Sunday, February 22, 2009

न्यूज़ चैनल वाले देश को हिंदूस्तान कहे तो धर्मनिरपेक्षता?औरअगर मोदी,ठाकरे या तोगड़िया कहे तो साम्प्रदायिकता?

एक महान न्यूज़ चैनल पाकिस्तान और तालिबान के साथ तुकबंदी करने के लिहाज़ से भारत को हिंदूस्तान कह रहा था।उसे हिंदूस्तान शब्द ज़रा भी साम्प्रादायिक नही लग रहा था और अगर भूल से मोदी,तोगडिया या आडवानी ऐसा कह दें तो यही चैनल वाला भैया चिल्ला-चिल्ला कर बताता कि देखिये जिस देश मे ईसाई और मुसलमान भी रहते हैं उसे ये साम्प्रादायिक ताक़ते हिंदूस्तान साबित करने पर तुली हुई है।

मेरा इस बात से विरोध नही है कि इस देश को हिंदूस्तान क्यों कहा?बल्कि मेरा विरोध इस बात से है जो लोग धर्मनिरपेक्षता के स्व्यंभू ठेकेदार हैं,जो अल्पसंख्यको के सबसे बड़े रखवाले होने का दावा करते हैं,उन लोगो को महज़ हैडिंग मे तुकबंदी हो सके इस लिहाज़ से देश को भारत की बजाय हिंदूस्तान कहना कहां तक़ जायज़ है।

तीन हाथ वाला तालिबान,मुश्किल मे पाकिस्तान और खतरे मे हिंदूस्तान,जैसे टाईटल देकर वे देश का कौन सा भला कर रहे हैं ये तो वे ही जाने,मगर आपसी मारपीट मे भी अगर कोई अल्पसंख्यक घायल हो जाये तो कथित हिंदूवादी या साम्प्रदायिक ताक़तो के पिछे नहा-धो कर पड़ जाने वाले लोगो का ऐसे शब्दो का इस्तेमाल जिसमे हिंदू शामिल है ,समझ से परे है।

अफ़्सोस कि बात तो ये है बात-बात मे बहस करने और करवाने वाले भी इस मामले मे खामोश है।अपने-आपको सबसे ज्यादा समझदार और विद्वान मानने वालो का इस तरह के टाईटल और शब्द इस्तेमाल करना,और सारे देश मे खतरा है-खतरा है कह कर दहशत फ़ैलाना,जाने-अंजाने हिंदूओ और उनके हिंदूस्तान मे रहने वाले गैर हिंदूओ के दिलो-दिमाग मे भ्रम उत्पन्न करना कहां तक सही है,ये सोचने की बात है।

ज़रा सी बात पर एक-दूसरे के चैनल पर कीचड़,कीचड़ क्या गटर का कचरा तक उछालने का मौका ढूंढने वालों की खामोशी भी गले नही उतर रही है।आखिर भारत नाम का देश है या नही इस दुनिया मे? क्यो नोट पर भारतीय रिज़र्व बैंक लिखा रहता है?उसे बदल कर हिंदूस्तानी रिज़र्व बैंक लिखवाने के लिये ये चाहे तो मुहिम चला सकते हैं,बस उसमे शर्त केवल एक है,उस मुहीम से मोदि,ठाकरेबंधु,आडवानी,सिंघल,तोगड़िया,बजरंग दल शिव सेना या श्रीराम सेना दूर रहना चाहिये।भारत सरकार को भी चाहिये के देश के सबसे महान न्यूज़ चैनल से थोड़ा सीखे और भारत सरकार की बजाय हिंदूस्तान सरकार कहलाये।झंझट ही खतम हो जायेगा,चैनल वालो के हिसाब से फ़सादियों,फ़ासिस्टों या देश तोड़ने वालों का।

खैर ये सब तो न्यूज़ चैनल वाले ही कह सकते हैं।इतना अधिकार सिर्फ़ उन्हे ही है।ये अधिकार उन्हे किसी ने दिया नही है,खुद उन्होने लिया है।किसी मे हिम्मत है तो बोल कर देखे उसकी इज़्ज़त का जनाज़ा निकल देंगें।वे चाहे भारत कहे या हिंदूस्तान,सब धर्मनिरपेक्ष है।हां अगर कोई दुसरा बोला तो फ़िर परिभाषा बदलते देर नही लगती। आखिर उनके हिंदूस्तान मे धर्मनिरपेक्ष अगर कोई है तो सिर्फ़ वे?बाकी सब निकम्मे,जाहिल,अनपढ,अज्ञानी,साम्प्रदायिक असंसदीय, अराजक,असामाजिक और कानून व संविधान की रत्ती भर भी समझ नही रखने वाले लोग है जिन्हे वे शिक्षित करने का महान पुण्य कार्य कर रहे हैं।लिखने को तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है,मगर फ़र्क पड़ना नही है,चिकने घड़े है जिसमे सिर्फ़ सरकार के डंडे का पानी ही भरता है।

21 comments:

Unknown said...

क्या बात कर दी भाउ… मेरे ज्यादा सम्पर्क में रहोगे तो ये "वायरस" लगना ही था… :) :)

उपाध्यायजी(Upadhyayjee) said...

सब रिजेक्ट माल का कमाल है | सब रिजेक्ट माल मीडिया में पहुच गया है | बुरा ना माने लेकिन समाचार सुन/पढ़ कर ऐसा ही लगता है | ऊपर से मालिको का राजनितिक साथ गाठ | बेचारे क्या करें? उअनके प्रति भी हमारी सहानुभूति है | वो भी इस द्वंद में फसे हुए हैं |

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

इसे हमारे देश की बदनसीबी ही कहें कि हम अपने देश का सही नाम भी नहीं ले सकते। संविधान तो कह ही रहा है- इंडिया दैट इज़ भारत और हम हिंदुस्तान कहने से सहम जाते हैं क्योंकि इसमें हिंदू की गंध आ रही है। पहले तो हिंदू की सही व्याख्या ही समझ नहीं आती। हिन्दू तो कोई मज़ह्ब नहीं है। जैसे चीन में रहने वाला चीनी, जापान में रहनेवाला जापानी, वैसे ही हिन्दुस्तान में रहने वाला हिंदू। यदि यह बात समझ में आए तो ये हिंदू-मुस्लिम, सिख, इसाई का भेद कम से कम देशवासियों के लिए समाप्त हो जाएगा।

ताऊ रामपुरिया said...

भाई ये तो वही बात हो गई, एक फ़िल्म देखी थी, नाम याद नही आ रहा है, सोहराब मोदी साहब की थी. उसमे वो एक डायलोग बोलते हैं-- तुम्हारा खून.. खून और हमारा खून... पानी?

रामराम.

Udan Tashtari said...

निकम्मे,जाहिल,अनपढ,अज्ञानी,साम्प्रदायिक असंसदीय, अराजक,असामाजिक और कानून व संविधान की रत्ती भर भी समझ नही रखने वाले ---------बाप रे बाप!!!

अक्षत विचार said...

khub nikali bharas. Thank you.

संकेत पाठक... said...

भाई ये चैनल वाले अपने गिरेबान में झाकते नहीं है और दूसरों पर कीचड़ उछालने चल पड़ते है. इन्हे देश में हो रहा भ्रष्टाचार तो दिखता है पर उसमे अपनी सहभागिता नहीं दिखती. इन्हे बोम्ब ब्लास्ट में पकिस्तान का हाथ तो दिखता है पर अपने सरकार का निकम्मापन नहीं दिखता. इन्हे ताज और ओबेरोए तो दिखता है पर ये CST को भूल जाते है. क्या करें सब बाज़ार की मोह माया का खेल है...

राज भाटिय़ा said...

निकम्मे,जाहिल,अनपढ,अज्ञानी,साम्प्रदायिक असंसदीय, अराजक,असामाजिक और कानून व संविधान की रत्ती भर भी समझ नही रखने वाले लोग है जिन्हे वे शिक्षित करने का महान पुण्य कार्य कर रहे हैं।लिखने को तो बहुत कुछ लिखा जा सकता है,मगर फ़र्क पड़ना नही है,चिकने घड़े है जिसमे सिर्फ़ सरकार के डंडे का पानी ही भरता है।

बहुत ही सुंदर लिखा, अब ओर क्या कहे ऎसे लोगो को.
धन्यवाद

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

प्रसाद साहब की बात से सहमत. काश यह देश वास्तव में हिन्दुस्तान रह पाता. चैनल तो माल बेच रहे हैं, अब जैसे भी बिके. भारत में देश के नाम पर तो कोई आइडेन्त्टिटी नाम की चीज है ही नहीं.

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत खरा है जी!

Anonymous said...

अच्छा ही हैं कि कट्टरवादी
हमारे संस्कारो ने हमे बनाया हैं

Meenu Khare said...

Suresh Chiplunkar और COMMON MAN की बात से सहमत.

Meenu Khare said...

बहुत ही सुंदर लिखा.धन्यवाद.

विष्णु बैरागी said...

अापने चैनलवालों को रंगे हाथों और नंगी दशा में पकडा है। टीआरपी के चक्‍कर में ये सारे देश को दांव पर लगा देते हैं।
मजे की बात यह है कि पाकिस्‍तान की ओर से आधिकारिक रूप से जब भी कुछ कहा जाता है तब 'भारत' ही प्रयुक्‍त किया जाता है।

Pramendra Pratap Singh said...

सच्‍ची बात
धाकड़ लेख

कुश said...

बहुत सही प्रश्न उठाया है आपने अनिल जी.. मैने तो इस तरह के प्रोग्राम देखने ही बंद कर दिए है.. जस्ट इग्नोर देम.. अगर टी आर पी नही होगी तो ये भी बंद हो जाएँगे... ग़लत चीज़ो का बहिष्कार ही उचित समाधान है..

hem pandey said...

खरी बात.

Puja Upadhyay said...

सहमत हूँ आपसे...मीडिया का स्तर हद दर्जे तक गिर गया है.

Nitish Raj said...

जानता था कभी ना कभी आप की कलम याने की कीबोर्ड से ये लिखाजाना ही है। पर सवाल कई हैं और शायद जवाब उससे भी अधिक। लेख से समझना बड़ा ही आसान है कि आपने किस पर निशाना लगाया है पर देखने या पढ़ने वालों को जो अच्छा लगता है शायद वो ही मीडिया वाले करते हैं अधिकतर। जनता की आवाज बहुत होती है आप भी संपादक है आप भी दुनिया की पसंद ही छापते हैं ना कि अपनी। यदि अपनी पसंद छापते होंगे तो खरीददार भी सिर्फ अपने ही होंगे। गलत तो नहीं कहा। मेल के इंतजार में नहीं फोन के नंबर मिल गया।

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह दादा वाह सुंदर सटीक व सामयिक चिंतन..

NIRBHAY said...

indus river ke paas rahnewale logon ka nam HINDU pada, ab yehan sanatan dharmi,muslim,chritians sabhi rahten hai, yeh sabhi HINDU hee hai. sirf sanatan dharmi hee 14-AUG-1947 se HINDU ho gaye. Poora khel British Govt. ka hai, voh yehan hindu-muslim bhaichara nahi dekhna chahti thee aur fir ISA- MUSA ke ladaie me hindo - pak ko jhonk diya.
TV channel ke paas sirf Metro cities ki news aur Politicians kee bhadwagiri hai & advertisement ka paisa bana rahen hai.
News paper local news chhapta hai woh bhee "ATISHYOKTI" saheet, jhooth, baqwas kya karen padhne ki aadat pad gayi hai varna subah Pet saf nahi ho pata.