लालगढ मे माओवादियों को कुचलने के लिये सुरक्षा बलो ने आपरेशन शुरु कर दिया है और यंहा छतीसगढ के बस्तर मे अभी तक़ आपरेशन तो दूर इंजेक्शन तक़ नही लगा रहा हैं।आज भी झाड़-फ़ूंक जैसा लोकल इलाज चल रहा है।यंहा आपरेशन कब शुरू होगा जब यंहा यूपीये सरकार का इंट्रेस्ट जागेगा तब,या फ़िर उनकी विरोधी भाजपा सत्ता से हटेगी तब्।क्या अब बड़ी कार्रवाईयों के पालिटिकल विल राज्यों से उसके संबंधो पर निर्भर करेगा।बस्तर मे भी हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।यंहा तो रेल यातायात तक़ नक्सलियो के फ़रमान पर रूक जाता है,सड़क पर तो उनकी मर्ज़ी के बिना चल ही नही सकते।खून तो ऐसा बहता है जैसे म्यूनिसिपल के बिना टोंटी के नल से पानी।लालगढ का तो सिर्फ़ नाम का ही लाल है,यंहा तो सब कुछ लाल हो चुका है,लालगढ से भी ज्यादा लाल्।
पता नही क्यों जलन सी हुई लालगढ मे नकसलियों के खिलाफ़ आपरेशन शूरू होने की खबर मिलते ही।जलकर अपन भी लाल हो गये।इस बात का विरोध नही है कि वंहा क्यों कार्रवाई कर रहे हैं बल्कि इस बात का विरोध है कि यंहा कार्रवाई क्यों नही कर रहे हैं।बस्तर के साथ-साथ अब उड़िसा का मल्कानगिरी का ईलाका भी लाल हो चुका है। निर्दोष लोगो के खून के साथ-साथ माओवादियों के लाल रंग से भी।सरकारें चाहे जितना भी दावा कर ले मगर रिमोट एरिया मे अघोषित नक्सल सत्ता से किसी को इंकार नही हो सकता।
बस्तर मे भी सैकड़ो हजारो आदिवासी सड़क पर उतर चुके हैं मगर उनकी गल्ती ये थी कि वे सरकार के खिलाफ़ नही थे बल्कि नक्सलियों के खिलाफ़ थे।वे तो सरकार से मदद मांग रहे थे।संभवतः आज़ाद भारत मे आदिवासियों का इससे बड़ा आंदोलन और कंही नही हुआ होगा।मगर वो आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से सलवा-जुड़ूम के नाम से आज भी चल रहा है।जब गांधी की ही अहमियत इस देश मे लगातार घट रही है तो गांधीवादी आंदोलन से भला दिल्ली वालों का ध्यान कैसे खिंचा जा सकता था।उसके लिये तो लालगढ जैसा माओवादी आंदोलन चाहिये,शायद्।बस्तर के आदिवासियों को ये फ़ंडा पता नही है शायद्।बेचारे अपना गांव-जमीन-घर सब छोड़ कर कैंप मे रह रहे हैं इस उम्मीद से कभी तो नक्सलियों के खिलाफ़ शुरू हुये उनके आंदोलन का असर होगा।
मूर्ख है बस्तर के आदिवासी।नक्सलियों से लड़ रहे है।हां येही अगर नक्सलियों के समर्थन मे होते और सरकार इनके खिलाफ़ कार्रवाई करती तो उनका आंदोलन इंटरनेशनली हिट हो जाता।बड़े-बड़े मानवाधिकारवादी आकर उनके पक्ष मे रोते और दुनिया के जाने माने विद्वान भी सरकार को कसते हुये नज़र आते।मगर ऐसा हो नही रहा है क्योंकि यंहा का आदिवासी सरका र के साथ खड़ा है और कांग्रेस को उसने उसीके गढ मे रिजेक्ट कर दिया है।
शायद इसिलिये तो नही हो रही है बस्तर मे बड़े आपरेशन मे देरी।क्या बस्तर मे कार्रवाई के लिये यंहा के आदिवासियों को भी सड़क पर उतर अपनी सत्ता की घोषणा करना पड़ेगा?क्या बस्तर मे रोज़ मर रहे पुलिसवालों और निर्दोष आदिवासियों का खून लालगढ मे मारे गये माकपा कार्यकर्ताओं के खून से कम लाल है?क्या बस्तर के जंगलो के पेड़ो और पत्तो तक़ का रंग लाल नही होने तक़ सरकार नही जागेगी?अरे कोई मेजर सर्जरी/आपरेशन नही तो कम से कम छोटा मोटा चीरा ही लगा देते माई-बाप। आपकी सरकार को समर्थन दे चुके वामपंथियो और दे रहे तृणमूल के कार्यकर्ता से कम महत्वपूर्ण नही है यंहा की घास-फ़ूस्।
16 comments:
सब्र करें, कभी तो सरकार के कानों पर जूं रेंगेगी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
असलियत तो ये है कि हर प्रकार के आतंकवाद का पीछा छोङ कर ये नक्सलवाद को खत्म करना चाहिये
काहे बार-बार रमनसिंह को सत्ता सौंप देते हो भईया, अजीत जोगी ने क्या बिगाड़ा था, सिर्फ़ धर्मान्तरण और विधायकों को ही तो खरीदा था…। फ़िर कहते हो कि कार्रवाई नहीं होती… कैसे होगी? आपका भी नम्बर आयेगा, लेकिन पहले वहाँ काम होगा, जहाँ चुनाव होने वाले हैं… आप तो निपट लिये भाजपा को राज्य में और लोकसभा में सारी सीटें दिलाकर, अब चुप बैठिये… :) :) महारानी और युवराज के काम तो अब सिर्फ़ बंगाल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में होगा… बाकी के लोग बैठकर भजन करें।
सहानुभुति है. बस और क्या कहें और करें? रोष दबाए बैठें है.
देर है सर जी -अंधेर नहीं .
बहुत अच्छी बात लगी आप की, इन नेताओ को सिर्फ़ अपनी कुर्सी से प्यार है, जो वोट दे जहां इन का आदमी जीते उसी इलाके मै कुछ काम करो ज्यादा भी नही, यानि इन्हे देश से पहले अपनी कुर्सी प्यारी है...छि है....
धन्यवाद फ़िर से एक सच बताने के लिये.
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
ये सरकार वही जागती है जहा उसे कुछ मिलने की उम्मीद हो.....
बंगाल मे सत्ता मिलने की उम्मीद मे ही उसने ये कदम उठाया है.....पर छत्तीसगर्ह के लोगों का खून उसे पानी लग रहा है वो तभी लाल दिखेगा जब कांग्रेसी सत्ता की उम्मीद होगी....
इन नेताओं ने ही तो देश को बर्बाद करने का ठेका ले रखा है वरना ये आंदोलन कब के समाप्त हो चुके होते......
ये लड़ाई अब " लोक्तन्त्र बनाम कम्मुनिज्म" हो चुकी है....ये बात इन मूर्ख नेताओं को अब समझ मे आ जानी चाहिए...वरना नेपाल वाली स्थिति मे अब देर नही है...............
लालगढ़ बंगाल में है कोई छत्तीसगढ़ थोड़े ही है . मर्क्स्वादिओं का देश है . क्या कोई जवाब है कांग्रेस ओर तृणमूल के पास के वो नक्सल/ माओ के साथ है ये बयां बंगाल के माओवादी नेता ने दिया है ? लगता है केंद्र का मार्क्स प्रेम खत्म नहीं हुआ तभी तो एक घटना ओर पूरा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया टूट पड़ा, केंद्रीय बल दौड़ पड़े . छत्तीसगढ़, झारखण्ड, ओडिसा तो गरीब ओर कमजोर क्षेत्र हैं उनका भगवन ही माई बाप है
अरे कोई मेजर सर्जरी/आपरेशन नही तो कम से कम छोटा मोटा चीरा ही लगा देते माई-बाप।
माई बाप बहुत मोटी चमडी के हैं. इनके कानों मे जूं नही रेंगेगी.
रामराम.
अब तो देश में बहुत ही खतरनाक स्थिति हो चुकी है. एक ऑपरेशन चलना चाहिए, जैसा श्रीलंका ने लिट्टे के खिलाफ चलाया था.
एक जानकारी चाहता हूँ कि छत्तीसगढ़ सरकार ने केंन्द्र से कितनी बार इस तरह के ऑपरेशन के लिए मदद चाही है? और किस तरह के ऑपरेशन के लिए? क्यों कि यह छत्तीसगढ़ सरकार की मर्जी के बिना नहीं हो सकता।
गर सरकार चाहे तो बहुत कुछ हो सकता है मगर नेता लोग अपनी राज नीति करने कहाँ जायेंगे फिर भी आपका प्रयास सही है इन्हें जगाना ही पडेगा नहीं तो दे्श तबाह हो जायेगा आभार्
यह स्थिति अच्छी नहीं है, मुझे डर है कि अब कई जानें जायेंगी.
सरकारें अब भी नहीं चेत रहीं, नासूर का इलाज करने के बजाय, बस मरहम पट्टी करने में लगी हैं.
पढ़कर दुःख हुआ कि निर्दोष आदिवासी मारे जा रहे है निर्दोषों का बेवजह खून बह रहा है ...... निसंदेह दुःख है यह सब ...
हम आप से शत प्रतिशत सहमत हैं. एक काम हो सकता है. यदि छत्तीसगढ़ की सरकार बस्तर को केंद्र शाशित करवा दे तो!
वकील साब आम तौर पर मै किसी बात का जवाब देने से खामोश रहना ज्यादा अच्छा समझता हूं, लेकिन आपका सवाल बहुत महत्वपूर्ण है इस लिये इसके जवाब मे बहुत कुछ न कह कर इतना ही कहना चाहता हूं कि यूपीए सरकार ने केन्द्र की पिछली पारी मे छत्तीसगढ सरकार के विरोध के बावजूद नक्सलियो के खिलाफ़ बढिया काम कर रही नागा बटालियन क्प हटा लिया था।कारण था लाल सलाम का सरकार पर दबाव्।इतना ही काफ़ी है छत्तीसगढ की सरकार की सुने या ना सुने जाने या मदद मांगने और कितने दफ़े मांगने के जवाब में।
Post a Comment