Monday, March 22, 2010

ये डीज़ल लगा-लगा कर थक़ गया आज तक़ किसी ने पलट कर देखा तक़ नही,सोचता हूं अब पर्फ़्यूम बदल ही लूं,ऐक्स इफ़ेक्ट कैसा रहेगा?

बड़ी-बड़ी बात करने के लिये ज़रूरी नही है बड़ी पोस्ट लिखना सो एक छोटी सी पोस्ट आप लोगों के विचारार्थ सामने रख रहा हूं।वैसे तो मेरी खुद की नाक बहुत खराब है मगर पर्फ़्यूम लगाने का बड़ा शौक है मुझे।फ़िलहाल डीज़ल यूज़ कर रहा हूं और इससे पहले भी बढिया से बढिया पर्फ़्यूम यूज़ करता रहा हूं।सालों से पर्फ़्यूम यूज़ कर रहा हूं मगर आज तक़ कभी किसी लड़की ने पलट कर तक़ नही देखा और अपन आज तक़ सिंगल के सिंगल ही रह गये हैं।अभी हाल ही मे आईपीएल के मैच देखने लगा तो क्रिकेट से ज्यादा मुझे किसी ने इफ़ेक्ट लिया तो वो है ऐक्स इफ़ेक्ट।आहा हा हा।क्या बात है ऐक्स इफ़ेक्ट की कैच लेने जाओ तो खूबसूरत लड़किया ज़मीन पर पटक देती है,बालिंग करने जाओ तो लड़कियों की फ़ौज़ दौडा-दौडा कर मैदान मे लेटा देती है और अगर बैटिंग करते वक़्त गेंद लग जाये तो पांच खूबसूरत बला स्ट्रेचर लेकर आती है चार उठाती है और पांचवी स्ट्रेचर मे साथ ही लेट जाती है।अब बताओ भला ऐसे मे कोई सिंगल बचेगा?मैईच साला मूर्ख आज तक़ ऐक्स इफ़ेक्ट के इफ़ेक्ट को ट्राई नही किया।भाई लोग बुरा मानने का नही ये विज्ञापन की दुनिया है।इसमे नये-नये टाईप का पर्फ़यूम लगाने का बताते है और फ़िर सारी लड़कियां पीछे भागती नज़र आती है।मै मानता हू ज़माना बदला है मगर इतना बदल गया होगा मुझे पता नही था।भाई लोग-भाभी लोग बहन जी लोग और नानी-दादी,मामी-काकी,बुआ-मौसी लोग आप् लोगों से भी माफ़ी मांगते हुये ये बताना चाह रहा हूं कि विज्ञापन की दुनिया मे अपनी संस्कृति से खिलवाड़ किया जा रहा है और हमे इसका जमकर विरोध करना चाहिये।

21 comments:

डॉ महेश सिन्हा said...

कल एक टीवी कार्यक्रम में इस कंपनी को विज्ञापन के लिए पुरस्कार मिला है .

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

ab isse achchha kya hoga..

मुनीश ( munish ) said...

X-effect is really effective, but it should be diluted in water to avoid too many side-effects :)

Sanjeet Tripathi said...

heading ko dekha to man me aaya ki anil bhaiya ko ye budhaapa nazdik kya aata hi dekh kar kya sukhi jo kam 20 salpahle karna tha ab karne ki soch rahe hain

;)

mai to is se bhi dhakkan hu, tv dekhta hi nai, so no locha.....

राज भाटिय़ा said...

आप ने सही फ़र्माया, यह लानत हम ने अमेरिका की नकल से ली है, हमारे यहां तो नारी को पुजा जाता है, ओर ऎसी नारिया देख कर तो मुझ जेसे इंसान को हेरांगी ही होती है, कि क्या हम ने नंगे होने के लिये ही तरक्की की है, क्या यही अधुनिकता है.... हे राम दे अकल इन पागल लोगो को...अनिल जी मै आप के संग हुं इस विरोध मै.

दिनेशराय द्विवेदी said...

उस्ताद जी! अब नरोत्तम बुक सेलर के यहाँ से प्राचीन वशीकरण तंत्र खरीद कर लाइए और ट्राई कीजिए। शायद उस से काम बन जाए। न भी बनेगा तो यह तो साबित हो ही लेगा कि मौजूदा विज्ञापनदाता वशीकरण तंत्र की किताब लिखने वाले के वंशज हैं।

Udan Tashtari said...

परफ्यूम के भरोसे न रहना भाई..सलाह है बस!!

अजित गुप्ता का कोना said...

इस विज्ञापन से तो बहुत ही खुंदक आती है। यदि लड़कियां खुशबू की इतनी ही दीवानी होती हैं कि उनका आचरण पागलपन की हद को भी पार कर जाए तब तो सारी ही लड़किया रातरानी, मोगरा, चमेली की बेल पर लटकी हुई मिलेंगी। और किसी को भी लड़कियों से चिढ़ हो तो वह खुशबू को अपने साथ लेकर सभी को नदियां में डुबा आए जैसे बांसुरी बजाकर चूहों को समुद्र में फेंक दिया था।

Unknown said...

संस्कृति से खिलवाड़ तो चारों तरफ़ जारी है, विज्ञापन उस आग में घी डालने का काम करते हैं… और इसे "नंगई" नहीं माना जाता, बल्कि "अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता" और "नया आईडिया नई सोच" कहा जाता है… इस कथित क्रियेटिविटी के लिये लानत भेजना काफ़ी नहीं है, कोई ऐसा रास्ता तलाशना होगा कि इस का विरोध करके इसे बन्द करवाया जा सके… वरना "ये तो बड़ा टोइंग है" चलता रहेगा…

संजय बेंगाणी said...

हम तो जी डियो पअफ्यूम लगाते नहीं है इसलिए कुछ भी कहना सही नहीं होगा. अगर आपको कोई असर दिखे तो बताना, हम भी आजमाना चाहेंगे. :)

Anonymous said...

हम भी यही कहेंगे कि इस कुल्हाड़ी के भरोसे न रहना :-)

बी एस पाबला

मिहिरभोज said...

भाऊ ट्राई मारके देखो ....फिर अपुन भी लाते हैं

shikha varshney said...

यहाँ ये विज्ञापन तो देखने को नहीं मिलते ..आप सब लोग कह रहे हैं तो आपत्तिजनक ही होगा

डॉ टी एस दराल said...

किस किस का विरोध करेंगे भाई।
एड्स का , अख़बारों का , टी वी का , फिल्मों का , मोबाइल का , या आजकल के फैशन का ।

पहले घरों में बड़े बूढों के आगे बहु बेटियां नज़रें नीची रखती थी । आजकल बेटियां ऐसे कपडे पहनती हैं कि बड़ों को नज़रें नीची रखनी पड़ती हैं।

ज़माना बदल रहा है।

Pankaj Oudhia said...

परफ्यूम का असर होता है कि नहीं, कौन जाने , पर मेरा अनुभव जंगल में पायी जाने वाली लोकटी मख्खी तक ही सीमित है| जब भी परफ्यूम लगाता हूँ, ऐसे झूम पड़ती है कि कैमरा छोड़कर भागना पड़ता है| वकील साहब जिस वशीकरणयंत्र की बात कर रहे है वह तो अपने यहाँ भी मिलता है| और आपको ट्राई करना ही है तो आप महंगे परफ्यूम की जगह छत्तीसगढ़ की मोहनी बूटी आजमायें| :)

समयचक्र said...

डीजल म़त लगाइए भैय्या जी एक से एक परफ्यूम मिल रहे है कहे को इतना परेशान हो रहे हो आप ... पंकज जी सलाह माने मोहनी परफ्यूम जरुर लगाए जीई

योगेन्द्र मौदगिल said...

मैं भी सहमत हूं आपसे......... पर भाई जी अपना काम बिना परफ्यूम लगाये ही हो गया था..

Dr. Johnson C. Philip said...

"विज्ञापन की दुनिया मे अपनी संस्कृति से खिलवाड़ किया जा रहा है और हमे इसका जमकर विरोध करना चाहिये। "

मेरा अनुमोदन स्वीकार करें।

इस जहर का भविष्य में क्या असर होगा यह सोच कर रोंगटे खडे हो जाते हैं।

सस्नेह -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

शरद कोकास said...

सबसे अच्छी मेहनत के पसीने की खुशबू होती है । इसका परफ्यूम कहीं बनता है क्या .. और माटी की सोन्धी सोन्धी खुशबू का भी कहीं बनता हो तो बतायें । बाकी तो कुछ भी चलेगा ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी इस पोस्ट के मजमून को पढ़ कल तक कुछ समझ नहीं आया था....पर कल अचानक वो विज्ञापन दिखाई दिया जिसका ज़िक्र आपने किया है....और मैं इस एक्स फैक्टर को समझ पाई .आपकी चिन्त्ता बिलकुल जायज़ है...बहुत से ऐसे विज्ञापन दिए जा रहे हैं जो देखने में ही शर्मिंदगी महसूस होती है....इस विज्ञापन के विरोध से मैं सहमत हूँ...

Gyan Dutt Pandey said...

देखिये जी, हम टीवी शीवी नहीं देखते। हमारे बेनिफिटार्थ ऊ परफ्यूम का ब्राण्ड तो बता दें! :)