सी.पी.आई.एम. के महासचिव प्रकाश करात आज प्रेसक्लब पहुंचे। पत्रकारों से चर्चा में हमेशा की तरह उनका पहला मुद्दा परमाणु करार ही था। उन्होंने कहा कि इस मामले में अब अगली सरकार से ही इसे रद्द करने की गुजारिश करेंगे, क्योंकि यूपीए सरकार तो मात्र परमाणु करार के लिए ही चल रही सरकार है। उन्होंने कहा कि कोंडालीसा राइज़ के भारत आगमन पर करार के विरोध में वामपंथी पार्टियां देशव्यापी विरोध करेगी। इसकी रूपरेखा शीघ्र ही तय कर ली जाएगी।
उन्होंने यूपीए सरकार पर एकमात्र उद्देश्य परमाणु करार को पूरा करने के आरोप जड़े। हालाकि उनकी पार्टी का भी अब ऐसा लगता है कि एकमात्र उद्देश्य शेष रह गया है वो है परमाणु करार का विरोध। उन्होंने केन्द्र सरकार पर परमाणु करार के मामले में देश को गुमराह करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इस करार के बाद अमेरिका कानूनन भारत को परमाणु ईंधन की आपूर्ति पर रोक लगा सकेगा। और तो और वो दूसरे आपूर्तिकर्ता देशों को भी रोक सकेगा। ऐसी स्थिति में इस करार का क्या फायदा। महंगाई पर भी बोले करात और सीधे मांग कर दी पेट्रोलियम पदार्थों के भाव कम करने की। उनका ये मानना है कि महंगाई पर रोकथाम के लिए फिलहाल इससे अच्छा और कोई उपाय नहीं है।
उनकी पार्टी का लगता है एजेण्डा तय है। महंगाई के बाद वे उतरे उड़ीसा और कर्नाटक की सांप्रदायिक हिंसा पर और उन्होंने बजरंगदल जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। इसके बाद नंबर आया आतंकवाद का। और उसके बाद जगह-जगह हो रहे बम धमाकों को रोकने में असफल केन्द्र सरकार को कोसने का।
नक्सलवाद पर एक लाइन भी नहीं बोलने से उखड़े एक पत्रकार ने सीधे नक्सलवादी हिंसा को लेकर उन पर सवाल दाग दिया। इससे पहले वे संभलते, दूसरे साथी ने उन पर अफ़जल गुरू की फांसी के मामले में पार्टी का रूख साफ करने की गुजारिश कर दी। ऐसा लगा करात उखड़ जाएंगे। लेकिन मंजे हुए राजनीतिक की तरह उन्होंने नक्सलवाद की निंदा की और उस पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कार्रवाई की पैरवी भी की। अफ़जल गुरू के मामले में वे समझ गए कि बजरंगदल पर प्रतिबंध और मुस्लिम संगठनों के प्रति नर्म रवैय्ये के घाल-मेल से उपजा सवाल है, सो उन्होंने उसे कानूनी प्रक्रिया का हवाला देकर टाल दिया।
हां। करात छत्तीसगढ़ को लेकर ज़रूर चिंतित नज़र आए। ये उनका छत्तीसगढ़ का पहला प्रवास है। उन्होंने सरकार पर वनभूमि अधिनियम और रोजगार गारंटी योजना को लागू करने में घोटाले करने के आरोप लगाए। वे यहां छोटी-छोटी क्षेत्रीय पार्टियों से तालमेल कर चुनाव लड़ने की संभावना भी तलाश करने आए हैं।
10 comments:
manyavar, koi bhi party ho, desh ki chinta kisi ko nahin nahi, rastriya sampatti men se sabhi apna hissa batorna chahte hain.
Anilji, aisa hi hota hai jab oont pahad ke neeche aata hai. Bolti band ho jati hai.Congress ke saath satta ka swad jis tareeke se vampanthiyon ne liya vah avsarwad ka no. 1 example hai. ab ve agar yah batane ki koshis karen ki ve doodh ke dhule hue hain aur janta unki baat par vishwas kar legi, to yah sochna unki bevkufi hi hai. vampanthion ne apni credibility kho di.
मुझे तो किसी भी नेता की किसी भी बात पर यकिन नही रहा, यह कहते कुछ हे करते कुछ हे.
धन्यवाद
परमाणु करार का मुद्दा अब तक वाम पंथियो के लिए अपरिहार्य है जिससे लगता है की इनकी प्राथमिकता कोई रंग जरूर लायगी।
कोई आये कोई जाये बदलेगा कुछ नही !!
muskil hi hai jo badal paye tasvir.
चलिये, नक्सलवाद की निन्दा तो की उन्होंने। इसी को प्रॉमिनेण्टली बताया जाये!
हम पहले इस पार्टी को जुदा सोचते थे पर ये भी एक राजनैतिक पार्टी जैसी ही है.
अरे ये तो करेंगे कुछ नही रोडे पचास अटकायेंगे ।
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