Sunday, January 25, 2009

जब राज्यपाल की छाती फ़ाड़ कर अंदर छीपे आम आदमी का गुस्सा फ़ट पड़ा

छत्तीसग्ढ के राज्यपाल महामहिम ईएसएल नरसिम्हन ने जब बोलना शुरु किया तो बोलते वे चले गये। क्या शासन, क्या प्रशासन,क्या विधायिका क्या पत्रकारिता सब पर जमकर बरसे राज्यपाल्।हां पुलिस वालो पर वे थोड़े मेहरबान ज़रूर नज़र आये शायद पुलिस सेवा मे काम करने के कारण्।उनके भाषण मे एक आम आदमी का गुस्सा नज़र आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि राज्यपाल की छाती फ़ाड़ कर उनके अंदर छीपे आम आदमी का गुस्सा फ़ट पड़ा हो।

मौका था आई ए एस अफ़सर सी के खेतान के संयोजन और पत्रकार हिमांशु द्विवेदी के संपादन मे पुसतक़ के रूप मे सामने आई जन-भावनाओं के विमोचन का।प्रदेश के सारे ताक़तवर लोग वहां जमा थे।राज्यपाल मुख्य अतिथी थे तो मुख्य मंत्री कार्यक्रम के अध्यक्ष। नेता प्रतिपक्ष और हरिभूमी अखबार के मालिक विशिष्ट अतिथी थे तो पत्रकार राहुल देव मुख्य वक्ता।प्रदेश के मुख्य सचिव से लेकर डी जी पुलिस और तमाम आई ए एस,आई पी एस के साथ-साथ उद्योगपति,व्यापारी और पत्रकार बिरादरी इस मौके पर इकट्ठा थी।

और जब मुख्य अतिथी राज्यपाल ने बोलना शुरू किया तो सबकी बोलती बंद हो गई।किसी को नही बख्शा उन्होने।मुख्य मंत्री की थोड़ी तारीफ़ की और उसके बाद जन कल्याणकारी योजनाओ के आम आदमी तक़ पहुंचने पर सवाल खड़े कर दिये।उन्होने कहा कि तीन रुपये,दो रुपये किलो चावल देने की योजना बहुत अच्छी है लेकिन उसका लाभ सही लोगो को मिले इस बात का भी खयाल रखा जाना चाहिये।बस्तर मे सस्ता चावल गरीबो को मिलने की बजाय राईस मिल मालिको को मिल रहा है।राजधानी रायपुर के आस-पास के गावों मे बिजली नही है।ये बाते तक़्लीफ़ देती है।

अफ़सरशाही पर तो उनका गुस्सा फ़ट पड़ा था।उन्होने कहा कि आखिर एक मुख्य मंत्री को क्यो ग्राम सुराज यात्रा पर ग्रामीण जनता का दुख़ः देखने निकलना पड़ा? क्यो मुख्य मंत्री के दौरे पर मिलने वाली शिकायतो का तत्काल निराकरण हो जाता है? क्या उन समस्या का निराकरण करना अफ़सरो का काम नही है?क्या मुख्य मंत्री का दौरा करना ज़रूरी है? राज्यपाल ने कहा कि आज कोई भी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाना नही चाहता।उन्होने कहा कि आलोचना करने का उन लोगो को ज़रा भी हक़ नही है जो अपना जिम्मेदारी ढग से नही निभाते।

पुलिस पर थोड़ा मेहरबान ज़रूर रहे राज्यपाल मगर खिंचाई पुलिस की भी हुई।उन्होने कहा कि पुलिस आज बेहद खराब परिस्थितियो मे अपना काम करने पर मज़बूर है।उसकी आलोचना तो आसान है मगर पुलिस और सुरक्षा बलो के जवान न हो तो कितनी जाने जायेंगी इसकी कल्पना नही की जा सकती।उन्होने पुलिस की भी आम आदमी को सम्मान न देने और नेताओ को वी आई पी ट्रीटमेंट देने के माम्ले मे जमकर खिंचाई की।

मीड़िया को भी आड़े हाथो लेने मे कोई कसर नही छोड़ी राज्यपाल ने।सकारात्मक खबरो को नज़र अंदाज़ करने के लिये पत्रकारो को खूब लताड़ा राज्यपाल ने।उनकी खिंचाई से पहले मज़ाकिया लह्ज़े मे उन्होने अपने सुरक्षा कर्मियो को सचेत करते हुये कहा कि मीड़िया की खिंचाई करने वाले है हो सकता है एकाध पत्थर ईधर आ जाये।इलेक्ट्रानिक मीड़िया की अच्छी खबर ली राज्यपाल ने।उन्होने अपने भाई की मौत के बाद इलेक्ट्रानिक मीड़िया वालो द्वारा आपको कैसा लग रहा जैसे सवाल पूछे जाने का दुःखद वाक्या भी सुनाया।

शायद उनके भीतर छीपे आम आदमी का गुस्सा राज्यपाल की छाती फ़ाड़ कर बाहर आ गया था।उन्होने खुद को भी इस मौके पर नही बख्शा।बस्तर के दौरे पर मिली शिकायतो के 48 घण्टे मे दूर हो जाने का उदाहरण देकर उन्होने कहा ये कही न कहीं उनकी असफ़लता ही है। वर्ना क्या उनके वंहा जाये बिना वो समस्या हल नही होनी चाहिये।राज्यपाल बोलते रहे और सब सुनते रहे।बीच-बीच मे तालियो की गड़गड़ाहट को विनम्र भाव से हाथ जोड़कर स्वीकार करते रहे।पता ही नही चला कि कब उनका भाषण खतम हो गया।पूरा हाल तालियो की गड़गड़ाहट से थर्रा उठा था।एक ईमानदार स्वीकारोक्ति को सभी ने जी खोल कर सलामी दी।

12 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

राज्यपाल महोदय बधाई के पात्र हैं, उन्हे बहुत शुभकामनाएं.

हमारे राज्यपाल मा. बलराम जी जाखड साहब तो बिल्कुल हरयाणवी स्टाईल मे खरी खरी कहते हैं पर इन नेताओं को कुछ समझ मे भी आया क्या आज तक?

रामराम.

Udan Tashtari said...

एक नया अध्याय सा लगा राज्यपाल का ऐसा खुलासा..सिद्ध करता है कि अभी भी उम्मीद की किरण बाकी है.

आभार आपका इसे बताने का.

sarita argarey said...

भाषण देकर तालियां बटोरना और बात है और चीज़ों को आचरण में लाना और बात । तालियों की गडगडाहट पैदा करने वाले लोग क्या राज्यपाल की कही बातों पर गौर करके अपना रवैया बदलेंगे ? साथ ही क्या भाषण देने वाले व्यक्ति का दामन भी पूरी तरह पाक साफ़ है ये देखना भी ज़रुरी है । जनाब , कथनी और करनी का फ़र्क मिटाये बिना कुछ नहीं बदलता । हां कुछ लोग सामने वाहवाही करते हैं । अखबार हाथों हाथ लेते हैं ,लेकिन जिस ज़मीन पर हम खडे हैं ,वो दिनोंदिन पोली होती जाती है ।

Smart Indian said...

बहुत बधाई, राज्यपाल के संज्ञान में आने के बात परिस्थितियों पर कुछ असर पडेगा या यह भी "हमें देखना है... हम देखेंगे..." तक ही सीमित रहने की बात है?

Gyan Dutt Pandey said...

राज्यपाल जी खरा बोलने के लिये बधाई के पात्र हैं। अगर वे चाहें तो कुछ कर-करा सकते हैं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

एक बात बताऊं, अगर पुलिस न हो तो आधे से अधिक अपराध खुद-ब-खुद कम हो जायेंगे.

राज भाटिय़ा said...

बोलने से ज्यादा कुछ कर कए दिखाये तो बधाई के पात्र होगे.
धन्यवाद

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...

बिलकुल सही सोचा आपने।

आई.पी.एस होने के नाते संभव है कि जनता के दुःख उन्हें शायद आज भी याद हों। वरना तो सैयद सिब्ते रजी जैसे ही इस गरिमामय पद के साथ खिलवाड़ करते हैं।

नितिन | Nitin Vyas said...

खरा-खरा बोलने के लिये उन्हें बधाई, लेकिन सिर्फ बोलने के क्या वे लोग सुधर जायेगें जिनके लिये बोला है?

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह... क्या बात है...!!

Akanksha Yadav said...

आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अनुभूति हुयी.इस गणतंत्र दिवस पर यह हार्दिक शुभकामना और विश्वास कि आपकी सृजनधर्मिता यूँ ही नित आगे बढती रहे. इस पर्व पर "शब्द शिखर'' पर मेरे आलेख "लोक चेतना में स्वाधीनता की लय'' का अवलोकन करें और यदि पसंद आये तो दो शब्दों की अपेक्षा.....!!!

दीपक said...

इस हिमालय से फ़िर एक गंगा निकलनी चाहिये !
मेरे सीने मे ना सही तेरे सही मे
कही भी हो आग लेकिन आग जलनी चाहिये !!

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओ के साथ यही प्रार्थना कर सकते है कि आदिवासीयो के लहु से रंगा बस्तर फ़िर हरा हो जाये !! इंशा-अल्लाह आमीन !!