Thursday, October 30, 2008

काजू कतली,पिस्ता-बादाम रोल और अंजीर बर्फ़ी से ज्यादा टेस्टी लगी चकली अनरसा और करंजी

दीवाली की समस्त शुभकामनाओं समेत एक छोटी और मीठी सी पोस्ट। दीवाली पर इस बार गांव आ गया।सालों बाद दीवाली पर नाश्ते में बेसन और रवे के लड्डू,सेव-चिवडा, चकली, अनरसा खाने का मज़ा आ गया।खाने मे भी पूरन-पोली,भजिये,कढी,बडी,पापड,अचार,चटनियां,सब कुछ शुद्ध देशी स्टाईल का मिला।शहरी पनीर,कोफ़्ते बटर-नान के स्वाद से हज़ार गुना स्वादिष्ट लगा।शहरो के ड्राई फ़्रूट्स के बाउल कहीं नज़र नही आये और काजू कतली, पिस्ता-बादाम रोल और अंजीर बर्फ़ी से कहीं ज्यादा टेस्टी लगी चकली अनरसा और करंजी।सच गावं की मिठाईयां महंगी तो नही थी मगर उनमे प्यार शहरी मिठाईयों से कई गुना ज्यादा नज़र आया।

12 comments:

Manish Kumar said...

Chaliye ye jaayka abhi kayi dinon tak aapka sath nahin chhodega

Abhishek Ojha said...

इस भाग दौड़ में कई अच्छी चीजें हम भूलते जा रहे हैं :(

अजित वडनेरकर said...

बहुत खूब.....

ताऊ रामपुरिया said...

बधाई आपको इन सब चीजो की याद दिलाने को ! अब वो गाँव वाला स्वाद तो यहाँ कहाँ ? स्वाद छोडिये घर में आज कल मिठ्ठाई बनने का रिवाज ही खत्म सा हो गया ! धन्यवाद !

जितेन्द़ भगत said...

इतने सारे खाद्य पदार्थ का नाम ले लि‍या आपने, मुझे तो दुबारा भूख लग गई।

Udan Tashtari said...

क्या याद दिला दिया भाई!!!

राज भाटिय़ा said...

अनिल जी शायद आप को यकिन ना हो, हम यहा पर यही सब खाते है, कभी मेकडनल या पिज्जा नही खाने गये, ्पिज्जा घर पर ही कभी कभार बना लेते है, ओर घर के खाने का मुकाबला नही, मिठ्ठाईयां भी घर पर, जेसी भी बने लेकिन बाजार से अच्छी होती है.
धन्यवाद

Anonymous said...

बधाई! गांव होके आये, गांव के किस्से लिखे जायें।

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, वैसे हमें यह स्वाद संतुलित मात्रा में मिलता रहता है। मैं जहां रहता हूं, वह गंवई शहर है!

विधुल्लता said...

त्यौहारों की रानी दिवाली पे ये मिठाइयां और उनका स्वाद ,माँ पिताऔर घर के बुजुर्गों के स्नेह और उनकी याद को दुगुना कर देतें हैं उनका आशीर्वाद हम पे बना रहे इसलिए भी इन्हे मैं बनती हूँ

डॉ .अनुराग said...

सही बात है.....

Sanjeet Tripathi said...

भाई साहब क्यों न एक लेख माला हो जाए आपके गांव के अनुभवों पर ही?