Saturday, August 9, 2008

दमदारी और ईमानदारी का दूसरा नाम छत्तीसगढ़ पुलिस ?

दो साल पुराने मामले में दर्जनों पुलिस वाले निकल पड़े थे सुबह से घोटालेबाजों को पकड़ने और दोपहर बाद नतीजा फिर वही, खोदा पहाड़ निकला चूहा। एक भी बड़े घोटालेबाज को पुलिस पकड़ तो नहीं पाई उल्टे उसके हाथ से पकड़ी गई एक महिला अधिवक्ता चकमा देकर दूसरी आरोपी को भी अपने साथ लेकर निकल गई।

छत्तीसगढ़ की राजधानी की पुलिस ने कल जो कमाल किया उसकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। अगर उनकी तारीफ न करूं तो लोग कहेंगे चिढ़ता है पुलिस वालों से। 2 साल पहले 28 करोड़ का घोटाला हुआ था इंदिरा प्रियदर्शिनी बैंक में। 26 हज़ार से ज्यादा खातेदारों की मेहनत की गाढ़ी कमाई डूब गई, और बैंक डूब गया था। तब से लेकर आज तक 26 हज़ार खातेदार लगातार चिल्ला रहे हैं, घोटालेबाजों को गिरफ्तार करो और देखा हमारी पुलिस की सक्रियता, गई न आखिर पकड़ने के लिए। अब ऐसे में कोई भला पुलिस को बेईमान कह सकता है। सुस्त भले ही कह लीजिए पर ईमानदार तो कहना ही होगा और दमदार भी, क्योंकि घोटालेबाजों को लोग ताकतवर कहते हैं और उनके घर घुसना दमदारी की बात है या नहीं।

अब ये अलग बात है कि सारे कथित ताकतवर घोटालेबाज विपक्ष के चूके हुए नेताओं की पत्नियाँ है। एक के पति पूर्व महापौर व विधायक रह चुके हैं, ये सालों पहले की बात है। एक और नेता उपमहापौर रह चुके हैं, और विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड तोड़ 25 हज़ार वोटों से ज्यादा हार चुके हैं। बाकी भी करीब-करीब गुजरे जमाने की बात है। अच्छा हुआ बीजेपी की सरकार है। वरना कांग्रेस की सरकार में तो पुलिस को कई जनम लेने पड़ते घोटालेबाजों के पतियों के घर घुसने में। बीजेपी के सरकार में 2 साल लग गए पुलिस को दमदारी और ईमानदारी का सेम्पल दिखाने में।

और ये ईमानदारी और दमदारी दिखाने के पीछे भी एक दमदार ख़बर दबी हुई है। दरअसल 26 हज़ार खातेदारों ने मुख्यमंत्री का निवास घेरने की चेतावनी दे दी थी और मुख्यमंत्री के घर को घेराव से बचाने के लिए पुलिस ने घोटालेबाजों के घर का घेराव कर दिया। अब बताईए पुलिस है न ईमानदार। जिसका खाती है उसी का तो गाएगी। सरकार तनख्वाह देती है तो सरकार को बचाएगी। खातेदार कुछ देते तो खातेदारों का काम करती, जैसे घोटालेबाजों का काम करते आ रही थी। कारण चाहे जो भी हो पुलिस का 2 साल से मांद में छुपे रहने के बाद बड़े शिकार के लिए मांद से बाहर आना ही उसके शेर होने की कोशिश का सबूत है।

सुबह जब पुलिस की कई टीमें एक साथ घोटालेबाजों के घर पहुँची तो लोगों को लगा कि हाँ अब जागा है शेर, पर दोपहर होते-होते पता चला कि वो शेर नहीं बिल्ली है। नेताओं के यहाँ पहुँच तो गए मगर 4-4 घंटे गुजारने के बाद भी किसी बड़े शिकार को पकड़ नहीं पाए। चाय, लस्सी, नाश्ते का दौर चलता रहा। और इतने बड़े अभियान की किरकिरी न हो जाए इसलिए 3 छोटे कर्मचारी और 1 निरीह बैंक डॉयरेक्टर को पकड़कर लटका दिया सीने पर मैडल बनाकर।

जनता का भ्रम दोपहर होते-होते टूट गया था। लोगों को उम्मीद हो गई थी कि देर से ही सही अपनी पुलिस ने कुछ किया तो। बस पुलिस नाम के लिए ही कुछ कर पाई। बाकि तो घोटालेबाज डॉयरेक्टर पहले भी घूम रहे थे अभी भी घूम रहे हैं बेखौफ। हाँ! पुलिस कि ईमानदारी एक बार फिर साबित हो गई। बेहद गोपनीय इस अभियान की ख़बर जिनको मिलनी थी उनको मिल ही गई। वे बाहर चले गए आराम से, उसके बाद पुलिस उनके घर पहुँची। यहाँ पुलिस ने महिलाओं के साथ दर्ुव्यवहार करने वाली इमेज को भी सुधारा है। उसने धोखे से हाथ लगी बैंक डॉयरेक्टर किरण तिवारी के साथ बेहद अच्छा व्यवहार किया। हिरासत में लेने के बाद उन्हें उनकी इच्छा पर दूसरी बैंक डॉयरेक्टर के घर ले जाया गया। सीधे पुलिस स्टेशन नहीं। यहाँ उन्हें घर के भीतर जाने दिया और उसके बाद किरण तिवारी तो गई ही, साथ ही पुलिस के घेरेबंदी में फंसी दूसरी बैंक डॉयरेक्टर को भी लेकर चली गई। बताईए भला हिरासत में आए आरोपी के साथ इतना अच्छा व्यवहार और कहीं की पुलिस कर सकती है। बेमतलब लोग उस पर मानवाधिकार हनन के आरोप लगाते रहते हैं। किरण तिवारी को पुलिस ने हिरासत से फ़रार भी घोषित नहीं किया, अब क्या जान लोगे पुलिस की ?

गरीब है बेचारी पुलिस। करो तो गालियाँ बकते हैं लोग, न करो तो भी चुप नहीं रहते। कितनी मुश्किल से और कितनी सेटिंग से राजधानी में पोस्टिंग होती है। अब 4 महीने बाद चुनाव है मान लो कांग्रेस की सरकार आ गई तो। हो जायेगा न लफड़ा। आखिर वो भी तो बाल-बच्चे वाले हैं। अपना न सही बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का तो ख्याल रखना पड़ता है। सरकार बदल गई तो कांग्रेसी छोड़ेंगे भला। वो तो बदला लेने में वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर हैं। फिर भेज देंगे नक्सली क्षेत्र में तो तिरंगे में लिपटकर आने के चांसेज पूरे हैं। वहाँ बच्चे पढ़ेंगे कैसे। बहुत सारे प्रॉब्लम है! आखिर पुलिस भी तो समाज का अंग है। उनके भी अपने सामाजिक और आर्थिक के साथ-साथ राजनीतिक दायित्व हैं। बस यही सब सोचकर सरकार को खुश करने के लिए छापे मार दिए और जिन्हें बचाना था उन्हें छापे की ख़बर लीक कर बचा भी लिए। पुलिस पर कोई पक्षपात का आरोप नहीं लगा सकता। उसने भाजपा के लिए भी काम किया और कांग्रेस के लिए भी। उसने खातेदारों को संतुष्ट करने का काम किया और बैंक के घोटालेबाजों को बचने का मौका भी दिया। ऐसी निष्पक्ष, दमदार और ईमानदार पुलिस भला दूसरे प्रदेशों की तो क्या ? दूसरे देशों की भी नहीं होगी। मेरा तो ख्याल है अपनी पुलिस का मंदिर हर प्रदेश, हर देश के पुलिस मुख्यालयों में बना देना चाहिए। और यहाँ हर साल कार्यशाला लगनी चाहिए जिसमें मुख्य रूप से मनचाही पोस्टिंग कैसे करवाएँ या नक्सल क्षेत्र की पोस्टिंग कैसे रूकवाएँ ? राजनीतिक मामलों में बिना बाँस के रस्सी पर कैसे दौड़ें ? दोनों पक्षों से समान रूप से व्यवहार या उपहार कैसे लें ? आदि विषयों पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। बस इससे ज्यादा तारीफ मैं छत्तीसगढ़ पुलिस की नहीं कर पाऊँगा, थक गया हूँ। सोचा था आज आप लोगों को श्रीपुर के बौध्दविहारों की सैर कराऊँगा मगर पुलिस का इतना बड़ा कारनामा देखकर मुझसे रहा नहीं गया और छत्तीसगढ़ के पुरातत्व और इतिहास पर लिखने से ज्यादा वर्तमान पर लिखना ज़रूरी समझा। क्योंकि जब इतिहास लिखा जाएगा तो उसमें छत्तीसगढ़ पुलिस की बहादुरी के किस्से स्वर्ण अक्षरों में लिखे जाएँगे।

13 comments:

36solutions said...

बढिया लिखा है भाई आपने।

कन्‍या भ्रूण हत्‍या जैसे संवेदनशील मामलों के विरोध में झंडा उठाने वाले लोगों का पैसा डकार रहे हैं और पुलिस से फरार हो रहे हैं । हा हा हा .......

बालकिशन said...

बहुत ही दुखद है तो कुछ भी नया नहीं है.
सारे देश का यही हाल है.
इसको पढने से बेहतर तो छत्तीसगढ़ के पुरातत्व और इतिहास पर ही लिख डालते.

Anil Pusadkar said...

likhana to wahi chahta tha Balkishan jee magar police ke khilaaf jab kisi ne nahi likha to mazburi me mujhe likhna pada.nahi likhata to aapka man kaise uchatata yanha ki police se.yanha ke log to jaante hain inko achhi tarah se magar desh ke dusre hisse me bhi inki kirti failna chahiye na.

vipinkizindagi said...

achcha likha hai.

राज भाटिय़ा said...

हे मेरे राम क्या होगा मेरे इस देश का जहां चोरो उच्च्को का राज हे,आप का लेख पढ कर आंखे खुली,यहा चोरो को कातिलो का बोल बाला हे, ओर ईमानदार ...

डॉ .अनुराग said...

sach me aap lagataar likh rahe hai kuch jvalanshel muddo par ..kahi ummeed ki ek roshni bhi najar aati hai.

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाकई पुलिस ही क्या
कईं बार तो लगता है कि इस देश में
मुद्दों व समस्यसऒं के अलावा कुछ भी नहीं

Udan Tashtari said...

अफसोसजनक स्थितियाँ!!

-बहुत बढ़िया आलेख.

Anonymous said...

जर्जर खंडहरों पर पत्थर मारना कब छोडोगे ?

Arvind Mishra said...

बढ़ती राजनीतिक सक्रियता ने पुलिस की हर जगहं रेड मार रखी है -सच कहा आपने अब क्या करे बेचारी पुलिस !

Gyan Dutt Pandey said...

कटु सत्य लिखा है आपने। पर कीमती सवाल यह है कि इसके बावजूद सब चल रहा है। वह क्या है?
आर्थिक प्रगति की ८% की दर छत्तीसगढ़ में मिथक है क्या? शायद हो भी।

Unknown said...

इतनी तारीफ़ मत कीजिये अपनी पुलिस की. हमारी दिल्ली की पुलिस भी कम नहीं है. अखबार बयान छापता है पुलिस कमिश्नर का, 'दिल्ली में अपराध कम हो गए हैं'. उसके नीचे खबरें चार मर्डर, तीन चेन छीनने, पुलिस द्बारा थाने में एक युवक को पीट कर मार देने की.

Anonymous said...

bank yaad dilane ke liye dhanyawaad
kuchh likhne ki jagah mili hai