तीन दिनों में दो बार महाबंद का दर्द झेला मेरे छत्तीसगढ़ ने। दोनों ही बंद के दिनों जो तनाव झेला देश के अन्य शहरों ने वो मेरे छत्तीसगढ़ के शहरों को छू भी नहीं पाया। सांप्रदायिकता का जहर घोलने वालों ने जी तोड़ कोशिश की, लेकिन कोई कामयाब नहीं हो पाया और एक बार फिर मेरा छत्तीसगढ़ शांति का द्वीप बना रहा। सच मुझे गर्व है छत्तीसगढ़ की मिक्सड सोसायटी पर। छिटपुट तनाव भी हुए लोगों ने उसे फैलाने के लिये अफवाहों का सहारा लिया मगर सब कुछ ठीकठाक रहा।
ये पहला मौका नहीं है जब सांप्रदायिकता की आंधी ने छत्तीसगढ़ को हिलाने की कोशिश की हो। इससे पहले बाबरी मस्जिद ध्वंस या बाबरी मस्जिद के शहीद होने पर भी जब सारा देश में दंगों की लपटें फैल रही थी, छत्तीसगढ़ उनसे अप्रभावित ही रहा था। तब भी शैतान के चेले-चपाटियों ने सांप्रदायिकता का जहर फैलाने की भरपूर कोशिश की थी, मगर वे कामयाब नहीं हो पाये थे। इससे पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी वहीं जहर फैलाने की कोशिश की गई थी और तब भी लूटपाट के अलावा किसी भी जनहानि के दर्द इस प्रदेश ने नहीं झेला था। हालांकि तब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था लेकिन तब भी छत्तीसगढ़ अपनी सांप्रदायिक सौहाद्रता की मिसाल बना रहा।
बरसों बाद फिर वैसी ही जहरीली हवा सारे देश में बही थी। वैसा ही खूनी माहौल बनता जा रहा था और धर्म के दीवानें बात बे बात पर लड़ने पर उतारू हो चूके थे। ऐसे में खबर आई मालवा के इंदौर से। वहां खून खराबे की शुरूवात हो गई थी। उस खून खराबे के जितने छिंटे इंदौर में फैले उससे हजार गुना ज्यादा इलेक्ट्रानिक मीडिया ने सारे देश में फैला दिये। खून के ऐसे ही कुछ छिंटों को मेरे छत्तीसगढ़ को बदरंग करने के लिये इस्तेमाल करने की कोशिश की गई। दुर्भाग्य की बात है कि मैं भी कभी उसी इलेक्ट्रानिक मीडिया का हिस्सा रहा हूॅ। अगर इंदौर के दंगों को लाइव कर सांप्रदायिकता को सारे देश में लाइव नहीं किया जाता तो न्यूज चैनल बंद नहीं हो जाते। खैर तरस भी आता है उनकी अकल और मजबूरी पर।
खैर मीडिया ने जो जहर फैलाना था सो फैला भी दिया मगर मुझे खुशी है कि मेरा छत्तीसगढ़ दूर ही रहा। ऐसा नहीं है कि यहां सभी लोग अच्छे है कुछ खून के दीवानों ने राजधानी रायपुर में भी खून-खराबा करने की कोशिश की थी। सांप्रदायिक तनाव की सबसे पहली खबर राजधानी के मौदहापारा इलाके से आई। मुस्लिमों की इस बस्ती में चंद हिन्दु परिवार ही रहतें है। कभी मैं भी वहां रहता था, मेरा बचपन गुजरा था और जवानी भी वहीं परवान चढ़ी थी। जैसे ही मुझे किसी अब्दुल हकीम के सिर फूटने की और बंद कराने वाले हिन्दुओं के स्वमभू ठेकेदारों के जमा होने की खबर मिली, मुझे लगा कि राजधानी और मेरे छत्तीसगढ़ पर शायद दाग लग जायेगा। दिल अनजाने डर से धड़कने लगा था। तत्काल अपने केबल न्यूज के रिर्पोटरों से खबर ली तो पता चला कि सब कुछ ठीक ठाक हो गया है। एक बार फिर गर्व हुआ मुझे अपने छत्तीसगढ़ और यहां के लोगों पर ।
ऐसा नहीं है कि यहां सब कुछ ठीक है। फिर भी देश के दूसरे सड़े हुए हिस्सों से मेरा प्रदेश ठीक ही है। हालांकि अलग राज्य बनने के बाद नेताओं ने अपनी सत्ता बनाये रखने के लिये जातिवाद का जहर यहां की फिजाओं में घोलने की भरपूर कोशिश की मगर यहां की अमन की पुजारी जनता ने उससे अपनी दूरी बनाये रखी। गर नक्सलवाद की समस्या को छोड़ दिया जाये तो अमूमन छत्तीसगढ़ शांति का द्वीप है। शांत और निश्छल लोग थोड़े में करना जानते है। मुझे गर्व है कि मैं उस छत्तीसगढ़ का हिस्सा हूँ जो सांप्रदायिकता की लपटों से अब तक झुलस नहीं पाया है। हालांकि कभी कभार ऐसी शैतानी ताकतें कुछ कुछ इलाकों में उभरती नजर आती है लेकिन उनका स्थायी असर कभी नहीं बन पाया।