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Sunday, July 21, 2013
पहले नीला गुलाब लाओ फिर बात करुंगी.
शाम को कालेज के पुराने साथी संजू का फोन आया.वह अपने नये बने काम्प्लेक्स में शिफ्ट होने पर निमंत्रण दे रहा था.आदतन विनम्र संजू से थोडी आडी तिरछी बात मैने भी आदतन की और फिर पूछा कौन कौन है?उसने फोन पप्पू को थमाया और मैने उनसे रुकने की बात कह कर फोन रख दिया.थोडी ही देर में मैं उनके पास पहुंच गया.गोपी से गले लगा और फिर तो बस हंसी ठहाको का दौर जो शुरु हुआ की थमने का नाम ही नही लिया.बाकी कसर शकील साजिद ने आकर पूरी कर दी.सबने संजू के घर के कोने वाले कमरे को याद किया,जंहा खाना खाने से लेकर कई प्रेम कहानियां परवान चढी तो कुछ विवाह तक जा पहुंची.पुरानी यादो के समंदर में सब गोते लगाते रहे.अचानक अपने पुराने साथियों को याद करने का भी सिलसिला चल पडा.सबके सब नीले गुलाब का किस्सा याद कर ठहाके लगाने लगे.हमारे कालेज के एफ एल ए (फेलवर लवर एसोसियेशन्) ग्रुप के एक साथी को अपने पीछे भूत की तरह लगा देखकर उनके पास में रहने वाली लडकी ने बला टालने की गरज़ से उनसे कह दिया कि आप मुझे नीला गुलाब ला कर दिजिये पहले,फिर मैं आप से बात करूंगी.बस इतना सुनना था हमारा भाई सीधे दौडा चला आया और चिल्ला कर बोला खुशखबरी है भाई.मेरी लाईफ बन गई.अब कोई ये नही बोलेगा कि तू कुछ नही कर सकता.सबने उससे पूछा मामला क्या है भाई?उसने भोलेपन से कहा कुछ नही बस अब नीले गुलाब का इंतज़ाम करो.वो बोली है कि उसके बाद बात करुंगी.सबके सब उसे समझाने की कोशिश करते रहे पर घोडा अड गया था.सो नीले गुलाब का इंतजाम करने की बात कर सबने बला टाली.बाद में वो नीले गुलाब का किस्सा सबका सालो पेट दुखाता रहा.और आज भी पेट दुखा गया.कैसा लगा हमारे कालेज के दिनो का किस्सा बताईयेगा जरुर.
Tuesday, February 17, 2009
उसने कहा मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूंगी और मारे अकड़ के मै माफ़ी भी नही मांग सका
दूसरे दिन तक़ तो दूर, मै घर भी नही पहूंचा था कि खबर सबको लग गई।शाम को सब होस्टल मे इकट्ठा हुए और आगे का प्रोग्राम बनाया जाने लगा वो भी बिना मेरी मर्ज़ी के।चिढ के मैने छोटू को गालियां दी तो फ़ौरन कमेण्ट्स आ गया इश्क और मुश्क छिपाये नही छिपते हैं।मै बोला न ये इश्क का मामला है और न मुश्क का,चलो घर चले।लेकिन वे लोग कहां मानने वाले थे,बता न गुरू,क्या बोली वो?तू क्या बोला?अबे क्यो मरा जा रहा पूछने के लिए,साले एक लड़की भी तो पलट कर नही देखती?अबे मेरा मेरा मुंह मत खुलवाओ,साले सब को नंगा कर दूंगा?और तू बे भूल गया बेटा तेरी कालोनी की नई छमिया ने क्या कहा था?बताऊं?देखो यार पर्सनल मामले मे कोई नही बोलेगा?मै बोला ये भी तो पर्सनल मामला है?सब एक साथ चिल्लाए नही ये पर्सनल नही ग्रुप का मामला है।पहली बार ग्रुप मे कोई ढंग से सक्सेस होने जा रहा।इस मामले पर तो पूरे एफ़ एल ए का भविष्य टिका हुआ है।
मै बोला मुझे क्यो एफ़ एल ए मे घसीट रहे हो बे।वो तुम लोगो का …………देखो गुरुदेव,मेरी बात खतम होने के पहले ही चुन्नू बोला,अपन सब दोस्त हैं या नही?सब बोले हैं।वो बोला अपन सब भाई है या नही?सब बोले हां है।वो बोला बस फ़िर सब एफ़ एल ए के मेम्बर हैं।मै बोला ,ये गलत बात है,मै क्यो?वो फ़िर बोला ,सही बोल रहे गुरु एक लड़की चाय पीने तैयार क्या हुई, ग्रुप से अलग हो रहे हो। अरे वैसे भी हमारे एफ़ एल ए का नियम है जिससे लड़की पटी।उसकी मेम्बरशीप खतम्।(मै ज़रा समझा दूं एफ़ एल ए है क्या।ये हमारे कालेज के लवेरिया ग्रस्त लड़को का ग्रुप था।इसका फ़ुल फ़ार्म था फ़ेल्वर लवर एसोसियेशन्।हमारे ग्रुप के कुछ क्रिटिकल लवेरियन्स ने इसे बनाया था)।
खैर बात मुझे ग्रुप से निकालने तक़ की आ गई थी।सारी शाम बहस होते रही दुसरे दिन सब कालेज पहूंचे।कुछ जुनियर जो अभी तक़ खुल नही पाए थे,वे भी मुझे देखकर मुस्कुराने लगे,कुछ ने हंसते हुए नमस्ते भैया कहना शुरू कर दिया था और कुछ और करीब आने के चक्कर मे बताने भी लगे थे भैया अभी यूनिवर्सिटी की तरफ़ गई है।परिवर्तन की इस बयार को मै अच्छी तरह समझ रहा था।उस दौर मे एक गर्ल-फ़्रेंड का होना चमचमाती कार रखने से ज्यादा स्टेटस दिलाता था।यार की गली के कुत्तों यानी कुत्ते टाईप लडको को बेमतलब चाय-सिगरेट पिलाकर वापस आ जाने वाले भी रोमांस मे राजेश खन्ना को मात देने वाली स्टोरी बताते नही थकते थे।
अचानक से एक्शन फ़िल्म के हिरो की बजाय अपनी इमेज भी राजेश खन्ना टाईप की हो गई थी।सब कुछ ठीक चल रहा था।बस मे आना-जाना,कमेण्ट्स करना,खुलकर मुस्कुराना,लड़कियो का आपस मे फ़ुस्फ़ुसाना,कमीनो को जलना और कुड्कुडाना।उसकी मुस्कुराहट धीरे-धीरे खिलखिलाहट मे बदल गई थी वो भी रिक्टर स्केल पर आठ के उपर(रिक्टर स्केल इसलिये कह रहा हूं कि मै जियोलोजी का स्टूडेंट रहा हूं और भूकंप नापने का कोई दुसरा पैमाना मुझे पता नही है)।ये बात अब कालेज की बाऊंड्री से उड़कर बाहर भी निकलने लगी थी।दूसरे कालेज के टपोरी भी हमारे कालेज आकर चुनावी माहौल के बहाने धीरे से मुस्कुरा कर पूछ लेते थे और गुरु कैसे चल रहा है?साला ये सवाल दिमाग खराब कर देता था।
एक दिन हमारा ग्रुप कालेज के स्टाप पर उतरा।उस दिन घर मे भी जमकर बत्ती पड़ी थी।कौन सा सब्जेक्ट ले रहे हो पूछने पर हमारा जवाब था अभी डिसाईड नहि किया है,और हमारा जवाब हमारा बाज़ा बज़वा गया।वैसे ही जले-भुने थे और दुसरे दो तीन दिनो से वो बस मे भी नही आ रही थी।दिमाग जंज़ीर के अमिताभ की तरह फ़ांय-फ़ांय कर रहा था। ऐसे मे नीचे उतरते ही दूसरे कालेज से आये हमारे एक पुराने कमीने टाईप के दोस्त मिल गए। आजकल कालेज मे पढा रहे हैं।वो मुझे किनारे ले गया और धीरे से बोला गुरु तुम तो खिसक लो।उसका भाई बहुत गुस्से मे है।कुछ दोस्तो के साथ आया है और तुम्ही को ढूंढ रहा है।
इतना सुनते ही गुस्से का ज्वालामुखी जो घर से एक्टिव हुआ था,फ़ट पड़ा।मुंह से अनाप-शनाप गालियां निकलने लगी,सब भाग कर मेरी तरफ़ आए,तब तक़ मै उसकी जितनी वाट लगा सकता तथा लगा चुका था।इससे पहले कोई कुछ समझ पाता उसने आखिरी हथियार का इस्तेमाल कर दिया।उसने कहा भलाई का ज़माना नही है हम बचा रहे और हमी गाली खा रहे है।इतना सुनना था कि मै कालेज के अंदर भागा और बोला अभी लाता हूं साले को पकड़ कर।तू रूक यंहा।
सब मेरे पिछे भागे।दुर्भाग्य देखिये उसका भाई तो मिला नही वो मिल गई।शायद लूना से कालेज आई थी,और आज उसकी लट्कन वो कण्डिल भी साथ मे नही थी।मै उसे देखते ही बोला कहां है वो।वो हंस कर बोली हम तो अकेले आए हैं।उस्का हसना मुझे गुस्से मे ज़रा भी अच्छा नही लगा और उल्टा गुस्से को भड़का गया।मै बोला तेरा भाई कहां है साला और उसके बाद तो जैसे मै पागल हो गया पता नही क्या अंट-शट बकने लगा।दोस्तो ने मुझे खींचकर अलग करना चाहा तो उनपर भी बरस पड़ा।ये सब उसके लिए अप्रत्याशित था।शायद वो उस दिन मुझसे मिलने के लिये ही अकेली आई थी।मेरी बक़वास सुनकर उसकी आंखो मे आंसू तैरने लगे थे।वो बोली आपने ऐसा क्या किया है जो हम अपने भाई को बुलाते?मैं बके जा रहा था।वो फ़िर बोली काश मेरा कोई भाई होता?अगर होता तो भी मै उसे कालेज नही बुलाती।ये सुनकर मेरे होश ऊड़ गए।मुझे जैसे लकवा मार गया।मै सन्न रह गया था।वो बोले चली जा रही थी हम आपको कभी माफ़ नही करेंगे।और वो चली गई मै वैसे ही खड़ा रहा?मेरा दिल कह रहा था उससे माफ़ी मांग लूं मगर मारे अकड़ के कुछ कह नही पाया।सारे दोस्त उस वाक्ये से सन्न रह गये थे।किसी ने किसी से कुछ नही कहा।सब बिना कुछ बोले रवाना हो गए।
कुछ दिनो तक़ मै कालेज नही गया।सारा ग्रुप अब्सेंट रहा।एक दिन सुबह बल्लू घर आया बोला चल कालेज चल्ते हैं।बहुत दिन हो गए।मैने कुछ नही कहा चुप-चाप घर से बाहर निकला।उसका स्कूटर जब बस स्टाप की तरफ़ नही मुड़ा तो मैने पूछा कहा जा रहा है।वो बोला कालेज।मै बोला बस से चलते हैं।वो बोला नही और हम कालेज पहुंचे।उसने बाटनी मे एड्मिशन ले लिया था।मैने जियोलाजी मे एड्मिशन लिया।कुछ दिनो तक़ कोई बस से नही आया।फ़िर सब बस से आने-जाने लगे।मै उसपर अब कमेण्ट्स नही करता था,मगर वो मेरे कमेण्ट्स पर मुस्कुराती ज़रूर थी।दोस्तो ने कई बार कहा बात कर ले,लेकिन झूठे अहम के कारण मै उससे माफ़ी नही मांग सका।दो सालो तक़ हम साथ-साथ कालेज मे रहे।उसके बाद पता नही वो कंहा चली गई।कुछ साल बाद उसके क्लास की एक लड़की शकील को मिली।उसने शकील से कहा अनिल जैसा बेवकूफ़ लड़का मैने ज़िंदगी मे नही देखा।वो उसको पसंद करती थी मगर अनिल अपनी अकड़ मे मर गया।पता नही वो सच कह रही थी या गलत लेकिन अब सालो गुज़र जाने के बाद मुझे लगने लगा है कि कम से कम माफ़ी नही मांग कर मैने गल्ती की तो थी।कैसी लगी कालेज के दिनो की खट्टी-मीठी यादें बताईएगा ज़रूर्।
मै बोला मुझे क्यो एफ़ एल ए मे घसीट रहे हो बे।वो तुम लोगो का …………देखो गुरुदेव,मेरी बात खतम होने के पहले ही चुन्नू बोला,अपन सब दोस्त हैं या नही?सब बोले हैं।वो बोला अपन सब भाई है या नही?सब बोले हां है।वो बोला बस फ़िर सब एफ़ एल ए के मेम्बर हैं।मै बोला ,ये गलत बात है,मै क्यो?वो फ़िर बोला ,सही बोल रहे गुरु एक लड़की चाय पीने तैयार क्या हुई, ग्रुप से अलग हो रहे हो। अरे वैसे भी हमारे एफ़ एल ए का नियम है जिससे लड़की पटी।उसकी मेम्बरशीप खतम्।(मै ज़रा समझा दूं एफ़ एल ए है क्या।ये हमारे कालेज के लवेरिया ग्रस्त लड़को का ग्रुप था।इसका फ़ुल फ़ार्म था फ़ेल्वर लवर एसोसियेशन्।हमारे ग्रुप के कुछ क्रिटिकल लवेरियन्स ने इसे बनाया था)।
खैर बात मुझे ग्रुप से निकालने तक़ की आ गई थी।सारी शाम बहस होते रही दुसरे दिन सब कालेज पहूंचे।कुछ जुनियर जो अभी तक़ खुल नही पाए थे,वे भी मुझे देखकर मुस्कुराने लगे,कुछ ने हंसते हुए नमस्ते भैया कहना शुरू कर दिया था और कुछ और करीब आने के चक्कर मे बताने भी लगे थे भैया अभी यूनिवर्सिटी की तरफ़ गई है।परिवर्तन की इस बयार को मै अच्छी तरह समझ रहा था।उस दौर मे एक गर्ल-फ़्रेंड का होना चमचमाती कार रखने से ज्यादा स्टेटस दिलाता था।यार की गली के कुत्तों यानी कुत्ते टाईप लडको को बेमतलब चाय-सिगरेट पिलाकर वापस आ जाने वाले भी रोमांस मे राजेश खन्ना को मात देने वाली स्टोरी बताते नही थकते थे।
अचानक से एक्शन फ़िल्म के हिरो की बजाय अपनी इमेज भी राजेश खन्ना टाईप की हो गई थी।सब कुछ ठीक चल रहा था।बस मे आना-जाना,कमेण्ट्स करना,खुलकर मुस्कुराना,लड़कियो का आपस मे फ़ुस्फ़ुसाना,कमीनो को जलना और कुड्कुडाना।उसकी मुस्कुराहट धीरे-धीरे खिलखिलाहट मे बदल गई थी वो भी रिक्टर स्केल पर आठ के उपर(रिक्टर स्केल इसलिये कह रहा हूं कि मै जियोलोजी का स्टूडेंट रहा हूं और भूकंप नापने का कोई दुसरा पैमाना मुझे पता नही है)।ये बात अब कालेज की बाऊंड्री से उड़कर बाहर भी निकलने लगी थी।दूसरे कालेज के टपोरी भी हमारे कालेज आकर चुनावी माहौल के बहाने धीरे से मुस्कुरा कर पूछ लेते थे और गुरु कैसे चल रहा है?साला ये सवाल दिमाग खराब कर देता था।
एक दिन हमारा ग्रुप कालेज के स्टाप पर उतरा।उस दिन घर मे भी जमकर बत्ती पड़ी थी।कौन सा सब्जेक्ट ले रहे हो पूछने पर हमारा जवाब था अभी डिसाईड नहि किया है,और हमारा जवाब हमारा बाज़ा बज़वा गया।वैसे ही जले-भुने थे और दुसरे दो तीन दिनो से वो बस मे भी नही आ रही थी।दिमाग जंज़ीर के अमिताभ की तरह फ़ांय-फ़ांय कर रहा था। ऐसे मे नीचे उतरते ही दूसरे कालेज से आये हमारे एक पुराने कमीने टाईप के दोस्त मिल गए। आजकल कालेज मे पढा रहे हैं।वो मुझे किनारे ले गया और धीरे से बोला गुरु तुम तो खिसक लो।उसका भाई बहुत गुस्से मे है।कुछ दोस्तो के साथ आया है और तुम्ही को ढूंढ रहा है।
इतना सुनते ही गुस्से का ज्वालामुखी जो घर से एक्टिव हुआ था,फ़ट पड़ा।मुंह से अनाप-शनाप गालियां निकलने लगी,सब भाग कर मेरी तरफ़ आए,तब तक़ मै उसकी जितनी वाट लगा सकता तथा लगा चुका था।इससे पहले कोई कुछ समझ पाता उसने आखिरी हथियार का इस्तेमाल कर दिया।उसने कहा भलाई का ज़माना नही है हम बचा रहे और हमी गाली खा रहे है।इतना सुनना था कि मै कालेज के अंदर भागा और बोला अभी लाता हूं साले को पकड़ कर।तू रूक यंहा।
सब मेरे पिछे भागे।दुर्भाग्य देखिये उसका भाई तो मिला नही वो मिल गई।शायद लूना से कालेज आई थी,और आज उसकी लट्कन वो कण्डिल भी साथ मे नही थी।मै उसे देखते ही बोला कहां है वो।वो हंस कर बोली हम तो अकेले आए हैं।उस्का हसना मुझे गुस्से मे ज़रा भी अच्छा नही लगा और उल्टा गुस्से को भड़का गया।मै बोला तेरा भाई कहां है साला और उसके बाद तो जैसे मै पागल हो गया पता नही क्या अंट-शट बकने लगा।दोस्तो ने मुझे खींचकर अलग करना चाहा तो उनपर भी बरस पड़ा।ये सब उसके लिए अप्रत्याशित था।शायद वो उस दिन मुझसे मिलने के लिये ही अकेली आई थी।मेरी बक़वास सुनकर उसकी आंखो मे आंसू तैरने लगे थे।वो बोली आपने ऐसा क्या किया है जो हम अपने भाई को बुलाते?मैं बके जा रहा था।वो फ़िर बोली काश मेरा कोई भाई होता?अगर होता तो भी मै उसे कालेज नही बुलाती।ये सुनकर मेरे होश ऊड़ गए।मुझे जैसे लकवा मार गया।मै सन्न रह गया था।वो बोले चली जा रही थी हम आपको कभी माफ़ नही करेंगे।और वो चली गई मै वैसे ही खड़ा रहा?मेरा दिल कह रहा था उससे माफ़ी मांग लूं मगर मारे अकड़ के कुछ कह नही पाया।सारे दोस्त उस वाक्ये से सन्न रह गये थे।किसी ने किसी से कुछ नही कहा।सब बिना कुछ बोले रवाना हो गए।
कुछ दिनो तक़ मै कालेज नही गया।सारा ग्रुप अब्सेंट रहा।एक दिन सुबह बल्लू घर आया बोला चल कालेज चल्ते हैं।बहुत दिन हो गए।मैने कुछ नही कहा चुप-चाप घर से बाहर निकला।उसका स्कूटर जब बस स्टाप की तरफ़ नही मुड़ा तो मैने पूछा कहा जा रहा है।वो बोला कालेज।मै बोला बस से चलते हैं।वो बोला नही और हम कालेज पहुंचे।उसने बाटनी मे एड्मिशन ले लिया था।मैने जियोलाजी मे एड्मिशन लिया।कुछ दिनो तक़ कोई बस से नही आया।फ़िर सब बस से आने-जाने लगे।मै उसपर अब कमेण्ट्स नही करता था,मगर वो मेरे कमेण्ट्स पर मुस्कुराती ज़रूर थी।दोस्तो ने कई बार कहा बात कर ले,लेकिन झूठे अहम के कारण मै उससे माफ़ी नही मांग सका।दो सालो तक़ हम साथ-साथ कालेज मे रहे।उसके बाद पता नही वो कंहा चली गई।कुछ साल बाद उसके क्लास की एक लड़की शकील को मिली।उसने शकील से कहा अनिल जैसा बेवकूफ़ लड़का मैने ज़िंदगी मे नही देखा।वो उसको पसंद करती थी मगर अनिल अपनी अकड़ मे मर गया।पता नही वो सच कह रही थी या गलत लेकिन अब सालो गुज़र जाने के बाद मुझे लगने लगा है कि कम से कम माफ़ी नही मांग कर मैने गल्ती की तो थी।कैसी लगी कालेज के दिनो की खट्टी-मीठी यादें बताईएगा ज़रूर्।
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