Saturday, July 5, 2008

चार गुना हो गये भगवान, मगर धर्म बढ़ता नहीं दिखता।

जैसे-जैसे भगवान जगन्नाथ की यात्रा खत्म हो रही थी, दिल अज्ञात आशंका से धड़कने लगा था। रथ यात्रा के दिन बरसात जरूर होती है, मगर आज इंद्रदेव रूठे से नजर आये। बरसात नहीं होने का मतलब है अकाल के संकेत। ऐसा मैं बचपन से सुनता आ रहा हूॅ। पता नहीं ये सच है या महज अंधविश्वास। लेकिन जिस तरह से बरसात में धूप खिल रही है उससे तो लगता है कि लोगों का विश्वास अंधा कम सच्चा ज्यादा है।

भगवान जगन्नाथ आज बलभद्र और सुभद्रा के साथ धूमधाम के साथ घर से निकले।सारा शहर उनके दर्शन के लिये उमड़ पड़ा था। बचपन से मैं भी भगवान जगन्नाथ के दर्शन करता आ रहा हूॅ। छोटा-सा था तब से सुनता आ रहा हूॅ कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पर इंद्रदेव भी नेह बरसाते है। मगर आज ऐसा कुछ नहीं हुआ। कभी-कभी लगता है कि बुजुर्गों का कहना किसी न किसी आधार पर टिका होता है और कभी लगता है कि सारी बातें बकवास है। पत्रकार होने के लिहाज से सोचूं तो ऐसी बातें सोचना भी मूर्खता लगती है और पत्रकारिता का चोला उतार फेंकने के बाद आम आदमी के नजरिये से देखूं तो सारा मामला बदला हुआ नजर आता है।

खैर छोटा था तो शहर में एक ही भगवान जगन्नाथ लंबी बीमारी से स्वस्थ होकर यात्रा पर निकलते थे, मगर आज चार-चार भगवान जगन्नाथ यात्रा पर निकलते है। यानी भगवान चार गुना बढ़ गये है इसके बावजूद ऐसा कभी नहीं लगता है कि धर्म चार गुना बढ़ा है। आस्था चार गुना बढ़ने की बजाय दिखावा चार गुना बढ़ गया है। अब भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की मार्केटिंग होने लगी है। अपने-अपने जगन्नाथ की पब्लिसिटी में लोग जुट गये है। वीआईपी के हाथों छेरापहरा यानी भगवान के रास्ते की सफाई करवाने में सारा ध्यान लगा देते है।

एक की बजाये चार-चार भगवान जगन्नाथ भक्तों को दर्शन देने मंदिरों से बाहर आते है। ये तो हुई बड़े भगवानों की बात उनके अलावा छोटी-छोटी रथयात्रायें भी निकलकर बड़ी यात्राओं में मिल जाती है। बहुत गौर से देखो तो ऐसा लगता है कि भक्तों की मुश्किलों का निवारण करना अब अकेले भगवान के बस का नहीं रहा इसलिये उनको अपनी संख्या बढ़ानी पड़ रही है। यहीं हाल भगवान गणेश और माता दुर्गा का भी लगता है।

बात सिर्फ भगवानों तक सीमित नजर नहीं आती उनके प्रवचनकारों को भी दिन-दुना रात चौगुना बढ़ते देख रहा हूॅ। एक से बढ़कर एक बाबा, स्वामी, साधू, संत, साध्वी, माता, बापू और जाने क्या-क्या। सब लगे है धर्म का ढिंढोरा पीटने में।सिर्फ प्रवचन नहीं कर रहे है ये लोग बल्कि अपने प्रवचनों को रिकार्ड कर आडियो और वीडियो कैसेट भी जारी कर रहे है। सीडी के साथ लाइव भी हो रहे है। इसके बावजूद कहीं से भी धर्म रत्तीभर बढ़ता नजर नहीं आ रहा है। बल्कि अधर्म के साथ-साथ पाखंड सौ गुना बढ़ता नजर आ रहा है।

आज भी रथयात्रा में पंद्रह जेबकतरें पकड़ाये। ये संख्या पकड़ाने वालों की है जो नहीं पकड़ाये उनकी गिनती कौन बता सकता है? अब भला उन जेबकतरों की नजरें भगवान जगन्नाथ पर रहीं होगी या भक्तों की जेब पर ये सब समझ सकते है। सवाल इस बात का भी उठता है कि बरसों पुरानी एक रथयात्रा कई रथयात्राओं में कैसे बंट गई।अब अपने-अपने हिसाब से कैसे लोगों ने यात्रा के नये रूट तय कर लिये। क्या अब भगवान इंसान को गढ़ने के बजाये इंसान भगवान को गढ़ने लगा है?
अब जाने भी दो वर्ना लगता है भगवान नाराज हो जायेंगे। उनके मामले में ज्यादा तांका-झांकी करना ठीक बात नहीं है। बस, एक बात की ंचिंता जरूर सता रही है कि इस बार भगवान जगन्नाथ की यात्रा पर इंद्रदेव का रूठ जाना कहीं छत्तीसगढ़ की जनता को महंगा न पड़ जाये। भगवान जगन्नाथ न करें ऐसा हो।

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

धर्म के बाने में फैल रहा है पाखंड। जगन्नाथ न जाने कहाँ सोये हैं? बहरूपिए रथ लिए ड़ोल रहे हैं।

Som said...

Reality-check article. Religion has become tool for making money for some people. Meanwhile, there are good spirits too here.

First time at this Blog, but found it very impressive.

Anil Pusadkar said...

dhanyawad,aapne haqikat ko samjha sath hi meri bhawnaon ko bhi,