पिछले सप्ताह भर से महाराष्ट्र मे था।ममेरी बहन की शादी थी।14 को शादी हुई और उसी दिन बिदाई।15 को हम लोग उसकी ससुराल गए,भुसावल्।जाते समय भुसावल से कुछ कि मी पहले पुलिस से वास्ता पड़ा,और जो पुलिस का व्यव्हार था वो तो राज ठाकरे को लजाने के लिये काफ़ी था।
भुसावल से पहले रास्ते मे हाईवे पुलिस का मोबाईल कैम्प लगा हुआ था।एक सूमो गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी थी और एक सिपाही सड़क पर खड़ा था।कुछ सिपाही टेबल-कुर्सी ड़ालकर बैठे थे।सूमो मे भी कुछ पुलिसवाले बैठे थे। नेशनल हाईवे नम्बर 6 पर सभी गाड़िया फ़र्राटे भर रही थी,और हमारी भी उसी रफ़्तार से चली जा रही थी।
अचानक़ सड़क पर खड़े सिपाही ने हमारी गाड़ी को रुकने का इशारा किया और जब तक़ ब्रेक लगता वो गाड़ी के पीछे भागा सिटी बजाते हुए।मैने उसे देख लिया था हाथ देते हुए।गाड़ी रुकते ही मैने रिवर्स गियर लगाया और गाड़ी पीछे ले गया।गाड़ी पीछे आता देख वो वहीं रूक गया।उसके पास पहुंच कर मैने शीशा नीचे उतारा और पूछा कहिये क्या बात है?उसने मुझसे सवाल किया कहां से आ रहे हो?मैने बताया रायपुर से।उसने दूसरा सवाल दागा कहां जा रहे हो?मैने कहा ये तो मै नही बताउंगा।उसे शायद इस जवाब की उम्मीद नही थी।उसने मुझे घूरकर देखा और गाड़ी के कागज़ात मांगे।मैने वो उसे दे दिये।उलट-पलट कर देकह्ने के बाद बोला पहले आप नीचे उतरईए।मैने कहा कागज़ात दिखाने के लिए नीचे उतराना ज़रूरी है क्या?वो बोला मुझे नही ये आप साब को दिखाईए वो पिछे बैठे हैं।
मै नीचे उतर कर कागजात लेकर पीछे सूमो मे बैठे "साब" के पास गया।उसने कागजात देखे और सिपाही से घेऊन जा माघ,यानी पीछे ले जा।तब तक़ मै हिंदी मे ही बात कर रहा था और मेरे उच्चारण और गाड़ी की वेस्ट बंगाल की नम्बर प्लेट के कारण उन्हे लगा की मै मराठी नही हूं।इसलिए वे खुलकर मराठी मे बात कर रहे थे।वो मुझे पिछे ले गया और टेबल कुर्सी पर बैठे मुंशी के पास ले जाकर बोला।आपका केस बनेगा।मैने उससे पूछा क्यों?वो बोला एक तो आप्ने सेफ़्टी बेल्ट नही लगाया था और दुसरा आपके कुछ कागज़ ओरिजिनल नही हैं।मै बोला बेल्ट की बात तो ठीक है मान लेता हूं लेकिन कागज़ात के बारे मे सोच-समझ कर केस बनाना।वो बोला पहले अपना लाय्सेंस दो।
जैसे ही मैने अपना लायसेंस उसे दिया उसने उसे जांचा और उसका व्यवहार एकदम बदल गया।वो मुझसे मराठी मे बोला काय राव(सम्मान सूचक शब्द)।पहले का बर नाही सांगितले की आपण मराठी माणुस्।कुठचे तुम्ही ?मै बोला रायपुर।वो बोला अरे वा किती तरी दूर गेले राहायला।जा साहेब,काय आहे ना तुम्च्या गाड़ी ची नमबर प्लेट मुळे चुक झाली।यानी पहले क्यो नही बताया आपने कि आप मराठी है,और आप कहां के हो।कितनी दूर चले गए आप रहने के लिए।जाईए साब वो क्या है ना आपकी गाड़ी की नम्बर प्लेट की वजह से धोका हो गया था।आप जाईए।मुझे कुछ समझ मे नही आया कि मै उस सिपाही को क्या कहूं?बिना कार्रवाई किये छोड्ने के लिए धन्यवाद दूं या सिर्फ़ नम्बर प्लेट के आधार पर बाहरी समझ कर कार्र्रवाई के लिए गाड़ी रोक पर गालियां बकूं?जब पुलिस ही ऐसा व्यवहार कर रही है तो हम किसी ठाकरे किसी लालू,किसी मुलायम या किसी आज़मी को क्या दोष दें।मैने चुप्चाप गाड़ी के कागज़ात लिए और निकल गया भुसावल की ओर्।
22 comments:
अब क्या कहे,यह सब अपने ही देश मै हो रहा है, किसे कसुर बार कहे? सारा तंत्र ही गोलमाल सा है.
धन्यवाद
सब कुछ गोलमाल है
अफसोसजनक है ऐसा रवैया..मगर है ऐसा ही.
हमारे अंदर छुपी इसी अंधराष्ट्रवादी सोच ही तो ये कैक्टस नेताओं की जन्मदाता है। वे जानते हैं कि जनता की इन अँधराष्ट्रवादी भावनाओं को सहला कर उन की पीठ पर खड़ा हुआ जा सकता है। ये बीमारियाँ बड़े पैमाने पर मौजूद हैं और इन से सतत संघर्ष भी आवश्यक है।
युग ग्लोबल और घटनाएं क्षेत्रीयवाद की....अफसोस !!
system me har jagah ye chiz ghun ki tarah lag chuki hai. jaroorat jagrukta paida karne ki hai aur ye ham sab ki jimevari hai.
also sir ji thanking you for visiting my blog. thanks again
घणी गोलमाल है जी.
रामराम.
सब जगह यही हाल है ,क्या ऑफिस क्या सड़क ?
काय राव; सब जगह भांग घुली है। बंगाल वाला भी मराठी के साथ ऐसा ही करे शायद।
जात पात तो लोगो के खून में घुल गयी है.. पता नही इस बीमारी का कोई टीका कब आएगा??
wakayee...durbhgypurn sthiti hai.
अनिल भाऊ,
यही है हमारा वसुधैव कुटुम्बकम. चीनो-अरब हमारा, सारा जहाँ हमारा...
अरे साहब! आप शायद भूल गए वो पुलिस वाले हुए तो क्या हुआ हैं तो हिन्दुस्तानी न.....यह हमारे देश शुरू से होता आया है....लोगो को अलग - अलग बाटना ...कभी धर्म के नाम पर, कभी जात के नाम पर, कभी इलाके के नाम पर, कभी रंग के नाम पर, यह तब तक ख़त्म नही होगा जब तक हम अपने अन्दर बदलाव नही लायेंगे....क्यूंकि बदलाव पहले अपने घर से शुरू होता है.....
क्षेत्रीयवाद की....अफसोस है,
सिटीजन: दया और प्रेम की प्रतिमूर्ति स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती अवसर : समाज सुधारक ही नही वरन आजादी के भी दीवाने थे ?
दिनेश जी सही कहत हैं! अपने स्वार्थ के लिये नेता लोग जम कर इस जमीन को बांट रहे हैं और आपस में बैर फैला रहे हैं.
सस्नेह -- शास्त्री
जै जै जै हो हिन्दुस्तान...
जनता, पुलिस, सरकारी तंत्र सभी में प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद है। तभी तो ऐसे नेतायों को समर्थन मिलता है।
यह अनुभव तो हम-आप अपने छ्त्तीसगढ़ में भी कर चुके हैं
अब क्या कहें??
ऐसा लगभग हर प्रान्त में होता है...अफसोसजनक मगर सच. पता नहीं इनसे उबरने का कोई रास्ता है भी कि नहीं.
पोलिस से पंगा नै लेने का, क्या!
yeh to kuch bhi nahi hai, kuch din pehle main chennai gaya tha, room service ko order dene par jab waiter ko samaj mein nahi aaya to usne doosre ko phone dete hua kaha "indian".
दिल को छु लेनेवाली घटना. पर यह सच है कि गरीबो से जयादा पढ़े - लिखे, कानून के सो कॉल्ड रखवाले ही इन गलत चीजो को बढावा देते है. हम जैसे लोगो को इसका जम कर विरोध करना चाहिए. ये प्राय हर प्रदेश कि कहानी है....कमोबेश...
Post a Comment