Saturday, October 4, 2008

सरकार की ऐसी की तैसी, मंथली देते हैं, जो मर्जी करेंगे

सरकार नाम की चीज छत्‍तीसगढ़ से लगता है गायब हो गई है। जंगलों में नक्‍सलियों का राज है और शहरों में दबंगों का। ऐसा नहीं होता तो क्‍या बापू की जयंति के दिन मेनरोड पर स्थित शराब दुकान की बगल से खुलेआम शराब बेची जा सकती थी। पुलिस भी खानापूर्ति के लिए वहां गई, लेकिन गले तक रिश्‍वत से भरी पुलिस की आवाज़ भी निकल नहीं पाई। ये किस्‍सा है जांजगीर जिले के चंद्रपुर कस्‍बे का और अफसोस की बात तो ये है कि ये ख़बर किसी भी अख़बार या न्‍यूज़ में जगह नहीं पा सकी।

ये ख़बर मुझे आज मिल रही है और इसे मैं देर से ही सही सबके सामने रख रहा हूं। गांधी जयंति के दिन शराब ठेकेदारों ने सीलबंद अंग्रेजी शराब दुकान की बगल के दरवाजे से दिनदहाड़े शराब बेचकर ये साबित कर दिया कि सरकार की उन्‍हें रत्‍ती भर भी परवाह नहीं है। और फिर वे परवाह करें भी क्‍यों। मंथली हर डिपार्टमेंट को टाईम से भेज दिया जाता है। फिर किसकी मजाल है जो कार्रवाई करता ? हालाकि कुछ
गांधीवादी टाईप के लोगों ने इसकी शिकायत पुलिस से की, जिस पर पुलिस वहां पहुंची भी और कुछ देर टहलकर बिना कार्रवाई के वापस निकल ली।

अब बताईए जब राष्‍ट्रपिता महात्‍मागांधी के जन्‍मदिन पर भी शराबबंदी जैसे नियम को लागू नहीं कर पाई जो सरकार उसे क्‍या कहा जाए। अकेला चंद्रपुर नहीं था जहां खुलेआम शराब बिकी। पूरे प्रदेश में यही हाल था। कहीं खुलेआम बिकी, तो कहीं छिपकर। लेकिन सीलबंद दुकान के बाजू से ही शराब बेचने की दबंगई देखकर तो ऐसा लगा कि टुच्‍चे शराब बेचने वाले कह रहे हों, कि सरकार की ऐसी की तैसी, हमारी जो मर्जी वो करेंगे। और मेरी सेंचुरी पूरी
मेरे प्रिय पत्रकार साथी संजीत त्रिपाठी जिसे मैं अक्‍सर नेट पर बैठने के लिए डांटा करता था, एक दिन उसने मुझसे मेरा एक लेख ब्‍लॉग पर डालने की अनुमति मांगी। मैंने उसे स्‍वीकृति दे दी और पूछा ये ब्‍लॉग क्‍या होता है। दूसरे दिन वो मुझे अपने घर ले गया और वहां उसने मुझे अपना ब्‍लॉग दिखाया और मेरे लेख पर आई प्रतिक्रियाएं भी। मुझे पढ़कर अच्‍छा लगा और उसके बाद संजीत मेरे पीछे लग गया अपने ब्‍लॉग पर लिखने के लिए। उसने ही मेरा ब्‍लॉग बनाया और सबसे पहले मैंने 28 अप्रैल को एक संपादक की माताजी की मौत पर पोस्‍ट लिखी। इस पोस्‍ट पर प्रतिक्रिया आई इंडियन एक्‍सप्रेस के अम्‍बरीश कुमार की, जो जनसत्‍ता के रायपुर संस्‍करण में मेरे संपादक रहे हैं। उनके साथ ही दीपक शर्मा भी शामिल थे जो आज तक मेरा हौसला बढ़ाते आ रहे हैं। अप्रैल के बाद मई माह में मैंने 5 पोस्‍ट लिखी, फिर जून में 10 और आकड़ा बढ़ता चला गया। मेरे ब्‍लॉग लिखने की ख़बर सारे दोस्‍तों को भी पता चली। उन्‍होंने पूछा, कब तक चलेगा ये तुम्‍हारा ब्‍लॉग मेरा जवाब था बंद नहीं होगा। दोस्‍तों ने कहा ये रटा-रटाया और घिसा-पिटा डॉयलॉग बहुत पुराना हो गया है, टाईम बताओ। मैंने फिर कहा कि बंद नहीं होगा। मुझसे पूछा गया कितने महीने लिखोगे 1,2 या 3। मैंने फिर वही जवाब दिया इस बार बंद नहीं करूंगा। दरअसल पत्रकारिता में नौकरी छोड़ने के नाम पर काफी बदनाम हो चुका हूं मैं। जरा समझौता पसंद नहीं करता और ख़बर रोकने के नाम पर झगड़े होते रहे और नौकरी छूटती रही है। दोस्‍तों का वो भ्रम भी इस बार मैंने तोड़ दिया है और मेरा ब्‍लॉग छठवें महीने में प्रवेश कर गया है। ब्‍लॉग की दुनिया में मुझे सपोर्ट मिला समीरलाल, ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय, शिवकुमार मिश्र, ताउ रामपुरिया, राज भाटिया, अनुराग शर्मा, नीतिश राज, डॉ.अनुराग आर्य, सीमा दानी, अनवर कुरैशी, शहरोज़, ज़ाकिर अली रजनीश, अनुप शुक्‍ल, सुरेश चिप्‍लुणकर, राजीव रंजन, संजीव तिवारी और बहुत से दोस्‍तों का। संजीव तिवारी तो रायपुर आकर मिल भी लिए और मुलाक़ात का सिलसिला चल निकला है। अनुप शुक्‍ल, अजीत वडनेरकर,शिवकुमार मिश्र, से दूरभाष पर चर्चा का सौभाग्‍य मिला है। मुलाक़ात हो नहीं पाई है जिसका इंतज़ार रहेगा। राजीव रंजन से भी फोन पर बात हुई और वे 26 को रायपुर आने वाले हैं। उनका भी इंतज़ार है। बहुत से लोगों का ब्‍लॉग पढ़ने का मौका मिला। उनकी बेबाकी, उनकी हिम्‍मत और उनकी ईमानदारी मेरा हौसला बढ़ाती रही। और भगवान ने चाहा तो ये सिलसिला जारी रहेगा। कुछ दोस्‍तों और चाहने वालों के नामों का मैं उल्‍लेख नहीं कर पाया हूं। जिसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं। उम्‍मीद है आज तक जैसा सहयोग मुझे मिला, वैसा मिलता रहेगा।

18 comments:

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

achcha likha hai aapney. century poori karney key liye badhai.

makrand said...

bahut jawalant lekh
regards

ताऊ रामपुरिया said...

भाई अनिल जी आपकी सेंच्युरी पुरी होने की खुशी में हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! जैसा आप लेखन करते हैं वो ही एक कारण है की आपकी पोस्ट मैं पहली ही फुर्सत में पढ़ता हूँ! और आपका लेखन हमेशा मुझे कुछ ना कुछ सोचने पर मजबूर करता है ! इश्वर आपकी लेखन क्षमता को और धार दार बनाएं ! और आपकी अगली सेंच्युरी की प्रतीक्षा रहेगी ! शुभकामनाएं !

भूतनाथ said...

आपकी शतकीय रचना पर हार्दिक बधाई !

Smart Indian said...

ऐसा तब तक होता रहेगा जब तक हम शराब-दर्शन को व्यवहारिक और गांधी-दर्शन को किताबी मानते रहेंगे.

सचिन मिश्रा said...

anil ji, pure desh ka yahi haal hai. ye log mantali dete rahege aur jo man me aayego karte rahege...

aap ko badayi.aage bhi isi tarah likhte rahiye.

राज भाटिय़ा said...

अनिल जी आप की बात से मे सहमत हू , आप ईमान दार है, इस लिये बदनाम थे उन बेईमानो मे, मेरे पिता जी के साथ भी यही होता था, मेने चार पांच साल नोकरी की है भारत मे मेरा भी यही हाल रोजाना अपने ओफ़िसरो से लडना , लेकिन जब तक रहा अपने दम पर ओर ईमान दारी से रहा, ओर फ़िर कागज उन के मुंह पर मार कर आया, आप के लेख पढने की आदत सी हो गई है, ओर दिमागी शान्ति मिलती है, फ़िर लगता है भारत मे अभी भी ईमानदारी बची है,कुछ भी हो ईमान दार आदमी, से यह गिरे हुये लोग आंख मिला कर बात नही कर सकते,वेसे सरकार की ऎसी की तेसी यह पुलिस वाले भी क्या करे यह भी तो कुते हे इन कमिने नेताओ के, ओर ठेके है इन नेताओ के गुण्डे रिस्तेदारो के, अब जब तक जनता नही जागती कुछ नही हो सकता, ओर एक दिन जागएगी जनता.
धन्यवाद
नोट इसे कहते है माईक्रो टिपण्णी***

jitendra said...

श्‍ातकीय पारी के लिए बहूत बहूत बधाईयां.....
सर जी आपके बेबाक लेख के हम कायल है
कल तक बेहोश थे आज घायल हैा

कडुवासच said...

मुद्दा गम्भीर है, इस समस्या के जन्मदाता एक नहीं अनेक हैं।

Sanjeet Tripathi said...

आदरणीय भैया,
जो आपके लेखन की क्वालिटी जानते हैं वे यही अपेक्षा करेंगे कि आप तो हजारों हजार पोस्ट पूरी करो इस ब्लॉग पर।
मेरे तो पत्रकारिता में बस दो ही गुरु रहे हैं एक अंबरीश जी और एक आप।
कामना यही है कि आप लिखते रहें अनवरत, रुके न आपकी कलम कभी।

दीपक said...

मेरी शुभकामानायें है कि आप सेंचुरी से हजार पर जायें और इससे भी बडी बधाई इस बात की है कि आप छ्त्तीसगढ के सबसे सफ़ल ब्लागर हो रहे है ॥आपकी नौकरी छुटना तो आपके अच्छे पत्रकार होने का सबुत है ही ।

आपकी बेबाकी से ही मुझे बहुत प्रेरणा मिली और महज टीपियाने के लिये बनाये मेरे ब्लाग को एक उद्देश्य मिल गया ।अतः इसलिये आपका धन्यवाद !!

रहा सवाल मंथली का तो -यह तो बहुत बडा नासुर हो गया है इससे पुरा अमला यहा तक की पत्रकार भी नही बचे हैं!!

Udan Tashtari said...

वाह जी, शतक पूरा करने की बहुत बहुत बधाई और अनेकों शतकों के लिए शुभकामनाऐं.

बेहतरीन है-बस जारी रहिये.

योगेन्द्र मौदगिल said...

बधाई
शुभकामनाएं
रही गांधी जयंती पर दारू बिकने की बात तो
बड़े भाई आप अपने समस्त मित्रों के साथ यह पता लगाएं
कि उस दिन दारू कहां नहीं बिकती
हर नगर में कईं कईं ठिकानों पर
होम डीलीवरी भी होती है बहुत से स्थानों पर
खैर

Unknown said...

बहुत बहुत बधाईयाँ, आप शीघ्र ही एक हजारवीं पोस्ट लिखेंगे ऐसा मेरा विश्वास है, रही नौकरी की बात तो बार-बार आपका नौकरी छोड़ना साफ़ जाहिर करता है कि आपमें अभी "रीढ़ की हड्डी" बाकी है और वह मजबूत भी है… लगे रहिये, लाखों शुभकामनायें… शराब उस दिन बिके न बिके, दीवाने तो एक दिन पहले ही स्टॉक कर लेते हैं…

Satish Saxena said...

शानदार,व्यवस्थित बिना बेईमानी के एक साफ सुथरा शतक लगाने के लिए शुभकामनायें अनिल जी !

गुरतुर गोठ said...

बडे भाई बधई हो बधई, कोपरा कोपरा, झंउहा झंउहा बधई आपके सैकडा पुरे के खुसी मा ।


माफी देहू थोरिकन बिलम होगे आप ला 'टिपियाय' मा ।


हम तो आप ला पहिली ले कहि देहे हन कि आप हमर छत्‍तीसगढ के ब्‍लागर मन के घलो माई मूड अव हमला आप उपर गरब हे ।


आप अइसनहे सरलग लिखत रहव हमर सुभकामना हे ।

श्रीकांत पाराशर said...

Anilji, aapke blog ke karan chhatisgarh ke khas samachar jo kahin nahin chhapte, ve mil jate hain. iske alawa bhi aapke achhe nirbheek vichar samay samay par milte rahte hain. iske liye sanjeet tripathi ko badhai aur dhanywad ki ve aapko blog par laye. dusari baat aapko bhi dher sari subh kamnayen ki aap isi prakar likhte rahen, niymitata banaye rakhen, aapki urja bani rahe. Kabhi bangalore padhriye, hamare saath bhi kuchh vakt gujariyega, achha lagega hamen.Aapko idhar aaye kafi vakt ho gaya hai.

बाल भवन जबलपुर said...

अनिल पुसदकर जी
सादर अभिवादन
शतक के लिए बधाई देना ज़रूरी नहीं था किंतु "सार्थक-शतक" बनाने के लिए हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकारिए समय के साथ हिन्दी ब्लागिंग की मज़बूती में आपके अवदान को कौन भुलाएगा,,,,! आप का ब्लॉग साफ़ सुथरा और सु-स्पष्ट एवं पठनीय है अच्छा लगा . मुझे लगा की सचाई की तारीफ़ का अवसर कब आएगा आ ही गया
और हाँ शेष समीक्षा शीघ्र मिसफिट पे पाइए
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