Friday, May 15, 2009

मुख्यमंत्री जी सुनिये तो!महापौर जी देखिये तो! अरे पत्रकार भाई लिखिये तो!मै भी तो कभी तालाब था!

हर साल गर्मी पड़ती है और हर साल जल-संकट होता है। एक दिन सुबह-सुबह अखबार पर नज़र पड़ी तो मारे खुशी के, भूगर्भ मे चला गया मेरा जल हिलोरे मारने लगा।मुख्यमंत्री खुद तालाबो की हालत देखने निकलेगे, ये पढकर मुझे लगा चलो कोई तो है जिसे हमारी उपयोगिता समझ मे आई।मैने सोचा शायद वे मेरी ओर भी आयें।दोपहर को उनका काफ़िला पूरे तामझाम के साथ निकला। महापौर और उनका दौरा कव्हर करने के लिये कुछ पत्रकार साथी भी थे। मै उनका इंतज़ार करता रह गया और वे बिना मेरी सुध लिये वापस जाने लगे। मुझसे रहा न गया मैने उनसे गुहार लगाई,महापौर से फ़रियाद की और अंत मे पत्रकार साथियों से भी चिरौरी की। मगर अफ़सोस किसी ने मेरी सुध भी नही ली। आखिर मै वो तालाब था जिसका कत्ल हुये ज़माना हो गया । जिसकी कब्र पर खड़ी इमारतें पत्रकारो की रोज़ी-रोटी दे रही हैं।जिसकी कब्र पर बने भवन मे बैठकर मुख्यमंत्रीजी और उनके साथी प्रदेश के विकास की योजना बनाते हैं।मै गुज़रे ज़माने का किस्सा बन गया हूं। मै रजबंधा तालाब हूं,जो आजकल प्रेस-काम्प्लेक्स के नये नाम से पहचाना जाना जाता हूं।

मै अकेला तालाब नही हूं जिसको ज़मीन की लालच मे ज़िन्दा दफ़न कर दिया गया।मेरे जैसे कम से कम 50 तालाब है जिनका इस शहर मे विकास के नाम पर कत्ल कर दिया गया।30 तालाब ऐसे है जिन्हे स्लो पाईज़न दिया जा रहा है।उनमे से कुछ की हालत बहुत खराब है। वे सिकुड़ कर आधे रह गये हैं। और रोज़ बढते कब्ज़े उनका दम घोंट रहे हैं।

क्या आपको पता है मुख्यमंत्री जी इस शहर मे 184 तालाब हुआ करते थे । उनमे से एक मै भी था, रजबंधा तालाब्।आज मेरी छाती पर यंहा बड़े-बड़े प्रेस है और आपकी पार्टी का दफ़्तर भी और उसका मार्केट भी।उससे लगी हुई थी तालाबो की एक श्रंखला।उनपर मेडिकल कालेज के हास्टल समेत एक पूरी तरह अवैध बस्ती सुभाष नगर बसी हूई है। करीब मे ही अंग्रेज़ो के ज़माने का लेडी जो बाद मे लेंडी तालाब कहलाता था अब इतिहास बन चुका है।वंहा सबसे बडी सब्जी मंडी बन गई है। और तुम्हे याद है अनिल तुम्हारे स्कूल के सामने एक तालाब होता था।याद है या याद दिलाऊं।याद आया न।स्कूल से भागकर खाली समय मे तुम टूटे हुये खपरैल के टुकडे तिरछे कर फ़ेंकत कर उन्हे मेरे सीने पर दूर तक़ छलांग लगाते हुये देखते थे।क्या कभी सोचा मेरा क्या हुआ।कैसे तमाम विरोध के बाद भी वंहा हनुमान नगर बन गया ।कभी देखा है किसी की कब्र पर आशियाना बनते हुये।

तुम्हे भी याद नही आयेगा। तुम भी बदल गये हो शायद। याद है तुम जब नये-नये पत्रकार बने थे तब तुमने लिखा था कि "गुम होते तालाबो कि किसी को चिंता नही"।तब एक बड़े धांसू नेता ने तालाब बोर्ड बनाने की बात भी कही थी।वो तो खैर नेता थे उनका काम घोषणा करना और भूल जाना होता है,मगर तुम्……………………। तुम भी वही निकले एक स्टोरी के चक्कर मे हम लोगो की उम्मीदे जगाई और नाम कमा कर भूल गये। अरे हां याद आया तुम तो ज़ियोलोजिस्ट भी होना।पी एच ई मे तो तुम्हारा ए क्लास हाईड्रोजियोलोजिस्ट के रूप मे रजिस्ट्रेशन था न्।क्यों गलत बोल रहा हूं। अरे पत्रकार होने के नाते न सही हाईड्रोजियोलाजिस्ट होने के नाते ही सही, हम लोगो के लिये कुछ तो किया होता।आज फ़िर याद आ रही तुमको और तुम्हारे साथियो को हम लोगो की, जब शहर के लोग प्यासे मर रहे हैं।तुम्हे तो शायद 20 साल बाद याद आ रही है वो भी मुख्यमंत्री आये इसलिये।वर्ना कभी-कभार फ़ीलर स्टोरी के रूप मे इस्तेमाल ज़रूर किया है तुमने हम लोगों की कत्ल की दास्तां को।एक बात समझ मे नही आती तुम लोग जब किसी नेता के पीछे पड़ते हो तो उसे गड्ढे मे डाले बिना नही छोड़ते, तुम मगर मेरे……………। अच्छा! याद आया1 तुम लोगो के मालिको के प्रेस भी तो मेरी ही छाती पर खड़े है।सारी सारी सारी।तुम लोग भी क्या कर सकते हो पापी पेट का सवाल जो ठहरा! हैं ना।ज्यादा तो नही बोल गया ना।


मेरी कोई बात बुरी लगी हो तो माफ़ कर देना। मगर तुम लोगो ने जो किया है उसे कोई माफ़ नही कर सकता। अब भुगतो।कितना गहरा करोगे तालाबो को।क्या तालाब को कुआं बना दोगे।फ़िर पैसा खाओगे गहरीकरण के नाम पर। अरे दम है तो तालाबो को चौड़ा करो।उसे उसका वास्तविक स्वरूप वापस दिलाओ।सड़क के किनारे से अवैध कब्ज़े हटाये जा सकते है तो तालाबो के किनारे से क्यों नही।एक नही पूरे पचास तालाबो की हत्या हूई है इस शहर मे। कभी छोटा सा शहर हुआ करता था रायपुर तब यंहा 184 तालाब हुआ करते थे।जैसे जैसे शहर बडा होता गया तालाब छोटे होते गये और कुछ तो इतने छोटे हो गये कि उन्हे अब ढूंढना भी मुश्किल है। अब भी वक़्त है संभल जाओ वर्ना वक़्त भी तुम्हे वक़्त नही देगा पछताने के लिये।कभी भाजपा कार्यालय आना तो फ़िर एक बार सोचना मेरे लिये नही मै तो अब मर चुका हूं,उन तालाबो के लिये जो धीरे-धीरे दम तोड़ रहे हैं।

15 comments:

Udan Tashtari said...

चिन्ता का विषय है. जबलपुर का भी यही हाल हुआ था..कभी तालों का शहर कहलाने वाला जबलपुर अब तालों को तरसता है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

बिलकुल यही किस्सा मेरे शहर का भी है। 184 तो बहुत हैं पर यहाँ भी अगणित तालाब थे। अब इने गिने रह गए हैं। लेकिन वास्तविक तालाब एक भी नहीं जो हैं वे नहर से जुड़े होने से बचे हुए हैं।
लोगों को सदी बाद पता लगेगा तब लोग कहेंगे जमीन में पानी बहुत बहुत नीचे चला गया क्यों कि तालाब नष्ट कर उन का गला घोंटा गया।

संगीता पुरी said...

"मै अकेला तालाब नही हूं जिसको ज़मीन की लालच मे ज़िन्दा दफ़न कर दिया गया।मेरे जैसे कम से कम 50 तालाब है जिनका इस शहर मे विकास के नाम पर कत्ल कर दिया गया।"
मनुष्‍य के लालच के कारण हो रहे प्रकृति के दर्द को सही शब्‍द दिया है आपने .. वैसे जलसंकट यत्रतत्र भयंकर रूप में दिखाई पड ही रहा है .. समय रहते हम नहीं चेते .. तो इसका परिणाम बहुत भयंकर रूप में हमें झेलना होगा ।

ताऊ रामपुरिया said...

।तुम लोगो ने जो किया है उसे कोई माफ़ नही कर सकता। अब भुगतो।कितना गहरा करोगे तालाबो को।फ़िर पैसा खाओगे गहरीकरण के नाम पर। अरे दम है तो तालाबो को चौडा करो।उसे उसका वास्तविक स्वरूप वापस दिलाओ।सड़क के किनारे से अवैध कब्ज़े हटाये जा सकते है तो तालाबो के किनारे से क्यों नही।एक नही पूरे पचास तालाबो की हत्या हूई है इस शहर मे।

बहुत खरी खरी लिखी आपने. काश उस पर किसी का ध्यान भी जाये?

रामराम.

Unknown said...

अफ़सोस......लालच, भ्रष्टाचार, राजनितिक और प्रशासनिक लापरवाहियों का तालाब कभी नहीं सूखता.....

Anonymous said...

तालाब की जुबानी सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया है आपने. तमाम ओर जबकि जल-संकट गहरा रहा है, तालाबों का गला घोंटना वाकई चिंता का विषय है. अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाली बात तो सभी ने सुनी होगी, मगर ये तो कुल्हाड़ी पर पैर मारना हुआ. एक और सार्थक एवं ज्वलंत लेख के लिए आप साधुवाद के पात्र हैं.

साभार
हमसफ़र यादों का.......

Nitish Raj said...

एक सही मुद्दे को अपनी शक्ल और उसकी लाचारी को उसकी जुबानी पेश करना अच्छा लगा। सच हाल ये ही रहे तो पानी को तरस जाएंगे हम। और समीर जी से सहमत।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बिल्डर नेताओं से मिलकर तालाब और नदियों को खाये जा रहे हैं, किसी भी शहर को देख लीजिये.

राजकुमार ग्वालानी said...

रायपुर के तालाबों की जो तस्वीर आपने सामने रखी है, हमें नहीं लगता है कि और कोई पत्रकार इतने अच्छे तरीके से इसको रख सकता था। इसी के साथ आपने जिस अंदाज में इसको लिखा है उसको लिखने की हिम्मत तो बस आपमें ही हो सकती है। हम तो बस बधाई ही दे सकते हैं और उम्मीद करते हैं कि इसी तरह से आपकी कलम सच्चाई को बयान करती रहे। पानी की बेबसी पर हमारे ब्लाग में देखें
भईया पानी नहीं है मत आना...

guru said...

पूरे पचास तालाबो की हत्या हूई है इस शहर मे। वाह क्या बात कही है गुरु

शेफाली पाण्डे said...

बहुत अच्छे ढंग से आपने तालाब की पीडा को आवाज़ दी ...वाकई सभी जगह तालाबों की हत्या की जा रही है ... बहुत अफसोसजनक है यह ..

डॉ महेश सिन्हा said...

कलयुग की एक और गाथा

अनूप शुक्ल said...

बड़ी दुखद व्यथा कथा है तालाबों की।

Abhishek Ojha said...

तालाब की आत्मकथा पढ़ कर दुःख हुआ. काश उसकी (आपकी) आवाज मुख्यमंत्री और महापौर तक भी पहुचे.

Samrendra Sharma said...

सही कहा भैय्या। तालाबों का शहर अब कब्रिस्तान का शहर बन गया है। अब तो लगता है कि लोगों को केवल 4 ग़ज की दरकार है, लिहाजा जमीनों पर आलीशन कब्र तैयार किए जा रहे हैं।