बेहद सीधी सादी किरन और उतने ही सरल है श्रवण्।दोनो को आज प्रेस क्लब मे रूबरू कार्यक्रम मे आमंत्रित किया गया था।प्रेस क्लब के साथियो ने भी उन्हे सम्मानित करने को अच्छा प्रयास बताया और दोनो अथितियो ने भी इसका आभार माना।
किरण की उपलब्धी इस मायने मे काफ़ी महत्वपूर्ण है कि उन्होने छत्तीसगढ के छात्रो के लिये एक रास्ता खोल दिया है।तमाम मिथक तोडते हुये किरण ने छत्तीसगढ पर लगने वाले पिछडेपन के कथित आरोपो को पछड दिया है।कार्यक्रम मे बोलने से पहले किरण कुछ घबराई सी नज़र आई पर जब मैने उन्हे आश्वस्त किया कि सिर्फ़ और सिर्फ़ परीक्षा और सफ़लता के लिये ज़रूरी प्रयसो के बारे मे ही सवाल पूछे जायेंगे तो वे संतुष्ट नज़र आई और जब बोली तो जम कर बोली।
किरण और उनके पति श्रवण ने सफ़ल्ता के लिये सिर्फ़ और सिर्फ़ मेहन्त को श्रेय दिया और कहा बिना मेहनत सफ़लता संभव ही नही है।श्रवण ने तो यंहा तक़ कहा कि कोई भी अंगूठी या ताबीज़ किसी को सफ़ल नही बना सकता।किरण का मानना है कि छत्तीसगढ मे अभी भी वैसी सुविधयें नही है और न वैसा माहौल जैसा दिल्ली मे होता है मगर इसका मतलब ये नही है कि प्रतिभा यंहा नही है।उनका साफ़ कहना था कि प्रतिभा को कोई भी स्थान माहौल या भाषा आगे आने से रोक नही सकती।बशर्ते उसे अपना लक्ष्य तय कर रखा हो।पढाई पूरी तरह नियोजित हो अभीव्यक्ती स्पष्ट हो और विष्य पर पकड हो।
श्रवण ने एक बात ज़रूर कही कि छतीसगढ मे पदस्थ अफ़सरो से भी छात्रो को पूछना चाहिये।वे सफ़ल हो चूके छात्र है और उनका अनुभव परिक्षा दे रहे छात्रो के ज़रूर काम आयेगा।दोनो से मैने भी कहा कि एक रूबरू कार्यक्रम हम उनका और परिक्षा देने वाले छात्रो के साथ करना चाहेंगे ताक़ि ऐसे कार्यक्रम का लाभ वास्तविक हक़दारो को मिल सके।इस बात पर दोनो सहमत भी हुये और खुश भी।दोनो ने ऐसे कार्यक्रम का स्वागत करते हुये कहा कि वे उसमे ज़रूर शामिल होंगे।
21 comments:
दोनों को ही बहुत बहुत बधाई. छोटे शहरों के बच्चों के लिए ये प्रेरणा का स्त्रोत होंगे. शुभकामना.
सच में प्रतिभा किसी की बपौती नहीं है...मेहनत.. से कोई भी इसे पा सकता है...अंगूठियाँ और ताबीज तो ढकोसला मात्र है...
अच्छी खबर पढ़ कर अच्छा लगा. आशा करूँगा कि किरण और श्रवण अफसर बन कर भी इस अमीर धरती के गरीब लोगों के प्रति संवेदनशीलता बनाये रखेंगे.
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. आपके जैसे स्वाभिमानी पत्रकारों से ही समाज को उम्मीदें हैं.
किरण और श्रवण को बधाई ! आपको शुक्रिया !
आप के नेतृत्व में रायपुर प्रेसक्लब बहुत निराले और महत्वपूर्ण काम कर रहा है। समाज में इस तरह का दखल वास्तव में पत्रकार बिरादरी से अपेक्षित भी हैं।
अंगूठियाँ, ताबीज आदि पहनने से अधिक से अधिक आत्मविश्वास की कमी पूरी की जा सकती है। जब भी मैं किसी बड़े पद पर बैठे व्यक्ति को इन्हें पहने देखता हूँ तो तुरंत यह अहसास होता है कि इस व्यक्ति में आत्मविश्वास की बहुत कमी है। या यह समझता है कि वह अयोग्य होते हुए भी इन की ही बदौलत ऐसे स्थान पर पहुँच गया है और वहाँ बने रहने के लिए इन सहारों का उपयोग करना उस के लिए आवश्यक है।
बिल्कुल सही कहा किरण ने. उनका बहुत बधाई और शुभकामनाएं.
रामराम.
प्रतिभा कहीं भी और किसी भी स्थान पर हो सकती है ....इसमें बड़े शहर या छोटे शहर जैसी बात नहीं होती ....हाँ सुविधाओं और साधनों का फर्क जरूर पड़ता है ....
किरण जी और श्रवण जी को मेरी ओर से हार्दिक बधाई
उनके साथ आपको भी बधाई.
रजनीश ने मेरे मुंह की बात छीन ली......प्रतिभा किसी की बपौती नहीं है....अनिल जी एक बात ओर इस बार के हिंदी तहलका में किसी डॉ सेन के निरपराध जेल में बंद होने की खबर है आपके प्रदेश में .उन पर आरोप है की वे नक्सल वादियों से मिले हुए है .....आप की कुछ जानकारी है इस विषय में ?
वाहवा... बेहतरीन दृष्टांत की प्रस्तुति के लिये साधुवाद स्वीकारें.. दोनों को बधाई..
हमारी भी शुभकामनायें.
ऐसे होते हैं गुदड़ी के लाल।
बहुत बार महसूस किया है कि अच्छे-अच्छे युवक-युवतियों में बड़े शहरों का एक अनजाना खौफ मन के अंदर दुबका रहता है। जो मौका मिलते ही उन की काबलियत पर अपना असर छोड़ उन्हें असफलता की ओर धकेल देता है उनके आत्मविश्वास पर प्रहार कर के। पढाई के दौरान कुछ इस तरह की ट्रेनिंग भी होनी चाहिये जो इस बेबुनियाद डर को खत्म कर सके। उन्हें समझा सके कि वहां सुविधायें जरूर ज्यादा हो सकती हैं, पर प्रतिभायें किसी चीज की मोहताज नहीं होतीं।
अनिल जी,
गलती से फोटो के नीचे की दूसरी लाईन में 'खोल' की जगह सिर्फ 'खो' रह गया है। सुधर जाता तो भाव पूर्णतया उजागर हो जाते।
अन्यथा न लीजियेगा।
इनके बारे में जानकर अच्छा लगा।
अब हम क्या कहें - हम भी तो गंवई स्कूल से शुरू हुये और अंग्रेजी बोलना बिट्स में ही जाने।
और न कोई तावीज न अंगूठी रही हमारे पास।
बधाई हो सफल दंपत्ति और इस आयोजन को .
डॉक्टर अनुराग अनिल के ब्लॉग में अपने प्रश्न का उत्तर ढूंढ सकते हैं
प्रतिभा किसी की बपौती नहीं है...दोनों को ही बहुत बहुत बधाई....प्रेस क्लब के साथियो उन्हे सम्मानित करने पर आपको भी बधाई
sachchee baat
sachchee baat
दिल से बधाई किरण और श्रवण को...
यूं ही एक ख्याल सा आया था ...कुर्सी की आदत पड़ते पर भी ये सरलता बनी रहेगी ना !!!
हमारी शुभकामनाएं जोड़े को। दोनों राज्य और देश दोनों का नाम रौशन करें ये ही दुआ है।
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