आज़ादी के पर्व पर हमारा क्लब सालों से पिकनिक आयोजित करता आ रहा है।इस बार भी साथी पिकनिक पर गये।कुछ साथी रात को ही वंहा जाने पर अड़े थे।तीन मे से एक बस और एक टवेरा गाड़ी भर कर रात को वंहा जाने के फ़ैसले पर मैने मुहर नही लगाई और मेरे हिटलरी फ़रमान के बाद कुल जमा चार साथियों ने मुझसे रात को वंहा जाने के लिये ज़िद की।मैने उनसे साफ़ कहा जिसको जाना है जाये,मरे,मुझे कोई लेना-देना नही है।अपनी ज़िम्मेदारी पर जाओ मै कोई व्यवस्था नही करुंगा।उनके लिये इतना ही काफ़ी था।वे चारो रात को ही निकल गये।
रवाना होने के पहले मैने उनमे से एक को समझाया कि रास्ते मे दारू पीने बैठोगे तो ज़ल्दी निपटाना।बरसात का मौसम है रात को ड्राईविंग रिस्क है और पीने के बाद ड्राईवर पर प्यार मत उंडेलना।ड्राईवर तू भी अपना भाई है यार आ तू भी क्या याद करेगा बड़े दिलवाले से तेरा पाला पड़ा है,ले पी,हम कह रहे हैं,पी बे,साले कभी पिया है स्काच,और दुनिया भर के डायलाग़ ,मैने उसे याद दिलाये और उनका उपयोग नही करने की चेतावनी भी दी।तब तक़ वो हलका लाठी चार्ज यानी थोड़ा पी चुका था।मेरे उपदेश को लमबा होते देख उसे उतर जाने का खतरा लगा सो बचने के लिये उसने कहा कि भैया बच्चे थोड़े ही हैं।मुझे भी लगा बात सही कर रहा है और मैने घर का रूख कर लिया।
पता नही क्यों इस बार मैं पिकनिक पर नही गया।वैसे भी वंहा जाकर बड़े गुरूजी की भूमिका निभाते-निभाते बोर हो गया था मैं।सो मैने बार-बार सबके फ़ोन का एक ही जवाब दिया मै दोपहर तक़ पहुंच जाऊंगा अपनी गाड़ी से।सब खुश और मै भी लम्बी तान कर सो गया।दोपहर को फ़ोन बज़ने लगा।मैने ये समझ कर फ़ोन नही उठाया कि वंहा आने की फ़रमाईश शुरू हो जायेगी फ़िर फ़ोन घनघनाने की स्पीड बढती चली गई।मुझे आशंका हुई कि पिकनिक मे कोई लफ़ड़ा हुआ होगा और फ़ोन उठाते ही वो सच साबित हुई।जैसे ही उधर से मुझे बताया गया कि अपना पंडित झरने मे गिर गया है और उसे सिर पर चोट आई है मेरा बीपी बढ गया।मैने उसे ततकाल रायपुर लाने के लिये कहा और रायपुर मे सारे डाक्टर दोस्तों को उठा कर तैयारियां करवा दी।खुद जाकर अस्पताल मे बैठा रहा।रह-रह कर मुझे गुस्सा आता फ़िर हताश होकर मै खुद पर तरस खाकर इंतज़ार करने लग जाता।अंधेरा होते-होते उसे रायपुर लाया गया।इलाज शुरू हुआ और जांच के बाद रात को मुझे बताया गया चिंता कि कोई बात नही है,लेकिन आब्ज़र्वेशन मे रखना पड़ेगा।
अब वो खतरे से बाहर है,लेकिन पसली टूट चुकी है और कंधा भी घायल है।खतरे से बाहर होने के बाद कल शाम इस टापिक पर क्लब मे बह्स शुरू हुई।एक सज्जन ने कहा कि ऐसी जगह आप ले जाते ही क्यों हो?जब आपको मालूम है कि अपने भाई लोग सरकार को बिना टैक्स दिये मानते नही है तो रिस्क लेना ही नही चाहिये?मैने उससे कहा इस्का मतलब गलती मेरी है?वो बोला बिल्कुल्।तभी दूसरा बोला भैया,ये काई वाला पानी तो नही रहना चाहिये न ?कम से पहाड भी तो चिकने पत्थरों वाले न हो ये भी तो देखना चहिये?अपन एन्जाय करने जा रहे है इस्लिय्……………मेरा दिमाग तब तक़ सरक गया और मैने कहा सालो सारी गलती उस काई लगे पानी की है?है ना।गलती उस खूबसूरत पहाड़ो की है,पत्थरो की है।झरने की है?है ना?और तुम लोगो की कोई गलती नही?दारू की कोई गलती नही है ना?वो बोले, भैया दिन मे गिरा है।उस समय ज्यादा थोड़ा ही ढकेला था?
बहुत दिनो बाद सबने राहत की सांस ली थी शायद इसलिये सब मुझे चिढाने पर तुल गये थे!एक ने कहा कि इसमे दारू कंहा से आ गई?मैने कहा कमीनो चार आदमी रात को गये थे और बोतल ले गये थे बारह्।क्यों क्या उसके बाद दारूबंदी हो रही थी?अरे आप तो बस सिवाय गाली बकने बहाने ढूंढने के कोई काम ही नही है?दूसरे दिन ड्राई डे पर जंगल मे कंहा से ढूंढते?और महुवा पीलो तो भी आप से गाली ही खाओ?अरे भैया गिर तो कोई भी सकता है?अगर कोई हमारी गैंग के बाहर का नान-पीऊ गिरता तो ?मै बोला सालों तुम लोग नही सुधरोगे?गलती न तुम लोगो की है और न दारू की है?गलती मेरी है जो मै तुम लोगो से सिर फ़ोड़ रहा हुं।भगो जाओ नही तो मै भी आता हूं पीकर फ़िर बताता हूं।इतना सुनते ही एक ने कहा इसके लिये कंही जाकर आने की ज़रूरत नही है?पिकनिक का स्टाक बचा हुआ है?आपका आदेश हो तो यंही शुरू हो जाते हैं!
17 comments:
बहुत रोचक लेकिन सत्य को उजागर करती पोस्ट...ये किस्सा कामों बेश हर जगह का ही है...इंसान चाहे रायपुर का हो या जयपुर का सोच में एक सा ही होता है...ऐसे लोगों का अभी तक कोई इलाज नहीं ढूंढ पाया है..ये पीते रहेंगे और गिरते रहेंगे...अनवरत...
नीरज
:D ha ha ha....
ये भी खूब रही।
अरे भाऊ, ऐसे नेक काम में आदेश की जरूरत कहाँ पड़ती है, वैसे भी मंदी के कारण स्टाक क्लियरेंस सेल का मौसम है, पिकनिक का स्टाक बचा है तो तुरन्त संजीत को साथ लो और निपटा दो…।
ha ha ha ha :)
बहुत बढिया किस्सा रहा जी..
रामराम.
वैसे बेचारे कह तो सही रहे थे. अब पाकिस्तान यहां की करन्सी छाप कर भेज रहा है तो प्रधान जी कह रहे हैं कि गलत हो रहा है.
सही है, हमेशा गलती पहाड़ों, झरनों की ही होती है, दारू या दारू पीने वालों की कभी नहीं। वैसे गलती पहाड़ों, झरनों के अलावा बड़े, सयाने, प्रबन्धक, आयोजक आदि की भी होती है।
ज्यादा मती हड्काओ वर्ना वो आब्जर्वेशन मेँ ही बने रहेँगे।
चलिए जान तो बच गयी !
जिन्हें ये सब करना है जरूर करेंगे, मना करने पर भी जरूर करेंगे। सब कहते हैं कि वे सब होशियारी से करते हैं। लेकिन जब कुछ घट जाता है तब कुछ देर हलकान होते हैं और उसी रास्ते पर चलने लगते हैं।
मेरे एक मित्र रोजाना के पियक्कड़ थे। लेकिन बहुत दिनों तक मुझे पता ही नहीं चला कि वे नियमित पीते हैं। अब आप के दोस्त यह भी कह सकते हैं कि यह भी कोई पीना हुआ, पिया भी और लोगों को पता भी नहीं चला।
तो असली गुनाहगार दारू ही था ना:)
सटीक चिंतन है दादा... अब भला ये ही तो वो सरकारी टैक्स है जिसे देशवासी गर्व से देते हैं. खैर.. कभी रायपुर में कवि-सम्मेलन करवाऒ तो हम भी देख लें टैक्स ठीक-ठाक जा रहा है कि नहीं. मैं जब पिछली बार रायपुर गया तो स्टेशन के बाहर वाले ठेके पर सरदार जी बैठे थे. मैंने उनसे पंजाबी में बात की तो वो इतने प्रसन्न हुए कि बोतल पर पचास रू की छूट देदी. बहरहाल पंडित जी का क्या हाल है.... उन्हें शुभकामनाएं..
सटीक चिंतन है दादा... अब भला ये ही तो वो सरकारी टैक्स है जिसे देशवासी गर्व से देते हैं. खैर.. कभी रायपुर में कवि-सम्मेलन करवाऒ तो हम भी देख लें टैक्स ठीक-ठाक जा रहा है कि नहीं. मैं जब पिछली बार रायपुर गया तो स्टेशन के बाहर वाले ठेके पर सरदार जी बैठे थे. मैंने उनसे पंजाबी में बात की तो वो इतने प्रसन्न हुए कि बोतल पर पचास रू की छूट देदी. बहरहाल पंडित जी का क्या हाल है.... उन्हें शुभकामनाएं..
Thats why i advocate beer only , but yes u can't keep it chilled for long in jungle !
बहुत बढ़िया पोस्ट रही पुसदकर जी।
शुभकामनाएँ।
Anil bhai i've been thinking about this incident since morning and i must say that never leave ur friends alone on a picnic like this.
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