Tuesday, June 30, 2009
क्या सिर्फ़ समलैंगिको को अधिकार दिलाने के लिये बहस हो सकती है,सड़क पर दबकर मरने वालो का टी आर पी ज्यादा नही है शायद?
पेश है एक माईक्रो पोस्ट।मौसम पर नही कानून पर।दफ़ा 377 पर सारे देश मे बहस छिड़ गई है।देश के ठेकेदार स्टूडियो मे बैठ कर इसको देश के लिये ज़रूरी या गैर ज़रूरी करार देने की कवायद मे जुट गये हैं।समलैंगिक शब्द की टी आर पी बहुत है दरअसल,शायद इसिलिये इसके खतम करने पर पूरा ज़ोर दिया जा रहा है चाहे बाल्को या यौन शोषण के अपराध पर नियंत्रण करने के लिये बनाई गई धारा उनकी गर्मागरम बहस मे धारो-धार बह जाये।पता नही क्यों समलैंगिको को उनका अधिकार दिलाने के लिये पिल पड़े है सब?पता इस कानून मे क्या है?अरे बहस करना है तो इण्डियन मोटर व्हीकल एक्ट के प्रावधानो पर बहस करते।अंग्रेज़ो के बनाये इस कानून मे आज भी गाड़ी चलाने वाले के हित छिपे हुये है जबकि अब गाड़ी चलाने वाले अंग्रेज़ नही है और न ही दबने वाले भारतीय है।दबने वाले और दबाने वाले दोनो भारतीय है,हां उसमे एक फ़र्क आ गया है दबने वाला गरीब और दबाने वाला अमीर है।इस कानून के तहत सज़ा सिर्फ़ बदकिस्मत लोगो को ही मिलती है या अपने सेठों के बदले जुर्म स्वीकार करने वाले ड्राईवरों को।जो दबाता है वो जमानत पर रिहा होकर फ़िर सड़क पर निकल पड़ता है अगले शिकार की तलाश मे और जो दबता है वो या तो फ़िनीश या फ़िर ज़िंदगी भर अपाहिज्।क्या इस पर बहस नही हो सकती इस देश मे?हत्या और हत्या के प्रयास से किस प्रकार कम होता है लापरवाही से गाड़ी चलाकर किसी को कुचल देना?क्या कुचलए जाने वाले गरीबो के लिये बह्स करने या उनके लिये सोचने की किसी को फ़ुरसत नही है।
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14 comments:
बिलकुल सही...एक अच्छा लेख
अजी बहुत जरुरी है इस को पास करना, क्योकि गरीब के पास तो समय नही ऎसी बकबास बातो के लिये,गरीब तो रोटी दाल की उलझन मै ही फ़ंसा है ओर यह जो गरीबो का खून चुस के बन बेठे है नेता इन के बच्चो को तो जरुरत है ना, वरना कोई काले हब्सी को लेकर, तो कोई कुत्ते के संग पकडा गया तो,
इस देश का सम्पूर्ण कानून ही अंग्रेजों के कानून की नकल है। जहाँ राजा के लिए अलग कानून और प्रजा के लिए अलग कानून था। आज भी किसी भी राजनेता, नौकरशाह पर जब तक कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती जब तक उसके लिए आज्ञा नहीं मिले और आम जनता चाहे बेकसूर हो उसे बिना अपराध के अन्दर धरा जा सकता है। इसके मोटर-गाडी के कानून पर ही नही सारे कानून पर चर्चा होनी चाहिए और लोकपाल विधेयक शीघ्र आना चाहिए जिससे प्रधानमंत्री भी कानून से बड़ा नहीं बन सके। रही बात की तो अब तो यही होगा क्योंकि लिंगानुपात घट जो रहा है।
बहस की आवश्यकता है.
जरूरी नहीं कि गाड़ी चलाने वाला कुचले जाने वाले से अमीर ही हो. और हर बार दोष चलाने वाले का ही हो. लापरवाही से गाड़ी चलाकर किसी को कुचल देना और लापरवाही से सड़क पर दौड़ते हुए कुचले जाने में अन्तर है, ऐसे में गाड़ी चलाने वाले का हित भी देखा जाना चाहिए.
मैं पैदल चलता हूँ, सायकल पर भी निकलता हूँ और गाड़ी भी चलाता हूँ. बहुत बार गरीब (क्षमा सहित शब्द उपयोग में ले रहा हूँ) बच्चे जिस तरह गाड़ी के आगे आते है, साँसे रूक जाती है. वैसे ही सायकिल वाले भी बहुत बार लापरवाही से चलाते है. सड़क के कानून सबको पालन करने चाहिए. कोई नहीं चाहेगा की उसके हाथों कोई मरे.
शराब पी कर या अंधाधूंध गाड़ी चलाने वालो को कड़ी सजा होनी चाहिए.
भाटियाजी की सुनी जाये बिल पास कराने से पहले.:)
रामराम.
sahi लिखा है आपने............ पर जो भी बहस हो सार्थक होनी चाहिए...........
आपका गुस्सा जायज हो सकता है। समलैंगिकता पर बहस ना हो ये ग़लत हो जाएगा। बहस हर उस मुद्दे पर होनी चाहिए जो समाज से जुड़ी हो। फिर वो मोटर ड्राइविंग एक्ट हो या समलैंगिता हो या फिर पानी या बिजली की समस्या हो...
दोनों मुद्दों पर बात करने में क्या हर्जा है?
बहस हो किसी सार्थक विषय पर। निरीह लोगों की बेहतरी पर। समाज के उत्थान पर। लाखों लोगों के सर की छत पर। खाली-अधभरे पेटों पर।
पर यहां भी शायद सनसनी की जरुरत महसूसी गयी।
sadak par roj hajaar marte hain, wo common hai, kutta aadmi ko kate to yah news nahi hai, aadmi kutte ko kaate tab new banti hai!
३७७ तो १०० दिन से पहले एजेंडा में शामिल कर लिया गया लगता है . जय हो . और गरीब दब कर मर गया यह तो उसकी मुक्ति का साधन है ऐसा सोचते होंगे लोग
TRP बढ़ने का भरोसा मिले तो ये लोग किसी की भी आपसी शादी पर बहस करवा सकते हैं मसलन, बैल से बैल की, नल से नल की, ट्रक से ट्रक की या ऐसा ही कुच्छ भी..बस TRP बढ़नी चाहिए.
आप आगे तो बढिये हम आपके साथ हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सही लिखा भैय्या ..यहाँ तो फालतू चीजो पर ही चर्चा और खर्चा होता है ..
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