कोरा आश्वासन देने,गरीबों पर अत्याचार करने और धोखेबाज़ी मे नेताओं को कौन टक्कर दे सकता है?इस सवाल का जवाब बड़ा कठिन लगता है।तीनो ही गुणों पर तो सिर्फ़ और सिर्फ़ नेताओं का एकाधिकार नज़र आता है और उस एकाधिकार को न केवल तोड़ना बल्कि उन गुणों मे श्रेष्ठता भी साबित करने वाले को ढूंढते नज़रें थक़ जाती है।सच पूछो तो इस मामले मे कोई उनकी बराबरी तक़ नही कर सकता।फ़िर कौन हो सकता है उन्हे मात देने वाला?सोचो?सोचो,सोचो?नही सोच पाये ना?तो सुनो उन्हे मात दे रहा है,बादल।
बहुत ध्यान से देखें त्तो बादल नेताओं का बडा भाई ही लगता है।जब नज़र आता है, नेताओं की तरह जनता, खासकर गरीब जनता की आस ही बढाता है।वह भी जब आता है नेताओं की तरह चिल्ला-चिल्ला कर सब कुछ ठीक कर देने का दावा करता नज़र आता है।नेताओ की तरह उसे लाऊडस्पीकर और भीड़ की ज़रुरत नही पड़ती,वो तो भारी गड़गड़ाहट के साथ मानो आकाशवाणी कर देता है कि वो आ गया है और उनकी मांगे वो पूरी कर देगा।ऐसा नही है वो हमेशा ही धोखा देता है या कोरे आश्वासन ही देता है।कभी-कभी चुनावी मौसम मे नेताओं द्वारा किये गये कार्यों की तरह उसके किये गये भी काम देखे जा सकते है।
ऐसा नही है कि वो नेताओं की तरह सिर्फ़ गरज़ता ही है,बरसता नही है।वो कभी-कभी बरसता भी है मगर उसके बरसने मे भी ऊंच-नीच या अमीर-गरीब का भेदभाव साफ़ नज़र आता है।उसका कोई भी काम नेताओं के कामो की तरह निश्पक्ष नज़र नही आता।वो भी अपने चाहने वालों को तो फ़ायदा पंहुचाता है और उस्का दुष्परिणाम गरीब ही भोगता है।वो जब बरसता है अमीर मौसम का मज़ा लेते है उअर गरीबों पर रोज़ी-रोटी का संकट कहर बरपा देता है।और जब नही बरसता तो भी अमीरो के लिये कम उत्पादन भारी मुनाफ़ाखोरी का कारण बन जाता है।और तो और वो तो भ्रष्टाचार के लिये नेताओं को हमेशा सुनहरा अवसर प्रदान करता रहता है।ज्यादा बरस कर बाढ और कम बरस कर सूखे के हालत राहत कामो के लिये ग्राऊंड बना देते है।फ़िर शूरू हो जाता है गरीबो की मदद के नाम पर अमीरो और नेताओं की तिज़ोरी भरने का काम।
कभी देखा है किसी गरीब को पहली बरसात मे स्काच का पैग हाथ मे लिये चिकन/मटन या गर्म भजिये का मज़ा लेते हुये?कभी देखा है किसी गरीब को छत पर भीगते हुये?हां याद आया गरीब तो हमेशा छ्त के नीचे टपकते हुये पानी को इकट्ठा करते हुये भीगता है।वो भी रेन डांस करता है मगर छत के नीचे के बरतनो को इधर से उधर सरकाने के लिये।ये साला बादल कभी भी झुग्गी-झोपड़ी और पाश कालोनी मे फ़र्क नही करता।बिल्कुल नेताओं की तरह सबको वोट लेकर जीत जाने के बाद एक जैसे ही देखता है।
बादल तो साला बेशर्मी मे भी नेताओं को मात देता नज़र आता है।नेता तो पांच साल मे एक बार आते है ये तो साला हर साल चला आता है बिना नागा। हर बार कुछ न कुछ गड़बड़ करता ही है।कभी बाढ तो कभी सूखा।कभी यंहा अकाल तो कभी वंहा अकाल्।बिहार,उड़िसा,असम और राजस्थान तो पहले इसके प्रिय राज्य थे मगर आजकल ये कंही भी किसी को भी निपटा देता है।राजस्थान को सुखा-सुखा कर तंग करने के बाद अब बाढ से परेशान करने लगा है।मतलब वो भी नेताओ की तरह कभी यंहा से तो कभी वंहा से जुगाड़ कर अपनी सत्ता कायम करने का फ़ार्मूला सीख गया है।
बादल इस बार भी किसानो के साथ मज़ाक कर रहा है।उसने पहले नेताओ के चुनावी घोषणापत्र की तरह मौसम विभाग से अपना घोषणापत्र जारी करवा कर किसानो की उम्मीद बढा दी थी और अब वो अपने घोषणापत्र को नेताओं की तरह आश्वासन की पुडिया बांधने के काम मे ला रहा है।किसानो का दम टूट रहा है और नेताओं के सब्र का बांध्।उन्हे भी ज़ल्दि है किसान मरे तो कर्ज़ा मुक्ति के नाम पर बंदरबांट कर सके।साला कमीनेपन मे भी अच्छे अच्छों को मात दे रहा है ये बरखा का भाई बादल्।इसके पीछे रायपुर से अमरावती आ गया।साला पहले यंहा बरस रहा था रायपुर मे नही और जब मै यंहा आया हूं तो यहा से भाग के वंहा बरस रहा है।है ना धोखेबाज़ो का बेताज बादशाह्।
15 comments:
अजी यह आप का साला जो ठहरा, आप से डरता है, या फ़िर छोटे प्यारे लाडले साले की तरह से आप को तंग कर रहा है, आंख मिचोली खेल रहा है.अब आप जल्दी से राय पुर पहुच जाये, वहा आप का इन्तजार कर रहा होगा.......
बहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद
Sahi hai sir ji
अब भई बादल तो है बादल, बादल का ऐतबार क्या कीजे.....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
वाकई, इस बार तो नेताओं को भी मात दे गये.
बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा.....
नित्य ही वंदना चल रही है अब तो पसीज ही जाना चाहिए...
क्या बात है अनिल भाऊ, आजकल तो आप बड़े कविहृदय होते जा रहे हैं? आधुनिक मेघदूत लिखने का इरादा तो नहीं है न?
बढ़िया तुलनात्मक अध्ययन किया है ,सटीक लगता है.आभार .
होशियार रहिएगा, कहीं आपको ही न लपेटे में ले ले।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वत्स, कल्याण हो. जब आदमी कविता करने लगता
है तो कुछ...?:) समझ गये ना? कहां तक पहुंची गाडी?
रामराम
दिल्ली में तो बादल भी नेताओं की ही चाल चल रहा है. न जाने कब ठीक से आएगा.
कल रात अपने इधर आ गया ...लेट है एज यूस्वल ...देखे कब तक ठरेगे भाई..
बादल ने भी बदल लिए
नेता जैसे दल हज़ार .....
vaah.. क्या saamjasy baithaaya है baadlon और netaaon में ........... mazaa आ गया lekh पढ़ कर .............. बस एक fark है ... baadal कभी तो आ jaayenge..... netaa बस 5 साल बाद
Ekdam sachchi baat....
Bat to ekdam sahi kahi apne..U r most welcome at my Blog "Shabd-Shikhar".
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