ब्लागर सिर्फ़ ब्लागर ही नही होता बल्कि रिश्तेदार भी होता है,ऐसा ही कुछ महसूस हुआ मुझे पं दिनेश राय द्विवेदी से मिलने के बाद।पण्डित जी आये कुछ समय हमारे साथ रहे और वापस चल दिये।उनके जाने के बाद ऐसा लगा कि कोई सगा रिश्तेदार मिलकर बिछुड़ गया हो।उनके जाने के बाद उनकी हर विषय पर सोच-समझ कर की गई गंभीर टिपण्णी याद आने लगी।उनसे की गई चर्चा के हर विषय याद आने लगे उन पर पण्डित जी के सटीक निष्कर्श याद आने लगे।पण्डित जी आंधी की तरह आये और तूफ़ान की तरह चले गये। छोड़ गये पीछे सिर्फ़ मीठी-मीठी यादें।कोई खट्टी नही कोई कड़वी नही,सिर्फ़ और सिर्फ़ मीठी यादें।दोबारा आने का वादा भी कर गये पण्डित जी,पर पता नही अब कब आयेंगे।
कल रात को संजीत त्रिपाठी ने फ़ोन कर बताया था की कोटा वाले वकील साहब छत्तीसगढ आये हुये हैं।मैने उससे पूछा कि उनका क्या कार्यक्रम है।संजीत ने बताया कि वे कल रायपुर आ रहे हैं।मेरे लिये ये अप्रत्याशित था कि इतने वरिष्ठ ब्लागर बिना निमंत्रण हम लोगो से मिलने आ रहे हैं।सोच कर अच्छा लगा और मैने संजीत से उन्हे प्रेस क्लब बुलाने के लिये कहा।उसने फ़ोन से हमारे पड़ोसी भिलाई के ब्लागर पाब्ला जी से सम्पर्क कर सारा कार्यक्रम तय कर लिया।
दूसरे दिन यानी आज मै और दिनो की तुलना मे जल्दी उठा और तैयार होकर प्रेस क्लब पहुंच गया।सब हैरान थे इतनी जल्दी बिना कार्यक्रम के मै कैसे क्लब पहुंचा।मैने सब को पण्डित जी के बारे मे बताया।सब उनका इंतज़ार करने लगे। आखिर वंहा ब्लाग की दुनिया की एक बड़ी हस्ति आ रही थी।थोड़ा देर से सही पाब्ला जी पण्डित जी लेकर वहा पहुंचे। अमूमन अंदर बैठ करअतिथियों का इंतज़ार करने की बजाय मैं पहली बार बाहर खड़ा था।मेरे साथ संजीत भी था।
हम दोनो ने दौड़ कर पंडित जी का स्वागत किया। एकदम सादगी की मूरत निकले पंडित जी। न तो वकीलो जैसा ताम-झाम था ना ही वरिष्ठ ब्लागर जैसा दर्प या कोई गर्व नज़र आया। एकदम ठेठ घरेलु बुजूर्ग की तरह लगे पंडित जी।सबने उनका स्वागत किया। खुलकर चर्चा हुई।इसी बीच कार्टून वाच के संपादक और कभी मेरे साथ काम कर चुके कार्टूनिस्ट त्र्यंबक शर्मा भी आ पहुंचे।उनके साथ दूरदर्शन के झा साब भी थे।
चर्चा चल ही रही थी कि अचानक महापौर सुनील सोनी का मुझे फ़ोन आया। महापौर ने मुझसे पूछा कंहा हो,मैने उन्हे बताया क्लब मे बैठा हूं।तभी मुझे खयाल आया कि पडित जी को मोमेंटो देना था उसके लिये मैने महापौर को क्लब बुलवा लिया। उनके हाथो मोमेंटो देकर हमने पंडित जी की रायपुर यात्रा को यादगार बनाने की अपनी ओर से छोटी सी कोशिश भी की। पंडित जी से खूब और खुलकर चर्चा हुई।छत्तीसगढ के बारे मे भी पंडित जी ने अपने सवाल पूछे खास कर नक्सल समस्या और जेल मे बंद डा विनायक सेन के बारे मे।
लगभग पांच घण्टे साथ रहे पंडित जी और उसके बाद वे वापस भिलाई चले गये। चलते है कह कर कम-से-कम चार-पांच बार सबने एक दूसरे से हाथ् मिलाये मगर हर बार कोइ नई बात का ज़िक्र छिड़ जाता और फ़िर एक बार हाथ मिला कर कहते चलते हैं। ऐसा लग ही नही रहा था की बाते खत्म हूई हो। आखिर बेहद ज़िंदादिल पाब्ला जी ने कहा की शायद बाते कभी खतम नही होंगी लेकिन हमे जाना ज़रूरी है। और फ़िर पंडित जी चले गये। सहसा विश्वास ही नही हुआ और जैसे-जैसे समय बीतता गया उनकी कमी महसूस होती गई।पंडित जी चले गये मगर छोड़ गये अपनी अमिट छाप एक सीधे-सादे विद्वान की जिसे हम हमेशा याद रखेंगे अपने परिवार के बुजुर्ग सदस्य की तरह। एक विषय पर चर्चा के दौरान उन्होने कहा कि ब्लोग मे ज़रुरी नही आप एक दुसरे से सहमत हो और यदी सहमत नही भी होते तो ज़रूरी नही है कि आप दाना-पानी लेकर उस पर चढाई कर दो। उन्होने कहा कि ब्लाग की दुनिया मे सहमती और असहमती के बावज़ूद एक परिवार की तरह संबंध बनते है और उनके जाने के बाद ये शत-प्रतिशत सच लग रहा है।
32 comments:
ब्लॉगिंग के स्तर पर बने संबंध ज्यादा गहरे होते हैं, हम किसी को इतना पढ़ चुके होते हैं कि उसके भीतर से परिचित से हो जाते हैं। इसलिए किसी के मिलने पर अजनबीपन का एहसास नहीं होता जबकि इसेक ठीक उलट जिनसे रोज मिलते हैं वो भी हमें अनजान लगने लगते हैं।
सुंदर मुलाक़ात
अनिल जी, असमंजस में हूँ.. .कि
आपको बधाई दूँ, या आपसे ईर्ष्या करूँ ?
संप्रति आपके भाग्य को सराह तो सकता ही हूँ ।
जहाँ तक मैं उन जान पाया हूँ,
वह एक निर्विवादित दंभहीन सहृदय सज्जन पुरुष की छवि बनती है ।
ब्लाग जगत में, व्यक्तिगत रूप से मैं सर्वाधिक आदर उनका ही करता हूँ ।
उनकू वास्ते आप विद्वान बोले तो चलेंगा,
पण,कब्भी से भी बुज़ुर्ग नहीं बोलने का :)
बहुत बढ़िया, हम आपसी जुड़ाव की ओर अग्रसर हैं
jankari ke liye aabhar.
ब्लाग बना रहा है भावनात्मक रिश्ता। सचमुच सुन्दर मुलाकत।
aise hi ek dusre se maulqaat hoti rahe
बढ़िया लगा मुलाकात का किस्सा।
यदी सहमत नही भी होते तो ज़रूरी नही है कि आप दाना-पानी लेकर उस पर चढाई कर दो।
इसलिये कि दाना-पानी बचा के रखना चाहिये न!
अच्छा लगा आलेख । वाकई ब्लाग की दुनिया अपनी सी लगती है । अभी ज़्यादा वक्त तो नहीं गुज़र लेकिन सब कुछ ्जाना पहचाना सा नज़र आता है । आपकी द्विवेदी जी से मुलाकात का ब्यौरा पढकर लगा जैसे हम भी वहां ही मौजूद हों । एक बात और प्रेस क्लब का चेम्बर देखकर अपसे ईर्ष्या हुई और हमारे पत्रकार भवन की बदहाली पर रोना आया ।
वे हैं ही बेहतरीन शख्सीयत वाले व्यक्ति।
यदि चित्र के सब लोगों का नाम लिखा होता तो और भी अच्छा होता।
धन्य भाग आपके. हमें तो आप लोगों के चित्र देखकर ही संतोष करना पडेगा.
behad yadgar lamha,sundar mulakaat ke liye badhai.
अनिल जी
नमस्कार!
आपकी रिश्तों के प्रति अभिव्यक्ति अतुलनीय है.
आर्यश्री पर टिप्पणी के लिए धन्यवाद !
रत्नेश त्रिपाठी
नई दिल्ली
एकदम सही कहा आपने, दो वर्ष से ब्लॉगिंग कर रहा हूँ, लेकिन व्यवसायगत कामों के कारण बाहर आना-जाना नहीं हो पाता अतः एकाध-दो ब्लॉगरों से ही व्यक्तिगत मुलाकात हुई है, लेकिन कई-कई लोगों से मेरे बहुत मधुर सम्बन्ध हैं जिन्हें मैंने आज तक देखा भी नहीं (तस्वीर भी नहीं)… वाकई यह एक अन्जाना सा बन्धन है… जैसे मैं आपको "भाऊ" पुकारता हूँ उसी प्रकार संजीत भाई को मैं "सुनील" कहता हूँ और वे मुझे "प्रभु" कहते हैं… (जिन्होंने सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्या पढ़े हैं वे ही इसे समझेंगे)… और क्या कहूँ… मौका मिला तो छत्तीसगढ़ अवश्य आउँगा, और आपकी मेजबानी का आनन्द लूंगा… ध्न्यवाद
अच्छे लगे यह यादगार लम्हे ..रोज़ पढ़ना एक दूजे का लिखा भी मिलने जैसा ही होता है ..अच्छा लगता है जब रूबरू मिलते हैं
बहुत बढिया मुलाकात करवाई आपने. धन्यवाद जी.
रामराम.
पंडिज्जी तो हमारे भी बहुत करीबी रिश्तेदार हैं....
रतलामीजी और आपकी तरह पंडीजी हमारे भी करीबी रिश्तेदार हैं. और हम यही कह सकते हैं की आपने जो भी उनके बारे में कहा है हमने भी उसका अनुभव किया है. बस मिलना नहीं हो पाया अभी तक... वो भी हो ही जायेगा !
bahut achcha laga padhkar. chalu rakhen.
ब्लॉग से जो सम्बन्ध बनता है, वह रिश्तेदारी से बढ़कर होती है. मेरे तो कई ऐसे दोस्त बने है इस ब्लॉग देवता की कृपा से की ..मैं बता नही सकता..लम्बी सूची बन जायेगी. वैसे आपकी पोस्ट को पढने के बाद मेरा भी मन मचल उठा है उन लोगो से बात करने का. सो करने जा रहा हूँ
dinesh ji se aap logon ki mulakaat ka poora vivran dene ke liye shukriya .
अच्छी मुलाकात करा दी दिनेश जी से. सही कह रहे हैं. हमारी रिश्तेदारी का विस्तार भी दिन ब दिन होता जा रहा है.
shabdon ka rishtaa bahut gahra hota hai.......
सही कह रहे है इससे भावनात्मक रिश्ते बनते है पर सभी ब्लॉगर एक सी विचारधारा के नही होते है . मेरा मानना यह है कि मौका पाकर कुछेक समय पर अपनी चिरपरिचित करतूत बता देते है और माहौल कहे या फिजां ख़राब हो जाती है फ़िर भावनात्मक रिश्ते का फितूर सर से उतर जाता है यह कटु सत्य है आप इसे कटाई न ले . मात्र मेरा एक विचार है . आभार
सही कहा आप ने, कई ब्लोगर भाई रिश्तेदारों से बड़ कर हैं। द्विवेदी जी यकीनन उनमें से एक हैं। विद्वान तो है ही सह्रदय भी है जो एक ही मुलाकात में आत्मीय लगने लगते हैं। इस ब्लोगर मीट के लिए मुबारकबाद
बहुत अच्छा लगा पढकर....
ये कमेण्ट्स बताते हैं कि द्विवेदी जी कितने आदरणीय पापुलरश्च हैं।
आपने यह पोस्ट लिख कर ब्लॉगरीय रिश्तेदारी के सूत्र मजबूत किये। धन्यवाद।
mulaqat ka vivaran aur chitr dekhey.
Bahut se achchey -bure logon se milwata hai 'blog jagat--sab tarah ke log hain yahan-
-achchey logon se milna hamesha hi achcha lagta hai-aur shabd aur mouse click se judey ye sambandh kayee baar bahut bhavnatmak ho jatey hain aur priy bhi-
आप ने सच मै कहा, हम भारत ही नही दुनिया के अलग अलग कोनो से हे, लेकिन फ़िर भी ऎसा लगता है हम सब एक परिवार से ही हो, सब मिल जुल कर बाते करते है, जिस का मुझे बहुत लाभ हुआ, क्योकि इस ब्लांग से पहले तो हिन्दी बोले ओर पढे सालो सल गुजर जाते थे, ओर अब घण्टो हिन्दी ओर हिन्दी.
आप की मिटिंग देख कर ओर चित्र देख कर बहुत खुशी हुयी, अजी हम भी कभी यु ही आप सब के संग चित्र´खिचवायेगे.
आप सभी को मेरा नमस्कार.
धन्यवाद
आप लोग मिले बैठे और एक दूसरे से जान पहचान बढ़ाई। जानकर खुशी हुई। दिनेश जी जिस सहजता से लिखते हैं व अपने ब्लॉग से समाज की सेवा भी कर रहे हैं उससे ही अन्दाजा हो जाता है कि उनसे मिलना आप सबके लिए कितना सुखद रहा होगा। वे एक बहुत सुलझे हुए व्यक्ति लगते हैं।
घुघूती बासूती
भाई पुसदकर जी,
अभी रात नौ बजे 28 घंटों की यात्रा के बाद घर पहुंचा हूँ। छत्तीसगढ़ की यह ढाई दिनों की यात्रा मेरे लिए भी अविस्मरणीय हो गई है। बस एक कसर यह रही कि मैं यत्न कर के भी पंकज जी अवधिया से नहीं मिल सका। खैर उन से मिलना छूटा है, बहुत सी दूसरी चीजें भी छूट गई हैं। इस आलेख को पढ़ने के बाद सोच रहा हूँ कि जो स्नेह, आदर और सम्मान इस यात्रा में मुझे मिला मैं उस के योग्य था भी या नहीं।
आप ने निमंत्रण की बात कही, लेकिन मैं नहीं समझता कि अपनों से मिलने जाने के लिए किसी निमंत्रण की जरूरत है। यह हो ही नहीं सकता था कि थोड़ा समय रहते मैं वहाँ आप लोगों से नहीं मिलता। मुझे भिलाई, दुर्ग और रायपुर तीनों स्थानों पर लगा ही नहीं कि मैं अपने घर पर नहीं हूँ।
ब्लागरी से जन्मी रिश्तेदारी की मजबूती को मैं ने बहुत शिद्दत से महसूस किया है और इस का उल्लेख मैं ने गाहे बगाहे अनेक ब्लागर साथियों से किया है। उन्हों ने भी इसे महसूस किया है। यह एक नए तरह की मजबूत रिश्तेदारी है।
जहाँ तक विचार-भेद का प्रश्न है। वह यदि नहीं होगा तो हम कैसे नवीन का सृजन कर पाएंगे? मेरा मानना है कि गंभीर से गंभीर विचार भेद भी हमारी इस रिश्तेदारी को नहीं तोड़ सकता, यदि एक दूसरे के प्रति सम्मान और आदर हो। सब से बड़ी चीज है हमारी ईमानदारी। हम सभी ईमानदारी से एक नयी भली दुनिया बनाना चाहते हैं। उस के लिए ईमानदारी से विचार विमर्श करते हैं। हो सकता है कि रास्ते के मामले में हमारे बीच तीव्र मतभेद हों लेकिन यदि लक्ष्य हमारा सही है तो वे मतभेद हमेशा हल हो जाते हैं।
यदि हम एक दूसरे के प्रति आदर, सम्मान रखते हुए, इस बात का ध्यान रखते हुए कि एक दूसरे को व्यक्तिगत रुप से किसी तरह की चोट न पहुंचाएँ तो हम मंजिल तक पहुंचने के नए रास्ते भी तलाश लेंगे और साथ ही एक मजबूत रिश्तेदारी को भी बनाए रखेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ़ फिर आना होगा और हम एक बार नहीं कई कई बार मिलेंगे।
हैं ही बेहतरीन शख्सीयत वाले व्यक्ति!!!!
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