Wednesday, March 18, 2009

भूखे मर रहे हैं आज़ाद हिंद फ़ौज के प्रेस और प्रोपेगंडा मंत्री!

इससे ज्यादा अफ़सोस की बात क्या हो सकती है कि देश पर मर मिटने वाला आज भूखे मर रहा है।नेताजी का कभी खास हुआ करता था श्रीमोहन लहरी।सौ बरस के लगभग उम्र मे भी तेवर जाबांज सिपाही के ही हैं।अव्यवस्था के खिलाफ़ खामोश रहने की बजाय अनशन करना बेहतर सम्झा और पांच दिनो तक़ भूखे रह कर सरकार का ध्यान खींचने की भरपूर कोशिश की श्री लहरी ने।


श्री लहरी की हालत देख कर लगता है अच्छा ही हुआ कि सुभाष बाबू इस देश वापस नही लौटे,वर्ना शायद आज़ादी पाने लेने वाले इस देश के ठेकेदार उनका हाल भी ऐसा ही कुछ कर देते। नेताजी के साथ आज़ादी की ज़ंग मे अपना सब कुछ न्योछावर कर देने वाले श्रीमोहन लहरी अपने बारे मे सिर्फ़ ये कहते हैं कि वे हिंदोस्तानी है। होशंगाबाद मे जन्मे लहरी जी को पांच भाषाओं का ज्ञान है।




नेताजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले लहरी जी ने सोचा भी न होगा कि आज़ाद भारत मे उनसे और उन जैसे आज़ादी के अनेको दीवानों के साथ परायो जैसा सलूक होगा।लहरी जी ने आज़ाद हिंद फ़ौज़ मे भर्ती होने बाद अनेको मिशन को अंजाम दिया और देश-विदेश मे रह कर अपनी जंग जारी रखी।उनका विवाह सिंगापुर रेडियो मे कार्यरत फ़्लोरा फ़्रांसिस से हुआ था।बमबारी ,मे अपनी पत्नि फ़्लोरा और बिटिया की मौत के बाद लहरी जी सिंगापुर छोड़ कर रंगून चले गये और वंहा एक कर्नल के साथ मिलकर आज़ादी की लड़ाई की मशाल को जलाये रखा।



न सिर्फ़ नेताजी बल्कि आज़ादी के तमाम मतवालो की जान हथेली पर लेकर लड़ी गई आज़ादी की लड़ाई सफ़ल रही और जीत के जश्न मे डूबे भारतवासियो ने कुछ दीवानो को तो पहचाना मगर बहुत से लोगो को भुला दिया गया।लहरी जी भी उन बदनसीबो मे से एक हैं।उनकी किस्मत उतनी अच्छी नही थी कि उन्हे फ़्रीडम फ़ाईटर कोटे से पेट्रोल पंप या गैस एजेंसी मिल जाती।उन्हे तो पेंशन तक़ के लाले पड़े हुये है।

फ़िलहाल लहरी जी प्रदेश की भाजपा सरकार के बुलावे पर यंहा आने के बाद से बदहाली का जीवन व्यतीत कर रहे हैं।उनको चाय और भोजन छत्तीसगढ हाऊसिंग कार्पोरेशन की महिला कर्मी सोमबती के सहयोग से मिल जाता है।जिस हाल मे लहरी जी रह रहे हैं वो कतई भी आज़ादी के मतवाले की शान के अनुरूप नही है। हालांकि नेताजी सुभाष मंच के शैलेंद्र तिवारी और कांग्रेस नेता अरूण भद्रा ने अब लहरी जी की सेवा का जिम्मा ले लिया है,लेकिन ये अफ़्सोस की बात है सर्किट हाऊस और वी आई पी गेस्ट हाऊस मे मुफ़्त की राजषी सेवा का उपभोग करने वाले ट्टपूंजिये नेताओ को आज आज़ाद भारत मे सांस लेने का हक़ देने वाले को दो वक़्त की रोटी के लिये तरसना पड़ रहा है।(सभी फ़ोटो संतोष साहू से साभार)

14 comments:

Sanjeet Tripathi said...

शर्मनाक!

मै खुद इस मुद्दे पर लिखने की सोच रहा था उससे पहले ही आपने लिख दिया, आभार।

मूलत: पंजाब के निवासी आजाद हिंद फौज के एक सेनानी वर्तमान में रायपुर के निवासी सरदार दिलीप सिंह जी बताते हैं कि वो जब तीन चार महीने में अपनी पेंशन लेने पंजाब जाते हैं तो क्या क्या दिक्कत आती है।
हमारे सरकारें और अफसरान इतने संवेदनहीन क्यों हैं?

राज भाटिय़ा said...

लानत है इन गुंडो पर जो आज हमारे नेता बने घुमते है, क्या आजादी इन हरामियो के लिये ली थी, शॆष लोग तो आज भी गुलामी की जिन्दगी ही जी रहे है,
अनिल जी आप के हर लेख से बहुत सी बातो का पता चलता है.
धन्यवाद

दिनेशराय द्विवेदी said...

सरकारों को शर्म आनी चाहिए कि नौकरी के दौरान करोड़ों की रिश्वत खाने के बाद भी लाखों सरकारी अफसर रहे लोगों को रिटायरमेंट के बाद हजारों की पेंशन दे रही है। लेकिन देश की आजादी के लिए लड़े सेनानियों के लिए उन के पास संवेदना तक नहीं है।

Arvind Mishra said...

श्री मोहन लहरी की यह दारुण कथा सुन मन व्यथित हो गया ! ओह !

seema gupta said...

" uf kitna dard hai shri mohan ji ki khaani mey.....dil dukhi ho gya hai....sarkar km se km unki umr ka to lihaja kre.."

Regards

संगीता पुरी said...

देश में एक ओर जहां श्री मोहन लहरी जैसे असली स्‍वतंत्रता सेनानियों को पेंशन नहीं मिल पाने से वो इतनी कठिनाइयों में घिरे हैं ... वहीं नकली सर्टिफिकेट दिखाकर न जाने कितने लोग स्‍वतंत्रता सेनानियों के पेंशन लेकर वह जीवन जी रहें ... जो उन्‍होने कभी सोचा भी न होगा।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

वतन पर मिटने वालों का यही अंजाम होगा.

Puja Upadhyay said...

आजाद भारत की यही विडंबना है...जिन नेताओं को कोई भी मतलब नहीं है देश से कितनों के रकम डकार रहे हैं देश सेवा के नाम पर और कहाँ एक तरफ वतन पे मर मिटने का जज्बा रखने वाले लोगों की ऐसी दयनीय स्थिति है. शर्मनाक है ये सब.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

छोडो कल की बातें, कल की बात पुरानी
हम हिंदुस्तानी......हम हिंदुस्तानी।

नेताजी जिन परिस्थितियों में मरे, उसका भी आज देश की जनता को पूरा पता नहीं। अब ये जांबाज़ मर रहे हैं तो इसकी सुध कौन ले? सब नेता लोग अंगूर की बेटी के साथ ऐश जो कर रहे हैं!!!!!

दीपक said...

Bas aisa hi kuch hamesha hota hai !!ghodo ko dana nasib nahi gadhe yaha khir khate hai !!

ham blogger ko milke inaki kuch madad karani chahiye .yadi aisa kuch prayas ho to ye bloogermeet se jyada arthapurn hoga !!

अनिल कान्त said...

देश को चलाने वालों में शर्म है कहाँ

डॉ .अनुराग said...

शर्मसार है अनिल जी...ये देश अपने ही वीरो की कद्र नहीं कर सकता ..

क्या कुछ किया जा सकता है ....बताये ???

aativas said...

केवल सरकार नही हम सब गुनहगार है... हम गुंडों के, नेताओं के, अभिनेताओं के पीछे भागते जा रहे है साठ साल...

योगेन्द्र मौदगिल said...

हे राम..........!!!