Tuesday, December 9, 2008

आचार संहिता बंद, आ......चर संहिता शुरू

एक माइक्रो पोस्‍ट और। छत्‍तीसगढ़ राज्‍य में विधानसभा चुनाव के दौरान लगी आदर्श आचार संहिता मतगणना के साथ ही खत्‍म हुई। अब प्रदेश में निर्वाचित नए जनप्रतिनिधि अपनी सरकार चुनेंगे और उसके बाद शुरू हो जाएगी आ....चर संहिता। छत्‍तीसगढ़ राज्‍य को अस्तित्‍व में आने से पहले से चरा जा रहा है और ये सिलसिला थमता नज़र नहीं आ रहा है। यहां के लोग गरीब से और गरीब होते जा रहे हैं और अमीर अमीर से और ज्‍़यादा अमीर। सब आ...चर संहिता का कमाल है। सब मिलकर चर रहे हैं छत्‍तीसगढ़ को। नेता, अफसर और व्‍यापारी चर-चर के मोटे हो रहे हैं और गरीब जनता रोजी-रोटी की तलाश्‍ा में देश के हर हिस्‍से में पसीना बहाते नज़र आ जाती है। जय हो आ...चर संहिता की।

23 comments:

Udan Tashtari said...

अब नये सिरे से--नये कान्फिडेन्स के साथ चरा जायेगा.. :)

बहुत सटीक टीपा से भाई.

Smart Indian said...

सही कहा आपने - यह चुनावोत्तर परिचित दृश्य है. यही होता है तो आख़िर यही होता क्यों है? और होता है तो हर बार यही होता क्यों है?

Anonymous said...

और चरने का समय शुरू होता है अब!

सुप्रतिम बनर्जी said...

शानदार लिखा है आपने। मुबारक़।

ताऊ रामपुरिया said...

और हमने चरना शुरु कर दिया है अब !

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

यार कुछ करने की पहल कर नही सकते तो यह स्यापा क्यों ?
अरे कहीं इस लिए तो नही ' हाय हमें मौका क्यों नही मिला ?' हिहिहिही हुप!

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: said...

पहले ख़ुद निडर होना सीखिये ,ख़ुद कमेंट्स से डरते हो अच्छी ठाकुर सुहाती ,मनभावन होने पर ही स्वीकरण के बाद ही पोस्ट करते है और दूसरों पर टिपियाते हो ? क्या कहने दोहरी सोच के ?

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bilkul theek likh rahe hain.

महेन्द्र मिश्र said...

आचार सहिंता के बाद चर सहिंता.... भाई लोग अब पॉँच सालो तक चरने के लिए स्वतंत्र है .
चुनावो के बाद
हमने उन्हें चरने की स्वतंत्रता
दी है.
अब वे हमें चारागाह समझकर
खूब चरेंगे
और हम खूब चिल्लायेंगे
पर कोई सुनेगा नही
क्योकि उन्हें हमने
अपने चारागाह का चरवाहा
चुना है और
हमने उन्हें ख़ुद चरने
की आजादी दी है
अपनी करनी के लिए
और हम ख़ुद जिम्मेदार है.

महेंद्र मिश्रा जबलपुर

sarita argarey said...

ये हक तो जनता ने ही दिया है । आ .....चर कह कर । फ़िर हम कौन होते हैं सवाल करने वाले ...?

दीपक said...

हम तो यही सोच रहे है कि अब चढावा वाला ब्रिफ़केस लेकर दिल्ली कौन जायेगा ?

Gyan Dutt Pandey said...

मुक्त संग: सम आ-चर:!

Dr. Chandra Kumar Jain said...

चार दिन आचार
चार साल आ....चर
एक साल चुनाव
मतदाता तू मर !
=================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

राज भाटिय़ा said...

बहुत सटीक लिखा आप ने, लेकिन इस चर का अन्त भी तो होना चाहिये कही ??
धन्यवाद

कुश said...

बिल्कुल सही कह आपने.. सावन आ गया है.. हरी हरी घास चरेन्गे अब तो

seema gupta said...

यहां के लोग गरीब से और गरीब होते जा रहे हैं और अमीर अमीर से और ज्‍़यादा अमीर।
"" बेचारा गरीब तो मारा गया ना,विचारणीय तथ्य "

regards

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

आप की पोस्ट के उत्तर में केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि
' जिव्हां क्वचित्सन्दशति स्वददिभ;।
तद्वेदनायां कतमाय कुप्येत।।'

अपने दांतों से ही कभी अपनी जिहा के काट लेने पर जो पीड़ा होती है, उसके लिए मनुष्य किस पर क्रोध करेगा? अर्थात जिस स्थिति के लिए हम स्व्यं जिम्मेदार हैं, उसके लिए दूसरों को दोष देना अनुचित है।

Unknown said...

इस "चर"ने का अन्त फ़िलहाल तो नज़र नहीं आता, खासकर जब तक कि आम आदमी अन्य "चारा" होते हुए भी बे-"चारा" है… तब उसे चरा ही जाता रहेगा… हाँ कभी-कभार नक्सली लोग नेता-अफ़सर-ठेकेदार त्रिगुट के इस चरने में बाधा उत्पन्न कर देते हैं, लेकिन वह भी खुद अकेले चरने के लिये, किसी सिद्धान्त-विद्धान्त के लिये नहीं…

Anonymous said...

Anil Bhaiya Appne Bahut Hi Sahi Likha Hai ---
Kyonki Aanchar Sahita Kab Lagta Hai Jab Chunav Aata Hai. Pahle Sabhi Neta Aanchar ko Chakhte hai hai our aapna aapna Swad batate hai. jise janta achha swad chakhne wale Ko Hi Chunti Hai. Kyonki Aanchar Chakhne Ke baad hi Khane Ko Taiyar Ho Jate Hai our Yesa khate Hai ki Puri Thali Khali kar Dete Hai...............

makrand said...

bahut satik
regards

आशीष कुमार 'अंशु' said...

HAM BHEE CHARE AAP BHEE CHARO
CHARANE KEE AAZADI HAI,
SABASE JYADA VE CHAREGE
JINAKE TAN PAR KHADI HAI.

डॉ महेश सिन्हा said...

jaane kahan gaye wo din jab aachar sanhita lagi thi. N akoi shorgul na ladai jhagdaa, na kutton ki terah bhokte lal pili gadiyon ke siren. Kya koi yeh samjhayega ki aachar sahita sirf chunav ke samay hi kyo, hamesha kyo nahi.