Friday, December 26, 2008

दवा के नाम पर जब अस्पताल ही लूटने लगे तो बाकी से क्या उम्मीद करेँ?

राजधानी के एक बडे अस्पताल मे एक जुनियर के पिता को भर्ती करना पडा.मामला ब्रेन हेम्रेज से जुडा था इस्लिये तत्काल इलाज शुरु हुआ.दवाईया अस्पताल मे ही बनी दवा दुकान से खरीदना ज़रुरी था.एक दिन एक इँजेक्शन दुकान के स्टाक मे नही था इसलिये बाहार से खरीदने की अनुमती दे दी गई.उसी एँजेक्शन को जब बाहर की दुकान से खरीदा गया तो पता चला दाम मे 25% से ज्यादा फर्क था.रोज़ हज़ारो का बिल बन रहा था.मेरे साथी ने इस बात की जानकारी मुझे दी.मै उसे चुपचाप इलाज कराने की सलाह देने के अलावा कुछ भी नही कर पाया.शायद हम लोगो से बेबस कोई और नही होगा क्योँकी हमारा मरीज़ वहाँ भर्ती था. मेरे दिमाग मे बस एक बात उमडने लगी कि जब दवा के नाम पर अस्पताल ही लूटने लगे तो बाकी से क्या उम्मीद करेँ?


क्या मोटी-मोटी रकम ब्याज पर लेकर बडे अस्पताल इसलिये बनाये जाते है?क्या अस्पताल का खर्च नही निकाल पाने पर उसकी वसूली मरीजो से वसूली ज़रुरी है?क्या इलाज के नाम पर वसूली जाने वाली मोटी फीस से अस्पतालो का पेट नही भरता?क्या दवा के नाम पर मरीजो को लूट्ना ज़रुरी है?पहली बार मै खूद को इतना हताश और निराश पा रहा था.आखिर सवाल मेरे जुनियर के पिता के इलाज का था?

10 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत बार मेने भी देखा है , अस्पताल, स्कुल यह सभी नही लेकिन बहुत से लोगो को लुटते है, हां अगर अस्पताल से उचित मुल्य पर दवा मिले ओर असली मिले तो यह सेवा भाव हुया, लेकिन जब यही दवा बाजार के मुल्य से महंगी मिले ओर दवा सिर्फ़ यही से खरीदने की हिदायत हो तो यह एक प्रकार की ठगी है, अब आवाज तो किसी को उठानी चाहिये, अभी आप अपने जुनियर के पिता जी का इलाज ठीक से करवा ले फ़िर बाद मै आवाज ऊठाये.
धन्यवाद

दिनेशराय द्विवेदी said...

जब आप जैसे लोग भी शिकायत करने से कतराएंगे तो कैसे कोई अन्य इस व्यवस्था को ठीक करने के लिए आगे आएगा?

इस पर सवाल तो पूछा ही जाना चाहिए।

ताऊ रामपुरिया said...

भाई अनिल जी ! ये तो आजकल की री्ति है कि नर्सिन्ग होम या निजी अस्पतालों की दुकान बहुत महंगे यानि मुंह मांगे किराये या कहें कि ठेकॆ पर जाती हैं ! और इनके लिये दादागिरि पहलवानी तक होती है ! ऐसे मे स्वाभाविक है कि इसकी वसूली भी मरींजों से ही होगी !

और मरीज तो आपके हमारे हो सकते हैं उनके लिये तो मुर्गा है ! इस पेशे मे भी अब का्पोटाईजेशन हो चुका है ! सो सिवाये लुटने के कुछ नही किया जा सकता ! और सरकारी दवाओं की कहानी तो आप जानते ही हो !

रा्मराम !

sarita argarey said...

द्विवेदी जी ने आवाज़ उठाने की बात कही है । लेकिन मेरा अनुभव कहता है कि आवाज़ उठाने वाला खुद उठ जाता है मगर इन लोगों का कुछ नहीं बिगडता । मेरे एक परिचित ने पत्नी का केस बिगाड कर पैसा ऎंठने वाले नर्सिंग होम के खिलाफ़ कोर्ट में केस लगाया । पांच साल से बेचारे चक्कर लगा रहे हैं । अब तो उन्होंने वकील को ठेका दे दिया है केस का ...। इस उम्मीद में कि शायद कभी न्याय मिले ।

Shiv said...

अनिल जी,
अस्पताल से इसी साल पहली बार पाला पडा. लगा जैसे किस्मत पर पाला पड़ गया. बहुत ही ख़राब अनुभव रहा. पता नहीं किसे आना पड़ेगा इंसानियत को जगाने के लिए.

बहुत शर्मनाक है सबकुछ.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

aisa hi hai sir, mere pitaji ke liye ek injection jo mrp 300 me milta tha thok me 225 me mila samajh lijiye, dealer,distt., ko kitne ka milta hoga, yahi hai sarkari bhrastachar.

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ दुर्भाग्य से अस्पताल ओर नर्सिंग होम सिर्फ़ एक दूकान बन कर रह गए है...जहाँ सिर्फ़ मुनाफे की दरकार होती है..ओर छोटे बड़े सभी.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

आजकल के कार्परेट हास्पिटल तो पांच सितारा होटल है भाई। वहां अनुराग जैसे डाक्टर कहां मिलेंगे?

NIRBHAY said...

samanyataha aise bade asptal shahar se door rahten hai, in me corporate level ka management rahta hai. chunki marijon ko medicines laane bazar jae ki naubat aayegi toh bahut samay vyarth ho jata hai. hospital ke medical store me direct company se contract rahta hai aur isme dealer & retail seller margin nahi rahti. chunki medicine market se retail se mangaie gayi thi so dealer or retailer ka commission jud kar 25% mahange daam par mili, jo ki thik hai, agar ek general practitioner shahar ka wahi medicine prescribe kare toh uske aise sabhi patients ko 25% adhik damon par hee milti hai.Yeh pharmaceutical companies ki marketing strategy hai.
BURA MANO YA BHALA yehi sach hai.
us dukandar ko yeh maloom toh nahi tha ki yeh falane jagah jayegi nahi uski koi dushmani unse, fir raipur me saikdon medical stores me se ek usko bhi dhandha paani chalana hai.

डॉ महेश सिन्हा said...

ye to is desh ki kuwaystha ki ek chooti si kahani hai. Dawa ko MRP mein daal kar dawa ka rate 40% badha kar sarkar kiska bhala kar rahi hai.Sarkar ko "satyam" ki phikra hai "Janta" ki nahi