चुनाव हो गये!नतीजे आ गये और उसके साथ ही एक अनावश्यक मुद्दा सामने आ गया,वो है मुसलमानो का!वरूण और मोदी के कारण मुसलमान एन डी ये से दूर हुये हैं या मुस्लिम बहुल सीटो पर क्या स्थिती रही है?इतनी चिंता तो शायद यू पी ये और भाजपा के लोगो के साथ-साथ मुसलमान भी नही करता,जितनी चिंता इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले भाईयो को होती दिख रही है।उनके मुसलमानो से संबंधी सवालो को देख कर लगता है कि इस देश मे मुसलमानो का मुसलमानों से भी बड़ा शुभचिंतक़ है मीडिया?
कल एक चैनल वाले भाई ने स्क्रीन पर देश के नक्शे मे इधर उधर फ़ैली सीटों को अपनी उंगली से छूकर सामने दिखाया और कहा आईये नज़र डालते है मुस्लिम बहुल सीटों पर।क्या कहते मुस्लिम मतदाता? इन 171 सीटो के नतीजे क्या कहते हैं?और स्क्रीन पर आंकड़ो की जादूगरी शुरू हो गई।कांग्रेस को उन इलाको मे बढत मिलते देख उन्होने अपना निष्कर्श भी सुनाना शुरू कर दिया।उन्होने कहा कि इन नतीजो को देख कर भाजपा को सोचना चाहिये कि उनकी हिन्दूवादी छवी के कारण वे राष्ट्रीय राजनीति मे सफ़लता हासिल नही कर सकते।उन्होने भाजपा को अपनी विचारधारा बदलने की सलाह तक़ दे डाली।इसके बाद उनही सीटो पर भाजपा की स्थिती देखने के लिये नज़र डाली तो आंकडे बताने लगे कि वंहा भाजपा को भी फ़ायदा हुआ है। अब तो मामला मन-माफ़िक नही बन रहा था। सो उसपर अपनी गलती मानने की बजाय तत्काल ठीकरा तीसरे मोर्चे और सपा के सिर फ़ोड़ दिया गया। अगर उन सीटों पर भाजपा पिछड़ गई होती तो दिन-रात ये चिल्लाते और कहते मुस्लिमो ने भाजपा को नकारा।और जाने-अंजाने मुस्लिमो के मन मे भाजपा के खिलाफ़ और भाजपाईओं के मन मे मुस्लिमो के खिलाफ़ आक्रोश को और बढा देते।
एक और चैनल वाले भाई तो एक कदम आगे निकल गये।उन्होने तो बाकायदा इस बात को उगलवाने के लिये पूरी मेहनत की और उसमे सफ़ल भी रहे।उन्होने एनडीए के संयोजक से पूछा कि मुसलमान वोटरो के आपसे दूर होने की वजह वरूण और मोदी हैं। अब भला कोई ये तो कह नही सकता कि नही वे हमारी वजह से दूर हुए हैं सो उन्होने भी कह दिया हां।और उसके बाद शुरू हो गया एनडीए मे बिखराव का हल्ला और मुसलमान वोट बैक खिसकने के लिये मोदी और वरूण पर प्रहार्।
इसपर किसी को ऐतराज नही होगा कि जंहा मुसलमानो के साथ या और किसी के भी साथ अन्याय हो या अन्देखी हो तो उसे दमदारी से सामने लाया जाना चाहिये।लेकिन ये मतगणना के साथ ही अचानक़ मुसलमानो के लिये चिंता जाग जाना समझ से परे है।वैसे भी मीडिया वाले हमारे भाईयो के हिसाब से तो अब मुसलमानो की असली हितचिंतक़ पार्टी सरकार मे आ गई है फ़िर मुसलमानो का रोना क्यों गाया जा रहा है।क्या 171 मुस्लिम बहुल सीटो के नतीजे दिखाना ही ज़रूरी है? हिंदू बहुल सीटो के बारे मे क्यो नही दिखाया जाता?मोदी वरुण या भाजपा को साम्प्रदायिक करार देने वाले ये मठाधीश क्या साम्प्रदायिक ज़हर नही फ़ैला रहे है।
चुनावी नतीजों के विश्लेषण के लिये पहले से ठेके पर तय कर लिये गये एक्स्पर्ट लोगो के पास चुनाव परिणाम चैनल वाले के अनुमान के अनूरूप नही आने के कारण कोई काम नही रह गया था।सारे बने-बनाये प्रोग्राम धरे के धरे रह गये थे। तो इसका मतलब ये तो नही था कि मुसलमान और हिंदू जैसी बातो पर बह्स करें।अफ़्सोस कि बात तो ये है की बिना सिर पैर की बकवास करने वाले विकास के मामले कोई बात करते नज़र नही आये।मुसलमान-मुसलमान चिल्लाने वाले एक चैनल ने तो सिंह विजय के नाम से प्रोग्राम बना कर मनमोहन को अर्जुन और सोनिया को पार्थ बना कर महाभारत के युद्ध का चित्र ही बना डाला।क्या ये सिंह-विजय को महाभारत से जोड़ना हिंदूत्व का प्रचार नही है?अगर भाजपा मोदी या आड़वाणी को ऐसा दिखा देती तो ये लोग चिल्लाने लगते कि भाजपा अर्जुन को बेच रही है,भाजपा मुरली वाले को बेच रही है?भाजपा हिंदुओ को धर्म के नाम पर भड़का रही है?और अब जब वे ऐसा कर रहे है तो?
समझ मे नही आता कोई खबर नही होने पर कुछ भी आंय-बांय-शांय दिखाना ज़रूरी तो नही होता है ना। चुनाव मे उत्तर प्रदेश मे 80 सीटों मे से मात्र 21 सीटे जीत लेने से राहूल का जादू चल गया और अपने प्रदेश मे छब्बीस मे से पन्द्रह सीटे जीतने पर भी मोदी का जादू नही चला। आखिर ये राहुल का जादू,मोदी का जादू के आलवा भी कोई खबर है नही।द्स जनपथ पर जश्न ,भाजपा कार्यालय मे सन्नाटा,जैसी खबर दिखा कर क्या साबित करना चाहते है भाई लोग्।ये तो सब जानते है, जिसके घर बारात आती है वंहा जश्न तो होगा ही,जिस्की लुटिया ड़ूब गई हो वो तो जश्न मनायेगा नही। और अगर मान लो कोई खुले दिल से ये स्वीकार कर ली कि उनसे गल्ती हुई है तो ये लोग उसे बेशरम साबित करने मे कोई कसर नही छोड़ेंगे। अपनी स्टोरी को सही साबित करने के लिये दर-दर भटकते है और सवाल-पर-सवाल पूछ्ते हैं जब तक़ उनके काम की बात सामने वाले के मुंह से बाहर नही निकलती।और उसके बाद तो शुरू हो जाता है फ़लाने ने ऐसा कहा।दम है तो बताना चाहिये कि हमारे सवाल के जवाब मे उन्होने कहा,लेकिन ऐसा न करके सवाल और उसके पिछे के उद्देश्य को छुपा कर उसे उनका बयान बता कर अपना मकसद साध लेते हैं।अगर उनसे ही पूछा जाय कि क्या उन्होने प्रायोजित खबरे दिखाना छोड़ दिया है क्या?इसका हां या ना मे वे क्या जवाब दे पायेंगे?
ऐसे ही उद्देश्यपूर्ण सवालो के साथ एक बार फ़िर मुसलमानो को माडल बनाया जा रहा है।मुसलमानो का अपने फ़ायदे के लिये जितना इस्तेमाल नेताओं ने नही किया होगा उससे ज्यादा तो शायद हमारे चैनल वाले भाई कर रहे हैं।उन्हे चुनाव के नतीजो की समीक्षा करते समय मुसलमानो के मसीहा रामविलास पासवान,लालू, मुलायम और माया के साथ-साथ लेफ़्ट का हाल देख लेना चाहिये।इन्होने भी मुसलमानो के पिछड़ेपन पर इतने आंसू बहाये है कि बड़ी से बड़ी नदी मे आई बाढ भी शर्मा जाये। और जनता ने उनके साथ जो किया है वो सबके सामने है। अब उन्हे खुद पर रोना पड़ रहा है सबसे ज्यादा वोटों से जीतने का रिकार्ड बनाने वाले मुसलमानो के मसीहा अपनी सीट भी नही बचा पाये हैं।उनके साथ जो जनता ने किया कहीं वो आप लोगो की छद्म सेक्यूलर पालीसी को देखते हुये आपके साथ भी न कर दे। अभी भी समय है देश मे बहुत सी समस्यायें,बहुत से अनछुये मुद्दे है जिन पर आप लोगो को नज़र डालनी चाहिये।दूसरो को साम्प्रदायिक ठहराने के चक्कर मे कंही आप लोग भी साम्प्रदायिक न कहलाने लोगो इस बात का भी खयाल रखना ज़रूरी है।विज्ञापन के चक्कर मे राहुल की चाटूकारिता तो ठीक है, लेकिन चुनाव की समीक्षा करने से पहले अपने एग्ज़िट पोल की भी समीक्षा कर लेना क्या न्यायसंगत नही होगा?
29 comments:
अब क्या किया जाये , यह सभी सो कॉल्ड सेकुलर लोग फिर से सुरु हो जायेंगे . ये लोग तब कन्हा थे जब एमपी और गुजरात में बीजेपी जीती थी.
गौरव श्रीवास्तव , इलाहाबाद
अनिल जी बहुत ही सटीक और सारगर्भित लेख इसके लिये आपको साधुवाद। दरअसल खबरिया चैनलों को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास ही नहीं है। ये सिर्फ अपनी ताकत का इस्तेमाल कर रहे हैं और ताकत का गलत इस्तेमाल आखिर खुद को ही नुकसानदेह सिद्ध होता है। एंकरों में हीरो बनने की होड़ लगी है और उस कोशिश में वे कई बार अनाप-शनाप बक जाते हैं।
चैनलों का भगवान मालिक है। इन के विश्लेषणों पर कौन विश्वास करता है अब?
आप की इस पोस्ट में आप ने टैग के बीच कोमा नहीं लगाया इस लिए सब मिल कर एक ही टैग हो गए हैं।
हां भई, क्यों न हो, जब वे ही सिंहासन दिला सकते हैं तो क्यों न भागे उनके पीछे। हिन्दू तो सम्प्रदायवादी हैं ही॥
अनिल जी,
एक बार फिर जोरदार दमदारी दिखी आपके लेख में। ऐसा लिखने वाले वास्तव में कम हंै। जहां तक इलेक्ट्रानिक मीडिया वालों का सवाल है तो इनके पास बकवास करने और दिखाने के अलावा रहता भी क्या है। ये तो हारने वाले उम्मीदवारों से पूछते हैं कि आप कैसे महसूस कर रहे हैं। किसी का बाप मर जाए तब भी उससे ऐसे सवाल करते हैं। बिना सिर पैर की बातें करने वाले ही इलेक्ट्रानिक मीडिया वाले हैं। आपने जो लिखा है, उसके लिए आपको साधवादु। एक बार फिर हम कह रहे हैं कि अपनी कलम की ताकत को ऐसे ही बनाए रखे और गलत बयानी करने वालों की ऐसे ही बजाते रहे।
एक नजर इधर भी देखें
मनमोहन का अर्थशास्त्र आया काम-अडवानी का नहीं भाया नाम
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का अर्थशास्त्र इनसे जो न करवाए सो कम है . इन्होने तो एक पिता को अपनी बेटी का गुनाहगार बना दिया था . इन्हें जनता ने जो चुन चुन कर छटाई की वो नहीं दिख रहा है ?
सही कहा आपने. दरअसल अब भारतीय खबरिया चैनल सांडे का तेल बेचने वाले मदारी से ज्यादा और कुछ नहीं रह गए हैं. स्वयं को पत्रकार कहने वाले, लाखों रुपये की तनख्वाह खीचने वाले सिर्फ अपने चैनल के नमक का हक अदा कर रहे. उन्हें पत्रकारिता के उसूलों और सामाजिक सरोकारों से कोई लेना देना नहीं रह गया है.उन्हें पत्रकार कहना, पत्रकारिता के पेशे को नीचा दिखाना है.
भाई हमने तो चैनल देखना इसीलिये छोड दिया है.
रामराम.
चैनल को इतनी ज्यादा गंभीरता से लेने को किसने कहा आपको, मेरे भाई.
मोदी और वरुण पर हमला करना एक लम्बी रणनीति का हिस्सा है, क्योंकि अब यही दो चेहरे बचे हैं जो शायद "छक्के" हिन्दुओं में कभी उत्साह भरें… इसलिये पहले इन्हें नेस्तनाबूद करो, बाकी के अपने आप "सेकुलर" नामधारी हो जायेंगे, फ़िर तो मैदान खुला है…
आप खुद ही बताइए, क्या आजकल चैनलों को कोई गंभीरता से लेता है...
बहुत सही लिखा है। यहाँ तो चित भी मेरी पट भी मेरी वाली बात है। यदि भाजपा जीत जाती तो भी वे उसे कोसते, हार गई तो भी चैन नहीं है। धर्मनिर्पेक्ष होना बहुत अच्छी बात है किन्तु उसका अर्थ अभी तक एक धर्म की तरफ़दारी करना ही रहा है। मुझे नहीं लगता कि कोई भी तर्क ये समझ पाएँगे।
भारत की सबसे बड़ी हानि ये लोगों को बाँट कर ही कर रहे हैं, कभी धर्म तो कभी जाति की बात करके।
घुघूती बासूती
bada saargarbhit article hai ... es desh ka bhagwaan malik hai...........yaa sonia ji hai ........ halat kya ho gayi hai logon ki... kaatil ke haath mein desh thama diya
हमने तो टिवी और इन चैनलों से रिश्ता जोड़ा ही नहीं अब तक...
सब के सब "*#%~~#" बकवास करते हैं बस
Jab "Aazamgarh" se BJP jeeti hai vahi "Ayodhya" se BJP haari hai toh iska analysis Media wale kis prakar se karenge.
"Aazamgarh" :- Muslim pradhan constituency. (Muslim terrorist denewala No. 1 district in india)
"Ayodhya" :- Hindu pradhan constituency. (Babri Masjeed Kand ka renowned place)
in dono jagahon par Rahul Gandhi ke campaigne ka prabhav aur Narendra Modi/ Varun gandhi ka kya prabhav pada koi mediawala differentiate kar sakta hai?
yeh toh matra Marketing kar rahen hain, bar-bar bhool jate hai kee indian public kee memory bahoot short rahti hai.
Na toh Rahul Gandhi kee chali Na Narendra Modi/Varun Gandhi ka factor, yeh uncertain resullt hai overall india me lower percentage turn out for voting ka jo 47-50% tak hee raha, jiske vajah se chatush koiya sanghrsha me UP me kabada ho gaya, Bihar me bhee Trikoniya sangharsh me kabada ho gaya, aur direct two party sytem me harm hua hai particularly left parties ko jahan left jo kee apne punjeewad/america virodhi vaad se janmat taiyyar karti rahi hai naraz voter vote dalne nahi aaye, inki narajgee short term kee hai vapas fir aayenge, kya karen bechare leftwale unko laga hum support hata denge toh sarkar geer jayegi - lekin Mulayam - Amar - Anil Ambani ne beech me aa kar inke khwabon ko tahas nahas kar diya aur yeh apne voter ke nazron se gir gaye. Ab toh Muslmano ke pairokar SP,RJD ko congress Kutton se bhi gayi guzri drishti se dekh rahi hai.
Maharashtra me MNSe ne aur Andhra me Chirnjivi ne danda daal diya, yeh sirf low polling percentage ka natija hai. Baki sab Baqwas
भाई टीवी चैनल अगर बकवास करते हैं तो आप उन्हें देखते ही क्यों हैं। चैनल बदलने का अधिकार आपके हाथ में है। इससे भी कुछ नहीं होता तो केबल कनेक्शन भी कटवा सकते हैं। कोई चैनल आपकी गर्दन पर छुरी रखकर या फिर सिर में रिवाल्वर लगाकर तो अपने को देखने के लिए नहीं कहता। लगता है आप बीजेपी की हार से बेहद आहत हैं। तो वही चैनल देखिए जो बीजेपी का समर्थक हो। वही अखबार पढ़िए जो बीजेपी का मुखपत्र हो। जो चैनल आपके मनमाफिक बात नहीं कहते उन्हें देखकर क्यों अपना समय बर्बाद करते हैं?
अनिल जी, सही आलेख है पर मुद्दा तो पहले से ही बीजेपी ने दे दिया था। मोदी पर अंदर के लोग मोहर लगा रहे थे। लोग ये नहीं समझ पा रहे थे कि आडवाणी क्यों पीएम की कुर्सी के पीछे हाथ धो कर पड़े हैं। मोदी के नाम पर वोट दें या आडवाणी या फिर राजनाथ या फिर पार्टी किस के नाम पर। महंगाई बीजेपी के लिए मुद्दा नहीं बना जहां पर प्याज की बढ़ी कीमत ने सरकार गिराई है तो खुद अंदर से भाजपा कमजोर थी। ये तो ऊपरी मुद्दे हैं।
धर्मनिरपेक्षता भारतीय सन्दर्भ में कैसी होनी चाहिए, इस पर एक राष्ट्रीय बहस की आवश्यकता है.
इतना बड़ा धार्मिक देश घोषित "धर्मनिरपेक्ष" है. अज़ीब बिडम्बना है.
"उन्होने कहा कि इन नतीजो को देख कर भाजपा को सोचना चाहिये कि उनकी हिन्दूवादी छवि के कारण वे राष्ट्रीय राजनीति मे सफ़लता हासिल नही कर सकते।उन्होने भाजपा को अपनी विचारधारा बदलने की सलाह तक़ दे डाली।" बहुत सही... इन चैनलवालों के चलते कोई अपनी वैचारिकी बदल दे। इनकी अपनी तो कोई वैचारिकी है नहीं। कांग्रेस के जीतते ही इन्होंने जय हो-जय हो शुरू कर दिया। आडवाणी जी जीतते तो उनकी जय शुरू कर देते।
बहुत ही सटीक लेख लिखा है आपने
इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा. हाँ आपका आलेख तर्कसंगत और प्रभावपूर्ण है. पढ़कर आँखें जरूर खुलीं.
"हमसफ़र यादों का......." की मित्र-मंडली में आपका हार्दिक स्वागत है.साभार
हमसफ़र यादों का.......
bahut achchi pratikriya aor vislesan laga ajay tripathi
जिसका कोई नहीं उसका मीडिया होता है!
धर्म निरपेक्षता सिर्फ हिन्दुओं को बेवकूफ बनाने का साधन है, जिससे हिन्दू बेवकूफ बनते हैं.
आपके लेख से एकदम सहमत।
सटीक चिंतन
मीडिया वाले भी छद्म सेक्यूलर पॉलिसी अपनाने लगे है जिससे उनकी टी.आर. पी. बढ़ जाए. बढ़िया आलेख ,आभार.
हम सभी को अपने केबल चॅनेल्स से विदेशी न्यूज़ चॅनेल्स को हटवा देना चाहिए ......
अब समय आ गया है इन वेदेशियों की चाल को समझें और इनका अंत करें.
NDTV , IBN जैसे विदेशी चॅनेल्स ने देश को तोड़ने का काम आरंभ कर दिया है.......
हम सभी को मिलकर इसका अंत करना होगा......
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