एस एम एस शुरू हुआ ही इस बात से कि कैसे कालेज की बिंदास ज़िंदगी परफ़ेक्ट प्रोफ़ेशनल लाईफ़ मे बदल गई।छोटी सी पाकेट मनी अब मोटी तन्ख्वाह मे बदल चुकी है मगर उससे उतनी खुशी नही मिलती।दो जोड़ी लोकल जीन्स की आल्मारी अब ब्रान्डेड कपड़ो से अटी पड़ी है मगर उन्हे पहने के खास मौके ही नही आते।कैसे एक प्लेट समोसा खाने के लिये मारामारी के दिन लद गये मगर अब बढिया स बढिया होटल मे बढिया से बढिया डिश खाते समय भी न मुंह मे पानी आता है और न खाने के बाद तृप्ति मिलती है।
हमेशा रिज़र्व मे रहने वाली फ़टिचर या खटारा स्कूटर अब हमेशा फ़ुल टैंक वाली शानदार लक्ज़री कार मे बदल गई है मगर उस पर सवार होकर जाने के लिये कोई जगह ही नही है।सड़क किनारे गुम्टियों या ठेले पर चाय कि चुस्कियों का मज़ा सी सी डी या आलिशान काफ़ी शाप मे कभी नही मिल सकता।लिमिटेड प्रिपेड कार्ड वाला मोबाईल अब पोस्टपेड पैकेज मे बदल चुका है मगर अब उससे बात किससे करे ये समझ नही आता।
लोकल ट्रेन मे या सेकेण्ड क्लास का रेल का सफ़र अब भुली बिसरी याद भर बस है मगर शानदार कार से लेकर हवाई जहाज तक़ के सफ़र की व्यवस्था होने के बाद भी समझ मे नही आता कंहा जायें।
शायद यही तरक्की के सफ़र का सच है जिसका नाम ज़िंदगी है।एस एम एस अक्सर बक़वास ही होते हैं पर पता नही क्यों इस एस एम एस ने सोचने पर मज़बूर कर दिया।बहुत सी बातें तो ज़िंदगी के सफ़र मे हमने भी वही देखी है जो इस एस एम एस मे बताई गई है।
14 comments:
यही फर्क होता है जिन्दगी के अहसास का उसके अलग अलग पडाव पर
yahi toh takleef hai anilji ki bahut kuchh aisaa hum se door ho rahaa hai jiske bina hamaari zindgi poorna nahin hoti.........
aadhunikikaran k naam par humen vah parosa jaa raha hai jiski humen na toh aadat hai aur na hi shauk !
_____________khair.....
aapka aalekh baanch kar sukh mila,.,,,,
badhaai !
इसी का नाम जिन्दगी है....अच्छी पोस्ट लिखी।
कोई लौटा दे मेरे बचपन के दिन!
बिलकुल सही कहा. नशा शराब में होता तो नाचती बोतल!
गुज़रा ज़माना लौटता नहीं...
आते हुए कल में बीते कल की कुछ यादें पहले ही उड़ कर पहुंच जाती हैं...वहीं हमारा मार्गदर्शन भी करती हैं और अतीत से भी जोड़े रखती हैं।
ईमानदारी से कोई बीते हुए दिन मुझे लौटाना भी चाहे तो ये इनायत मुझे कभी कुबूल न होगी...मैं जहां हूं, वहा खुश हूं। न एक कदम आगे, न पीछे। एकदम सही जगह पर हूं:)
आप तो संस्मरणों के मसीहा है
क्या बात है? आज तो पु्री शिद्दत से बचपन याद आगया?
रामराम.
एक कसक तो बनी रहती है ऐसी बातें याद कर
दूसरों को सुख सुविधायुक्त देखकर सारे लोग एक अंधी दौड में ही तो शामिल होते जा रहे है .. सही रास्तों से आगे बढनेवालों की तो प्रशंसा ही होनी चाहिए .. पर कुछ नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर उंचाई हासिल करने में रूचि ले रहे हैं .. पर वहां जाकर मालूम होता है कि सब छलावा है .. अंत में न तो खुद के लिए कुछ बचा होता है न परिवार के लिए .. समझना होगा कि संतुष्ट होने के लिए तो दो समय की रोटी सब्जी और तनभर कपडे ही काफी हैं .. बहुत सुंदर पोस्ट ।
जो दिलकश कश चारमिनार में है वो विल्स में कहा?
जो नशा ठर्रे में है वो जानी वाकर में कहा:)
SUNDAR POST HAI.....DIL KO KHEENCH KAR GUZRE DINO MEIN LE JAATI HAI..... HUMKO BHI APNA PURAANA VAQT YAAD AA GAYA....
सच कहा, बचपन की यादें खुशगवार होती है.
समस्याओं का ख़त्म हो जाना ही निर्वाण है.
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