Thursday, October 2, 2008

गांधी जयंति पर हिंसा से भरपूर ‘किडनेप’ और ‘द्रोणा’ रिलीज

ब्‍लॉग गुरू ज्ञानदत्‍त जी की प्रेरणा से एक माइक्रो पोस्‍ट मेरी ओर से भी।

गांधी जयंति को सारी दुनिया में अंतर्राष्‍ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। और हमारे देश में गांधी जयंति के ही दिन शुक्रवार को फिल्‍में रिलीज करने का सिलसिला तोड़कर 'मार-धाड़' और एक्‍शन से भरपूर 2 फिल्‍में ‘किडनेप’ और ‘द्रोणा’ एक साथ रिलीज की गई।

इस माइक्रो पोस्‍ट को लिखने तक के सफर का श्रेय मुझे ब्‍लॉग की दुनिया में लाने वाले मेरे प्रिय साथी संजीत त्रिपाठी को जाता है। अहिंसा के पुजारी के देश में हिंसा की दुकानदारी पर लिखी ये पोस्‍ट कैसी लगी बताईएगा ज़रूर।

16 comments:

सतीश पंचम said...

स्वागत है.....सुबह मैने भी एक माईक्रोपोस्ट ठेली थी.....नेपथ्य में थे ज्ञानजी और समक्ष थे साक्षात शिवराज पाटील.....आ हा हा....कितना मनोरम द्रश्य था वो .....साधु....साधु
:)

Unknown said...

:) "माइक्रो" तो है लेकिन "सॉफ़्ट" नहीं… :)

BrijmohanShrivastava said...

ज़बर्जस्त कटाक्ष

ताऊ रामपुरिया said...

अब तो गुरुजी ने सबको माइक्रो पोस्ट का हुनर बता दिया है ! :) आज शायद ये तीसरी माइक्रो केप्सूल है !
बहुत उत्तम है जी !

Sanjeet Tripathi said...

सटीक नज़र!
इसी पे कायल है।
हजूर ये नजरिया हमका भी दे दो।

और हां शुक्रिया भैया!

bhuvnesh sharma said...

अहिंसा की मार्केट वैल्‍यू नहीं है जी

मारधाड़ ही बिकता है

आपका माइक्रो पोस्‍ट अच्‍छा लगा

Anonymous said...

great critics, dhnyabad,

गुरतुर गोठ said...

अनिल भाई, सबसे पहले तो आपको धन्यवाद , आप मेरा उत्साहवर्धन करते रहते हैं. आज बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग का भ्रमण कर सका...और आते ही ब्लॉग की दुनिया की क्षणिका या बेहतर शब्दों में "लघु-ब्लॉग-कथा" से साक्षात्कार हो गया. अच्छा प्रयोग है. अहिंसा के पुजारी के साथ "द्रोणा" को भेजकर उनके विचारों को "kidnap" ही तो किए जाने का दुष्प्रयास हुआ है.

Nitish Raj said...

आज भी आपने सही कड़ी पकड़ी है अनिल जी, सच कह रहा हूं अहिंसा पर भारी है हिंसा रील लाइफ में पर रियल लाइफ में उल्टा है।

राज भाटिय़ा said...

जेसा हम खाये गे , देखे गे वेसा ही तो पाये गे.
आप ने सही कहा.
धन्यवाद

seema gupta said...

"great comment and thought on the situation.."

regards

Smart Indian said...

अनिल जी, यही तो विरोधाभास है.

Gyan Dutt Pandey said...

गांधी जी की प्रासंगिकता इसी में है कि उनकी याद बनी रहे - विरोध में/ विरोधाभास में भी!
गांधी के विचारों का पूर्ण रूपमें प्रकटन अभी होना है। समय लग सकता है पर होगा जरूर।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

aapki dekha-dekhi main bhi mini ya micro post post kar dekhta hoon

admin said...

बडी तगडी नजर है आपकी।

डॉ .अनुराग said...

यही तो २००८ है अनिल जी