Sunday, October 5, 2008

महाकाल रूद्रशिव की इकलौती ज्ञात प्रतिमा है ताला में

रायपुर से बिलासपुर राजमार्ग पर 85 किलोमीटर दूर है ग्राम ताला। यहां अनूठी और अद्भूत मूर्तियां मिली है। शैव संस्‍कृति के 2 मंदिर देवरानी-जेठानी के नाम से विख्‍यात है। यहां ढाई मीटर ऊंची और 1 मीटर चौड़ी जीव-जंतुओं की मुखाकृतियों से बने अंग-प्रत्‍यंगों वाली प्रतिमा मिली है, जिसे रूद्र शिव का नाम दिया गया है। महाकाल रूद्र शिव की प्रतिमा भारतीय कला में अपने ढंग की एकमात्र ज्ञात प्रतिमा है। कुछ विद्वान धारित बारह राशियों के आकार पर इसका नाम कालपुरूष भी मानते हैं।

हाईवे से कुछ किलोमीटर अंदर ताला गांव में मनियारी नदी के तट पर 2 शैव मंदिर हैं। इनको देवरानी-जेठानी के मंदिरों के नाम से जाना जाता है। ताला गांव की पहली सूचना 1873-74 में उस समय के कमिश्‍नर फिशर ने भारतीय पुरातत्‍व के पहले महानिदेशक एलेक्‍जेंडर कनिंघम के सहयोगी जे.डी. बेगलर को दी थी। एक विदेशी महिला पुराविद्वान जोलियम विलियम्‍स ने इन मंदिरों को चंद्रगुप्‍त काल का बताया। शरभपुरीय शासकों के प्रसाद की 2 रानियों देवरानी-जेठानी ने ये मंदिर बनवाए। पुरात्‍तव विद्वान इसके निर्माण काल का निर्धारण पांचवीं-छठवीं शताब्‍दी करते हैं। यहां पास ही सरगांव का धूमनाथ मंदिर, धोबिन, देवकिरारी, गुड़ी ने शैव मंदिर मिले हैं। ऐतिहासिक नगर मल्‍हार यहां से मात्र 5 किलोमीटर दूर है।

उत्‍खनन के बाद वहां मूर्ति व स्‍थापत्‍य कला का जो रूप सामने आया, उससे ऐसा माना जाता है कि ईसा पूर्व से दसवीं शताब्‍दी तक ये बेहद समृद्ध इलाका रहा होगा। मूर्तियों की शैली और अवशेषों से प्रतीत होता है कि यहां अलग-अलग संस्‍कृति और धर्म फलते-फूलते रहे होंगे। अधिकांश शिव पूजक और तांत्रिक अनुष्‍ठान वाले रहे होंगे। चूंकि यहां मिली महाकाल रूद्र शिव की प्रतिमा का अलंकरण बारह राशियों और नौ ग्रहों के साथ हुआ है, इसलिए विद्वानों का मत है कि यदि इस प्रतिमा को पुन: प्राण-प्रतिष्ठित किया जाए तो कालसर्प के निदान के लिए हवन शुरू किया जा सकता है। भक्‍तजन यहां महामृत्‍युंजय जाप और शिव की पूजा करने के लिए आते रहते हैं।

महाकाल रूद्रशिव की प्रतिमा भारी भरकम है। 2.54 मीटर ऊंची और 1 मीटर चौड़ी प्रतिमा के अंग-प्रत्‍यंग अलग-अलग जीव-जंतुओं की मुखाकृतियों से बने हैं, इस कारण प्रतिमा में रौद्र भाव साफ नज़र आता है। प्रतिमा संपाद स्‍थानक मुद्रा में है। इस महाकाय प्रतिमा के रूपांकन में गिरगिट, मछली, केकड़ा, मयूर, कछुआ, सिंह और मानव मुखों की मौलिक रूपाकृति का अद्भूत संयोजन है। मूर्ति के सिर पर मंडलाकार चक्रों में लिपटे 2 नाग पगड़ी के समान नज़र आते हैं। नाक नीचे की ओर मुंह किए हुए गिरगिट से बनी है। गिरगिट के पिछले 2 पैरों ने भौहों का आकार लिया है। अगले 2 पैरों ने नासिका रंध्र की गोलाई बनाई है। गिरगिट का सिर नाक का अगला हिस्‍सा है। बड़े आकार के मेंढक के खुले मुख से नेत्रपटल और बड़े अण्‍डे से गोलक बने हैं। छोटे आकार की म‍छलियों से मुछें और निचला होंठ बना है। कान की जगह बैठे हुए मयूर स्‍थापित हैं। कंधा मगर के मुंह से बना है। भुजाएं हाथी के सूंड़ के समान हैं, हाथों की उंगलियों सांप के मुंह के आकार की है, दोनों वक्ष और उदर पर मानव मुखाकृतियां बनी है। कछुए के पिछले हिस्‍से कटी और मुंह से शिश्‍न बना है। उससे जुड़े अगले दोनों पैरों से अण्‍डकोष बने हैं और उन पर घंटी के समान लटकते जोंक बनी है। दोनों जंघाओं पर हाथ जोड़े विद्याधर और कमर के दोनों हिस्‍से में एक-एक गंधर्व की मुखाकृति बनी है। दोनों घुटनों पर सिंह की मुखाकृति है, मोटे-मोटे पैर हाथी के अगले पैर के समान है। प्रतिमा के दोनों कंधों के ऊपर 2 महानाग रक्षक की तरह फन फैलाए नज़र आते हैं। प्रतिमा के दाएं हाथ में मोटे दंड का खंडित भाग बचा हुआ है। प्रतिमा के आभूषणों में हार, वक्षबंध, कंकण और कटिबंध नाग के कुण्‍डलित भाग से अलंकृ‍त है। सामान्‍य रूप से इस प्रतिमा में शैव मत, तंत्र और योग के सिद्धांतों का प्रभाव और समन्‍वय दिखाई पड़ता है।

उत्‍खनन से प्राप्‍त मूर्तियों में चतुर्भुज कार्तिकेय की मयूरासन प्रतिमा है, द्विभुजीय गणेश की प्रतिमा अपने दांत को अपने हाथ में लिए चंद्रमा के प्रक्षेपण के लिए तैयार मुद्रा में है। अर्धनारि‍श्‍वर, ऊमा महेश, नागपुरूष, यक्ष मूर्तियां अनेक पौराणिक कथाओं की झलक दिखलाती है। देवरानी-जेठानी के मंदिरों के निचले हिस्‍से में शिव-पार्वती के विवाह के दृश्‍य उत्‍कीर्ण हैं। प्रवेशद्वार के उत्‍तरी ओर के दोनों किनारों में विशाल स्‍तंभ के दोनों ओर 6-6 फीट के हाथी बैठी हुई मुद्रा में हैं। मुख्‍य प्रवेश द्वार के अलावा पश्चिम और पूर्व दिशा में भी द्वार हैं। ताला की मूर्तियां अद्भूत और अनूठी है। यहां महाकाल रूद्र शिव की प्रतिमा के दर्शन करने मात्र से अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है।

बिलासपुर से ताला तीस और रायपुर से 85 किलोमीटर दूर है। रायपुर-बिलासपुर रेलमार्ग पर छोटे-से स्‍टेशन दगौरी से मात्र 2 किलोमीटर दूर है ताला। ठहरने के लिए बिलासपुर और रायपुर दोनों जगह अच्‍छे होटल, धर्मशालाएं और रेस्‍टहाउस उपलब्‍ध हैं। करीब का हवाई अड्डा रायपुर है जो देश के सभी महानगरों से जुड़ा है। नजदीक का रेलवे स्‍टेशन हावड़ा-मुंबई मार्ग पर बिलासपुर है। यहां साल भर जा सकते हैं। कैसा लगा अद्भूत और अनूठी मूर्ति कला का केन्‍द्र गांव ‘ताला’। बताईएगा ज़रूर।

15 comments:

सचिन मिश्रा said...

Jankari ki liya aabhar.

भूतनाथ said...

बहुत सुंदर जानकारी दी आपने ! हम भी आकाश मार्ग से इस जगह को कई बार देख चुके हैं ! पर अब आपने बता दिया है तो अबकी बार ध्यान से देखेंगे ! धन्यवाद !

Anonymous said...

ok. I found an information here that i want to look for.

राजेश चौधरी said...

बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने.

राज भाटिय़ा said...

एक अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद

Udan Tashtari said...

बेहतरीन जानकारी!! आभार.

Smart Indian said...

बहुत खूब अनिल जी, आज फ़िर एक अनूठी जानकारी मिली आपके ब्लॉग पर. धन्यवाद!

seema gupta said...

"very amezing and strange, these types of ancient temples, places, sculptures, statues are assests of the nation and many a times not known to common man even. thanks for sharing this information with us'

regards

गुरतुर गोठ said...

जय हो मोर छत्‍तीसगढ महतारी ।

प्रदीप मानोरिया said...

अत्यन्र्त सार्थक जानकारी से पूर्ण शुक्रिया अनिल जी
नैनो की विदाई नामक मेरी नई रचना पढने हेतु आपको सादर आमंत्रण है .आपके आगमन हेतु धन्यबाद नियमित आगमन बनाए रखें

Gyan Dutt Pandey said...

कितना समृद्ध और जीवन्त था भूतकाल में यह क्षेत्र! छत्तीसगढ़ में भूत और वर्तमान में ३६ का आंकड़ा हो गया है!

ताऊ रामपुरिया said...

आपने हमेशा की तरह छग की वैभवशाली संपदा और धरोहर की
उत्कृष्ट जानकारी ! शुभकामनाएं !

दीपक said...

अत्यंत रोचक वर्णन !! यह जगह तो मै जा ही सकता हु क्योकि मेरे मामा जी बिलासपुर के पास ही रहते है!!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

wah-ati sundar

Ranjeet said...

अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद