शर्म तो आती है अपने ही प्रदेश मे हो रहे अँधविश्वास के नँगे नाच की खबर बताते हुए मगर ये सच है की छत्तीसगढ के आदिवासी वनाँचल के गाँव मे एक नही 50 महिलाओँ के बाल काट दिये,उन्हे सबके सामने नहाने को मज़बूर किया गया और ये तमाशा चला एक नही पूरे 9 दिन. इँसानियत के माथे पर लगे इस कलँक को रोकने गई पुलिस भी इस तमाशे मे शामिल हो ग्ई.ऐसे मे गाँव् वालो का विरोध उन महिलाओ के पति भी नही कर पाये और बेशर्मी ,पिछडापन खुलकर नाचता रहा वँहा.
सुबह नई दुनिया अख़बार मे छपी खबर पढकर होश उड गये.पहले तो विश्वास ही नही हुआ कि ऐसा हो भी सकता है.दिनेश बारी की रिपोर्ट थी.मैने तत्काल अपने सोर्स को फोन लगाया वो बोला हाँ ऐसा हुआ है.मैने उससे सारे माम्ले की जानकारी ली तो पता चला ये मामला गाँव मे लोगो के बार-बार बीमार होने से जुडा हुआ है.छत्तीसगढ मे तिब्ब्ती लोगो को खुबसूरत पहाडी इलाके मैनपाट मे बसाया गया है.इसी मैनपाट की तराई मे बसा है ढोढाकेसरा गाँव. वो छत्तीसगढ का सीमावर्ती इलाका है और स्वाभाविक रुप से पिछडा हुआ भी.वहाँ स्वास्थ्य् सेवाये नही है इसलिये लोग झाड-फूँक से ही काम चलाते हैँ.
कुछ दिनो से गाँव् मे लोगो के बीमार होने का सिलसिला तेज़ हो गया था.इस पर गाँववालो ने पडोस के गाँव् के ताँत्रिक से सँपर्क किया जिसने ये बता दिया कि गाँव की कुछ महिलाये टोनही है और उन लोगो ने भूतो को बाँध दिया है जिसके कारण गाँव मे बीमारी फैल रही है.गाँव् वालो ने ताँत्रिक से मुक्ति का उपाय पूछा और उसके बाद शुरु हुआ ईँसानियत को कलँकित करने वाला नँगा नाच्.ताँत्रिक ने जिस महिला को टोनही बताया उसके बाल काट दिये गये,जँज़ीरो मे जकड दिया गया और् बेईज़्ज़त् भी किया गया.सबके साम्ने उन महिलाओ को नहाने पर मज़बूर किया गया.और उसके बाद खतम हुआ बेशर्मी और नालायकी का 9 दिनो तक़ चला तमाशा.
इतना सब होने के बाद क्या हमको तरक्की के दावे करने का हक़ है?क्या हमे सभ्य कहलाने का हक़ है? यही सोच-सोच कर मै सुबह से परेशान रहा.पिछडे और टी आर पी के लिहाज़ से होपलेस स्टेट की इस खबर को आप सब के सामने लाकर अपने आप को नँगा करने की हिम्मत जुटाते-जुटाते शाम हो गई और आखिर मैने इसे लिखकर पोस्ट् करने का फैसला ले लिया .बहुत से सवाल उठेँगे इस खबर से और उठना भी चाहिये.
23 comments:
२१ वी सदी में यह सब जानकर पढ़कर दुःख होता है कि अंधविश्ववास के कारण लोग बाग़ बाबा अदाम के ज़माने का जीवन जी रहे है . बहुत ही शर्मनाक वाकया है .
अंधविश्वास को मारो जूते चार |
क्या करें शर्म तो बहुत आ रही है किंतु , बगैर सामाजिक जागरूकता के इसका निदान सम्भव नही है |
टॉप लेवल मैनेजमेंट ( केन्द्रीय एवं राज्य सत्ता ) को पहल करनी चाहिए |
सरकारी अकर्मण्यता का दोष अंधविश्वास पर क्यों डाल रहे हैं? जो लोकप्रिय सरकार पाँच साल राज कर फिर से चुनाव जीत गई है वह उस इलाके में चिकित्सा सुविधाएँ नहीं पहुँचाएगी। वह ऐसी शिक्षा भी नहीं पहुँचाएगी जिस से अंधविश्वास दूर हों। कोई ईसाई मिशनरी वहाँ पहुँचेगी तो धर्म परिवर्तन का मुद्दा बनेगा और लोग वहाँ मारकाट मचा देंगे। आप लोग (पत्रकार)भी जोर शोर से बोलेंगे। नक्सलियों को वहाँ उगने का इंतजाम सरकार ने पूरा कर रखा है। कोई चिकित्सक वहाँ जाएगा तो उसे माओवादी घोषित कर जेल में बंद कर देंगे।
सीधे सीधे क्यों नहीं कहते कि इस तरह की घटनाओं के लिए राज्य सरकार अपराधी है, उस से जवाब मांगिए।
कमलेश्वरपुर (मॅनपॉट) वाला इलाक़ा बहुत ही पिछड़ा है. शिक्षा के प्रसार से ही ऐसी निंदनीय घटनाओं पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है.हमें भी आत्म ग्लानि हुई यह सब जानकार.
इन वाकयों को देख-सुन कर हैरानी होती है कि क्या वाकई हमारी आज़ादी को इतने बरस गुज़र गए! कहीं ना कहीं, इन चीज़ों के लिए हम लोग और हमारे चुने हुए नुमाइंदे ही ज़िम्मेदार हैं। दरअसल, जब तक लोग ग़रीबी और अशिक्षा के दुष्चक्र से बाहर नहीं निकलेंगे, ये सबकुछ चलता रहेगा। और ऐसा तभी होगा, जब राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रबल होगी।
पता नहीं कब तक हम अँधविश्वास और रूढ़ियों का पालन करते रहेंगें। दुखद और शर्मनाक घटना।
अंधविश्वास हमारे मानस में गहराई तक धंसा हुआ है, किसी ना किसी रूप में। स्कूलों की छोटी कक्षाओं से ही इसके विरुद्ध लड़ाई छेड़े जाने की शुरुआत होनी चाहिये।
अनपढ़ता, गरीबी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी अपने आप में बहुत कष्टदायक हैं और जब उसपर अंधविश्वास भी जुड़ जाए तो स्त्रियों पर अन्याय की मार और भी अधिक पड़ती है। ये लोग स्वयं साधनविहीन हैं, किसी और पर तो इनका वश चलता नहीं सो अपने से भी अधिक कमजोर स्त्री पर अपना क्रोध उतारकर या जोर जबर्दस्ती करके स्वयं को शक्तिशाली महसूस करते हैं।
इन्हीं गाँवों में जब मिशनरी लोग आकर धर्म परिवर्तन करेंगे और इन्हें शिक्षित करेंगे तब हममें से बहुत से लोग जाग जाएँगे परन्तु अभी इन्हें शिक्षित करने व इनके लिए चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने कोई भी आगे नहीं आएगा। यह काम तो सरकार का है परन्तु वह तो करेगी नहीं।
हम दुख व्यक्त कर सकते हें सो वह करेंगे।
घुघूती बासूती
बहुत शर्मनाक घटना है ......आज बीसवीं सदी में भी इस हद तक अंधविश्वास....विश्वास कर पाना मुश्किल होता है।
भारत अनेक शताब्दियों में रहता विचित्र सा देश है। अत्याधुनिक भी, चिरपुरातन भी। जागरूक भी, अन्धविश्वासी भी।
सब से पहले तो उस ताँत्रिक को पकडा जाये ओर लोगो के बीच उसे मारा पीटा जाये, ताकि लोगो की आंखे खुले की यह सब पाखड ही है, फ़िर लोगो को समझाया जाये.
पिछडे इलाकों से इस तरह की खबर अक्सर टीवी पर भी देखने को मिलती रहती हैं ! जब तक अशिक्षा और समाज मे जागरुकता नही आयेगी तब तक इनको कौन रोक पायेगा ? सरकार भी निक्कमी और हम भी निक्कम्मे हैं !
हमारी भी कुछ ड्युटीज हैं जिनके प्रति हम लापरवाह हैं और अगर सरकार दवा दारू की व्यवस्था कर्ती तो ना बीमारी फ़ैलती और ना ये झाड फ़ूंक वाले वहां पहुंचते !
कुछ तो धो का पेड चिकना और कुछ कुल्हाडी भोथरी !
रामराम !
हे भगवान,एकदम से विश्वास नहीं हो रहा
शर्मनाक!!
इस खबर से टी आर पी नहीं मिलती इसलिये खबर अछूती रहती है, खानों में कौन बादशाह? ये सवाल ज्यादा जरुरी है देश को जानना!!
ये जकड़न तो बड़ा अवरोध है भाई
इससे उबरने में न जाने कितना
वक़्त लगेगा....आपने गंभीर मुद्दे
पर लिखा है....
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
क्या कहा जाये?
बहुत ही शर्मनाक घटना है | यदि सरकार यहाँ स्वाथ्य सेवाए उपलब्ध करा देती तो ना तो इतने लोग बीमार पढ़ते और ना ही इस तांत्रिक को एसा नंगा नाच कराने का मौका मिलता | गांवो में गरीब लोग सस्ता इलाज कराने के चक्कर में इन तांत्रिकों का अक्सर शिकार बनते रहते है |
कहीं तांत्रिक कुले-आम महिलाओं की ऐसी बदसुलूकी कर रहे हैं और कहीं बच्चों को बलि चढ़ा रहे हैं. बहुत शर्म की बात है!
अंधविश्वास की आड़ मे घोर पाप और शर्मनाक कृत्य है...
Regards
बहुत ही शर्मनाक घटना .
दुखद हैओर शर्मसार भी की इस देश में अब भी ऐसा होता है.......
बहुत ही दुःखद।शासन से अवश्य उत्तर माँगा जाना चाहिये,जिससे भविष्य में ऎसी घटनाऎं न हो सकें।
प्रिय भाई,
हर दूसरी पोस्ट में किसी ना किसी बहाने से टीवी न्यूज़ को गाली। ये टीवी में नौकरी ना मिल पाने का दुख है या मुख्यधारा की पत्रकारिता में ना रह पाने का अफसोस।
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