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Saturday, April 3, 2010

इससे अच्छी तो पुरानी कारें होती साब!

कौन सी गाड़ी है?सफ़ारी! अरे वो तो हाथी है साब क्यों पाल लिया?गुस्सा तो भरपुर आया मगर उसे अपने साथ ले जाना था इसलिए मन मार कर कहा अरे नही बहुत बढिया गाड़ी है।होगी साब मगर उससे अच्छी तो पुरानी कारें होती साब!मेरे पड़ोस के इलाके मे गैरेज चलाने वाले मैकेनिक ने कहा।मैने उससे कहा यार तुमसे काम हो रहा है तो बताओ,उपदेश मत पेलो।उसने कहा साब ट्राई कर सकता हूं,गारंटी नही दे सकता।मैने उससे कहा चलो ट्राई ही कर लो।और वो ग्रीस लगे थैले मे टूल डाल कर मेरे साथ घर आया और थोड़ी देर बाद उसने कहा मैने पहले ही कहा था साब इससे अच्छी पुरानी कारें होती थी।मैने कहा अपन उस बारे मे बाद मे बात कर लेंगे आप तो बस इसे ठीक कर दो।उसने कहा वो तो नही हो पायेगी,ज्यादा से ज्यादा सायरन का बज़ना बंद कर सकता हूं।मैने कहा ठीक है कर दो लेकिन गाड़ी स्टार्ट कैसे होगी।वो हंसा औए बोला शोरूम फ़ोन कर दो।जब फ़ुरसत मिलेगी आयेंगे,देखेंगे और चले जायेंगे।फ़िर दूसरे दिन आयेंगे और टो करके ले जायेंगे फ़िर पता नही कब ठीक कर पायेंगे।मैने कहा क्यों?क्यों क्या,इन सब गाड़ियों मे फ़ाल्ट सुधारने से ज्यादा कठीन फ़ाल्ट ढूंढना होता है।
मैने उससे सायरन का बज़ना बंद करवाया और सीधे शोरूम पंहुचा।ओ हां समस्या बताना तो भूल ही गया था।कल रात कार की चाबी जेब मे ही रखी रह गई और आज सुबह कपड़े धोने मे डाल दिये।थोड़ी देर बाद कामवाली बाई चाबी और किरिंग मे लगा रिमोट लेकर आई और बोली भैया ये कपड़े मे छोड़ दिए थे।भीग गई।मैने माथा पकड़ लिया।मैं समझ गया कि आज का दिन परेशानी वाला निकला है।उसके बाद मैने चाबी को धूप मे सुखाया और घंटे भर के इंतज़ार के बाद चाबी लेकर बाहर निकला तो मेरी आशंका सही निकली।रिमोट ने काम करना बंद कर दिया था।
अब मुझे जाना भी था।पार्टनर लक्ष्मण को लगा कर उसके ड्राईवर को बुलाना चाहा तो वो कल से छुट्टी पर था और कल ईस्टर के बाद ही आने वाला था।सो दूसरी गाड़ी मंगाने का आईड़िया ड्राप करना पड़ा।मैने सोचा चाबी से तो दरवाजा खुल ही जायेगा सायरन बज़ेगा तो देख लेंगे।और मैने जैसे ही चाबी से कार का दरवाज़ा खोला उसने चीखना शुरु कर दिया।मुझे आज लगा कि अस्पताल के पास हार्न बजाना मना क्यों होता है।मैने हड़बड़ा कर दरवाजा बंद किया मगर कार का चीखना बंद नही हुआ।अड़ोस-पड़ोस के लोग भी बाहर आ गये,मां और बहुयें भी झांक कर देख कर अंदर चली गई।मैने सोचा स्टार्ट करके ऐसे ही बज़ते हुये हार्न के साथ शोरुम तक़ चला जाता हूं मगर गाड़ी शुरू होना तो दूर कट-खट भी नही कर रही थी।
हड़बड़ा कर बाहर निकला और सीधे पास के गैरेज मे गया।वंहा मैकेनिक ने अपना राग आलापना शुरू कर दिया था।शोरूम पंहुचा तो लंच हो चुका था और अपने प्रभाव का बेजा इस्तेमाल करते हुये मैने कुछ लोगों को बुलवाया।उन्होंने मेरी समस्या सुनी और कहा सर आप तो यंहा के चक्कर मे मत पडिये।मैने कहा क्या कह रहो यार्।वे लोग बोले सर लंच के बाद सेकेण्ड हाफ़ मे पहले से लगी गाड़ियों का ही काम होगा आप की गाड़ी अगर लेंगे तो कल संडे है फ़िर उसके बाद कब काम शूरु होगा और कब गाड़ी मिलेगी बता नही सकते।
मैं परेशान हो गया था।बोला यार इसमे समस्या क्या है।बाहर के मैकेनिक भी चिल्लाते है कि इससे अच्छी पुरानी गाड़ियां होती है।वो बोला बात तो ठिक ही है सर लेकिन फ़िर आप लोगों को लक्ज़री भी तो चाहिये।ये गाड़ियां हाईटेक है और इसलिये पुराने लोग इसे छूते ही नही है।मैने कहा भाई मेरे मेरी समस्या कैसे ठीक होगी तू ये बता।तो वो बोला सर एक और गाड़ी मे ऐसा ही प्राब्लम आया था।शोरूम वाले सब लोगों ने अपना दिमाग लगा लिया था,इधर-उधर बात भी की थी।क्म्प्यूटर पर डाटा-फ़ाटा भी चेक किया था।बड़े-बड़े इंजीनियरों से भी बात की थी मगर वो ठीक नही हो पा रही थी बाद मे एक लड़के ने सलाह दी थी कि सेंट्रल लाक वाले से बात करके देख लो शायद काम बन जाये।उस्का तो काम बन गया था।आप भी ट्राई करके देख लिजिए।
थक़ हार कर मैने सेंट्रल लाक सिस्टम वाले को फ़ोन किया और अंत मे उसने गाड़ी चालू कर दी।उसने बताया कि यंहा का एक रिले इंजन को उसकी ज़रूरत के हिसाब से पावर सपलाइ करता है इसलिये इंजन यंही से शुरू होता है।मैने माथे पर आये पसीने को पोछा तो भी बोला साब है तो सब सुविधाजनक लेकिन जब परेशान करता है तो लगता है कि इससे पुरानी गाड़िया अच्छी होती थी।