टीवी शो देखो तो ऐसा लगता है कि टीवी फोड़ दो। धोखे से उस दिन चैनल बदलते-बदलते एक कार्यक्रम पर ध्यान अटक गया। कुछ अटपटा सा लगा तो थोड़ी देर देखा मगर ज़्यादा देर उसे देखने की हिम्मत न कर सका। 2 लड़के और 2 लड़कियां कार्यक्रम में हिस्सा ले रही थी और 2 होस्ट उनसे बात कर रहे थे। अचानक एक होस्ट लड़की पर फट पड़ा और उसे बुरा-भला कहने लगा। लड़की ने जब कहा बाहर निकलोगे तो मैं मारूंगी तो उसने लड़की को वहीं मारने की चुनौती दी और लड़की के खामोश रहने पर कहा क्यों फट रही है क्या ? क्या वो बदतमीज अपनी जवान बहन से ये सवाल कर सकता है ?
एक लड़की से बात करने का तरीका क्या होना चाहिए ये भी लगता है रियालिटी शो वालों को नहीं आता है। तमीज से तो उनका दूर-दूर तक रिश्ता नहीं लगता, उल्टे बदतमीजी ऐसा लगता है उनका खानदानी गुण हो। कार्यक्रम में जो प्रतिभागियों को टॉस्क दिया गया था उसका नाम था दादागिरी। अब बताईए ये दादागिरी करवा रहे हैं लोगों से। और कुछ नहीं मिला नाम रखने के लिए।
एक प्रतिभागी ने जब सवाल का जवाब दिया तो होस्ट उस पर बरसने लगा और उसे आवाज़ का लेवल नीचे करने के लिए कहता रहा। लड़का भी अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश करता रहा। इस बीच लड़की ने कुछ कहा और मुसीबत उस पर आ गई। जो भाषा होस्ट इस्तेमाल कर रहा था वो सिर्फ और सिर्फ जूते खाने लायक थी और लड़की ने भी वही कहा। उसने कहा यहां खड़े हो इसलिए चुप हूं। तो बदतमीज ने उससे पूछा यहां नहीं होता तो क्या करती। लड़की ने तत्काल कहा बाहर होते तो पीटती। बस उसके बाद तो जैसे कार्यक्रम में बम फूट गया हो। होस्ट अचानक पागल कुत्ते की तरह बरस पड़ा। लड़की ने भी दमदारी से जवाब दिया लेकिन उसकी बदतमीजी बढ़ते देख वो खामोश हो गई। उसे खामोश देख साहब बहादुर की बदतमीजी और बढ़ गई और उन्होंने सीधे उससे तमाम हदें पार करते हुए पूछा क्यों फट रही है क्या। लड़कों से भी इस तरह के सवाल करने का हक उन्हें नहीं है और लड़की से ऐसे सवाल करने का तो कतई नहीं है।
इसके बाद भी उस बदतमीज की बदतमीजी रूकी नहीं किसी और बात पर उसने उसी लड़की से पूछ लिया कि क्या उखाड़ लोगी। ये भाषा सड़क छाप मवालियों की हो सकती है, शरीफ और खानदानी लोगों की तो कतई नहीं। पता नहीं उस लड़की से इस भाषा में बात कर वो मूर्ख क्या साबित करना चाह रहा था। अच्छा हुआ मैं टीवी अकेले देख रहा था। परिवार के लोगों के साथ पता नहीं लोग कैसे ऐसे कार्यक्रमों को देख पाते हैं। गंदगी में सूअर को भी मात दे देने वाले लोग जिस भाषा में भौंकते हैं वो बर्दाश्त से बाहर होती है। जी में आया कि टीवी में घुसकर उसका मुंह तोड़ दूं। फिर इच्छा हुई की टीवी ही फोड़ दूं। पर दोनों ही काम से अच्छा मुझे लगा कि टीवी बंद ही कर दूं।
एक बिग बॉस की अश्लीलता को लेकर ज़रूर बहस छिड़ती है लेकिन कुछ दूसरे चैनल पर प्रसारित हो रहे कार्यक्रम गंदगी में उससे कहीं भी स्मॉल नज़र नहीं आते। कार्यक्रम में शामिल प्रतिभागियों से नौकरों से भी बुरा बर्ताव किया जाता है। इतना जलील तो वे शायद अपने जीवन में नहीं हुए होते, जितना टीवी पर दिखने की चाहत के कारण सारी दुनिया के सामने नीचा देखते नज़र आते हैं। इस मामले में चैनल वालों का एकमात्र उद्देश्य पैसा कमाना होता है और वे उसके लिए किसी भी हद तक गिर जाते हैं। पता नहीं कौन सी सांस्कृतिक क्रांति ला रहे हैं ये चैनल वाले।
न्याय पालिका तक इस मामले में नाराजगी जाहिर कर चुकी है और प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों पर नज़र रखने और उनकी गुणवत्ता निर्धारण के लिए निर्देश भी दे चुकी है। लेकिन ऐसा लगता है कि अश्लीलता और बदतमीजी से भरे कार्यक्रमों पर रोक सिर्फ जनता की अदालत ही लगा सकती है। जनता चाहे तो ऐसे कार्यक्रमों का बहिष्कार कर सकती है। तब शायद कुछ सुधरे ये लोग। वरना उनकी बदतमीजी बढ़ती ही जाएगी जैसे घरेलू कार्यक्रमों की महिला पात्रों के पतियों और प्रेमियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसे रोकना बहुत ज़रूरी है वरना आप परिवार के साथ टीवी देख ही नहीं पाएंगे और अगर धोखे से देख लिया तो शायद टीवी फोड़े बिना नहीं रह पाएंगे।
37 comments:
vastav me yah nida ka vishay hai par dekh sabhi rahe hai par viralejan hi awaaj buland karte hai . awaaj uthane ke liye abhaar
kripya isi masale par dekhe Yamaaraaj blaag
http://yamaraaj1.blogspot.com
sahi kaha aapne
inka bus nahi chalta varna
................
jai ho
regards
jis maanasik star ke honge vaisaa hi bolenge.
इसमें उस होस्ट की तो गलती है ही, लेकिन उससे बड़ी गलती उसे पैदा करने वालों की है जिन्होंने उसे संस्कार नहीं दिये, उनकी भी है जिन्होंने उस सूअर को अपने चैनल में नौकरी दी और उस चैनल के मालिक यानी कि सूअरों के सरताज की भी है जो यह देखकर अभी तक कुछ नहीं बोल रहा…
दादागिरी के होस्ट की भाषा पर मुझे भी सख्त ऐतराज है, सबसे घटिया कार्यक्रमों से एक है ये। आपने सही सवाल उठाया। भाषा के माध्यम से सनसनी पैदाकरने वाले इस तरह के कार्यक्रमों पर लगाम लगनी चाहिए, जहॉ न नैतिकता का कोई मूल्य है न ही दर्शकों का, न ही प्रतिभागियों का।
सही कह रहे है अनिल जी !! आजकल हर टी.वी. शो मे जजो की प्रायोजित लडाई दिखायी जाती है हडकम्प मचाने के लिये और टी आर पी बढाने के लिये ।संभवतः कल लोग रियाल्टी शो मे नंगे खडे हो जाये और थीम दे दिया जाये "मानव का इतिहास"वैगेरह ।
चावल मे कंकड ,दुध मे पानीइत्यादि के मिलावट के लिये तो कानुन है मगर टी.वी. शो मे अश्लीलता और फ़ुहडपन के लिये कोई कानुन कारगर नही दिखता ॥
sambhav ho to ek post banaaye jahaan sab ko uis prograam kaa naam dena ho jisko wo ashlil samjhtey haen . is sae kam sae kam ek saarthak post tayaar ho saktee haen jis mae baad mae sare kament copy karkae paste kiyae jaa saktey haen
regds
rachna
इस लेख द्वारा लोगों को जगाने के लिये आभार. जिस देश में स्त्री की इज्जत नहीं होती वह धीरे धीरे बर्बाद होने लगता है.
इस समस्या को हल करने के लिये
1. दर्शकों को जागृत करना होगा
2. कानून का भी सहारा लेना होगा
-- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
सड़क छाप कार्यक्रम। लोग सह रहे हैं?
... लम्बे समय बाद आपकी कलम से एक अच्छा व प्रभावशाली लेख पढने मिला, वैसे 'बिग बास' देखना व टिप्पणी करना दोनो कठिन काम है इसके वारे में समाचारों मे जो देखने-पढने मिला उतनी ही जानकारी है ... आपके लेख से सहमती है।
कुछ किया जाना एकदम ज़रूरी है. देखते तो सभी लोग होंगे और उद्वलित भी होते होंगे लेकिन आपने ही अपना आक्रोश व्यक्त किया. आभार.
सब से बडी गलती हम लोगो की है, जो पुरा परिवार बेठ कर ऎसे प्रोग्राम देखता है, ओर फ़िर बेशर्मी से ऎसी बातो पर खीं कीं कर के बेशमो की तरह से हंस्ते है, मेने किसी यह पुछा क्यो देखते हो ऎसे प्रोगराम? आगे से जबाब आया फ़िर क्या देखे? सभी देखते है, मने कहा मै नही देखता, इस से अच्छा आप टी वी मत देखो... तो जबाब देने वाले ने कहा भाई साहिब आज कल बच्चो को सब पता है, फ़िर क्या छुपना...
इस के बाद गलती है हमरी सरकार की जो देख कर भी अन्देखा कर रही है, यह ट वी वालो की तो दुकान है जो जनता खरीदेगी वही तो यह बेचे गे, जब हम इस सब का बहिष्कार करेगे तो कोन देखेगा इन सब को ???
आओ सब मिल कर प्राण करे हम ऎसे प्रोगराम का बहिष्कार करते है ओर दुसरो को भी रोको...
धन्यवाद
काफी बेहूदेपन पर उतर जाते हैं होस्ट्स, मैं अपने घर पर अक्सर जब होता हूँ तो बच्चे खुद-ब-खुद ऐसे कार्यक्रम नहीं देखते लेकिन न होने पर जरूर देखते होंगे,कहाँ तक रोक लगे। सरकार से बढकर यदि लोग ऐसे प्रोग्राम देखने से बचने लगे तो खुद चैनल वालों को सोचना पडेगा कि ऐसे चीजें दिखाये या नहीं।
अनिल जी आपने सही लिखा ! पर मेरे मन में कुछ सवाल हैं ! क्यूँकी मैं आजकल टी.वी. कम देख पाताहूँ और ये कार्यक्रम तो भूले भटके ही देखता हौवुन्गा ! मेरा कहना है की ये जितने भी रियलटी शो हैं इन सबकी स्क्रिप्ट पहले से तैयार होती है ! अगर मान भी लिया जाए की स्क्रिप्ट तैयार नही है तो ये डाईरेक्ट लाईव तो टेलीकास्ट नही होते होंगे ! अगर शूटिंग के समय इस तरह का वाक़या हो भी गया तो टेलेकास्ट में तो एडिट किया जा सकता है ! अब अगर निर्माता ख़ुद टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए ये परोसना चाहता है तो ग़लती किसकी है ?
अनिल जी ठीक ही कहा। यह बुद्धू बक्सा दरअसल अब बुद्धू नहीं रहा। दर्शकों के मौन को यह बेवकूफी समझकर खुद को चतुर मानने लगा है। रीयलिटी शो के बहाने जो नंगा नाच हो रहा है, उसका उदाहरण आपने दिया ही है।
यहां हर बात का पैसा है। जो रीयल बताया जा रहा है, उसके पीछे भी पैसा है। क्योंकि जितनी नंगई करेंगे, जितने अपशब्द कहेंगे, उतनी कांट्रोवसी पैदा होगी। बढ़ता विवाद यानी बढ़ती टीआरपी। और टीआरपी के लिए साला कुछ भी करेगा!
Deair, Anil Pusadkar ji apne thek sawal uthaya. wakai t.v program key nam par aslelta ka bolbala hai. hansi key nam par dekhey keya ho raha hai. uf pariwar key sath duarthi swand aap sun nahi saktey. sanskaro or sarm ki buneyad par wo yese chot kartey hai ki aap gusa bhi nahi dekha saktey bas gandhi ji ke bandar baneye ki bura mat dhekho. Nitin Sabrangi Writer MANOHAR KAHANIYAN.
कहां चले जाते हैं, वे तथाकथित समाज के ठेकेदार, जो कभी टोपी, कभी दाढ़ी, कभी किसी रंग विशेष, कभी किसी नाम या किसी शब्द को लेकर अपनी उपस्थिति जहिरवाने लग जाते हैं। कहां दुबके रहते हैं समानता की दुहाई देने वाले। मंत्री संत्री के घरों में क्या सिर्फ आस्था या दूसरे स्वयंभु भगवानों के ही चैनल आते हैं। क्यों नहीं उठता इन कुत्सित हरकतों के विरुद्ध एक सार्थक कदम।
बहुत ही अफसोसजनक स्थितियां हैं.
ये प्रचार कामना जो न कराये।लोग देख रहे हैं इसलिये वो दिखा रहे हैं।
सच कहूँ अनिल जी, तो मुझे इंडियन आयडल के अलावा कोई भी और रियेलिटी शो पसंद नहीं है क्योंकि बस यही शो ऐसा लगता है की लोग और जज कुत्तों की तरह झगड़ नहीं रहे हैं.. दादागिरी के शुरुवाती दिनों में एक बार कोशिश की थी इसे देखने की मगर ५ मिनट से ज्यादा नहीं देख पाया था..
ऎसे मुद्दों पर ध्यानाकर्षण आपकी शहरी एवं सांस्कृतिक जागरूकता को दर्शाता है, किन्तु..
मैं एक झटका देने की अनुमति चाहूँगा ।
अनिल जी, एक विचित्र किन्तु सत्य तथ्य को सामने लाना चाहूँगा कि
ऎसी बेहूदगियाँ प्रायः प्रायोजित भी हुआ करती हैं ।
यदि यह शो किसी स्टुडियो में पहले से शूट नहीं किया है, तो भी..
लाइव रियलिटी शो एक आनलाइन एडिटर भी हुआ करते हैं ।
कन्ज़्यूमरिज़्म जो न कराये ..
Bahut sarmnak.
सही कहा आपने। टीवी देकना छोड़ना ही होगा।
टीवी देखना शायद इसीलिए कम हो गया है... पर हमारे मित्र बहुत देखते हैं, और चर्चा भी करते हैं. और आप जिस कार्यक्रम के बारे में कह रहे हैं, उसमें बहुत बार गालियाँ भी इस्तेमाल होती हैं और 'बीप' से रिप्लेस किया जाता है. सुना है ये 'आधा बीप आधी गाली' वो भी अंग्रेजी में लोगों को बहुत पसंद आता है !
साहब यही हो रहा है अब, हास्य के नाम पर द्विअर्थी चुटकुले सुनाये जाते हैं, स्त्री-पुरूष संबंधों की शल्य-क्रिया की जाती है, अपने माँ-बाप को भी नहीं छोड़ा जाता......क्या-क्या कहें......क्या-क्या लिखें......
नमस्ते सर,
यह सब बातें आजकल इतनी आम-बात हो गई है की लड़कियां भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करने में हिचकिचातीं नहीं हैं |
मैं कॉलेज का एक छात्र हूँ और जो यहाँ मेरे साथ पढ़ रहे मेरे दोस्त हैं, उनकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा है ये सब शब्द |
और अभी अभी मैंने एक ब्लॉग भी पढ़ा है जिसमें लड़की, लड़के के ब्लॉग पर ही गालियाँ दे रही है | अब आप ही देख लीजिये की लड़की और लड़कियों में इस मामले में तो कम-स-कम कोई फर्क नहीं रह गया है |
भेड़ हमेशा झुंड में चलती है, उसे एक साथ हांकने के लिये चारवाह होता है। आप लोग भेड़ हैं और ये टीवी वाले चारवाह। टीआरपी का खेल आपके टीवी देखने पर ही निर्भर करता है, अगर लोग किसी कार्यक्रम को देखना बंद करते हैं तो उसकी टीआरपी गिरेगी और वो अपने आप बंद हो जायेगा।
मैने कोई देसी चैनल नही लिया है इसलिये ये सब देखता ही नही और ये जो सब आपने देखा ये सब स्क्रपिटेड होता है। इन भाग लेने वालों को यही सुनने और कहने के पैसे मिलते हैं।
आपने बहुत अच्छा लिखा है ! आपका धन्यवाद !इसी कारण काफी समय से टीवी देखता ही नही !
कहते हैं मीडिया वही दिखाता है जो लोग चाहते हैं. अगर लोग यह चाहते हैं तो फ़िर इस हद तक गिर चुके समाज को कौन सुधारेगा और कैसे? इस तरह की भाषा बोलने वाले को 'कूल' कहा जाता है. जो इस कदर ठंडा हो चुका है उसे क्या ठीक करेंगे? टीवी पर ऐसे कार्यक्रम देखना बंद कीजिए. ऐसे कार्यक्रमों में जो विज्ञापन आते हैं उन उत्पादों को खरीदना बंद कीजिए. यह सब पैसे का चक्कर है. पैसे गए तो गए यह अशुद्ध भाषा बोलने वाले.
जिस दिन इन टी.वि वालों का सर फोड़ने का पक्का इरादा हो मुझे बुला लेना, एक पत्थर मेरे पास भी है मारने को...बहुत सही लिखा आपने...क्या इसे रोक पाना हमारे लिए असंभव है? जरा जरा सी बात पर भड़कने वाले, समाज के बिगड़ने पर भाषण देने वाले और संस्कृति की रक्षा के स्वयं भू नेता कहाँ हैं?
नीरज
एक ऐसे कन्वर्टर की आवश्कता है जो देखने वाले के हिसाब से टीवी के पात्रों के कपडे और शब्द बदल दे | शायद इसीलिए सरकार ने IIT की संख्या बढाने का फैसला लिया है |
" height of being shameless and so openly,
Regards
(मुझे पता है ये ज़िदाबाद वाली टिप्पणी नहीं है इसलिये आप नहीं छापेंगे फिर भी कहने से अपने को रोक नहीं पा रहा हूं)
जो काम टीवी चैनल ने किया वही आप भी तो कर रहे हैं। चैनल तो एक बार कहकर चुप हो गया। बहुत हुआ तो एक-दो रिपीट टेलीकॉस्ट में आ जाएगा लेकिन आपने तो बोले गये शब्दों को छापकर अमर कर दिया। इतना बड़ा-बड़ा छाप दिया और ये older posts के नाम पर भी ना जाने कब तक बल्ग पर पड़ा रहेगा। जि जुमले पर आपको एतराज है उसी को आप इतना बड़ा-बड़ा शीर्षक बना कर छाप रहे हैं। ये कहां की ईमानदारी। अंग्रेजी में सायद इसी को हिपोक्रेसी कहते हैं। और पढ़ने वाले भी आपका अनुसरण कर रहे हैं। शब्द सुनने में तो उनके कान पक रहे हैं लेकिन लिखा हुआ देखकर वो विरोध नहीं कर रहे हैं। य क्या बात हुई। हर बात पर टीवी को गाली देना आसान है। प्रिंट मीडिया में आजकल ये फैशन बन गया है। अपने हर लेख में टीआरपी का उल्लेख करना सकी होड़ को गाली देना आम हो गया है। लेकिन जिस काम के लिये किसी को गाली दी जा रही है, गाली देने वाला कम से कम खुद के लिये तो इतनी आचार संहिता बनाये कि उसे अपनी ज़ुबान पर या कलम पर ना लाये।
अनिल भाई, आचार संहिता का मौसम चल रहा है लगे हाथ इन पर भी 'लगाने' का अभियान छेड़ दें, वैसे यह प्रयास भी उसी का एक हिस्सा है. मैं आपसे और शास्त्रीजी दोनों से सहमत हूँ, सब कुछ हो जाएगा लेकिन हम अपनी [ऐसे लोगों की] नीयत का क्या इलाज करेंगे. क्योंकि TRP और ट्रैफिक का लोभ न टीवी वाले न ही हम ब्लोगर्स संवरण कर पा रहे हैं.
benaami ji, gandagi ke bare me batane ke liye gandagi to likhna hi padega, pahchan chupakar likhne se kya faayda.anil ji ne bilkul theek likha hai, aise channel par mukadma karna chahiye
सब खेल है टी आर पी का अनिल जी ...हम भी वाकिफ है ओर वे भी.जिस चीज से नही है वो दस साल बाद की पीड़ी से .....
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