बस्तर में नक्सलवादी आंदोलन के मामले में सरकार पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप जड़ने वाले कथित बुद्धिजीवियों, मानवाधिकारवादियों, प्रबुद्ध पत्रकारों और देश-विदेश में रहकर बस्तर पर चिंता जाहिर करने वाले कथित समाज सेवियों और फर्जी एनजीओ वालों के लिए एक अच्छी ख़बर है। यहां चित्रकोट जलप्रपात की खुबसूरती देखने आई देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा ताई पाटिल को बस्तर के नक्सलियों ने सीआरपीएफ का एक वाहन उड़ाकर सलामी दे दी है। इस वारदात में में 4 जवान शहीद हो गए हैं और 3 घायल हैं। कल ही राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल रायपुर आई थी और उन्होंने यहां सलामी ली थी।
चित्रकोट के प्रवास पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का जाना तय था। वे अपने तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार वहां गई। सुरक्षा की दृष्टि से आसपास का इलाका खंगालकर खाली करा दिया गया था। सुरक्षा का बेहद पुख्ता इंतज़ाम वहां किया गया था। वहां अतिरिक्त पुलिसबल भी तैनात किया गया था। इस सबके बावजूद नक्सली भी अपनी पूरी तैयारी में थे और उन्होंने सरकारी सुरक्षा तैयारियों को चित्रकोट से कुछ ही किलोमीटर दूर बारूदी सुरंग में विस्फोट कर अपना सलाम भेज दिया। नक्सलियों ने चित्रकोट में राष्ट्रपति की सुरक्षा व्यवस्था से वापस अपने थाने मांडूर लौट रहे वाहन को उड़ा दिया। बारसुर इलाके में हुए विस्फोट ने एक बार फिर सरकारी सूचनातंत्र की पोल खोलकर रख दी है। और उसकी इस भारी भूल का खामियाजा सीआरपीएफ के 2 जवानों का परिवार अपने सदस्यों को खोकर भुगतेगा। 5 घायलों के परिवारवाले भी शायद सरकार को कोसेंगे ही क्योंकि उनके परिवार के मुखिया तो आखिर सरकार की ड्यूटी कर वापस लौट रहे थे। आखिर उनकी गल्ति ही क्या थी।
हालाकि अभी सरकारी एजेंसियां इस मामले में खामोशी बरत रही है लेकिन बस्तर के घने जंगलों से छन-छन कर आ रही ख़बरों के मुताबिक राष्ट्रपति के बस्तर से रवाना होते समय ही नक्सलियों ने सीआरपीएफ के वाहन को अपना शिकार बना दिया। अभी तक जो ख़बर मिल रही है उसके मुताबिक आधा दर्जन से ज्यादा जवान घायल हो गए हैं और इससे ज्यादा कोई अधिकारी मुंह खोलना नहीं चाह रहा है। कुछ घंटे पहले ही ये घटना हुई है और अभी तक इसकी सरकारी तौर पर पुष्टि नहीं हो पाई है। फिर भी इस घटना के महत्व को देखते हुए मैं इसे यहां दे रहा हूं।
जानकार सूत्रों का ये भी दावा है कि विस्फोट का शिकार हुआ वाहन राष्ट्रपति की सुरक्षा व्यवस्था से वापस लौट रहा था। नक्सलियों के इस दुस्साहस ने एक बात साफ कर दी है कि उन्हें सरकारी सुरक्षा एजेंसी की रत्ती भर भी परवाह नहीं है। यहां ये भी बताना गैर ज़रूरी नहीं होगा कि सरकारी दावों के बावजूद बस्तर के जंगलों में नक्सलियों की इजाज़त के बगैर पत्ता भी नहीं खड़कता है। अब सरकार चाहे लाख दावे करे कि बस्तर में उनकी सरकार है, मगर वहां रहने वाले जानते हैं कि सरकार वहां किसकी है। नक्सलियों का ताज़ा धमाका राज्य सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार और राष्ट्रीय सुरक्षा, और गुप्तचर एजेंसियों के मुंह पर करारा तमाचा है।
16 comments:
हर घटना से कुछ सीखा जारहा है ,अध्ययन किया जारहा है अनुभव प्राप्त किया जारहा है
अदरणीय अनिल जी,
आपका शीर्षक ही आपकी वह पीडा बयाँ कर रहा है जिसके वशीभूत हो कर आपने यह आलेख लिखा है। उन्हे शर्म नहीं आती जो इस आतंकवाद का महिमामंडन करते हैं...और हमारा बस्तर एसे की लेखकों/लेखिकाओं/समाजसेवियों/गैरसरकारी संस्थाओं के बोझ तले मर रहा है। कब निजात मिलेगी?
.... अब बहुत हो चुका, साँप कुचले जाते हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
नक्सलियों का ताज़ा धमाका राज्य सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार और राष्ट्रीय सुरक्षा, और गुप्तचर एजेंसियों के मुंह पर करारा तमाचा है।
"kitna sharmnak hadsa hai ye, vo bhee jtub jub desh kee rashtptee vhan majud hain, abhee to dekho aagey aagey hotta hai kya..."
Regards
नक्सलियों के प्रभावक्षेत्र में छत्तीसगढ़ ही नहीं अन्य राज्यों में भी दिन प्रतिदिन विस्तार हो रहा है। भ्रष्टाचार में आकंठ लिप्त सरकार व उसकी प्रशासनिक मशीनरी इसे रोक पाने में पूरी तरह से विफल साबित हो रही है। आपकी चिंता जायज है।
great indian dhamaka mahotsav ki ek aur kadi
'नक्सलियों का ताज़ा धमाका राज्य सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार और राष्ट्रीय सुरक्षा, और गुप्तचर एजेंसियों के मुंह पर करारा तमाचा है।"
आपकी ये पोस्ट सारी असलियत उजागर कर रही है !
वाकई इन्होने सुरक्षा बलों को बौना साबित कर दिया है !
इन रक्तबीजों से निजात मिलती नजर नहीं आती!
पोस्ट आपकी पीड़ा को व्यक्त कर रही है. कुछ सवाल मुंह बाए खड़े हैं. कौन जिम्मेदार है इस स्थिति के लिए? और आख़िर कब तक चलेगा ये सब? कोई जवाब नहीं दिखता.
यही हाल है !अब इन जैसे दहशतगर्दो को लोकतंत्र से जोडा जाना चाहिये ! अगर ऐसा हुआ तो छ्त्तीसगढ को बिहार बनते देर ना लगेगी!!
आपने सही कहा-
नक्सलियों का ताज़ा धमाका राज्य सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार और राष्ट्रीय सुरक्षा, और गुप्तचर एजेंसियों के मुंह पर करारा तमाचा है।
दहशत के सौदागरो से और क्या उम्मीद की जा सकती है और इन सौदागरो के दलाल स्वाभाविक रूप से इनके लिए ही गाएंगे। जिनका घर उजडा है उनसे पूंछे की इन तथाकथित मानवाधिकार के पैरोकारो को क्यो शर्म नही आती।
अब सरकार चाहे लाख दावे करे कि बस्तर में उनकी सरकार है, सजी सही दावा कर रही हे यह सरकार उन्ही की तो हे, ओर यह नक्सली ओर अतांक्वादी किस के हे ???? जो इने कोई हाथ भी नही लगा रहा.
धन्यवाद
हालात अफसोसजनक हैं और आपकी चिन्ता जायज.
www.janadesh.in per sanjeet tripathi ki story per bhi nazar dale.
respected sir u got great sense to write and edit
real eye openner
regards
यह पीडा जिसने झेली है वह ही समझ सकता है .कोई और बस कोरा अनुमान ही लगा सकता है ..अभी इस विषय पर साहसिक लेखन की जरुरत है.
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