नक्सलियों ने जिस तरह बीती रात एन.एम.डी.सी. की मेग्जिन पर हमला किया उससे ये तय हो गया कि उन्हें विस्फोटकों की ज़रूरत है। उन्होंने सुनियोजित ढंग से इलाके की बिजली ठप कर एक साथ 2 मोर्चों पर हमला किया। हालाकि वे इस बार असफल हो गए लेकिन इससे पहले वे एक बार इसी मेग्जिन से 20 टन विस्फोटक लूटकर ले जाने में सफल रहे थे।
राष्टीय खनिज विकास निगम की किरंदुल मेग्जिन दोबारा नक्सलियों के निशाने पर आई। नक्सलियों ने ठोस योजना बनाकर इस मेग्जिन को दोबारा लूटने की कोशिश की। इसके लिए बाकायदा उन्होंने पूरे इलाके की बिजली सप्लाई ठप कर दी और सी.आई.एस.एफ. के कैंप पर भी उसी समय हमला कर दिया। एक साथ दो मोर्चे खोलकर नक्सलियों ने वार साइंस के सरप्राइज फेक्टर का फायदा उठाना चाहा। इसी कड़ी में उन्होंने बिजली सप्लाई भी ठप कर रखी थी। उनका टारगेट था मेग्जिन में रखा 20 टन विस्फोटक और सी.आई.एस.एफ. के हथियार लूटना था।
इस बार लेकिन नक्सली अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाए। सुरक्षाबलों ने नक्सलियों की गोलीबारी का मुंहतोड़ जवाब दिया। नक्सलियों का हमला 3 घंटे के बाद फेल हो गया और वे अंधेरे का फायदा उठाकर जंगलों में भाग गए।
किरंदुल से 8 कि.मी. दूर जंगलों में बनी मेग्जिन में बार बार के ब्लैक आउट को देखते हुए जनरेटर भी लगाए गए थे लेकिन इत्तेफाक से 3 दिन पहले ही जनरेटर की व्यवस्था खराब हो चुकी थी। शायद नक्सलियों तक ये सूचना पहुंच गई थी। और इसी का फायदा उठाकर अंधेरे में डूबी मेग्जिन लूटने के लिए हमला किया गया था। नक्सलियों ने मेग्जिन पर हमला करने के साथ ही पास के सी.आई.एस.एफ. के कैम्प को भी घेरकर हमला कर दिया था। सुरक्षाबलों ने पैराबम का इस्तेमाल कर इलाके में प्रकाश किया और नक्सलियों की पोजिशन चेक की इस बीच शहर से भी मदद रवाना हो गई थी।
इससे पहले 9 फरवरी 2006 में नक्सलियों ने हिरोली स्थित मेग्जिन से 20 टन विस्फोटक लूट लिया था। उस हमले में 8 जवान शहीद हुए थे। उसके बाद सुरक्षा कारणों को देखते हुए 31 जनवरी 2007 को मेग्जिन किरंदुल के पास शिफ्ट की गई और उसके बाद ये सबसे बड़ा हमला उस पर हुआ।
जिस तरह नक्सिलयों ने पहले बिजली सप्लाई ठप की, और मेग्जिन के साथ सीआईएसएफ कैंप को भी घेरा उससे लगता है कि उनकी मेग्जिन लूटने की योजना ठोस रूप से बनाई गई थी। और उन्हें वहां के जनरेटर खराब होने की भी जानकारी थी। इस बात से ये भी साबित हो जाता है कि नक्सलियों के संपर्क और सूचना सूत्र सरकारी और पुलिस के सूचनातंत्र से ज़्यादा मजबूत है।
7 comments:
जनरेटर फेल हो जाने तक की बात यदि नक्सलियों के पास फट से पहुँच जाती है तो समझ सकते हैं कि हमारे सुरक्षाबल कितने खतरनाक परिस्थितियों मे काम कर रहे हैं।
काफी विवरणात्मक पोस्ट।
ऐसा लगता है की नक्सलियों का तंत्र , मेरा मतलब सूचना तंत्र से है,
शायद बहुत ठोस है ! यही कारण है की हमारे सुरक्षा बल गंभीर
खतरों में काम कर रहे हैं !
अगर मैं ठीक से याद कर रहा हूं तो किरन्दुल लौह अयस्क का क्षेत्र है। ऐसे स्थानों पर नक्सली उपस्थिति देश हित में नहीं है।
आपने सही कहा कि नक्सलियों के संपर्क और सूचना सूत्र सरकारी और पुलिस के सूचनातंत्र से ज़्यादा मजबूत है।
sarkar ki nakami ka fayada to uthyegein hi.
नक्सलियों के संपर्क और सूचना सूत्र सरकारी और पुलिस के सूचनातंत्र से शायद ज़्यादा मजबूत होगा लेकिन हमारे बहादुर जवानो ने उन्हे भागने पर मजबुर कर ही दिया ना !!उनकी वीरता को इस अदने का सलाम !!
बात बहुत ही सही लगी सतीश जी ओर ताउ जी की घर की खबर बाहर केसे लगी ?लेकिन हमे अपने जवानो पर मान होना चाहिये.
धन्यवाद
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