Saturday, January 31, 2009

चार नही पांच कुम्भ होते है भारत मे,और एक तो हर साल होता है।

छत्तीसगढ मे अगर किसी से ये पूछा जाए कि देश मे कितने कुंभ होते हैं तो उसका जवाब चार नही पांच ही होगा।ये चमत्कार बहुत ज्यादा पुराना नही है,बस चार साल ही हुए है और ये पांचवा साल है पांचवे कुम्भ का। ना कोई पौराणिक महत्व,और ना ही कोई धार्मिक मान्यता । बस स्थानीय परंपरा के अनुसार सालों से लगते आ रहे पुन्नी मेले को सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनैतिक हठधर्मिता ने हथिया लिया और उसे कुंभ का नाम दे दिया।चंद नेताओं के अहम की तुष्टी के लिये सारा सरकारी अमला झोंक दिया जाता है एक नकली कुंभ को असली बनाने के लिये और देश के सबसे गरीब प्रदेशों मे से एक छत्तीसगढ के सरकारी करोड़ो रुपये फ़ूंक दिये जाते है।

अफ़सोस की बात तो ये है कि देश के अन्य कुम्भ मे जो साधु-संत खुद दौड़े चले जाते हैं उन्हे यहां न्योता देकर बुलाना पड़ता है।अपने कुम्भ को महिमा मण्डित करने की गरज़ से देश के साधु-संतो और अखाड़ो को राजिम कुम्भ मे आने के लिये आने-जाने का खर्च तो दिया जाता ही है साथ ही उनके रुकने और खान-पान की व्यवस्था भी की जाती है।इससे दुर्भाग्य जनक और क्या सकता है कि साधुओं को दोबारा आने के लिये प्रेरित या दुष्प्रेरित करने के लिये अच्छी-खासी दक्षिणा भी दी जाती है।

साधुओं को दक्षिणा देने के पीछे एक नही कई कारण हैं।पहला दक्षिणा लेकर जाने वाले अपनी बिरादरी मे इस बात का प्रचार करे और राजिम मे साधुओं की भीड़ बढ्ती जाए जो सरकारी आंकड़ो की जादूगरी मे काम आए। आशिर्वाद के साथ-साथ मोटी रकम की हेराफ़ेरी भी आसानी से हो जाए।दक्षिणा लेकर जाने वाले साधुओ से तो कोई पूछने वाला है नही कितनी दक्षिणा मिली। हजार दो और लिखो दस हजार कौन देखने वाला है।इसे कह्ते है धर्म का धर्म और कर्म का कर्म्।

साधूओं को बुला-बुला कर नकली कुम्भ को असली साबित करने की कोशिश मे जुटे स्वार्थी और भ्रष्ट नेताओं के पास इस बात का भी कोई जवाब नही है कि यहां का कुम्भ हर साल क्यों लगाया जाता है।जब हर कुम्भ बारह सालो मे लगता है तो यहां क्यो हर साल लग रहा है?इस बात का जवाब तो सरकारी मेहमाननवाजी का मस्त मज़ा लेकर मोटी दक्षिणा डकारने वाले ढोंगी साधूओ के पास भी नही होगा।खैर उन्हे क्या फ़र्क पड़ता है।उन्हे एक हिस्सा मिल जाता है नेताओं को सौ हिस्सा मिल जाता है,ठगी रह जाती है छतीसगढ की गरीब जनता जिसके हिस्से का विकास लूट कर नेता अपना अगला और पिछला दोनो जन्म सवांर-सुधार रहे हैं।

और सबसे दुर्भाग्य जनक पहलु है इस कथित कुम्भ का राजनैतिक लाभ लेने की कोशिश।इस मामले मे सभी राजनैतिक दल बराबर के दोषी हैं।वो जो कुम्भ लगा रहे है और वो भी जो नकली कुम्भ का विरोध नही कर रहे हैं।इस आयोजन से आपसी सौहाद्र बढने की बजाय पिछले साल नौबत राजनैतिक दंगल होते-होते असली दंगल तक़ आ पहुंची थी।एक भाजपा भक़्त संत सरकारी सेवा से इतने खुश हुए कि मंच से उन्होने सरकार को खुश करने की गरज़ से सोनिया गांधी के खिलाफ़ आंय-बांय-शांय बक दिया।पहले-पहल तो किसी को समझ मे नही आया लेकिन जब बात फ़ैली तो कार्यक्रम स्थल को कांग्रेसियो ने घेर लिया। आखिर ये उनकी नेता के सम्मान का मामला था। कुम्भ के नाम पर हिन्दू धर्म का चार सालो से मज़ाक उड़ाया जा रहा वो उन्हे समझ मे नही आया लेकिन सोनिया के खिलाफ़ एक शब्द भी उन्हे बर्दाश्त नही।नेतागिरी तो सोनिया जी के नाम पर ही चलनी है ना।सो घेर लिया था मेला स्थल लो।बड़ी मुश्किल से संत जी को बाहर निकाला गया।एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाकर मामला ठंड़ा किया गया वर्ना बवाल मचना तय था।
जी हां ये कोई टेबल या फ़र्ज़ी न्यूज़ नही है,सौ प्रतिशत खरी खबर है।छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर से मात्र 45 कि मी दूर स्थित है राजिम्।यहां त्रिवेणी संगम है जंहा महानदी,पैरी और सोंढूर नदियां मिलती हैं।यहां सालो से माघ पूर्णिमा से शिवरात्रि तक पुन्नी मेला लगता आ रहा था। चार साल पहले यहां की भाजपा सरकार के एक मंत्री ने इसका राजनैतिक लाभ उठाने और इसी बहाने नया इतिहास गढ कर अपने नाम को चीर-स्थाई करने की गरज़ से पुन्नी मेले को ही हाईजैक कर लिया और करोड़ो रुपये कमाने की नई स्कीम लांच कर दी,राजिम कुंभ के नाम से।

राजिम कुम्भ क्यों लगता है ,पूछे जाने पर जवाब किसी के पास नही होता है।एक-दो हमारे जैसे अधर्मी ज़रूर कहते है कि सरकार लगाती है इसलिये लगता है।सरकार है वो,जो चाहे कर सकती है लेकिन हिंदुवादी होने का ढोंग रचने वाली भाजपा सरकार जिस तरह से हिंदु धर्म का अपमान कर रही है वो अक्षम्य है।धर्म के नाम पर सिवाय लूट-खसोट और भ्रस्टाचार के कुछ नही होता।आस-पास के गांव वाले तो पहले भी मेले मे आते थे अब भी आ रहे है।उन्हे इस बात से कुछ खास फ़र्क नही पड़ा कि वे पुन्नी मेले मे आ रहे है या राजिम कुंभ मे?

13 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

भारत में कुछ भी हो सकता है, राजनीतिक स्वार्थ के लिये.

Anonymous said...

हमने भी सुना था कि राजिम मेले को कुम्भ मेले की संज्ञा दी गई है. हमने सोचा चलो ठीक ही है जहाँ लोग हजारों की तादाद में इकट्ठे हो रहे हैं, एक प्रकार का कुम्भ ही तो है. छत्तीसगढ़ के संस्कृति मंत्रालय द्वारा जारी एक ब्रोशर इसी कुम्भ पर समर्पित है. राज कि बात तो अब आपके लेख से समझ में आ रही है. आभार.

Anonymous said...

Baat to sahi hai...par jab haz aur haz houses ke naam pe Arbo rupyo ka golmaal ho chuka hai to har saal 10-20 karod Kumbh ke naam par kharch hone me kaisa harz?
Naam kuchh bhi rakh diya ho...par Mela to bhavya ho gaya na?

विवेक सिंह said...

आपने तो नकली कुंभ का मटका ही फोड दिया !

Gyan Dutt Pandey said...

सुना है यह स्थल बहुत मनोरम है।

Anwar Qureshi said...

ये आस्था के नाम पर मज़ाक है ...इस तरह के मेलों का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए ...शायद मंत्री जी इसी बहाने से अपने पाप धो लेना चाहते है ...सुधि हुई पोस्ट के लिए बधाई ...

ताऊ रामपुरिया said...

असल बात समझ मे आगई . आपका बहुत आभार.

रामराम.

योगेन्द्र मौदगिल said...

अनिल जी, ये बात मेरी जानकारी में तो बहुत पुरानी है. राजिम या कुंभ स्तर नहीं, करनाल व पानीपत के धार्मिक आयोजनों से यह बात समझ ली थी और एक बात बताऊं दादा, आजकल के मठाधीश कवियों ने कविसम्मेलनीय मंचो पर भी यह परम्परा प्रारंभ कर दी है. तू मुझे बुला मैं तुझे बुलाऊं तो था ही अब तो कमीशनबाजी भी... खैर..

Anonymous said...

pusadkar ji aap hamesha se famous rahe hain , sachchee aur kadvee baat ko kahne main aur print media main print karne ke liye , aur yahee aap abhee bhee kar rahe hain ,, aap ka kahna sahee hai issay is kunbh se 12 vershon ke kunbh se log digbhramit honge aur hamaari desh ki dharmik ashthayen bhi prabhvit hongi , aap dhanywad ke patra hain
d s

राज भाटिय़ा said...

यहा सब एक से बढ कर एक है. लेकिन इस देश का क्या होगा, यहां भगवान को भी चुना लगा रहे है... धन्य है यह लोग.

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस मेले का आप ने रायपुर मुलाकात के समय भी उल्लेख किया था। यह सार्वजनिक धन का जनता को मूर्ख बनाने के लिए उपयोग है। इस अपव्यय को रुकना ही चाहिए। हमारे पास वैसे ही बहुत सारे परंपरागत अवसर हैं जिन्हें हम पूरी तरजीह नहीं दे पाते। वास्तविकता तो यह है कि पुरानों, परंपरागत को तो उपेक्षित छोड़ दिया जाता है, और नए मंदिर, पूजा स्थल, मेले और देवता गढ़े जाते रहते हैं। क्यों कि अनुचित लाभ इन नयों से ही उठाए जा सकते हैं।

विष्णु बैरागी said...

धर्म को किस तरह अफीम बना दिया जाता है यह आपकी इस पोस्‍ट से पता चलता है। विडम्‍बना कहें या त्रासदी, यह सब वे लोग करा रहे हैं जो धर्म की दुहाई देते हैं और हिन्‍दू धर्म के नाम पर, असहत लोगों के गले रेत देते हैं।
धर्म की दुकान है। चलेगी और जम कर चलेगी।
लेकिन इस नंगई को उजागर करने के लिए आपको साधुवाद।
आपने अपना धर्म निभाया।

NIRBHAY said...

"Sab tirth bar- bar Ganga Sagar ek bar" kya yeh bhi jhudh nahi hai? Hindu Dharma ki sahishnuta ka durupyog har powerfull "vyaktitav" ne kiya pahle yeh Pakhandi Brahmin logon ne kiya ab Dharma ke naam par vote mangne wale kar rahe hain. Lekin phir bhi Rajim ke prachin mele ko "Kumbh ka Mela" ka title dena anuchit hai. Yeh mela Chhattisgarh ki hardam shaan raha hai ab vahan sarkari sahayata se bahoot kuchh development ho raha hai, jo ki public ki dharmik aastha ka aadar hai.
"Kya aap hindustan me public ke hath me Agarbatti ke jagah me Mombatti dekhna chahenge?"