देश में जो राजनीति चल रही है वो सांडों की लड़ाई से कम नहीं है। और सांडों की लड़ाई के बाद जो हालत मैदान की होती है, वही हालत देश की हो रही है।
बैंगलोर, अहमदाबाद और सूरत आतंकवाद की आग में झुलस रहा है। जम्मू में भी आग लगी हुई है। कहीं नक्सलवाद के धमाके हो रहे हैं, तो कहीं भूखमरी लोगों को निगल रही है। कहीं कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं, तो कहीं चंद रूपयों के लिए लोग इंसानी अंगों का व्यापार कर रहे हैं। जिधर नज़र डालो उधर कुछ न कुछ लफड़ा ही नज़र आता है। अच्छी ख़बर ढूंढे नहीं मिलती और बुरी ख़बर उसके बिना तो जैसे समाचार जगत अधूरा रह जाता है।
इसके बावजूद देश के भाग्य विधाताओं को देखो तो सांडों की तरह भिड़े हुए हैं। बिना नीचे या आजू-बाजू देखे लड़े जा रहे हैं। कभी बीजेपी अमरसिंह पर चढ़ जाती है, तो कभी अमरसिंह और उनके साथी बीजेपी पर चढ़ाई करते नज़र आते हैं। एक से एक स्टिंग हो रहे हैं। नेताओं को स्टिंग करते देख लगता है बिच्छू भी स्टिंग मारना भूल गए हैं।
सारे नेता सारी ताकत सिर्फ इस बात को साबित करने में लगा रहे हैं कि संसद को उन्होंने नहीं दूसरे ने बदनाम किया। इसके अलावा शायद उनके पास और कोई काम नहीं है। ऐसा लगता भी नहीं है कि आने वाले कुछ दिनों तक अहमदाबाद और बैंगलूर में मरे लोगों की सूरत याद आएगी। फिलहाल नेताओं को देश के सामने एकमात्र संकट नज़र आ रहा है, वो है संसद के कथित मान-सम्मान को बनाए रखने का। लेकिन वे इस बात को लगता है भूल गए हैं कि सारा देश उन सबका नंगा नाच लाइव देख चुका है।
ये तो जनता की मजबूरी है कि उन्हें फिर इन्हीं नंगे-लुच्चों में से किसी न किसी को चुनना ही पड़ेगा। इसके अलावा उसके पास कोई चारा भी नहीं है। ले देकर 50 प्रतिशत लोग मतदान में शामिल होते हैं उनमें भी शहरी बाबू ज्यादा होते हैं। कायदे से देखा जाए तो आधे से ज्यादा पहले ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नकार रहे होते हैं। अब 50 कह लीजिए या 60 प्रतिशत लोगों में से ज्यादा वोट बटोरने वाला बटोरू देश का भाग्य विधाता हो जाता है। उस भाग्य विधाता को मिले वोटों से शायद वोट नहीं देने वालों की गिनती ज्यादा होती है।
नेता भी जनता की इस मजबूरी को भांप चुके हैं शायद। जभी तो बेरोजगारी, महंगाई, भूखमरी के बारे में वे सोचते ही नहीं हैं। भ्रष्टाचार और चरित्रहीनता के बारे में तो अब कोई बात भी नहीं करता। एक नहीं दर्जनों गंभीर मामलों के आरोपी जेल से छुड़वाए जाते हैं सरकार बचाने और गिराने के लिए। ये लोग तमाम अपराधों के बावजूद फिर से संसद पहुँच जाएँगे किसी न किसी पार्टी या नेता का दामन पकड़कर। तब संसद बदनाम नहीं होगी ? जिस तरीके से नेता एक-दूसरे को स्टिंग मार रहे हैं, एक-दूसरे की सीडी को झूठा बता रहे हैं। एक-दूसरे पर आरोपों की गंदगी की बरसात कर रहे हैं। एक-दूसरे पर सवालों के तीर बरसा रहे हैं उससे तो ये लगता है कि उन्हें खुद नंगे नहीं है बताने के लिए दूसरों को नंगा करना पड़ रहा है। पता नहीं कौन किसको नंगा कर रहा है ? जनता भी शायद इन नंगों के नंगे नाच से परेशान हो गई है। लेकिन उसकी हालत उस मैदान सी हो गई है जिस पर हमारे देश के ताकतवार सांड लड़ रहे हैं, भिड़ रहे हैं, एक-दूसरे को तौल रहे हैं और ढकेलकर पीछे करने में लगे हैं। एक भी सांड बिना दूसरे को ढकेले या गिराए सीधा दौड़कर रेस जीतता नज़र नहीं आता। उन्हें तो पता भी नहीं है कि उनकी लड़ाई में मैदान यानि देश का या जनता का क्या हाल हो रहा है ?
11 comments:
आप ने बिलकुल सही लिखा, इन सब के पीछे देश को देश की छवि खराब हो रही हे, सभी चोर उच्चके आज हमारे लीडर हे,पढे लिखे उन्हे सलाम करने को मजवुर हे,
धन्यवाद
देश ओर देश की छवि पढा जाये
बिलकुल सही लिखा,
अच्छा लगा पड़कर,
अच्छी पोस्ट के लिए बधाई
चक्कर है कि जब प्रजातंत्र चुना है तो लोग मात्र संख्या हैं। लिहाजा सांड़ों की बन आयी है।
जम्हूरियत वो तर्जे हुकूमत है - जहां बन्दे गिने जाते हैं, तोले नहीं जाते।
सही कह रहे हैं.
yeh saand nahi bailon ki ladai hai, politicians ne apna purusharth pahle se hee gavan diya hai, paison our hunger of power ke chimton ne inka operation kar diya hai, bail hain. aaj ek dusre ki kameej fad rahe hain fir matlab ke liye ek ho jayenge. fir wahi bailon ki jodi....congress & left, desh ki gadi ko purani raftar DO DEEN CHALE ADHAIE KOS se chalenge gareeb marenge, buddheewale desh chhod US bhagte rahenge, paisewale aur paisa kamaenge.
this is not democracy, voting percentage remains 55- 60 % at the most and between two prominent parties the swing remains upto 1-10%, hence any party posses only 30% mendate and may be lesser.is it democracy, never.
if pure democracy is SOMRAS then where this adltured democracy lies is it Madeera,Daroo or other worst.
लाख टके की बात, ये दादागीरी तंत्र के द्वारा ही चलता है। जितने ज्यादा उसकी सत्ता आबाद, जिसके पास नहीं, वो बर्बाद। दुर्भाग्य ये ही है कि खराब देश का नाम हो रहा है। जब भी ये देखता हूं तो लगता है कोई दूसरा, बाहर का मुझ पर हंस रहा है।
नेताओं को स्टिंग करते देख लगता है बिच्छू भी स्टिंग मारना भूल गए हैं।
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वाह भाई साहब, वाह..
आपने तो कविता कर दी.
मज़ा आ गया.
वैसे ये नेता भी मजे ही ले रहे हैं...
लेकिन मजे-मजे में भी फर्क तो है.
है ना................
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भाई साहब, आप ज़ूता पहनते हैं ?
पहनते ही होंगे.. तो एक जोड़ी ज़ूते का
मोह त्याग दीजिये ।
समझदार हैं, तो इशारा समझ जाइये !
बिलकुल यही हाल हाल पुसदकर जी .
अब बेईमानी भी सभी-तरीके से बैठक कि शोभा बढाती है.
सही कहा आपने। कांग्रेस भी सोचती होगी कि चलो इसी बहाने पीछे छूटा।
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