मैं उसे सालों से धरमू कहकर ही पुकारता आ रहा था और मेरे लिए वो धरमू ही था। पर आज जब उसने मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति में बोलना शुरू किया तो मुझे ऐसा लगा कि बहुत कुछ बदल चुका है। और कुछ ही क्षणों में समझा में आ गया कि मेरा धरमू अब धरमू नहीं रह गया, धर्मराज हो गया।
मौका था नक्सल समस्या पर व्याख्यान का। प्रेस क्लब के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए दो वक्ता मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा तय हो चुके थे, तीसरे वक्ता के लिए वामपंथी नेताओं के नामों पर विचार हो रहा था। मैंने अपने पत्रकार साथी रूचिर गर्ग से सलाह माँगी, तो दो-तीन नामों पर हमने विचार किया। फिर अचानक रूचिर बोला कि धर्मराज...... वे अपना वाक्य पूरा कर भी नहीं पाए थे कि मेरे मुँह से एकाएक निकला धरमू को ? रूचिर ने कहा कि वो अपना धरमू ज़रूर है लेकिन वो पार्टी के सचिव मंडल का सदस्य भी है। मैंने कहा ठीक है! फिर मैं अपने ही फैसले पर शक करता रहा। मैंने इससे पहले कभी धरमू को बोलते सुना ही नहीं था।
कार्यक्रम जब शुरू हुआ तब भी कुछ लोगों ने शंका जाहिर की, कि तीसरा वक्ता हल्का न पड़ जाए। खैर कार्यक्रम शुरू हुआ और मेरा धरमू यानि माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से धर्मराज महापात्र ने बोलना शुरू किया। कुछ ही क्षणों में उसने माहौल में अजीब सी गर्मी ला दी। उसने विनम्रता से कहा कि मुझे झिझक हो रही थी कि इतने बड़े लोगों के बीच मैं छोटा सा कार्यकर्ता क्या बोलूँगा और कैसे बोल पाऊँगा ? उसकी विनम्रता और उसकी वाणी में छिपा आक्रोश आग और बर्फ का अद्भुत संगम नज़र आ रहा था।
धरमू, सॉरी धर्मराज महापात्र बोलता चला गया और सारे संपादक, पत्रकार और बुध्दिजीवी शाँत बैठे उसे सुनते रहे। बड़ी बेबाकी से धर्मराज ने मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति को जैसे खारिज ही कर दिया। नक्सलवाद की पैरवी न करते हुए भी धर्मराज ने सरकार को बस्तर और सरगुजा के आदिवासी अंचलों में पसरी आर्थिक और सामाजिक असमानता, शोषण, अराजकता के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। सलवा जुडूम की भी महापात्र ने जमकर खिलाफत की, ये जानते हुए भी कि इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष एक हैं। उन्होंने साफ-साफ कहा कि बिना समस्या का मूल कारण जाने नक्सलवाद से निपटा नहीं जा सकता। उनका कहना था कि किसी समस्या को देखने का नज़रिया महत्वपूर्ण होता है। बातों ही बातों में उन्होंने मुख्यमंत्री की ओर इशारा कर कहा कि नक्सली तो पकड़ में आते नहीं उनकी आड़ में माकपा के कार्यकर्ताओं को जेल में ठूँसा जा रहा है। ऐसे में सिर्फ और सिर्फ असंतोष ही बढ़ेगा और जब तक असंतोष रहेगा नक्सलवाद खत्म नहीं हो सकता।
धरमू ने नक्सलवाद पर वार करने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन साथ ही वो सरकार को भी लपेटता चला गया। उसने कहा हमारी पार्टी का नज़रिया साफ है कि माओवाद और नक्सलवाद का कहीं कोई मेल नहीं है। माओ के नाम पे अगर कोई कुछ भी करता है तो उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन सरकार को ये ज़रूर सोचना चाहिए कि आखिर लोग उनसे जुड़ क्यों रहे हैं। सरकार और पुलिस को उसने अपने ही अंदाज में नक्सलियों से डरने वाला करार दे दिया। उसने कहा कि 15 दिनों में एक हेलिकॉप्टर तक नहीं ढूँढ पाई पुलिस ? उसने दावा किया कि पुलिस अपनी पोस्ट के आसपास ही सर्च करती है। जंगल में घुसने की उसकी हिम्मत ही नहीं है।
सलवा जुडूम मुख्यमंत्री के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है, इस बात की परवाह किए बिना उसने सलवा जुडूम को बंद करने की माँग कर दी। 15 मिनट के अपने संबोधन में धरमू पूरी लय में नज़र आया। जब उसने बस्तर के बारे में अपनी पार्टी का नज़रिया रखा, तो ऐसा लगा कि वो परिपक्व नेताओं को मात दे रहा है। नक्सलवाद के हम समर्थक नहीं है लेकिन जिस तरीके से सरकार काम कर रही है, उससे नक्सलवाद खत्म नहीं होगा। बल्कि उसे पुष्पित और पल्लवित होने का मौका मिलेगा। कई बार लगा कि तालियाँ बजा दूँ, लेकिन स्टेज पर बैठे होने की मजबूरी ने मुझे रोक लिया। हालाकि कुर्सी का हत्था मैंने कई बार थपथपाया। भाषण समाप्त होते ही पूरे प्रेस क्लब और मंच पर बैठे सभी अतिथियों की तालियों ने धरमू के धर्मराज होने का प्रमाण दे दिया। मैंने उसे प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया और कार्यक्रम की समाप्ति के बाद कहा कि धरमू अब तुम्हें धरमू नहीं धर्मराज कहना पड़ेगा। वो हंस पड़ा हमेशा की तरह और कहने लगा आपके लिए तो मैं वही धरमू ही रहूँगा। वहीं रूचिर भी मिल गया, उसने मुझसे पूछा कैसा लगा धरमू ? मेरा जवाब था पता ही नहीं चला कब धरमू धर्मराज हो गया। कांग्रेस वरिष्ठ नेता महेन्द्र कर्मा और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह क्या बोले ? ये बताऊँगा अगली पोस्ट में।
मौका था नक्सल समस्या पर व्याख्यान का। प्रेस क्लब के इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए दो वक्ता मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा तय हो चुके थे, तीसरे वक्ता के लिए वामपंथी नेताओं के नामों पर विचार हो रहा था। मैंने अपने पत्रकार साथी रूचिर गर्ग से सलाह माँगी, तो दो-तीन नामों पर हमने विचार किया। फिर अचानक रूचिर बोला कि धर्मराज...... वे अपना वाक्य पूरा कर भी नहीं पाए थे कि मेरे मुँह से एकाएक निकला धरमू को ? रूचिर ने कहा कि वो अपना धरमू ज़रूर है लेकिन वो पार्टी के सचिव मंडल का सदस्य भी है। मैंने कहा ठीक है! फिर मैं अपने ही फैसले पर शक करता रहा। मैंने इससे पहले कभी धरमू को बोलते सुना ही नहीं था।
कार्यक्रम जब शुरू हुआ तब भी कुछ लोगों ने शंका जाहिर की, कि तीसरा वक्ता हल्का न पड़ जाए। खैर कार्यक्रम शुरू हुआ और मेरा धरमू यानि माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से धर्मराज महापात्र ने बोलना शुरू किया। कुछ ही क्षणों में उसने माहौल में अजीब सी गर्मी ला दी। उसने विनम्रता से कहा कि मुझे झिझक हो रही थी कि इतने बड़े लोगों के बीच मैं छोटा सा कार्यकर्ता क्या बोलूँगा और कैसे बोल पाऊँगा ? उसकी विनम्रता और उसकी वाणी में छिपा आक्रोश आग और बर्फ का अद्भुत संगम नज़र आ रहा था।
धरमू, सॉरी धर्मराज महापात्र बोलता चला गया और सारे संपादक, पत्रकार और बुध्दिजीवी शाँत बैठे उसे सुनते रहे। बड़ी बेबाकी से धर्मराज ने मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति को जैसे खारिज ही कर दिया। नक्सलवाद की पैरवी न करते हुए भी धर्मराज ने सरकार को बस्तर और सरगुजा के आदिवासी अंचलों में पसरी आर्थिक और सामाजिक असमानता, शोषण, अराजकता के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। सलवा जुडूम की भी महापात्र ने जमकर खिलाफत की, ये जानते हुए भी कि इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष एक हैं। उन्होंने साफ-साफ कहा कि बिना समस्या का मूल कारण जाने नक्सलवाद से निपटा नहीं जा सकता। उनका कहना था कि किसी समस्या को देखने का नज़रिया महत्वपूर्ण होता है। बातों ही बातों में उन्होंने मुख्यमंत्री की ओर इशारा कर कहा कि नक्सली तो पकड़ में आते नहीं उनकी आड़ में माकपा के कार्यकर्ताओं को जेल में ठूँसा जा रहा है। ऐसे में सिर्फ और सिर्फ असंतोष ही बढ़ेगा और जब तक असंतोष रहेगा नक्सलवाद खत्म नहीं हो सकता।
धरमू ने नक्सलवाद पर वार करने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन साथ ही वो सरकार को भी लपेटता चला गया। उसने कहा हमारी पार्टी का नज़रिया साफ है कि माओवाद और नक्सलवाद का कहीं कोई मेल नहीं है। माओ के नाम पे अगर कोई कुछ भी करता है तो उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन सरकार को ये ज़रूर सोचना चाहिए कि आखिर लोग उनसे जुड़ क्यों रहे हैं। सरकार और पुलिस को उसने अपने ही अंदाज में नक्सलियों से डरने वाला करार दे दिया। उसने कहा कि 15 दिनों में एक हेलिकॉप्टर तक नहीं ढूँढ पाई पुलिस ? उसने दावा किया कि पुलिस अपनी पोस्ट के आसपास ही सर्च करती है। जंगल में घुसने की उसकी हिम्मत ही नहीं है।
सलवा जुडूम मुख्यमंत्री के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है, इस बात की परवाह किए बिना उसने सलवा जुडूम को बंद करने की माँग कर दी। 15 मिनट के अपने संबोधन में धरमू पूरी लय में नज़र आया। जब उसने बस्तर के बारे में अपनी पार्टी का नज़रिया रखा, तो ऐसा लगा कि वो परिपक्व नेताओं को मात दे रहा है। नक्सलवाद के हम समर्थक नहीं है लेकिन जिस तरीके से सरकार काम कर रही है, उससे नक्सलवाद खत्म नहीं होगा। बल्कि उसे पुष्पित और पल्लवित होने का मौका मिलेगा। कई बार लगा कि तालियाँ बजा दूँ, लेकिन स्टेज पर बैठे होने की मजबूरी ने मुझे रोक लिया। हालाकि कुर्सी का हत्था मैंने कई बार थपथपाया। भाषण समाप्त होते ही पूरे प्रेस क्लब और मंच पर बैठे सभी अतिथियों की तालियों ने धरमू के धर्मराज होने का प्रमाण दे दिया। मैंने उसे प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया और कार्यक्रम की समाप्ति के बाद कहा कि धरमू अब तुम्हें धरमू नहीं धर्मराज कहना पड़ेगा। वो हंस पड़ा हमेशा की तरह और कहने लगा आपके लिए तो मैं वही धरमू ही रहूँगा। वहीं रूचिर भी मिल गया, उसने मुझसे पूछा कैसा लगा धरमू ? मेरा जवाब था पता ही नहीं चला कब धरमू धर्मराज हो गया। कांग्रेस वरिष्ठ नेता महेन्द्र कर्मा और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह क्या बोले ? ये बताऊँगा अगली पोस्ट में।
13 comments:
आप का लेख बहुत ही सटीक हे,ओर आप का धरमू ओर हम सब का धर्मराज भी सही बोला, वेसे इन सरकारी आधिकारिओ ओर नेता ने देश की समस्यो को बहुत ही उलझा दिया हे,ोर मुझे इस बारे ज्यादा पता भी नही, इस लिये चुप रहना ही उचित हे
धन्यवाद
नेता अगर जवाबदेही से काम करने लगें तो नक्सलवाद या माओवाद खुद ही खत्म हो जाएगा। लेकिन अगर ऐसे हो गए तो खनिजों के भरी जंगलो की ज़मीन में देशी-विदेशी कंपनियों को कैसे बेच पाएंगे। धर्मराज ने पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच एकदम सही पक्ष रखा है।
dharmraaj ki jay ho.
laal salaam bhai, dharmu.
aur aneel bhaiya ka waise lal salaam se rishta dharmu ke maarfat hi raha hai ya aur bhi hai, thoda sandeh hai, bawajood unhain bhi laal salaam behad sateek aur sundar ost k liye.
samasya ki jad vikaas ka asamaan vitran hi raha hai.
aaj samay me desh ko ese kai dharamoo ki jarurat hai jo bebaki se apni baat sabake samane rakh sake. dhanyawaad.
आपका धरमु अब धरमराज हो गया ! ये खुशी की बात है !
अन्य धरमू भी जिस दिन धरमराज बन जायेंगे उस दिन
आपकी ये सोच और मेहनत शायद रंग लाएगी ! समाज की
असमानता मेरी निजी राय में जिम्मेदार है ! पश्चिम बंगाल
में ये समस्या १९७१ के पहले तक भयावह रूप में थी ! और
हमने इसको बहुत नजदीकी से देखा और भोगा है ! मैं
मेरे अंकल को खो चुका हूँ इसी समस्या की बलि स्वरुप !
वहाँ तो बहुत कुछ ये समस्या दूर हुई है ! पर आपके क्षेत्र
में अति विकट होती जा रही है ! पर आप जैसे प्रबुद्ध जन
हैं तब तक आशा नही छोडी जा सकती ! आपके शशक्त
लेखन के लिए धन्यवाद !
अच्छा है आप जैसे महानुभावों की सहायता से इतनी दूर रहते हुए भी सुर्खियों के पीछे दबी-छिपी देश की नब्ज़ पर नज़र रह पाती है.
यह बात सच है कि असंतोष की जिम्मेदारी तो अब तक की हर सरकार लेनी ही पड़ेगी मगर कुछ लोग विशेषकर वामपंथी झुकाव वाले भी आग में हाथ तो ताप ही रहे हैं. वे हमेशा तीसरे विकल्प की आड़ में सरकार और विपक्ष पर लांछन लगाना छोड़कर देशहित में एक सम्मिलित कार्यक्रम का उद्घोष क्यों नहीं करते?
धर्मराज जी का वर्णन आपने इतना अच्छा किया है कि बिना देखे भी उस व्यक्ति को सुनने को मन किया. सब लोगों की विचारधाराएं कितनी भी अलग हों अगर इमानदारी से जनहित का जज्बा इन सब के अन्दर होता तो समस्या का त्वरित हल ज़रूर निकलता.
कुछ ज़्यादा कह दिया हो तो कृपया इग्नोर करें परन्तु अगर किसी बात से असहमति हो तो सही ज़रूर करें.
वाकई धर्मराज महापात्रा इतने अच्छे तरीके से अपनी बातें रख पाएंगे किसी को यकीन नही था प्रेस क्लब में।
पर कार्यक्रम के बाद भी लोगों में उनके वक्तव्य की चर्चा होती रही।
कभी-कभी ऐसे बहुत से विचार मन में आते हैं , काफी परेशान भी करते हैं पर जीवन यूँ ही चलता रहता है। एक भाव प्रधान लेख के लिए बधाई।
DRM:
anil bhaiya apko dhanyavad aur badhai dono ek sath.apke vatsalya aur sneh ke sabdo ne mere hridaya ko chu liya laga jaise ek bada bhai jab apni ankho ke samne apne hi chote bhai ko paripakva aur viksit hote dekhkar jis tarike se bhav vibhor hota hai to vah use niharta hi rahta hai anek log to use abhivyakt bhi nahai kar pate kintu apne apni kalam ki kavyatmak pratibha ke jariye use kagj per utarkar sabke samne rakh diya aisi pratibha bahut kam ke pas hoti hai. apka sambal is samaj me vyapt asmanta ke khilaph sangarsh ke prati aur pratibaddhata ke sath ladne dharmaj ko age badhne ki prena sada deta rahega.is ladai me vo kabhi niras nahi hoga aur ek soshan vihin samanta per adharit samaj ke nirman ke liye avichal sangarsh jari rakhega .thanks anil bheya.
apka chota bhai.
B K Thakur ::
Patrakaro ke dwara Naxalvad pe ayojit gosthi sja maine apke lekh ke jariye padha bhi aur dekha bhi . Chhattisgarh me naxalvad ki vikral hoti samsya per is gosthi me pradesh ke chief Minister Dr.Raman Singh, pratipaksha neta Shri Mahendra Karma aur CPM ki or se Secretariat Member Shri Dharmaraj Mahapatra sja cpne vichar rakhte dekha aur paya ki naxalvad ki samasya se nijat pane ke liye raman ji aur karma ji ne salwa judum ko hi ekmatra vikalpa ke roop me pesh karne ki kosis ki vahi dusari or Mahapatra ji ne salwa judum ko nakarte hue kaha ki naxalvad ki samasya ko samajhne aur suljhane ke liye chetra visesh ki rajnitik,arthik aur samajik parivesh ko dhyan me rakhana hi hoga kevl ghosnao se kuch nahi hone wala hai bandook ki nok se adivisiyo ki disha aur dasha nahi sudharane wali hai unhe siksha, chikitsa, rojgar aur awas ki jaroorat hai. Shri Mahapatra ke vichar sunka apki Tippani ki Mera Dharmu Dharmaraj ho gaya me bhi is bat se yakinan ittephak rakhta hoo.
"PATA HI NAHI CHALA KAB DHARMOO, DHARMARAJ HO GAYA" SAMBANDHI APKA LEKH UDWELIT KARNE WALA AUR JHAKJHORNE WALA HAI. NAXALWAD PAR AAJ PURE DESH ME TIKHI BAHAS JARI HAI. AUR IS BAHAS ME JYADATAR WAHI LOG IS VICHAR KO PRESHIT KARTE HAIN KI "SALWA JUDUM" SAHI HAI. LEKIN CM AUR OPPOSITION LEADER KI MAUJUDAGI ME BHI DHARMARAJ DWARA RAKHI GAYI BATEN IS BAT KO PHIR SE SABIT KARTI HAI KI JINDAGI BAHUT SE LOG JITE HAIN. KUCHH LOG JAISI VYAWASTHA RAHTI HAI USKE SATH MILKAR CHALTE HAIN. KUCHH LOG CHHOTI SI JINDAGI ME SAMARPAN KIYE BAGAIR PURE TANTRA KO SUDHARNE KE LIYE JI JAN LADA DETE HAIN. DHARMOO KA DHARMARAJ BANANA CHAMTAKAR NAHI HAI BALKI SACHCHAI HAI . ISLIYE MAI TO YAHI KAHUNGA DHARMOO KA DHARMARAJ BANAE ME AKELE UNKA HI YOGDAN NAHI HAI BALKI ISKE PHICHHE APP JAISE LOG BHI JIMMEDAR HAIN JO SAB BATON KO BADLNA CHAHTE HAIN.
your blog on dharmu's transformation to dharamraj is really priseworthy. i hope that you will also acknowledge , it did not come all of sudden, rather he acquired such good traits through working hard for the welfare of poor, deprived, exploited and toiling people.i am confident that lot more good will be delivered by him for the welfare and upliftment of oppressed, deprived and toiling masses and people at large will appreciate his endeavours. TP PANDEY
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