छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 100 कि।मी. दूर सिहावा पर्वत की तराई और गरियाबंद के जंगलों में स्थित है भूतेश्वर महादेव। प्राकृतिक रूप से शिवलिंग के आकार की एक बड़ी सी शिला आसपास के इलाकों में जागृत महादेव के रूप में विख्यात है। इसकी ऊँचाई भी लगातार बढ़ने की मान्यता है। और कभी यहाँ हाथी पर बैठकर ज़मीनदार अभिषेक किया करते थे।
सावन के पवित्र महीने में यहाँ तीर्थ यात्रियों की संख्या बढ़ जाती है वैसे साल भर राजधानी से लोग वहाँ जाते हैं। रायपुर से लगभग 45 कि.मी. की यात्रा तय करते ही आती है तीर्थ नगरी राजिम। भगवान राजिवलोचन और महादेव के मंदिरों के लिए प्रसिध्द नगरी राजिम में पवित्र त्रिवेणी संगम भी है। यहाँ लगभग २ किमी चौडी महानदी , पैरी और सोन्धुर नदी के त्रिवेणी संगम के बीच प्राचीन कुलेश्वर महादेव का मन्दिर है। शताब्दियों से बाढ़ की मार झेलने के बावजूद मन्दिर जस का तस् खड़ा है । यहाँ हर साल सरकारी कुंभ लगता है। सरकारी याने सरकार द्वारा आयोजित और प्रायोजित कुंभ। राजिम से आगे निकलते ही लगभग 20 कि.मी. दूर स्थित है ग्राम पांडुका जो महर्षि महेश की जन्म स्थली है।
पांडुका से आगे निकलने के बाद रास्ता बेहद खुबसूरत हो जाता है। जंगलों के बीच गुजरती सड़क लॉग ड्राइव का असली मज़ा देती है। रास्ते में पैरी नदी पर बने छोटे-छोटे स्टॉप डेम भी हैं। ये सारा इलाका पैरी हाइड्रल प्रोजेक्ट की डुबान में है। सड़क किनारे के जंगल और जंगल के पीछे बलखाती पैरी नदी की रेत नज़र आ जीत है। कई जगह नदी सड़क के करीब बहती है।
गरियाबंद सिंहावा पर्वत शृंखला की तराई में बसा है। सिहावा पर्वत श्रेणी से महानदी भी निकली है और यहाँ श्रृंगी, अंगिरा, लोमश, अप्रिय,कपिल, वाल्मिकी और मतंग जैसे बड़े-बड़े ऋषियों के आश्रम थे। नदियों और पहाड़ों से घिरा है गरियाबंद। यहां से चंद किलोमीटर दूर जंगलों के बीच दर्शन हो जाते हैं भगवान भोलनाथ के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग के। इस महादेव की ऊँचाई का विवरण 1952 में प्रकाशित कल्याण तीर्थांक के पृष्ठ क्रमांक 408 पर मिलता है उसकी ऊँचाई 35 फीट और व्यास 150 फीट उल्लेखित है। 78 में शिवशंकर ने इसकी ऊँचाई 40 फीट बताई। 87 में 55 फीट और 94 में फिर से थेडोलाइट मशीन से नाप करने पर 62 फीट और उसका व्यास 290 फीट मिला। आसपास के ग्रामीणों की मान्यता है कि शिवलिंग की ऊँचाई बढ़ रही है। छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद के अध्यक्ष डॉ। दीपक शर्मा का कहना है कि शिवलिंग पर कभी छूरा क्षेत्र के ज़मीनदार हाथी पर चढ़कर अभिषेक किया करते थे। शिवलिंग पर एक हल्की सी दरार भी है जिसे कई लोग इसे अर्धनारीश्वर का स्वरूप भी मानते हैं। वहीं मंदिर परिसर बन गया है। जिसमें छोटे-छोटे काफी मंदिर बना दिए गए हैं। मंदिरों और उस परिसर को रायपुर के प्रख्यात समाज सेवी डॉक्टर बृजमोहन शर्मा ने काफी खर्च कर खुबसूरत बना दिया है। शिवलिंग के नीचे छोटी सी गुफा जाती है वे कमरे में बदल जाती है। लोगों ने यहाँ सफेद साँपों का जोड़ा देखा है। यहाँ की प्राकृतिक छटा अद्भूत है। लगभग 50 किलोमीटर आगे जाने पर एक बेहद खुबसूरत बाँध सीकासार है। पहाड़ों से घिरे बाँध की खुबसूरती देखते ही बनती है। बाँध का पानी वहाँ की परतदार चट्टानों को काटकर दर्शनीय घाटी का आकार दे चुका है। घने जंगलों की खुबसूरती एक नई ताजगी और एक नया एहसास दे देती है।
सावन के पवित्र महीने में यहाँ तीर्थ यात्रियों की संख्या बढ़ जाती है वैसे साल भर राजधानी से लोग वहाँ जाते हैं। रायपुर से लगभग 45 कि.मी. की यात्रा तय करते ही आती है तीर्थ नगरी राजिम। भगवान राजिवलोचन और महादेव के मंदिरों के लिए प्रसिध्द नगरी राजिम में पवित्र त्रिवेणी संगम भी है। यहाँ लगभग २ किमी चौडी महानदी , पैरी और सोन्धुर नदी के त्रिवेणी संगम के बीच प्राचीन कुलेश्वर महादेव का मन्दिर है। शताब्दियों से बाढ़ की मार झेलने के बावजूद मन्दिर जस का तस् खड़ा है । यहाँ हर साल सरकारी कुंभ लगता है। सरकारी याने सरकार द्वारा आयोजित और प्रायोजित कुंभ। राजिम से आगे निकलते ही लगभग 20 कि.मी. दूर स्थित है ग्राम पांडुका जो महर्षि महेश की जन्म स्थली है।
पांडुका से आगे निकलने के बाद रास्ता बेहद खुबसूरत हो जाता है। जंगलों के बीच गुजरती सड़क लॉग ड्राइव का असली मज़ा देती है। रास्ते में पैरी नदी पर बने छोटे-छोटे स्टॉप डेम भी हैं। ये सारा इलाका पैरी हाइड्रल प्रोजेक्ट की डुबान में है। सड़क किनारे के जंगल और जंगल के पीछे बलखाती पैरी नदी की रेत नज़र आ जीत है। कई जगह नदी सड़क के करीब बहती है।
गरियाबंद सिंहावा पर्वत शृंखला की तराई में बसा है। सिहावा पर्वत श्रेणी से महानदी भी निकली है और यहाँ श्रृंगी, अंगिरा, लोमश, अप्रिय,कपिल, वाल्मिकी और मतंग जैसे बड़े-बड़े ऋषियों के आश्रम थे। नदियों और पहाड़ों से घिरा है गरियाबंद। यहां से चंद किलोमीटर दूर जंगलों के बीच दर्शन हो जाते हैं भगवान भोलनाथ के सबसे बड़े प्राकृतिक शिवलिंग के। इस महादेव की ऊँचाई का विवरण 1952 में प्रकाशित कल्याण तीर्थांक के पृष्ठ क्रमांक 408 पर मिलता है उसकी ऊँचाई 35 फीट और व्यास 150 फीट उल्लेखित है। 78 में शिवशंकर ने इसकी ऊँचाई 40 फीट बताई। 87 में 55 फीट और 94 में फिर से थेडोलाइट मशीन से नाप करने पर 62 फीट और उसका व्यास 290 फीट मिला। आसपास के ग्रामीणों की मान्यता है कि शिवलिंग की ऊँचाई बढ़ रही है। छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद के अध्यक्ष डॉ। दीपक शर्मा का कहना है कि शिवलिंग पर कभी छूरा क्षेत्र के ज़मीनदार हाथी पर चढ़कर अभिषेक किया करते थे। शिवलिंग पर एक हल्की सी दरार भी है जिसे कई लोग इसे अर्धनारीश्वर का स्वरूप भी मानते हैं। वहीं मंदिर परिसर बन गया है। जिसमें छोटे-छोटे काफी मंदिर बना दिए गए हैं। मंदिरों और उस परिसर को रायपुर के प्रख्यात समाज सेवी डॉक्टर बृजमोहन शर्मा ने काफी खर्च कर खुबसूरत बना दिया है। शिवलिंग के नीचे छोटी सी गुफा जाती है वे कमरे में बदल जाती है। लोगों ने यहाँ सफेद साँपों का जोड़ा देखा है। यहाँ की प्राकृतिक छटा अद्भूत है। लगभग 50 किलोमीटर आगे जाने पर एक बेहद खुबसूरत बाँध सीकासार है। पहाड़ों से घिरे बाँध की खुबसूरती देखते ही बनती है। बाँध का पानी वहाँ की परतदार चट्टानों को काटकर दर्शनीय घाटी का आकार दे चुका है। घने जंगलों की खुबसूरती एक नई ताजगी और एक नया एहसास दे देती है।
8 comments:
बहुत बहुत धन्यवाद भूतेश्वर महादेव के बारे मे बताने का,सुना हे छतीस गढ बहुत सुन्दर हे कभी मोका मिला तो जरुर देखे गे.
Bhatiya ji aap ka chhattisgarh me hamesha swaagat hai.. aap aayiye hum aapko chhattisgarh ghumayenge.... sirf bhuteshawar nahi . brick temple ke avashesh chhattisgarh me hi milte hai.. aapko jald hi 6th century ke laxman temple ke bare me apne blog par batenge....
आप ललचा रहे हैं छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक छटा पर!
मनमोहक,
कभी जरूर घूमेगे
Bhai saab aap to railway main aapko jagdalpur vishakhapatnam railline ki khoobsurati ke bare mein bataun to achha nahi lagega,Mata Kaushalya ka ye mayka hai dakshin kosal,dandkaranya bhi yahin hai,Nalanda aur Takshila se purana baudha siksha kendra bhi yaha mila hai.aap aaiye aapka swaagat karne ka saubhagya bhi mil jayega
"Thanks for making us aware abt the temple and its beauty"
Regards
sawn men darshan kara diye
dhanywad
अनिल जी धन्यवाद कभी जरुर आये गे,आप भी कभी जर्मनी मे आये तो सेवा का मोका दे,
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