Tuesday, September 30, 2008

इसका मतलब बस्‍तर में जब चाहे जहां चाहे जो चाहे कर सकते हैं नक्‍सली

सोमवार को राष्‍ट्रपति के प्रवास के दौरान नक्‍सलियों ने बारूदी सुरंग से सीआरपीएफ का एक वाहन उड़ाकर ये साबित कर दिया कि बस्‍तर में वे जब चाहे जहां चाहे और जो चाहे कर सकते हैं। पुलिस या सरकार का खौफ तो दूर की बात है उसकी वे परवाह तक नहीं करते। ऐसा नहीं होता तो वे बस्‍तर में राष्‍ट्रपति की सुरक्षा व्‍यवस्था में लगे वाहन को आसानी से नहीं उड़ा देते।

राष्‍ट्रपति प्रतिभा ताई पाटिल भारत का नियाग्रा कहलाने वाले बस्‍तर की शान चित्रकोट जलप्रपात की खुबसूरती निहार रही थी और ठीक उसी समय नक्‍सली बारसुर मार्ग पर बारूदी सुरंग बिछाकर खूनी मंजर देखने की तैयारी कर चुके थे। चित्रकोट से महज 27 कि.मी. दूर मौत का जाल बिछा रखा था नक्‍सलियों ने। राष्‍ट्रपति बस्‍तर की खुबसूरती को जी-भरकर देख रायपुर के लिए रवाना हुई थी, कि नक्‍सलियों ने गश्‍त कर रही सीआरपीएफ की टुकड़ी की 2 गाडि़यों में से 1 बोलेरो को विस्‍फोट कर उड़ा दिया। उन्‍हें पता था कि डिप्‍टी कमांडेंट दिवाकर महापात्रा किस गाड़ी में बैठा है। सो उन्‍होंने उसी बोलेरो को निशाना बनाया।

बोलेरो के चिथड़े उड़ गए। हवा में कई दूर ऊपर उछलने के बाद जब नीचे गिरी बोलेरो तो वो डिप्‍टी कमांडेंट दिवाकर महापात्रा समेत 4 लोगों की बलि ले चुकी थी। 3 जवान बुरी तरह घायल थे। इस वारदात की सूचना मिलते ही समूचे बस्‍तर की पुलिस और प्रशासन के साथ सारी सरकार सकते में आ गई। 4 जवानों का शहीद होना कोई मामूली घटना नहीं होती। इसके बावजूद सरकारी काम-धाम उसी ताम-झाम के साथ चलता रहा। राष्‍ट्रपति के स्‍वागत में पलक-पावड़े बिछाए प्रदेश में 4 जवानों की मौत का मातम कहीं दब सा गया। किसी को सुनाई ही नहीं दिया, उन 4 शहीदों के परिवार वालों का करूण क्रन्‍दन। क्‍योंकि महामहिम राष्‍ट्रपति के स्‍वागत में स्‍वर्ण मना रहे रायपुर के डिग्री गल्‍स कॉलेज में खुशियों की स्‍वर लहरी गूंज रही थी। उसमें कहीं दबकर मर गया शहीदों और घायलों के परिवारवालों का गम।

नक्‍सलियों द्वारा यहां आए दिन विस्‍फोट किए जाते हैं। ये बस्‍तर के लिए अब रोजमर्रा की बात हो गई है। उसके बावजूद सोमवार को हुआ विस्‍फोट इसलिए महत्‍वपूर्ण माना जा रहा है, क्‍योंकि उस दिन बस्‍तर में देश की सबसे महत्‍वपूर्ण हस्ति, प्रथम नागरिक यानि राष्‍ट्रपति मौजूद थी। उनके आने से पहले ही सुरक्षा व्‍यवस्‍था के लिए एनएसजी यहां पहुंच चुकी थी और उसने सारी सुरक्षा व्‍यवस्‍था अपने हाथ में ले ली थी। बस्‍तर जैसे संवेदनशील इलाके में राष्‍ट्रपति का जाना एक प्रकार से नक्‍सलियों को चुनौती के साथ-साथ सरकार और पुलिस का मनोबल बढ़ाने वाला फैसला था लेकिन नक्‍सलियों ने भी उस चुनौती बड़ी आसानी से लिया और विस्‍फोट कर ये बता दिया कि बस्‍तर में वे जब चाहे, जो चाहे और जहां चाहे वो कर सकते हैं।

इस विस्‍फोट से एक बात और साफ हो गई कि नक्‍सलियों की पुलिस में अच्‍छी-खासी घुसपैठ बनी हुई है। हालाकि होना ये चाहिए कि नक्‍सल से निपटने के लिए पुलिस का सूचनातंत्र ज्यादा मजबूत रहे, मगर हो ठीक उल्‍टा रहा है। नक्‍सलियों की हलचल तो पुलिस को सपने में भी पता नहीं चल पाता। लेकिन नक्‍सलियों को पुलिस की सारी गतिविधियों की ख़बर रहती है। जभी तो उन्‍होंने बारसुर रोड पर बारूदी सुरंग बिछा रखी थी। उन्‍हें पता था कि पुलिस की गाडि़यां उस रोड से वापस आएंगी और उन 3 गाडियों में किस गाड़ी में कौन बैठा है। उन्‍होंने 3 गाडि़यों में से बीच वाली गाड़ी को ही निशाना बनाया जिसमें डिप्‍टी कमांडेंट बैठे थे। शेष गाडि़यों सिर्फ जवान थे। छांटकर अफसर को निशाना बनाना इस बात का सबूत है कि उन्‍हें पता था कि किस गाड़ी में कौन बैठा है।

सूचनातंत्र का खोखलापन और सरकार की कमजोर इच्‍छाशक्ति ने बस्‍तर में सीआरपीएफ के 4 जवानों की बलि ले ली। 3 जवान अभी भी मौत से जूझ रहे हैं। रोज गश्‍त पर निकलते समय जवानों को इस बात की गारंटी नहीं रहती कि वो वापस सुरक्षित लौट पाएंगे भी। रोजी-रोटी की तलाश में दूर-दूर से यहां आए लोग रोजी-रोटी से ज्‍यादा अब जिन्‍दगी के लिए दुआ करते हैं।

16 comments:

Unknown said...

हमेशा की तरह सटीक विश्लेषण, बहुत सही है अनिल जी, प्रशासन अब सिर्फ़ वीआईपी लोगों की ही सुरक्षा कर पा रहा है (ज्यादा दिन नहीं कर पायेगा), आम आदमी तो हाशिये पर है… रही बात पुलिस में नक्सलियों की घुस्पैठ की, तो कश्मीर में भी ठीक यही हालात हैं… अब भी समय है, नहीं चेते तो आन्ध्रप्रदेश से लेकर नेपाल तक "लाल गलियारा" पूरा कायम हो जायेगा…

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ .ओर उन जवानो के परिवार इसका खामियाजा जिंदगी भर भुगतेगे...

Gyan Dutt Pandey said...

आर्थिक विकास से दूर होगा नक्सलवाद। और चूंकि आर्थिक विकास उनका विनाश करेगा, वे (नक्सल) आर्थिक विकास करने न देंगे।
ठीक उसी तरह जिस तरह कुछ नेता चाहते हैं कि जनता अशिक्षित बनी रहे।

सचिन मिश्रा said...

ye to bahut hi dukhd hai.

Unknown said...

jawan kyo mare gaye yeh bataya hai sanjeej tripathi ne wwww.janadesh.in

ताऊ रामपुरिया said...

रोजी-रोटी की तलाश में दूर-दूर से यहां आए लोग रोजी-रोटी से ज्‍यादा अब जिन्‍दगी के लिए दुआ करते हैं।
कितनी लाचारी है ? हमेशा की तरह बिल्कुल सटीक जानकारी दी है आपने !

भूतनाथ said...

बहुत विकट स्थितियां हो चुकी हैं ! जल्दी ही कोई गंभीर उपाय नही हुए तो ये स्थितियां काबू के बाहर हो जायेंगी !
आपने बहुत सशक्त लेखन किया है ! धन्यवाद !

राज भाटिय़ा said...

यह सब हो रहा मेरे उस भारत मे जिस मे लोग सब से ज्यादा भगवान पर विश्वावस करते हे,दान पुजा यह सब किस लिये, इतने मन्दिर मस्जिद किस लिये... जब हम अपने स्वार्थ के लिये ही उस उपर वाले के बनाये लोगो को मार रहे हे.
धन्यवाद, अभी भी चेत जाओ...
धन्यवाद

Sanjeet Tripathi said...

शर्म आती है हमें अपने राज्य के ऐसे मंत्रियों पर जिन्हे रायपुर आने की इतनी हड़बड़ी होती है कि घायल जवानों को जगदलपुर में ही इलाज के लिए छोड़ देते हैं पर उन्हें भेजने के लिए हैलीकॉप्टर नहीं दे सकते।
शर्म-शर्म

Asha Joglekar said...

और ये विकट स्थितियां सिर्फ बस्तर मे नही हैं कहीं बी कोई भी तो सुरक्षित नही है आम आदमी तो बिलकुल नही । पर मै ज्ञानदत्त जी से सहमत हूँ कि आर्थिक विकास ौर उसमें हर वर्ग की भागी दारी ही इसको सुलझा सकती है ।

seema gupta said...

' oh, again, how helpless common man is, no safety no security for them, how to fight against this cruelity no one knows....'

regards

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

badi mushkil yeh hai ki jo kar sakte hain arthaat bade ohadon par baithe afsar we bhi kuchh karna nahi chahte, netaon ki masaaj karne aur achchi posting paana, dhire-dhire poora desh naxalion aur aatankion ki chapet men aa jaayega aur wahi haal hoga jo somnath ka hua tha.

दीपक said...

नक्सलीयो की समानांतर सरकार बस्तर मे राज कर रही है इससे इंकार नही किया जा सकता !!मगर उन परिवार वालो का क्या जिन्होने अपने बुढापें की लाठी खो दी!ईश्वर उनकी आत्मा को शांती दे और उनके परिजनो को ये दुख झेलने की शक्ती !!

admin said...

पता नहीं सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप की आबोहवा में क्या है, कि कहीं न कहीं कुछ न कुछ लगा रहता है। चाहे नेपाल हो या श्रीलंका, भारत हो या पाकिस्तान, हर जगह समस्याएँ मुंह बाए खडी हैं।

Nitish Raj said...

सही और सटीक विश्लेक्षण आपका। कल जब ये खबर आई थी तब ही मालेगांव और साबरकांठा वाली खबर आई थी। लेकिन नक्सलियों के द्वारा जो बराबर में सरकार चलाई जा रही है वो खतरनाक है। जैसे कि आज अगरतला में ६ विस्फोट जागना तो होगा ही।

प्रदीप मानोरिया said...

बोलीबुड की भीषण बिडम्बना है यह आपका आलेख पढा बधाई स्वीकारें समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारें