रक्षाबंधन करीब है और सारी बहनें भाईयों को राखी बाँधने की तैयारी में जुटी है। मगर रायपुर की कुछ बहनों ने राखी बाँधने के लिए भाईयों की कलाई की बजाय पेड़ों के तने को चुना। उन्होंने पेड़ों को भाई मान राखी बाँधी और उसकी रक्षा का संकल्प लिया। उनका कहना है कि पेड़ भी भगवान शिव के समान है। वे भी विष पीते हैं और जीवन देते हैं।
वृक्षों को रक्षासूत्र बाँधने का सिलसिला जारी रखा है, वृक्षमित्र पुरस्कार प्राप्त वन अधिकारी के.एस. यादव की पत्नी सुनीती यादव ने। जशपुर में सन् 1992 में रोज भ्रमण करते समय खाली ज़मीन पर खड़े 5 पेड़ों को देखकर बहुत खुश होते थे यादव दंपत्ति। एक दिन उन पेड़ों को काटने की अनुमति के लिए आवेदन मिला के.एस. यादव को। वे चौंके और उन्होंने सारी बात अपनी पत्नी सुनीती को बताई। सुनीती ने उनसे कहा कि पेड़ों को बचाना चाहिए। इस बात पर दोनाें रातभर विचार करते रहे और सुबह तक सुनीती के दिमाग में एक विचार कौंध गया, उन्होंने अपने पति से कहा कि मैं उन पेड़ों को राखी बाँध देती हूँ फिर देखती हूँ कौन काटता है उनको। के.एस.यादव ने भी अपनी पत्नी का हौसला बढ़ाया और कहा ठीक है! आगे बढ़ो। और दूसरे दिन सुनीती यादव ने अपनी परिचित महिलाओं को लेकर उन पेड़ों को राखियाँ बाँधी। देखते ही देखते आते-जाते लोग वहाँ इकट्ठा होने लगे, और सबने उन पेड़ों को राखी बाँधना शुरू कर दिया।
पेड़ों को काटने की इच्छा रखने वाले मालिक को भी ये सब पता चल गया। उसे समझ में आ गया था कि अब उन पेड़ों को काटना मुश्किल है, सो वो अपनी उस छोटी-सी ज़मीन के टुकड़े के कागजात लेकर जंगल दफ्तर पहुँचा और उसने के.एस. यादव को कागजात सौंपे और कहा कि अब इस ज़मीन और पेड़ों की देखभाल आप ही करिए। के एस यादव ने उनसे कहा कि आप निराश मत होईए। आप संभवत: दुनिया के पहले वृक्षदाता हैं। और के.एस.यादव ने उन्हें वृक्षदाता होने का प्रमाणपत्र दिलवा दिया। उसके बाद रोज भ्रमण करते समय यादव दंपत्ति उन पेड़ों को देखते और खुश होते। उसके बाद सुनीती ने सोच लिया कि वृक्षों को राखी बाँधने का सिलसिला जारी रहेगा। और ये आज तक जारी भी है।
पिछले साल उन्होंने बस्तर के कोंडागाँव इलाके में वृक्षसूत्र अभियान चलाया था। वहाँ साल के एक पेड़ को 9 मीटर की राखी बाँधी गई थी। ये दावा किया जा रहा है कि वो अब तक किसी भी पेड़ को बाँधी गई सबसे बड़ी राखी है। वैसे इस साल उससे भी बड़ी राखी बाँधने की तैयारी बस्तर में ही हो रही है। सुनीती यादव के वृक्षसूत्र अभियान से पूर्व राज्यपाल महामहिम दिनेश नंदन सहाय और महामहिम के.एम.सेठ ने उनके अभियान को भरपूर सराहा और उनके कार्यक्रमों में शामिल भी हुए। वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने भी उनकी तारीफ की है।
सुनीती यादव के वृक्ष प्रेम को देख महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन ने उन्हें 6 मार्च 2005 को पर्यावरण संरक्षण के लिए महाराणा उदय सिंह राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। राष्ट्रीय समाचार पत्र हिन्दुस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सुनीती यादव को स्त्री शक्ति निरूपित किया। 19 नवंबर 2006 को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार ने सुनीती यादव को मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पर्यावरण संरक्षण के लिए महिला ऑंदोलन का नेतृत्व करने के लिए स्त्री शक्ति 2002 सम्मान दिया। 25 अगस्त 2000 को मुंबई में उन्हें जी अस्तित्व अवार्ड 2007 मिला। भास्कर ने उन्हें 2007 में उन्हें विश्व की सफलतम् 10 भारतीय महिलाओं की सूची में शामिल किया। इंडिया इंटरनेशनल फ्रेंडशिप सोसायटी ने उन्हें भारत गौरव अवार्ड के लिए चुना।
सुनीती ने सिर्फ वृक्षों को बचाने का ही काम नहीं किया है, उन्हाेंने रायगढ़ में कुष्ठ रोगियों को रेशम कृमी पालन और शहतूत रोपण के लिए प्रोत्साहित किया। 45 परिवारों को ज़िला प्रशासन के सहयोग से अरूण्ाोदय योजना के तहत जुरडा गाँव में बसाया। उन्होंने साक्षरता के क्षेत्र में अनौपचारिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार में भी उल्लेखनीय काम किया। अक्टूबर 93 में जशपुर के समीप सोगड़ा गाँव में महिलाओं के सहयोग एवं श्रमदान से नाले पर चेक डेम का निर्माण कराया। कुल 340 रू। की लागत से 19 मीटर लंबा, 1.5 मीटर ऊँचा चेक डेम 4 घंटे में बनकर तैयार हो गया। उसके बाद दिसंबर 93 तक जशपुर अंचल में 109 जनता स्टॉपडेम बनाए गए। उनके वृक्ष प्रेम से उत्पन्न हुआ वृक्ष रक्षापर्व अब देश के 9 अन्य राज्यों में मनाया जा रहा है। इसे विश्वविख्यात् चिपको ऑंदोलन का नया संस्करण भी कहा जा रहा है। उन्होंने विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून 2001 को ग्रीन गार्डन सोसायटी की स्थापना की है। वे फिलहाल ''ए स्टडी ऑन द ग्रीन हिस्ट्री ऑफ ग्रीन मूवमेंट्स एण्ड फॉरेस्ट मैनेजमेंट इन छत्तीसगढ़'' विषय पर पी.एच.डी. कर रही हैं।
सुनीती अपने वृक्ष प्रेम को अपने तक समेटकर रखने के बजाय वृक्षों की तरह फैलाती जा रही है। उनके अभियान से लोग अपने आप जुड़ते जा रहे हैं, 1992 से शुरू हुआ सिलसिला जारी है। सुनीती यादव कहती है कि वृक्ष भगवान शिव के समान हैं। वे भी भगवान शिव की तरह कार्बनडाई ऑक्साइड विष पीते हैं और जीवन के लिए ज़रूरी ऑक्सीजन देते हैं। इसीलिए आई.ए.एस. अफसर कॉलोनी की महिलाओं के साथ उन्होंने कल वृक्षसूत्र बाँधने के बाद शंकरजी का वृक्षाभिषेक भी किया। सुनीती यादव का ये अभियान कांक्रीट के जंगलों में बदलते शहरों के लिए वरदान नहीं तो और क्या है ? राखी का एक स्वरूप ये भी है। जिसमें भाई बहन की नहीं बहन भाई की रक्षा का संकल्प लेती है।
14 comments:
आपने इतना प्रेरक प्रसंग बताया है की सुनितीजी
उनके पति और जो प्रथम ५ पेड़ के दाता थे उनको भी सादर नमन करता हूँ ! और अनिल जी इतनी जागरुक सोच और लेखन के लिए आपको भी प्रणाम करता हूँ ! बहुत बहुत शुभकामनाएं !
ढेरो साधुवाद सुनीता जी को ओर उनकी सोच को....ऐसे इंसान इस समाज के लिए बेहद जरूरी है......
सुंदर...सामयिक...समीचीन.
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बधाई अनिल भाई
डा.चन्द्रकुमार जैन
सुनीति जी और आपको भी,
मेरे एक गीत की दो पंक्तियां समर्पित करता हूं....
'यदि पेड़ नहीं होते जीवन भी नहीं होता,
कुदरत का हरियाला आंगन भी नहीं होता'
लेकिन ये सब समझना बहुत जरूरी है,
अनिल जी,
एकाध दिन में पूरा गीत पोस्ट करूंगा...
filhaal aap ko badhaii
समाज सुनीता जी का बहुत बहुत शुक्रगुजार है यह कडी जीवंत रहे ।
आपनें हमें उनसे व उनके कार्यों से परिचय कराया इसके लिये आभार ।
सुनीति जी का पर्यावरण के प्रति प्रेम और निष्ठां सराहनीय है सभी को उनसे प्रेरणा लेना चाहिए . बढ़िया पोस्ट आभार.
बहूत खूब...चिपको आंदोलन की याद दिला दी, जब लोग पेडों को कटने से बचाने के लिये पेडों से चिपक जाया करते थे.....अच्छा लिखा।
साधुवाद सुनीता जी को-आपने परिचय कराया इसके लिये आभार.
इंसानी रिश्ते तो अक्सर बनते बिगड़ते रहते है लेकिन वृक्षों से रिश्तों का ये बंधन अटूट है ...ये रिश्ता सारी ज़िन्दगी पूरी इमानदारी से निभाया जायेगा और इस रिश्ते में कम से कम कोई दरार तो नहीं होगी ...काश इंसानी रिश्ते भी अटूट होते ???
इतना समसामयिक प्रसंग बांटने के लिए धन्यवाद. कुछ लोग एक अच्छे उद्देश्य के लिए कितनी आगे तक चले जाते हैं. हमें भी ऐसे लोगों से प्रेरणा लेकर अपने हिस्से का काम करने आगे बढ़ना चाहिए.
"Hatts off to Sunita jee for her efforts and devotion . great article to read, thanks for sharing with us"
Regards
अनिल जी कहाँ आप धरती से जुडी बाते लिखते-लिखते हाई सोसायटी के चोचलो मे उलझ गये। पिछले सालो मे हजारो पुराने पेड विकास के नाम पर रायपुर शहर मे कट गये। अखबारो ने छापा पर किसी को फर्क नही पडा। तब कहाँ थे वे लोग जो साल मे एक बार इस तरह के चोचले कर अखबारो मे छप जाते है। वन अधिकारी की पत्नी होने के कारण यह जलवा है। अधिकारी साहब ने कितने पेड जंगल से कटवाये है -यह सारा जग जानता है। आपसे आम छत्तीसगढी के बारे मे जानने की इच्छा है। आशा है आप पूरी करेंगे।
बहुत सुन्दर प्रेरक प्रसंग है। आभार
बहुत ही सुन्दर प्रसंग लिखा हे आप ने, शायद इसी प्रकार हम पेडो को बचा पाये, मे सुनीता जी, ओर उन के पति को सादर प्रणाम करता हु, काश लोग पेडो की महत्व समझे,ओर आप को भी प्रणाम करता हू इतनी अच्छी खबर हम तक पहुचाई. धन्यवाद
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