छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी में एक प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ दो कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त हुऐ है। 90 विधानसभाओं और दो करोड़ आबादी वाले छोटे से आदिवासी बहुल प्रदेश में तीन-तीन प्रदेश अध्यक्ष बनाना लाचार हो चुकी कांग्रेस की बेचारगी का सबूत है।
आजादी के बाद से यह शायद पहला मौका होगा जब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी किसी प्रदेश में एक सर्वमान्य अध्यक्ष बनाने में असफल रही है। 45 जिलों वाले मध्यप्रदेश से टुट कर अलग हुए छोटे से राज्य में कांग्रेस हाईकमान शुरू से ही असफल साबित हुई है। मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे बड़े क्षेत्रफल और आबादी वाले राज्यों में कांग्रेस हाईकमान की ऐसी कमजोरी देखने में नहीं मिली।
अब सवाल ये उठता है कि छोटे से प्रदेश में ऐसी कौन-सी परिस्थितियां है जिसके कारण यहां की एक पूर्णकालिक प्रदेश अध्यक्ष के रहते दो और कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की जरूरत पड़ गई। गुटबाजी और असंतोष कांग्रेस के गठन के साथ ही पनपे और अब तो ऐसा लगता है कि गुटबाजी की खरपतवार ज्यादा और कांग्रेस की फसल कम हो गई है।
छत्तीसगढ़ के राज्य बनते ही यहां से मध्यप्रदेश का देर नेतृत्व कर चुके शुक्ल परिवार को एकाएक किनारे कर दिया गया है। अविभाजित मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री स्व.पं.रविशंकर शुक्ल के ज्येष्ठ पुत्र श्यामाचरण शुक्ल भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है। उनके छोटे विद्याचरण शुक्ल केन्द्र सरकार में कई बार मंत्री रहे है। राज्य बनने के बाद शुक्ल परिवार से भी जिसे मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की थी जिसे दरकिनार कर कांग्रेस हाईकमान ने आदिवासी कार्ड खेलकर अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बना दिया। यहां से जो गुटबाजी शुरू हुई वो अब तक थमने का नाम नहीं ले रही है।
विद्यााचरण शुक्ल ने नाराज होकर कांग्रेस छोड़ी और एनसीपी में गए और वहां से भाारतीय जनता पार्टी होते हुए वापस कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसी बीच जोगी सरकार की विधानसभा चुनाव में हार के बाद संगठन में उनके विरोध के बावजूद उनके विरोधी गुट के डॉ.चरणदास महंत को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और उसके बाद उन्हें अध्यक्ष भी बना दिया गया लेकिन इन चार सालों में गुटबाजी और अजीत जोगी के विरोध के चलते वे अपनी कार्यकारिणी तक गठित नहीं कर पाए और अब फिर से वापस कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए गए।
इस दौरान डॉ.महंत ने अपना एक गुट बना लिया और प्रदेश में कांग्रेस दो जोगी और महंत कैम्प में बंट गई। अब कांग्रेस हाईकमान द्वारा धनेन्द्र साहू का प्रदेश अध्यक्ष बनाने स ेअब तक खामोश रहे शुक्ल गुट को ताकत दिखाने का मौका मिल गया है। सीधेसादे और बाकी दिग्गजों से काफी जुनियर धनेन्द्र साहू पर जोगी के साथ शुक्ल कैम्प अपना दावा ठोक रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में गुटबाजी के चलते ही करारी हार झेल चुकी कांग्रेस में ऐन चुनाव के पहले कांगेस हाईकमान ने एक बेहद कमजोर और लाचार फैसले के चलते गुटबाजी को कम करने की बजाए और बढ़ा दिया है। राजनीति के छोटे-मोटे जानकार और चाय की गुमटी और पानठेलों पर राजनीति पर बहस करने वाले भी इस अजीबोगरीब फैसले को कांग्रेस के लिए फायदेमंद नहीं मान रहे हैं।
1 comment:
Great Anil bhai!!!
You should have come to blogosphere early. Still, der aayad, durusat aayad.
Can you figure out who I am? I was in Raipur for two years before returning to Bhopal.
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