कई बार सोचता हूं कि अपने प्रदेश के बारे मे सिर्फ़ और सिर्फ़ अच्छा ही लिखूंगा।फ़िर मुझे कोई बड़ा या अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी नही लेना है जो मै अपने प्रदेश के बारे मे गंदा-गंदा लिखूं।इसके बावजूद कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर घट जाता है कि न चाहते हुए भी मुझे अपने गंदे कपड़े घर के बाहर लाकर धोने पड़ते हैं।अपने प्रदेश के गुणगान करने की इच्छा पैदा होने के साथ ही दम तोड़ देती है।आज भी सोच रहा था कि लिखूं सांची के समकालीन मिले सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्तूप के बारे मे मगर प्रेस क्लब मे अपने प्रिय साथी भारत योगी से मिलने के बाद सब कुछ धरा का धरा रह गया और एक बार फ़िर अपने ही प्रदेश मे व्याप्त बुराई को सामने लाने पर मज़बूर हो गया।
प्रेस क्लब पहूंचते ही सामना हो गया भारत योगी से।भारत सिर्फ़ नामका भारत नही है।गुस्सा उसके अंदर भी भरा हुआ है समाज की दोगली नीतियोंके खिलाफ़्।कैसे हो भारत पूछने की बजाय मैने उसे बधाई दी एक अच्छी रिपोर्ट की।उसकी रिपोर्ट उसके अख़्बार का आज का बैनर थी।उसने भी बिना लाग-लपेट के कहा,भैया देखो उस लड़की का दुर्भाग्य।एक तो बलात्कार का शिकार हो गई और अब समाज वाले 50 हज़ार रूपए का सामाजिक अर्थदण्ड ठोक रहे है।50 हज़ार रुपए होते तो वो नाबालिग बच्ची मज़दूरी करने जाती ही क्यों?न वो मज़दूरी करने जाती और ना बलात्कार का शिकार होती?
मै खामोश ही रहा।वो बहुत गुस्से मे था।मैने उससे पूछा बाकी लोग क्या बोलते हैं।उसने कहा आप सब जानते हुए भी मुझसे पूछ रहे हो।फ़िर वो खामोश हो गया।मैने उससे कहा तुम चिंता मत करो?इस मामले को छोड़ेंगे नहीं।मैं तुम्हारे साथ हूं।मैं आज ही इस मामले को अपने ब्लोग पर लिखूंगा और जंहा-जहां बन पड़ेगा इसकी शिकायत करूंगा।
दरअसल ये मामला है एक व्यापारी नेता ललित जैन का।उसके सत्ताधारी भाजपा के कई मंत्रियों से संबंध् हैं।उसके खिलाफ़ एक नाबालिग मज़दूर बच्ची ने बंधक बनाकर बलात्कार की शिकायत पुलिस से की थी।इससे पहले कि इस मामले मे किसी तरह की लीपा-पोती होती राजधानी का प्रेस सक्रिय हो गया और पुलिस को न केवल रिपोर्ट दर्ज़ करनी पड़ी बल्कि ललित जैन को गिरफ़्तार कर जेल भी भेजना पड़ा।
मामला उसके बाद बिगड़ा।समाज ने बलात्कार की शिकायत करने वाली नाबालिग बच्ची को अशुद्ध मानते हुए उसके शुद्धिकरण के लिए उसके परिजनो पर 50 हज़ार का अर्थदण्ड ठोक दिया। ऐसा ना करने की स्थिती मे उस परिवार का हुक्का-पानी बंद और समाज से बहिष्कार करने का फ़ैसला हो गया।भारत योगी का गुस्सा इसी बात को लेकर था कि उस व्यापारी ने अपने बचाव के लिये ये उपाय किया था और अब उसके जाल मे वो बच्ची उलझ गई है?उसका ये भी कहना था कि पुलिस भी इस मामले मे खामोश हो गई है और जितने भी ईंसानो की भलाई के लिये काम करने वाली संस्थाए है वो भी तमाशा देख रही है?मै ये सोचते-सोचते क्लब से निकला कि क्या सच मे आज़ाद भारत मे रह रहा हूं?क्या इस देश मे सच मे पढे-लिखे लोग रहते हैं?क्या तमाम कानून कायदे सिर्फ़ पहूच वालो के लिए ही होते हैं?क्या हमे सभ्य समाज का ज़िम्मेदार नागरिक कहलाने का हक़ है?और भी दर्ज़नो सवाल मेरे दिमाग मे उमड़ते-घुमड़ते रहे?
16 comments:
sach me bahut dukhdaayi hai ye ghatna. kya karu samajh nahi aa raha.. wo kaun hote hain jo hukka pani band kar denge...hum azad nahi hain ab lag raha hai
सरकारी तंत्र बिल्कुल बेकार और सड़ गया लगता है।जो ऐसे हालात बन जाते हैं।
ठीक है इस कुत्ते ललित जैन का बलात्कार किसी गधे से करवाया जाये ओर इसे ५ लाख रुपये भी जुर्मना किया जाये कि जा साले यह तेरा शुद्धि करण का जुर्माना है, हरामी को एडस हो जाये.
दुर्भाग्य ही है .यह समाज ही फूलनदेवी बनाता है अबलाओं को .
कितना दुर्भाग्यपूर्ण और अफसोसजनक!
हैफ़ कि पाप किसी का और ढोये कोई और, अजीब विडम्बना है!
जब तक हम - आप जैसे बहुसंख्यक लोग मूक दर्शक बने रहेंगे ये मुट्ठी भर ताकतवर लोग मनमानी करते रहेंगे । एक बार मुटठी भींच कर तो देखिए ....।
जंग लगा समाज है। कब भहरायेगा, इन्तजार है।
वो कौनसा इंडिया है जो शाइनिंग कर रहा है???
यह हमारी व्यवस्था का कोढ है, इसे जड से निकाल फेंकना होगा।
मैं फिर यही कहूंगा कि पता नहीं क्यों समाज में अभी तक गृह युद्ध नहीं छिड़ा.
पूरी तरह लगे रहिये, इस मामले के पीछे. अपराधी को सजा मिले और पीडिता को एक बेहतर जीवन की गारंटी.
हम वानर के वंशज है अर्थात हमारे भीतर पशु गुण मौजूद है - यही डार्विन ने २०० वर्ष पूर्व प्रमाणित किया था।[संयोगवश डार्विन के ज्न्म द्विशताब्दी इस माह की १२ को मनाई जा रही है] इन घटनाओं से उस कथन की पुष्टि ही होती है।
शर्मनाक.......
भाटिया जी ने बिल्कुल सही कहा है..
इन जैसे पापियों के ख़िलाफ़ भी क़ानून , पुलिस और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है .....सचमुच हम आजाद नही हैं
जब तक "जागरूक" लोग इन बातों के बारे में लोगों को जागरूक नहीं करेंगे तब तक इस तरह की विषमतायें चलती रहेंगी. लिखते रहें!!
सस्नेह -- शास्त्री
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