कहां है तू?यार मैं रास्ते मे हूं!बेटा कहां है तू?आई(माताजी) घर ही आ रहा हूं!बाबा कहां हो आप?बस बेटा दो मिनट मे घर आ रहे हैं!बाबा बहुत झूठ बोलने लगे हो आप!आज जब नर्सरी मे पढने वाले मेरे भतीजे ओम ने जब कहा कि आप बहुत झूठ बोलने लगे है,तब मुझे लगा कि वाकई मै झूठ बोलने लगा हूं।इस झूठ बोलने की नई आदत ने बरसो से बनी बनाई सच बोलने वाले की इमेज का सत्यानाश कर दिया।
हां मै स्वीकार करता हूं कि मै आजकल झूठ पे झूठ बोलने लगा हूं।मै जो बचपन से सच बोलने की आदत के कारण घर मे आये दिन पिटता था,मगर झूठ नही बोलता था।सुनील(छोटे भाई) के रोने का का कार्ण पूछने पर ये जानते हुये कि मार पड़ेगी,मैने कभी ये बताने से परहेज़ नही किया कि वो मेरे मारने के कारण रो रहा है।बाद मे भले ही मै रोया मगर मैने झूठ नही बोला।सच बोलकर पिटने का अपना रिकार्ड़ इतना अच्छा था कि बाद मे झूठ बोलने वाले इसका फ़ायदा उठाने लग गये थे।
बचपन से झूठ नही बोलने वाले की इमेज का मगर आज ऐसा लगा कि सत्यानाश हो गया।और इसके लिये जिम्मेदार मै नही हूं।अब आप बोलोगे कि झूठ खुद बोल रहा है और जिम्मेदारी भी नही ले रहा है।तो मै कहीं से गलत नही हूं।झुठ बोलने की सारी जिम्मेदारी उस मशीन की है,जिसके आने बाद मै पल-पल झूठ बोलने लगा हूं।इमेज की तो पूरी की पूरी वाट लग गई है। अब तो दूध पीते बच्चे भी समझ गये है कि मै झूठ बोलता हूं।
दरअसल इसमे गल्ती मेरी नही है।जब से ये झूठ बुलवाने वाली मशीन आई है,अकेला मै नही कई लोग झूठ बोलने लगे हैं।ये बात अलग है कि मेरी तरह वो झूठ बोलने की बात को पूरी सच्चाई के साथ स्वीकार नही कर सकते।झूठ बुल्वाने वाली मशीन यानी मोबाईल फ़ोन्।जब से ये हत्थे चढा है,सुबह से लेकर शाम क्या देर रात तक़ झूठ बोलने का सिलसिला शुरू रहता है।
सुबह घंण्टी बजती है और उधर से पूछे जाने वाले सवाल के जवाब से दिन की शुरूआत होती है झूठ से।सो रहा है क्या बे?नही यार !क्यों? तो फ़ोन क्यो नही उठा रहा था?पूजा कर रहा था भाई!चल जब घर से निकलेगा तो मेरे आफ़िस होते जाना!ठीक है?यानी बिस्तर छोड़ने से पहले झूठ! अभी नहाने घुसे नही कि फ़ोन पर जवाब दे रहे है बस घर से बाह्र निकल गया हूं।पांच मिनट मे आफ़िस पहूंच रहा हूं। आधे घण्टे बाद उसी फ़ोन के जवाब मे अरे गेस्ट आ गये थे,बस उनको रवाना कर दिया हूं।पहूच रहा हूं। अब नाश्ता करते समय फ़ोन बजा तो जवाब तैयार है।रास्ते मे हूं!कहां पहूंचा बस तेरे आफ़िस के पास ही हूं। अबे मै तेरे घर के बाहर पहूंच गया हूं।तेरी गाड़ी बाहर खड़ी है और तू मेर आफ़िस के पास पहूंच गया?अबे जब जान्ता है तो फ़िर फ़ोन क्यो करता है बे।
ये एकाध दिन का किस्सा नही है,बल्कि रोज़-रोज़ का रोना है।प्रेस क्लब मे मज़े से कैरम खेलते बैठे रहो और जैसे ही फ़ोन बज़े श्श्श्श्श्शश्श्श्श्श्……………………एक मिनट।इम्पोर्टेण्ट काल है। हां,क्या आ रहा हूं। नही आधा घण्टा तो लगेगा ही।ज़रूरी मीटिंग मे बैठा हूं। हां फ़्री होते ही आ रहा हूं।श्योर।बाय। चल बे खेल। आधे घण्टे बाद फ़िर फ़ोन आने पर बस पहूंच रहा हूं।दस मिनट और चलेगी मीटिंग। अरे वो फ़लाना है ना उसका मंत्री से लफ़्ड़ा हो गया था ना,उसी के चककर मे बैठक थी।बस पांच मिनट मे पहुंचा।कहां पहूचा भाई?ये रास्ते मे हूं। अबे बाहर देख हम लोग खुद आ गये हैं। अब किसी से बताओ पांच मिनट मे आ रहा हूं तो वो पूछता है कितने घण्टे का होता है पांच मिनट्।रात को खाने पर बुलाने वाले दोस्त साफ़ कह देते है आना है तो आ जाना कोई फ़ोन नही करगा।सब इस बात को लेकर गालिया बकते है,मगर वो सब आदत सी हो गई थी।मगर आज जब मेरे नर्सरी मे पढने वाले भतीजे ओम ने कहा कि बाबा आप बहुत झूठ बोलने लग गये हो! तो मुझे लगा सच मे शायद मै ज्यादा झूठ बोलने लगा हूं। हो सकता है और भी बहूत से लोग इस झूठ बुल्वाने वाली मशीन मोबाईल फ़ोन के कारण झूठ बोलने लगे हो।कोई माने या ना माने मै तो पूरी ईमानदारी से कन्फ़ेस करता हूं कि मै झूट बोलता हूं।
7 comments:
झूठ बोलने की भी सौ बहाने होते हैं ...पर क्या करे ई मशीन का ही किया धरा है सब :)
अनिल जी एक दिन बस एक दिन इस मशीन पर सच बोल कर देखे, आप फ़िर कभी इस पर झुठ नही बोलेगे, यह मेरा दावा है, हम लोग दुसरे की नाराजगी से बचने के लिये झुठ बोलते है, ओर समझते है समाने वाला हमारी बात को सच समझ रहा है, यह हमारा वहम हैवो हमारे रोज रोज क्र बहाने सुन कर समझ जाता है कि हम झुठ बोल रहे है, दुसरा कारण आप ने मेरे सामने दुसरे से झुठ बोला, उस के सामने मेरे से झुठ बोला, तो हम दोनो को भी आप का पता चल गया.
वेसे आप का लेख है बहुत प्यारा, ओर यही हाल मेरा था, शरारत की जब पुछा तो झट से बता भी दिया, लेकिन उस मार ने बहुत सी अच्छी आदते डाल दी, मेरे कई दोस्त अभी भी यही करते है, ओर उन का कोई यकीन नही करता.
धन्यवाद
आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
अनिल जी होली की रा्मराम. जिसको पिटना है वो तो पिट कर रहेगा चाहे सच बोले या झूंठ बोले.
वैसे कहते हैं कि झूंठ को सौ बच्चे पैदा होते हैं और सच तो हमेशा बांझ होती है.
रामराम.
भाई, आपकी बेबाक बयानी की तो दाद देनी पड़ेगी.
वैसे मोबाइल काम न करे तो अपने सारे झूठ वास्तुशास्त्र के जिम्मे भी डाल सकते हैं. उदाहरण के लिए, "घर का दरवाजा दक्षिण दिशा में था, इसलिए झूठ निकल गया" वैसे अपनी जिम्मेदारी से बचना ही हो तो किसी को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.
झूठ बुलवाने की मशीन! वाह! वैसे बोलने की टोन और पिच से कुछ तो पकड़ा जाता होगा!
हा हा हा बहुत सुन्दर लिखा है। इस मशीन की आजकल बहुत आवश्यकता है।
एसी मशीन राजनेताओं के सिर पर फिट कर देनी चाहिए... झूठ बोला नहीं कि भोंपू बज उठे
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