Thursday, August 21, 2008

हत्यारों का गिरोह है बस्तर के नक्सली : डॉ. रमन सिंह


सीधे-सादे, शाँत और राजनीतिक तिकड़म बाजी से दूर रहने वाले डॉ. रमन सिंह ने बस्तर के नक्सलियों को सीधे हत्यारों का गिरोह ठहरा दिया। उनके भीतर उबल रहा आक्रोश का ज्वालामुखी जैसे फट पड़ा था। उन्होंने नक्सलवाद के पक्ष में देश और विदेश के बुध्दिजीवियों पर कटाक्ष किया और उल्टे सवाल किया कि क्या उन्हें बस्तर की हज़ारों विधवाओं और अनाथ बच्चों के ऑंसू दिखाई नहीं पड़ते।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का नया रूप देख रहे थे राजधानी के पत्रकार। अमुमन रोज उनसे मुलाकात होती रही है पत्रकारों की लेकिन उन्हें इस तरह से बोलते कभी किसी ने नहीं सुना था। मुख्यमंत्री , कहीं से मुख्यमंत्री नहीं लगे। ऐसा लगा कि बस्तर के नक्सलवाद का कोई भुक्तभोगी अपनी व्यथा सुना रहा है। उन्होंने सलवा जुडूम को समर्थन देने के सवाल उठाने वालों को आड़े हाथों लिया और कहा कि उनकी बुध्दि पर उन्हें तरस आता है। कथित बुध्दिजीवियों को भी उन्होंने नहीं छोड़ा। जेल में बंद नक्सलियों से संबंधित होने के आरोपी डॉ. विनायक सेन का नाम न लेते हुए भी उनके पक्ष में चलाई जा रही मुहिम की धज्जियाँ उड़ा दी। रमन सिंह ने कहा कि बड़ी दाढ़ी वाले के लिए विदेशों से चिंता जाहिर हो रही है। उन्होंने सवाल किया कि एक आदमी की चिंता करने वालों ने कभी सोचा भी है कि बस्तर में असमय हज़ारों माँ-बहन विधवा हो गई, हज़ारों बच्चे असमय अनाथ हो गए। उनके लिए कौन रोएगा ? उनके ऑंसू कौन पोछेगा ? कैसे रह रहे हैं वे लोग ? कैसे पढ़ रहे हैं वे बच्चे ? ये नहीं पूछेंगे ? 21 देशों से और दूतावासों से फोन आ रहे हैं कथित बुध्दिजीवियों के लिए।

प्रेस क्लब में भाजपा, कांग्रेस और माक्र्सवादी पार्टी के विचारों का अद्भुत त्रिवेणी संगम नज़र आ रहा था। तीन-तीन विचारधाराओं के मंथन से जो निकल कर आ रहा था वो था सिर्फ और सिर्फ नक्सलवाद का विरोध। व्याख्यानमाला की शुरूआत कोई माकपा नेता सुरेन्द्र महापात्र के जोश से जिससे तैश में आ गए कांग्रेस के नेता महेन्द्र कर्मा मगर जोश और तैश का रत्ती भर भी असर नज़र नहीं आया रमन सिंह पर। हाँ उनकी जुबान से जो शब्द निकल रहे थे वे आग और बर्फ का बेमिसाल संगम थे। चीरपरिचित अंदाज में शाँत स्वरों में रमन सिंह सब कुछ कहते चले गए। उन्होंने माकपा नेता और वामपंथी विचारधारा को आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा बंगाल और चीन की बात करने वाले ज़रा अपने प्रदेश को ठीक से देख ले। दूसरे देश की किताब पढ़ने के बजाय अपने यहाँ की किताबों के पन्ने भी पलट लें। उन्होंने बताया कि वे 10 दिन के लिए चीन गए थे। वहाँ उन्होंने कम्यून देखने की इच्छा जाहिर की थी। कम्यून यानि सर्व सुविधायुक्त आत्मनिर्भर गाँव। चीन के लोगों से वो लगातार कहते रहे कि एक कम्यून दिखा दो, जिसे देखकर छत्तीसगढ़ में भी वैसा कम्यून बनाया जा सके। अफसोस की बात है कि आखिर तक उन्हें कम्यून नहीं दिखाया गया। एक बार ज़रूर एक कॉलोनी के बाहर दो-चार चक्कर लगाए गए और वहाँ से वापस आने के बाद बताया गया कि वो कम्यून था। उन्हाेंने कहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा खराब हालत चीन के किसानों की है। उन्होंने वामपंथ की बखिया उधेड़ दी । उन्होंने पूछा की रशिया का क्या हुआ ? कभी महाशक्ति हुआ करता था वहा भी क्रांति की बात हुई थी । टुकड़े-टुकड़े हो गए है उसके । वहा की करेंसी जला कर चाय बना रहे है लोग। बंगाल की तारीफ करने वालों को बंगाल जाकर देखना चाहिए सारा सिस्टम ही बैठ गया है। विकास के आकड़ों में बंगाल कहीं गुम हो चुका है। क्या बात करते हैं ये लोग विकास की और शोषण की ?

डॉ. रमन सिंह ने कहा कि सिर्फ छत्तीसगढ़ ही इस समस्या से नहीं जूझ रहा है। दुनिया के बहुत से देश भी आतंकवाद के अलग-अलग चेहरों से लड़ रहे हैं। आतंकवाद का एक स्थानीय चेहरा है नक्सलवाद। उससे निपटने के लिए दुनिया में आज जितना खर्च हो रहा है वो शायद विकास पर खर्च होता तो दुनिया चमन हो जाती। माओवाद के नाम पर जो हो रहा है उसका माओवाद से कोई लेना देना नहीं है। नक्सलवाद के जरिए हिंसा हो रही है। बुलेट से बैलेट को प्रभावित किया जा रहा है। हिंसा से प्रजातंत्र को धमकाया जा रहा है। भारत जैसे देश में हिंसा की तो कहीं कोई जगह है ही नहीं। नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड ने भी अपने पहले सार्वजनिक वक्तव्य में कहा है कि नक्सली बुलेट का रास्ता छोड़कर बैलेट का रास्ता अपना लें।

उन्होंने कहा कि नक्सली बुलेट से नहीं डरते। बैलेट से डरते हैं, इसीलिए वे प्रजातांत्रिक प्रणाली से भागते हैं। बुलेट हमारे पास भी है लेकिन बुलेट से कोई समस्या का हल नहीं निकल सकता। नक्सली संगठित गिरोह है जो वसूली करने में जुटा है। वो प्राकृतिक संसाधनों, खनिज खदानों से भरपूर इलाकों पर कब्ज़ा करना चाहता है, चाहे वो बस्तर हो, उड़ीसा हो, झारखंड हो या आंध्रप्रदेश। डॉ. रमन सिंह ने कहा कि नक्सलियों से पुलिस नहीं निपट सकती, क्योंकि उनको जंगल वारफेयर की ट्रेनिंग नहीं है। नक्सली जंगल में लड़ने की ट्रेनिंग लेकर आता है और उसके पास कोई नियम नहीं है, कानून नहीं है, सिध्दांत नहीं है इसलिए गोलियां चला देता है। पुलिस ऐसा नहीं कर सकती वरना कब से इस समस्या का हल निकल आता।

सलवा जुडूम को तो मुख्यमंत्री ने जैसे अपनी प्रतिष्ठा का ही सवाल बना लिया है। उन्होंने कहा कि सलवा जुडूम शाँतिपूर्ण ऑंदोलन है। वहां के आदिवासियों ने नक्सलियों की एके-47 की गोलियों का सामना करने की फौलादी हिम्मत है। उनमें हिम्मत है नक्सलियों की बारूदी सुरंगों को मौत का डर लिए बिना पार करने की। उनकी हिम्मत और हौसले का ऑंदोलन सलवा जुडूम कभी हार नहीं सकता। उसे हमारी सरकार की, दिल्ली की सरकार की मदद मिले या न मिले। देश-विदेश से उसे समर्थन मिले या न मिले वो चलता रहेगा। उसे लोगों की कैद बताने वाले की बुध्दि पर तरस आता है। हमने वहाँ कोई घेरेबंदी नहीं की, ताले नहीं लगाए हैं, किसी को बेड़ियों में जकड़कर नहीं रखा है। सब स्वतंत्र है जिसको जाना है जा सकता है लेकिन कोई जाता नहीं है। इसी से पता चलता है कि वो उनका खुद का फैसला है। कोई जबरदस्ती इतना बड़ा जन ऑंदोलन खड़ा नहीं कर सकता।
बिजली की सप्लाई ठप करना ये कहाँ की बहादुरी है। 8 दिन बस्तर अंधेरे में रहा। ये कौन सा सिध्दांत है लोगों को परेषान करना। सड़क काट देते हैं, पंचायत भवन, स्कूल और अस्पताल उड़ा रहे हैं। क्या मिल रहा है इन सबसे ? राहत शिविरों में रात के अंधेरे में गोलियां चलाते हैं। ये कौन सी बहादुरी है ? 2 साल की बच्ची और 60 साल की वृध्दा की हत्या कर देते हैं ? ये कौन सी बहादुरी है ? ये कायरता की पराकाष्ठा है। हत्यारों का गिरोह बंदूक की नोक पर प्रजातंत्र पर कब्ज़ा करना चाह रहा है। उनका विरोध करना, हिंसा का विरोध करना सलवा जुडूम है। सारे देश को सलाम करना चाहिए बस्तर के सीधे-सादे आदिवासियों का, जो खुल्ला सीना लिए निकल पड़े हैं नक्सलियों की गोलियों का सामना करने। मैं सलाम करता हूँ आदिवासियों की हिम्मत को, उनके हौसले को, उनकी सोच को और उनके जोश को। पता ही नहीं चला कब रमन सिंह नक्सलवाद को खत्म करने के लिए सभी से मिल-जुलकर काम करने की अपील कर अपनी बात खत्म कर गए। जितनी तालियाँ पत्रकारों ने उनके लिए बजाई वो राजनीति से हटकर एक ईमानदार अभिव्यक्ति को शानदार सलामी थी। कैसी लगी आपको प्रेस क्लब में नक्सलवाद पर हुई व्याख्यान माला। प्रतिक्रिया ज़रूर दीजिएगा चाहे अच्छी हो या बुरी। लगभग 20 मिनट बोले रमन सिंह। पूरा भाषण यहाँ देना संभव नहीं है। वैसे तीनों नेताओं के भाषण की सीडी जो चाहे उसे उपलब्ध करवाने की कोशिश ज़रूर करूँगा।

13 comments:

राजीव रंजन प्रसाद said...

आदरणीय अनिल जी,


बस्तर मेरी मातृभूमि है। जब से नक्सलवादी आतंक नें यहाँ का अमन चैन खाया है तकलीफ गहरी है। लेकिन इससे बडी तकलीफ तब होती है जब वे लोग जिन्हे हम बुद्धिजीवी करार देते हैं इस नृशंसतम आतंकवाद के समर्थक में और उनके समर्थकों के समर्थन में खडे दिखाई पडते हैं। एक फैशन है कि नक्सलवाद का समर्थन कीजिये तो आप एक्टिविस्ट की जमात मे खडे नज़र आयेंगे। विनायक सेन के लिये तो जगता है जंग ही चल रही है...खैर इन्हे भी हक है इनकी भी दूकानें हैं।


खुशी हुई आज आपके ब्ळोग पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की सही दिशा में अभिव्यक्रि देख कर। मेरी कर बद्ध प्रार्थना आप जैसे सुधी पत्रकारों से है कि इस अंचक का वास्तविक चेहरा दिल्ली तक लाने और यहाँ के कलमघसीटों को आईना दिखाने का अभियान चलायें। इससे और कुछ हो न हो बस्तर के जले जख्मों पर नमक तो नहीं पडेगा।


सरकार से नक्सलवादियों के खिलाफ ठोस कदमों की अपेक्षा है।
यदि अपने अनुज को काबिल समझें तो मेरे ईमेल आईडी पर अपना फोन नं प्रेषित करने का कष्ट करें। आपसे वार्ता कर प्रसन्नता होगी। rajeevnhpc102@gmail.com

***राजीव रंजन प्रसाद

FAFADIH (फाफाडीह) said...

नक्सलवाद पर मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह का भाषण सुना,वे दिल की गहराईयों से बोल रहे थे. उनका यह भाषण अब तक का सबसे अलग और प्रभावी वक्तव्य था.

दिनेशराय द्विवेदी said...

विनायक सेन बस्तर के नक्सली नहीं। नक्सलियों के नाम पर क्यों सत्ता की ज्यादतियों को छुपाया जाए। हाँ नक्सलियों का मुकाबला करें, उस का राजनैतिक हल निकालें। राज्य में जनता की दशा सुधारें।

राज भाटिय़ा said...

इतना बडा देश कुछ नक्सलवादियों के आगे थर थर कांप रहा हे,:)

36solutions said...

महेन्‍द्र कर्मा जी और रमन सिंह जी का वक्‍तव्‍य आपके ब्‍लाग से पढा, राजनैतिक सोंच की जानकारी हुई । आप इस महत्‍वपूर्ण क्षणों की बानगी पेश कर रहे हैं, इसके लिये आपका बहुत बहुत आभार भईया । हम इसी समय पर राजीव संस्‍कृति सम्‍मान में ही फंसे रह गए प्रेस क्‍लब नहीं आ सके ।

कुन्नू सिंह said...

नकशलवादी एक और लोग अनेक वाली बात हो गई है।

Udan Tashtari said...

हम्म्!! अजब बात है!

ताऊ रामपुरिया said...

बड़ी विकट समस्या है ! जाने कब सुलझेगी ?
अनिल जी इसे हम लाचारी नही कह सकते
क्या ? आपके लेखन के लिए धन्यवाद !

Anonymous said...

Chhattisgarh ke CM se matra do sawal karen.

1. existing vidhansabha me sarguja aur bastar se unke kitne MLA ?
2. naxal samsaya se niptne ke liye govt. ka paisa kahan jata hai.

BJP ko naxal area se lead milee thi.
Naxal samsya ko jinda rakh kar, jo paisa mil raha hai usaka hisab kya hai.

there is no deermination of govt. to curb out the naxalite problem.

naxalite problem is DUDHARU GAI hai.

Smart Indian said...

सारी बात सही है मगर यह भी सही है की जनता ने उनपर विश्वास कर के प्रदेश की जिम्मेदारी उनको दी है. अब उन्हें जनता के सामने एक पक्का प्लान रखना चाहिए की वह कैसे और कब इस समस्या को ख़त्म कर देंगे. यदि वह ऐसा कोई पक्का प्लान देने में सक्षम नहीं हैं तो उन्होंने किसी स्मार्ट व्यक्ति/दल की सहायता क्यों नहीं ली है.

इसी देश में ऐसे दल और व्यक्ति मौजूद हैं जिन्होंने पूर्वोत्तर, बंगाल और पंजाब आदि से आतंकवाद की समस्या का सफाया ही कर डाला था. उनके अनुभव को काम में क्यों नहीं लाया जा रहा है?

अगर किसी सफेदपोश, वामपंथी या दक्षिणपंथी के ख़िलाफ़ सबूत हैं तो उनके लिए भी मौजूदा कानूनों के अधीन कार्रवाई होनी चाहिए - हाँ, यह ध्यान रहे की मानवाधिकार सबसे ऊपर हैं.

admin said...

डा० रमन सिंह सही कहते है कि बुलेट से कोई समस्या का हल नहीं निकल सकता।
इस विचारोत्तेजक पोस्ट को पढवाने का शुक्रिया।

Sanjeet Tripathi said...

कार्यक्रम में मौजूद रहा तो सुना ही मैने तीनों को।

ब्लॉग पर डालने की सोचा पर आप बाजी मार ले गए।
चलिए मैं अपने ब्लॉग पर डालूं या आप अपने ब्लॉग पर, मूल बात यह है कि यहां ब्लॉगजगत में आना चाहिए बस।

और हां
प्रेस क्लब रायपुर को इस महती आयोजन के लिए बधाई, एक अच्छी पहल है यह।

ऐसे मुद्दों पर ऐसे आयोजन और होनें चाहिए।

दीपक said...

अगर संभव हो तो क्या मुझे सी. डी. मिल सकती है ॥ वो क‍इ मामलो मे काफ़ी संजीदा है ये मै भी महसुस करता हुँ !!

धन्यवाद