम सब छत्‍तीसगढ के वासियों का है.

अनिल कान्त said...

आपकी बात सही है

Gyan Dutt Pandey said...

जाहि बिधि राखे राम ताहि बिधि रहिये! :(

Khushdeep Sehgal said...

वर्दी वाले ही गुंडे हों तो ये दिन तो देखने ही पड़ेंगे...पुलिस को कमाई के अलावा कुछ और सूझता नहीं...सियासत को बस कुर्सी चाहिए...जनता तो लुटेगी ही लुटेगी...

ये अंधा कानून है...

जय हिंद...

डॉ महेश सिन्हा said...

सही कहा विकास का अगर यही मायने है तो किसे चाहिए ऐसा विकास . सरकारी सुरक्षा का ढीलापन इस सबको बढ़ावा देता है

slumdog said...

अनिलजी
रायपुर की मौजूदा स्थिति पर आपके ब्लॉग में जिस प्रकार आपने सीधी-टिप्पणी की है उसने समझ लीजिए मेरी अपनी पीडाओं को बयान किया है जिसपर मैं लम्बे अरसे से लगातार सोचता रहा हूँ और मेरा दावा है कि मेरी तरह और भी लोग सोच रहे होंगे | बस फर्क सिर्फ इतना है कि आपने दमदारी से जुबान खोल दी और हम जैसे किन्तु-परन्तु में फंस कर रह गए| ऐसा नहीं कि यह एक दिन में हुआ है| लगातार ऐसा होता रहा और हमारे कर्णधार ठोस कुछ करने की बजाय तटस्थ बने रहे जिसका नतीजा यह है कि आज हरेक राइपुरीयन सोचता है कि भैया वो दिन ही ठीक थे जब आसानी से सडकों पर मूव कर लेते थे, और रायपुर एक बेधड़क शहर था जो अब भीड़ से बेहाल है, और छुट्टा सांड की तरह घूम रहे अपराधी इस शहर की पुरानी पहचान को नोच रहे हैं|
-रमेश शर्मा (शर्मारमेश.ब्लागस्पाट.कॉम)

शरद कोकास said...

अब महानगर की विकृतियाँ रायपुर तक भी पहुंच रही हैं ।