Friday, May 8, 2009

जंगल मे घात लगाकर नही,भरे बाज़ार,दिन-दहाड़े हथियारो से गोद कर मार डाला थानेदार को नक्सलियो ने!

बस्तर के जंगलो मे नक्सलियो का राज है कहो तो पुलिस और सरकार तत्काल खंडन कर देती है कि ऐसी बात नही है।लेकिन सच तो यही है कि बस्तर मे नक्सलियो का अघोषित राज है।अगर ऐसा नही होता तो नक्सली भरे बाज़ार,दिन-दहाड़े थानेदार को हथियारो से गोद कर मार डालने की हिम्मत न दिखाते।

अब सरकार चाहे कुछ भी कहे नक्सलियो ने थानेदार अब्दुल वहीद खान को बारूदी सुरंग या बंदूको से नही बल्कि चाकू और गुप्ती जैसे हथियारो से गोद कर मार डाला,वो भी भरे बाज़ार्।यंहा सरकार ये नही कह सकती कि नक्सलियो ने कायरो की तरह धोखे से घात लगाकर हमला किया है।एक बात और साफ़ कर दूं कि मै यंहा नक्सलियो की हिम्मत की तारीफ़ नही कर रहा हूं बल्कि जंगल मे उन्के बढते खौफ़ और हौसले से उपजे खतरे बता रहा हूं।

बीच बाज़ार ग्रामीणो के भेष मे नक्सलियों का वंहा पहूंचना इस बात का सबूत है कि उन्हे पता था कि इंस्पेक्टर वहीद खान बाज़ार मे मौजूद हैं।दुसरा महत्व्पूर्ण तथ्य ये है कि उन्होने इस हमले मे बंदूक या पिस्तौल का उप्योग नही किया।वे चाकू और गुप्ती से लैस होकर आये थे और उन्हे पता था कि थानेदार के पास हथियार नही है।इस बात से एक बात साबित हो जाती है कि उनका सूचना तंत्र पुलिस के सूचना तंत्र से ज्यादा मज़बूत है और दूसरा कि पुलिस को नक्सलियो की गतिविधियो की ज़रा भी खबर नही मिल पा रही है जिसे गुरिल्ला वार-फ़ेयर कि सिद्धांतो के हिसाब से देखे तो यही समझा जा सकता है कि पुलिस या सरकार अभी भी स्थानीय जनता का भरोसा नही जीत पाई है।

खैर इस विषय पर फ़िर कभी लेकिन थानेदार वहीद खान पर भरे बाज़ार हमला करना और बड़े मज़े से फ़रार हो जाना सरकार और पुलिस के लिये ही नही आम जनता के लिये भी खतरे का सकेत है।इससे पहले उसी इलाके मे एक भाजपा नेता की गोली मारकर हत्या हुई।राजनांदगांव इलाके मे तो अभी कुछ महिने पहिले भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके दरबार सिंह को घर से बाहर लाकर नक्सलियो ने गोली मार दी थी।

रोज़ हो रही हत्यायें सरकार के लिये चुनौती है।उससे भी बड़ी चुनौती है जनता का विश्वास जीतना।अगर जनता को सरकार या पुलिस पर भरोसा होता या उनपर नक्सलियो का खौफ़ नही होता तो भरे बाज़ार सिर्फ़ चाकू या धारदार हथियारो के भरोसे नक्सली वंहा से भाग निकलने मे सफ़ल नही होते।बाज़ार मे वैसे ही भीड़ होती है और साप्ताहिक बाज़ार मे और ज्यादा।लेकिन हमला होते ही थानेदार की मदद करने की बजाय बाज़ार का खाली हो जाना इस बात का सबूत है कि पुलिस की मदद करने वालो को सुरक्षा नही मिल पाती।

वजह चाहे जो भी हो सरकार और पुलिस को इस माम्ले की गंभीरता पर सोचना ज़रूर होगा,वैसे नही जैसे वो सोचती आ रही है,बल्कि ज़मीनी हक़ीक़त के आधार पर काम करने की रणनिती बनानी होगी।सेमिनारो मे बड़ी-बड़ी बाते कहने से कुछ नही होगा। ना ही मुख्यमंत्री का ये बयान कोई मायने रखता है कि वहीद खान् की शहादत बेकार नही जायेगी।वहीद खान तो असमय अपने परिवार को बेसहारा छोड कर जा चुके हैं। अगर सरकार को वहीद खान और दूसरे शहीदों की शहादत को बेकार नही जाने देना है तो उसे ऐसे इंतज़ाम करने होंगे कि उसका कोई जवान शहीद ही न हों।

12 comments:

दीपक said...

सही कहा आपने !!

सेमीनार मे चाय की प्यालीया खाली करके जमीनी समस्याओ के हल नही निकाले जा सकते !!

राजीव रंजन प्रसाद said...

दुर्भाग्य बस्तर का। वहीद खान के लिये आपने आवाज उठायी यह हिम्मत की बात है।

रायपुर में महान समाज सेवकों - नक्सली मानवाधिकार कर्ताओं की अलगी बैठक होने ही वाली होगी? #$@@@#$ को नपुंसकों की तालियों का इतना लगाव है कि नंगा सच नहीं दिखता।

जगाये रखिये।

डॉ .अनुराग said...

असल खून तो इन निरीह पुलिस वालो का हो रहा है ....या सुरक्षा बालो का...मंत्रियो के टेंट लगवाने चाहिए जंगल किनारे

Pramendra Pratap Singh said...

सटीक लिखा है, अच्‍छा आक्रोस है। हम भी आपके साथ है, खतरों से डट कर मुकाबला करना चाहिये। अगर भाजपा सरकारों का यही रवैया रहेगा तो कांग्रेस से और उम्‍मीद नही ही की जा सकती।

दिनेशराय द्विवेदी said...

यदि सरकार जनता के निकट होती, जनता का विश्वास जीत सकने लायक स्थितियाँ होतीं तो नक्सली ही कहाँ होते। सरकार ने जनता के जिस हिस्से का विश्वास ही नहीं खो दिया है अपितु उसे शत्रु बना लिया है, नक्सली उन्हीं का तो उपयोग कर रहे हैं।
यह सरकार की असफलता है। वास्तव में ये घटनाएँ ही बताती हैं कि सरकार को जनता से वोट के सिवा कोई मतलब ही नहीं।

ताऊ रामपुरिया said...

इन समस्याओं से निपटने के लिये बहुत ही ठोस कदम सरकार को ऊठाने पडेंगे. जब तक सरकार की कमजोर इछ्छाशक्ति रहेगी तब तक कुछ नही होगा. रोज कोई ना कोई मरता रहेगा.

रामराम.

Unknown said...

वास्तव में नक्सल समस्या वास्तव में नासूर बन गया है छत्तीसगढ़ के लिये। पता नहीं कभी ये समस्या खत्म हो पायेगी भी या नहीं।

संजय शर्मा said...

नक्सली जिन्हें शहीद करता है उनके शहादत पर गुस्सा ,दुःख ,अफ़सोस जाहिर करने वालों की तुलना में ख़ुशी जाहिर करने वालों की तादाद ज्यादा है .इन्हें आन्दोलन कर्ता माना जाता है .पब्लिक आगे जबतक मरने के लिए
नहीं निकलेगी तब तक चुन-चुन के मारी जाती रहेगी .
हर किसी की हत्या पर ऐसे ही बयान आते है . राजीव गाँधी की हत्या पर भी ऐसा ही कहा गया . ''शहादत बेकार नहीं जायेगी ."

Kapil said...

प्रश्‍न है कि क्‍या सामाजिक बदलाव का आन्‍दोलन इन निर्दोष नागरिकों की हत्‍याओं, थाने-पटरी उड़ाने तक सिमट कर अपने मकसद से भटक तो नहीं गया है। मुझे लगता है भटक गया है।

रवि सिंह said...

नक्सली हत्यारे हैं और माओवाद मानवता का दुश्मन है

नक्सली और इनके पैरोकारों से सख्ती से पेश आना चाहिये

जनता नक्सल वादी हत्यारों के खिलाफ है लेकिन गुंडे हत्यारों से डर तो लगता ही है, नक्सलवादियों, मुख्तार अंसारियों, शहाबुद्दीनों में कोई फर्क नहीं है

इस समय सलवा जुडूम को और बढ़ावा देने की जरूरत है ताकि नक्सलवादी हत्यारों और इनके पैरोकारों के खिलाफ अभियान चलाया जा सके.

P.N. Subramanian said...

हालात इतने ख़राब हो जायेंगे ऐसा कभी सोचा न था. हम बीजापुर के घन घोर जंगलों में भी घुमते रहे हैं. पहली बार हमें उनका सामना करना पड़ा था केसकाल के पास के एक ऐतिहासिक स्थल में. शायद बड़े डोंगर रहा होगा. हमें घेर कर कड़ी पूछताछ की गयी थी लेकिन अंत में बाइज्जत बरी भी कर दिए गए थे.

he bhagwan said...

wahid ki mout aap aur hum jaiso ke liye dukh ki baat hai. maanv adhikar ka dohl pitnewalo ko koi frk nahi pdta. adhikar to sirf un maanv ka hai jo kanun todtb hai.