Sunday, May 10, 2009

भैया प्लीज़ कोई अच्छी सी मां का पता चले तो बताना,सम्मान करना है,आज मदर्स डे है ना!

दो तीन दिनो से कथित समाजसेवी संस्थाओ के भाईयो और बहनो का लगातार फ़ोन आ रहा था।उन्हे मां की ज़रूरत थी मदर्स डे पर सम्मान के लिये! शर्त ये थी कि मां अच्छी होना चाहिये और गरीब भी,जिसने खुद दुःख उठाकर बच्चों को पढा लिखा कर बड़ा आदमी बनाया हो।मै हैरान था कि ये मां के साथ अच्छी और खराब के विशेषण कब से लगने लग गये।मै ये भी सोचने पर मज़बूर हो गया कि क्या मां का एक दिन सम्मान करने से सही मायने मे मां का कर्ज़ उतर सकता है।जैसे ही कोई कहता कि भैया प्लीज़ कोई अच्छी सी मां का पता चले तो बताना,सम्मान करना है, मदर्स डे पर,मेरा दिमाग फ़टने लगता था।ये शायद हमारी दिखावे की दुनिया की नीचता की पराकाष्ठा ही है॥

मन खटटा हो चला था।रह-रह कर सवाल दिमाग मे आतंकवादियो के बमो की तरह धमाके कर रहे थे।मां! अच्छी! और वो भी गरीब होगी ! तभी सम्मान की पात्र होगी?नही तो नही!अमीर या ठीक-ठाक घर की मां जिसके बच्चे समाज मे सम्मानजनक स्थान हासिल कर चुके है,उन्की उपलब्धी का कोई मतलब नही है क्या?

फ़िर मां तो मां है! उसके कदमो मे स्वर्ग होता है।उसको अच्छी या बुरी कैसे परिभाषित किया जा सकता है।परिभाषित तो औलाद होती है कि फ़लाना देखो पढलिख कर अपने मां-बाप का नाम रौशन कर रहा है या फ़िर, देखो हरकत उन बच्चों की मां-बाप का नाम डुबा रहे है।मैं तो अपनी जानकारी मे औलादों के ही अच्छी या बुरी होने की बात सुनते आया था ।ये पहला मौका है जब कथित समाज सेवको?को अच्छी मां ढूंढते देख रहा हूं।

ये खयाल भी आया कि ये लोग क्यों नही अपनी ही मां का सम्मान कर देते।ये सवाल भी मुझे काफ़ी परेशान करता रहा। अपने मां-बाप का सम्मान करने मे क्या परेशानी हो सकती है।आखिर वे उस हैसियत के हुये जिसमे फ़ालतू समय और फ़ाल्तू बच रहे रुपयों से फ़ाल्तू टाईप की समाज सेवा कर पा रहे हैं,ये भी तो मां के लालन-पालन और आशीर्वाद से ही संभव हुआ है।इस मामले मे मैनें अपने कुछ साथियों से चर्चा कि तो उनका कहना साफ़ था कि मां के साथ रहते होंगे तभी तो ना सम्मान करेंगे?उन्होने कहा कि आजकल एक मुहल्ले मे मां-बाप और बेटे अलग-अलग घरों मे रह रहे हैं।एक साथी का तो लहजा काफ़ी सख्त था।जितनी गंदी गालियां वो बक़ सकता था उसने बकी और कहा कि ये सब अब रईसों के चोचले हैं। मां-बाप का सम्मान हम लोग यदी ढंग से कर पाते तो बुज़ुर्गो के लिये आश्रम खोलने की नौबत ही क्यों आती।

उसकी बाते सुनने के बाद मेरी हिम्मत नही हुई और किसी से इस मामले मे चर्चा करने की।मैने आज सुबह अपनी आई, यानी मां से कहा कि आज मदर्स डे है! आपको क्या गिफ़्ट चाहिये?वो हंस कर बोली और क्या गिफ़्ट चाहिये तुम तीनो भाई मेरे साथ रहते हो।मेरा इतना ख्याल रखते हो।ये ही मेरे लिये दुनिया का सबसे अच्छा गिफ़्ट है।बचपन से तुम तीनो आपस मे लड़ते-झगड़ते आ रहे हो मगर आज तक़ अलग नही हुए यही मेरे लिये काफ़ी है।मै बोला आज मां का सम्मान किया जा रहा ………मेरी बात बीच मे ही काटते उन्होने कहा सम्मान दिखा के नही किया जाता बेटा।इन सब बातो मे कुछ नही रखा है,बच्चे बड़े होते है तो उन्हे लगता है कि वे सब कुछ सीख गये और अब उन्हे बड़े-बुजुर्गो की सीख की ज़रूरत नही है और शायद यंही से टकराव शुरू होता है।मां-बाप के लिये बच्चे कितने भी बड़े हो जायें बच्चे ही रह्ते हैं,और वे उसी हिसाब से व्यवहार करते है जो बड़े हो चुके बच्चो को पसंद नही आता और जो बच्चे बहुत बड़े हो जाते है उन्हे फ़िर किसी की ज़रुरत नही होती।तुम लोग अभी भी शायद बच्चे हो इस्लिये मां की ज़रूरत है,जिस दिन बड़े हो जाओगे………………उस्के बाद मै सुन नही सका और उठ कर दुसरे कमरे मे चला गया।मुझे लगा कि मैं छोटा बच्चा ही सही मुझे नही करना मां का सम्मान सिर्फ़ एक दिन।मुझे नही मनाना सिर्फ़ एक दिन का मदर्स डे।मेरे लिये हर दिन मदर्स डे रहेगा।

28 comments:

ABHIJEET tiwari said...

maa ka sammaan to har din
har pal hona chahiye...

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप का हर आलेख यथार्थ के इतना निकट होता है कि उस पर क्या टिप्पणी की जाए।
अब तो प्रश्न यह है कि जब माँ सर्वदा सम्माननीय है तो मदर्स डे मनाने की नौबत क्यों आई।
कहीं ऐसा तो नहीं कि माँ की उपेक्षा ने ही इस विचार को जन्म दिया हो।

निर्मला कपिला said...

bahut baDiya dil ko choone vala lekh hai vastvik smman to apki ma ko hi milna chahiye jisne apko itane achhe sanskar diye hain shubh kamnaye apki ma ko bhi slaam

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मातृ-दिवस की शुभ-कामनाएँ।

राजकुमार ग्वालानी said...

मां तूने दिया हमको जन्म
तेरा हम पर अहसान है
आज तेरे ही करम से
हमारा दुनिया में नाम है
हर बेटा तुझे आज
करता सलाम है

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

अरे अपनी माँ का ही सम्मान करे यह लोग

Unknown said...

अनिल जी,

हमारी संस्कृति के अनुसार तो माता पिता का सदैव सम्मान होता है इसीलिये उनके चरणस्पर्श करने की परंपरा रही है। माँ का सम्मान करने के लिये वर्ष में एक दिन नियत करना तो पश्चिम में ही हो सकता है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

ये डे संस्कृ्ति जरूर एक बार फिर से देश को गुलाम करके छोडेगी.........आज फलाना डे, कल ढिमकाणा डे है.....सब फालतू लोगों के चोचले हैं.

Ashok Pandey said...

सही बात है। हमारी संस्‍कृति में जननी और जन्‍मभूमि को स्‍वर्ग से भी अधिक महत्‍वपूर्ण माना गया है। हमारे लिए तो हर रोज ही मदर्स डे होना चाहिए।

नितिन | Nitin Vyas said...

अब क्या कहें...हर दिन माँ का होता है कब समझेंगे ।

शेफाली पाण्डे said...

दिल को छूता आलेख ...आभार

दीपक said...

this is your ever best post among all written !!

simply hats off for you.

hem pandey said...

'मेरे लिए हर दिन मदर्स डे रहेगा' - आपका यह वाक्य भारतीय संस्कृति को रेखांकित करता है | वैसे एक माँ के दर्शन आप यहाँ कर सकते हैं.

अविनाश वाचस्पति said...

मां को मां कहना
सबसे बड़ा सम्‍मान

मां को सदा हां कहना
सबसे बड़ा सम्‍मान

मां को कभी न नहीं कहना
सबसे बड़ा सम्‍मान

P.N. Subramanian said...

इस ढकोसले पर हमें विश्वास नहीं है. एक बार हमने गलती से अपनी अम्मा को happy mothers day कह दिया उसके बाद जो बत्ती मिली तो तबीयात हरी हो गयी.

शोभना चौरे said...

bhut hi sade dhang se apne apni bhumuly bat kh di .
kroya mere blog par bhi maa kvita pdhe .
dhnywad

NIRBHAY said...

yeh "Mothers Day" western culture ki paidaiesh hai mostly US kee. Jahan Bachche ke jawan hone tak uske original Father & Mother 4-5 marriage kar chuke rahten hai. Is "Mothers Day" par particularly us mahila ne paida kiye sabhi bachche ektra ho kar ya apne tarike se "Mothers Day" manate hai. Inke Budhape ke liye inko "OLD house" me rakh diya jata hai jahan inka budhapa nikalata hai. IS GALICHH SANSKRITI KO AANKH MUND KAR AS IT IS SO CALLED forward thought wale Humare desh me market kar rahen hai.
Aapne satik likha hai, hamara culture yeh humari bahumulya dharohar hai, hum 365 deen mothers day manate hain. Jis "Ma" ne hume yeh Bahumulya jeevan diya hai uska karz kabhi nahi chuka sakte. Paschatya sanskriti ko aankh mund kar follow karnewalon pahle yeh satya bhee to jaan lo, apne sanskar aur sanskriti ko kisi ke bhulave me aa kar kho mat dena.

ताऊ रामपुरिया said...

…मेरी बात बीच मे ही काटते उन्होने कहा सम्मान दिखा के नही किया जाता बेटा।इन सब बातो मे कुछ नही रखा है,

बहुत सटीक और यथार्थ लिखा आपने.

रामराम.

Udan Tashtari said...

Kya kahen ki jamana badla hai...

मातृ-दिवस की शुभ-कामनाएँ।

डा० अमर कुमार said...

कल ही पढ़ा यह आलेख, कीबोर्ड से टिप्पणी निकल कर न दी..
ब्लागजगत में मेरा भी एक हमख़्याल, जो ज़माने के साथ के नाम पर बह जाने में यकीन नहीं रखता !
आह्लादित हूँ, मन कर रहा, पूछें कि, " मुझसे दोस्ती करोगे ? "

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

ऐसा लगने लगा है कि माँ का दिन साल में केवल एक होता है..बाकी नहीं..

कुश said...

गरीब ऑर अनपढ़ माँ ने बेटी को आई ए एस ऑफिसर बनाया..
अखबार में ये पढ़ा था मैंने.. अब आपकी पोस्ट देखकर कुछ समझ ही नहीं आ रहा है.. सच है औलादे बुरी या अच्छी होती है.. माँ तो सिर्फ माँ ही होतीहै

Anil Pusadkar said...

ये तो मेरा सौभाग्य है डाक्साब्।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अच्छा बिजनेस आईडिय़ा है, अगले वर्ष कुछ रियलिटी शो होने लगेंगे.

Abhishek Ojha said...

मैं मदर्स डे जैसी कोई चीज में भरोसा नहीं रखता. ना इस पर कुछ लिखने में. माँ को शब्दों में कैसा बाँधा जा सकता है ? पर आपने वो लिखा है अगर कुछ लिखता तो ऐसा लिखने की कोशिश करता. माँ तो माँ होती है... उसमें भी लोग अच्छी/बुरी ढूंढने लगे !

नीरज मुसाफ़िर said...

अनिल जी,
"माँ" शब्द तो अपने आप में बहुत ही भावना प्रधान होता है. ऐसी की तैसी की मदर्स की, हम तो रोज ही माँ को प्रणाम करते हैं, हमें अलग से मदर्स डे मनाने की जरुरत नहीं है

योगेन्द्र मौदगिल said...

वत्स जी ने ठीक कहा है. ये सब डेज़ फालतू.... भला मां-बाप किसी एक दिन विशेष के होते हैं क्या..?

डॉ महेश सिन्हा said...

हमारी संस्कृति में तो सभी माताओं का सम्मान किया जाता है बिना किसी दिन के बंधन के . हम तो जो भी हमें पालता पोसता है उसे माँ का दर्जा देते हैं जैसे धरती माँ , गौ माता . किसी ने सही लिखा है नारी जीवन तेरी अजब कहानी आचल में है दूध और आँखों में पानी . कई अनुभव हम जीवन में उसे खोने के बाद पाते हैं .